प्रस्तावना
हमारी भारतीय संस्कृति में गुरु शिष्य की महान परंपरा रही है. गुरुओं का अपने शिष्य के प्रति प्रेम भाव, और शिष्यों का अपने गुरुओं के प्रति अगाध श्रद्धाभाव महान परंपरा है. शिष्य के अज्ञान व अंधकार को दूर कर उसे परीक्षा रूपी कसौटी पर कस कर गुरु उन्हें कुंदन बनाते हैं. हम यहाँ महाना गुरु भक्त आरुणि की जीवनी (Biography of Guru Bhakt Aruni). और गुरु भक्त आरुणि की वो रोचक और अद्भुत जानकारी शेयर करने वाले है. जिसके बारे में आप अबसे पहले अनजान थे. तो मित्रों चलते है और जानते है, गुरु भक्त आरुणि की आश्चर्यजनक जानकारी.
गुरु भक्त आरुणि कौन थे?
दोस्तों कहा जाता है महर्षि आयोदधौम्य के तीन प्रसिद्ध शिष्य थे. आरुणि, उपमन्यु और वेद, इनमें से आरुणि अपने गुरुदेव के सबसे प्रिय शिष्य थे. वह गुरु का अत्यन्त आज्ञाकारी शिष्य था. सदा उनके आदेश का पालन करने में तत्पर रहता था. यद्यपि वह अधिक कुशाग्र बुद्धि नहीं था. परन्तु इस आज्ञाकारिता के गुण के कारण वह ऋषि धौम्य का प्रिय शिष्य था. और सबसे पहले सब विद्या पाकर ये ही गुरु के आश्रम के समान दूसरा आश्रम बनाने में सफल हुए थे.
Summary
नाम | आरुणि |
उपनाम | गुरु भक्त आरुणि |
जन्म स्थान | – |
जन्म तारीख | — |
वंश | गौतम |
माता का नाम | — |
पिता का नाम | ओपवेशिक गौतम |
पत्नी का नाम | – |
उत्तराधिकारी | — |
भाई/बहन | – |
प्रसिद्धि | आरुणि की गुरु परीक्षा कहानी |
रचना | – |
पेशा | – |
पुत्र और पुत्री का नाम | उद्दालक |
गुरु/शिक्षक | महर्षि आयोदधौम्य |
देश | भारत |
राज्य क्षेत्र | भारत |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | हिंदी, संस्कृत |
मृत्यु | — |
मृत्यु स्थान | — |
जीवन काल | — |
पोस्ट श्रेणी | गुरु भक्त अरुणी की जीवनी (Biography of Guru Bhakt Aruni) |
आरुणि की गुरु परीक्षा कहानी
आरुणि महर्षि आयोद धौम्य का शिष्य था. ऋषि आयोद धौम्य ने अपने शिष्यों की धैर्य संयम तथा परिश्रम की परीक्षा इसलिए लिया करते थे. ताकि वह जीवन की परीक्षा में असफल ना हो. एक दिन बहुत मूलाधार वर्षा हो रही थी. इतनी अधिक वर्षा में खेत की मेड बांधने की जरूरत आन पड़ी थी. ताकि वर्षा का पानी खेत की मेड से बाहर निकलने पाए. गुरु का आदेश पाते ही आरुणि भरी वर्षा में ही खेत की ओर निकल पड़ा. उसने देखा कि खेत में पानी बहुत भरा हुआ है. पानी का तेज बहाव अब खेत की मेड को तोड़ने लगा था. आरुणि ने फावड़े से मीठी-मीठी इकट्ठी कर मेड को बांधना चाहा. पर पानी का भाव इतना अधिक था, कि मिट्टी रुक नहीं पा रही थी. गुरु की आज्ञा का पालन तो करना ही था.
उसे कोई उपाय नहीं सूझ रहा था. उसने कटी हुई मेड को देखा फिर कुछ सोचकर उस स्थान पर आड़ा लेट गया. उसके लेटते ही वहां से पानी बहना रुक गया और अब वर्षा भी मंद पड़ने लगी थी. आरुणि सोचने लगा यदि वह वहां से उठ जाता है, तो सारा पानी निकल जाएगा. अतः वह वहीं पर चुपचाप लेटा रहा. पड़े पड़े सूर्यास्त हो चला था, रात देने लगी थी. गुरु ने संध्या वंदन के समय सभी शिष्यों को आवाज दी, आरुणि वहां नहीं था.
आज्ञाकारी आरुणि
गुरु जी ने सब से पूछा तो उन्हें ज्ञात हुआ कि उन्होंने तो आरुणि को खेत की मेड बांधने के लिए भेजा है. गुरु ने सोचा कि प्रातः काल से अरुण तो वही खेत पर है, जाकर देखा जाए बात क्या है. वह अब तक क्यों नहीं लौटा, अपने शिष्यों के साथ प्रकाश का प्रबंध कर वे खेत की ओर चल दिए. उन्होंने आरुणि को इधर-उधर ढूंढते हुए आवाज दी, बेटा आरुणि कहाँ हो तुम! हम तुम्हें ढूंढ रहे हैं. आरुणि ने वहीं लेटे-लेटे गुरु को आवाज दी गुरूजी मैं यहां मेड पर पड़ा हूं. आवाज की दिशा में गुरु ने शिष्यों सहित जाकर देखा, तो पाया कि कटी हुई मेड पर पानी के प्रवाह को रोके हुए अरुणिमा लेटा हुआ है.
इतने समय तक वहां लेटे आरुणि को देखकर गुरुजी उसकी आज्ञाकारी ता को देखकर गदगद हो गए. गुरु ने आरुणि से कहाँ तुम इतनी देर तक वह भी इतनी वर्षा में मेड पर पड़े हो. आरुणि ने उत्तर में कहा, गुरुदेव मैं तो बस आपकी आज्ञा का पालन कर रहा था. इस हेतु मुझे यही उपाय सूझा. और आरुणि के ऐसा कहते ही, गुरु ने उसे अपने गले लगा लिया. और उसे आशीर्वाद देते हुए कहा तