Biography of Maharana Kumbha- दोस्तों राजस्थान की पहचान राजपुताना और यहाँ के वीरों के बलिदान के लिए पूरी दुनिया जाना जाता है. यहाँ वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप से लेकर राणा सांगा और पन्ना धाय, मीरा बाई और अनेक संत और बलिदानियों की भूमि का जन्म स्थल रहा है. यहाँ की हवेलिया, किले, वीर भूमि झुंझुनूं, सीकर,चूरू तो एक तरफ बलिदानो का प्रतीक चित्तौडग़ढ़ है. भारत के सबसे बड़े जौहर रानी पद्मिनी जी की गाथा है तो यही चित्तौडग़ढ़ के पास हल्दीघाटी भी है, जहाँ राणा के विरो ने अकबर को हराया था. तो दोस्तों चलते है, और आज को बताते है वीर महाराणा कुंभा की जीवनी (Biography of Maharana Kumbha) और उनके बहादुरी के किस्से. पाठको से निवेदन है वीर महाराणा कुंभा जी रोचक जानकारी के लिए इस पेज को अंत तक पढ़े.
Biography of Maharana Kumbha (महाराणा कुंभा जी की जीवनी)
राजस्थान की स्थापत्य कला के पिता महाराणा कुंभा का जन्म 1415 ईस्वी के आस-पास में मेवाड़ हुआ था. आपकी माता जी का नाम परमार वंश की राजकुमारी सौभाग्य देवी था. आपके पिता जी मेवाड़ के राजा थे और उनका नाम महाराणा मोकल था. महाराणा कुंभा वर्ष 1433 इसी में केवल 18 वर्ष की आयु में अपने पिता महाराणा मोकल की जनधन हत्या के पश्चात महाराणा कुंभा मेवाड़ के राज गद्दी पर बैठा. उस समय मेवाड़ अनेक विपत्तियों से जूझ रहा था प्रतिकूल परिस्थितियों में अल्प वयस्क महाराणा कुंभा के सामने युद्ध के बादल मंडराते स्पष्ट दिख रहे थे. उसके पिता के हत्यारे महाराणा खेता की पत्नी के पुत्र व उसका समर्थक मेहता पवार स्वतंत्र रूप से घूम रहे थे. और विद्रोह का झंडा खड़ा करके चुनौती दे रहे थे. मेवाड़ का राज दरबार भी सिसोदिया व राठौर दो गुटों में बट हुआ था.
Summary
नाम | कुम्भकर्ण सिंह सिसोदिया/महाराणा कुंभा |
उपनाम | राजस्थान की स्थापत्य कला के पिता/महाराणा कुंभकर्ण या कुंभकर्ण सिंह |
जन्म स्थान | मेवाड़ |
जन्म तारीख | 1415 ईस्वी |
वंश | सिसोदिया |
माता का नाम | सौभाग्य देवी |
पिता का नाम | महाराणा मोकल |
पत्नी का नाम | मीराबाई |
पेशा | शासक |
बेटा और बेटी का नाम | बेटी रमाबाई, दो बेटे रायमल और उदा (उदयसिंह) |
गुरु/शिक्षक | महाराणा मोकल |
देश | भारत |
राज्य छेत्र | राजस्थान, मेवाड़ |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
किलो का निर्माण | महाराणा कुंभा ने मेवाड़ के 84 दुर्गों में से 32 दुर्गे अकेले उन्होंने ही बनवाए थे |
मृत्यु | 1468 ईस्वी |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Maharana Kumbha (महाराणा कुंभा की जीवनी) |
वेबसाइट | राजस्थान स्टेट ऑफिसियल वेबसाइट |
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महाराणा कुंभा के पिता की हत्या का प्रतिशोध
महाराणा कुंभा का भाई भी जिसका नाम खेमा था उसकी महत्वाकांक्षा भी मेवाड़ राज्य की गद्दी प्राप्त करने की और लगी हुई थी. जिसकी प्राप्ति के लिए वह मांडू के सुल्तान की शरण में पहुंच कर वहां से सहायता प्राप्त करने के लिए मांडू के सुल्तान की शरण में पहुंच कर वहां से सहायता प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयास कर रहा था. और दिल्ली सुल्तान फिरोज़ शाह तुगलक की मृत्यु के बाद दिल्ली की सल्तनत काफी कमजोर हुई थी.
और उसी समय वर्ष 1398 ईसवी में तैमूरी आक्रमण के कारण दिल्ली के केंद्रीय शासक की जड़े हिल गई थी. दिल्ली के तख्त पर उस समय सैयद शासक बैठे थे. जिनक शक्ति को अनेकों शक्तियां चुनौतियां दे रही थी और जिनका राजपाट छोड़कर संकुचित हो चुका था. परिणाम स्वरूप दूरवर्ती प्रदेश जिसमें जौनपुर, मालवा, गुजरात, ग्वालियर, नागौर आदि स्वतंत्र होकर अपना राजा बनाने में लगे हुए थे.
इन सारी परिस्थितियों को देखते हुए महाराणा कुंभा ने सर्वप्रथम अपनी आंतरिक समस्याओं के समाधान की ओर ध्यान केंद्रित किया. भाग्य से उस समय तीन-चार वर्षों तक मेवाड़ राज्य से लगे हुए उसके पड़ोसी मुस्लिम राज्य मालवा और गुजरात के शासकों की कुदृष्टि मेवाड़ राज्य पर नहीं पड़ी. और इस कारण राणा कुंभा निश्चित होकर अपनी स्थिति को सुदृढ़ कर सका. उसे अपने पिता के हत्यारों की को सजा देना भी जरूरी था.
उसे इस कार्य में मारवाड़ के राव रणमल की सहायता प्राप्त हुई और. वह अपने चाचा और “मेरा” को मृत्यु के घाट उतार का चाचा के लड़के एकता तथा मेहता पवार को भागकर मालवा के सुल्तान की शरण में जाकर जान बचानी पड़ी. अब कुंभा ने अपने शत्रुओं से निवृत्त होकर अपने खोए हुए राज्य को पुनः प्राप्त करने में अपना ध्यान लगाया. जो संकटकालीन समय में मेवाड़ से विलय हो गए थे. कुंभा ने निश्चय किया कि वह उन क्षेत्रों को पुनः हासिल करेगा. अतः उसने अपना विजय अभियान चालू किया और बूंदी अभियान गागरोन, सिरोही इत्यादि अभियानों के द्वारा अपने खोए हुए गांव और क्षेत्र को पुनः विजय करने में सक्षम रहा.
महाराणा कुंभा की विजय (Victory of Maharana Kumbha)
महाराणा कुंभा मालवा और गुजरात के सुल्तानों को हराने के पश्चात कुंभा ने अनेक महत्वपूर्ण विजय कि जैसे कुंभलगढ़ प्रशासित के अनुसार अनेकों प्रदेशों पर विजय प्राप्त की थी. मालवा के सुल्तान मोहम्मद खिलजी ने मेवाड़ पर 5 बार आक्रमण किए किंतु महाराणा कुंभा ने उसे मार कर भगा दिया. महाराणा ने रणथंबोर को पुनः जीत लिया था और अजमेर पर भी विजय प्राप्त की थी. गुजरात के सुल्तान को भी पराजय का स्वाद चखा दिखया था. जिसने बेवजह मेवाड़ पर आक्रमण किया था.
(Maharana ) महाराणा कुंभा द्वारा किले का निर्माण
मित्रों वीर महाराणा कुंभा ने मेवाड़ के 84 दुर्गों में से 32 दुर्गे अकेले उन्होंने ही बनवाए थे. इन निर्माणों में सामरिक महत्व का अधिक ध्यान दिया गया था कुंभलगढ़ के प्रसिद्ध दुर्ग का पुनर्निर्माण करवाया इसके अलावा बसंती दुर्ग मचान का दुर्ग अचलगढ़ का दुर्ग मटका दुर्ग इत्यादि का निर्माण करवाया. कुंभलगढ़ का दुर्ग का निर्माण कार्य 1446 ईस्वी में प्रारंभ किया था जो 1458 इसमें पूर्ण हुआ उन्होंने चित्तौड़गढ़ का दुर्ग भी पुनर्निर्माण करवाया था. जो उनके धवल यश और अनेक गौरवपूर्ण विषयों का सम्मान कर आता है.
जेम्स टॉड के अनुसार महाराणा कुंभा ने अपने राज्य को निश्चिती शुद्र दुर्गों से सुख संपन्न संपन्न करके अपना नाम चिर स्थाई कर दिया. परंतु ऐसे वीर प्रताप ही विद्वान साहित्य अनुरागी ललित कलाओं के संरक्षक और प्रजा वत्सल महाराणा कुंभा का अंत अति दुख और शौक जनक हुआ. उसके ही पुत्र उदा अथवा उदय सिंह ने उसकी हत्या कर दी तथा वह 1468 इसी में सेवा मेवाड़ के राज्य सिंहासन पर बैठा.
जीएस शर्मा के अनुसार महाराणा कुंभा की मृत्यु केवल उसकी जीवन लीला की समाप्ति ही नहीं थी. साथ में संपूर्ण कला साहित्य शौर्य अधिक की परंपरा की गति का विरोध रुकावट भी था. कुंभा के पश्चात इस प्रकार की सर्वोत्तम मुखी उन्नति की परछाई मेवाड़ में नहीं दिखाई देती है. सबसे बड़ी विशेषता जो हम कुंभा के व्यक्तित्व में पाते हैं. वह विजय नीति की वैज्ञानिक चलता वैज्ञानिकता तथा कूटनीति है. धार्मिक क्षेत्र में वह उस समय समय से ऊपर उठा था वास्तव में कुंभा एक महान विजेता था.
Maharana Kumbha murdered by son (महाराणा कुंभा की बेटे द्वारा हत्या)
इस में कोई दोराहा ही नहीं की महाराणा कुंभा के बाद मेवाड़ की दशा उदास हो गयी थी. दोस्तों कुंभा के बेटे उदय सिंह द्वारा की गई अपने पिता कुंभा की बुरी तरह हत्या के कारण मेवाड़ राज्य की हालत दिनों दिन खराब होती गयी. मित्रो महाराणा कुंभा के समय मेवाड़ उन्नति के जिस शिखर पर पहुंच चूका था. वो अब अवंती की ओर जाना शुरू हो चूका था. उदा को मेवाड़ की जनता शासक स्वीकार करने को कोई तैयार नहीं हुआ. परिणाम स्वरूप उदय सिंह और उसके भाइयों में खून रक्त पूर्ण उत्तराधिकार संघर्ष हुआ. जिसमें उसके भाई रायमल ने सिंहासन प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की. और मेवाड़ का शासक बना दुष्ट उदय सिंह पराजित और अपमानित होकर अपने कुल की मर्यादा के विपरीत मालवा के सुल्तान की शरण में सहायता प्राप्त करने के उद्देश्य से पहुंचा.
मेवाड़ की इस अराजकता पूर्ण स्थिति का लाभ पड़ोसी राज्यों ने उठाया और मेवाड़ राज्य के बड़े हिस्से पर उन्होंने कब्जा कर लिया परंतु रायमल ने भी योग्यता पूर्ण ढंग से शासन किया. और मेवाड़ की शत्रु के आक्रमण से अनेकों बार रक्षा की और शत्रु खदेड़ दिए गए. जोधपुर के राठौड़ों से उसने मित्रता की और हाडा राजाओ से भी मधुर संबंध बनाए. और अपनी स्थिति को सुदृढ़ किया किंतु इसी बीच उसके पुत्रों में झगड़ा प्रारंभ होने और दो पुत्रों की असमय मृत्यु हो जाने. तथा संघ का मेवाड़ प्रति आकर चले जाने के कारण उसका अंतिम समय दुख दुख में हो गया था.
परंतु उसकी मृत्यु के पूर्व सांगा वापस मेवाड़ चला आया अतः रायमल ने उसे अपना उत्तराधिकारी घोषित किया. राजमल की मृत्यु के पश्चात वर्ष 1508 इसी में सांगा मेवाड़ के गद्दी पर बैठा राणा सांगा के गद्दी पर बैठने के पश्चात ही मेवाड़ राज्य का उत्कर्ष उत्कर्ष काल पुनः प्रारंभ हो जाता है.
महाराणा कुंभा द्वारा रचित कृतियां
आपके द्वारा लिखित प्रमुख कृतियां इस प्रकार है, संगीत मीमांसा, गीतगोविन्द, चंडीशतक व्रती, सूड़प्रबंध, संगीतसुधा, संगीतरत्नाकर टीका, संगीतक्रम दीपिका, कामराज रतिसार, दर्शनशास्त्र, हरिवतिक्रमं, वाध प्रबंधन, संगीत सुधा, नाटकराज, शिल्पशास्त्र थी.
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FAQs
Ans-महाराणा कुंभा की हत्या 1468 में उसके पुत्र उदा (उदयसिंह ) ने की थी.
Ans- महाराणा कुंभा की माता का नाम सौभाग्य देवी और आपके पिता जी का नाम महाराणा मोकल था.
Ans-राजस्थान की स्थापत्य कला के पिता महाराणा कुंभा को कहा जाता है.
नोट- We have collected the information recorded in this article on the Biography of Maharana Kumbha from online websites, newspapers, and various books. We hope the information available here will help the students with the questions coming in the competitive examination. We request our readers. does not verify the correctness of the information provided here. Therefore, students should search for official information to know the truth. (Biography of Maharana Kumbha)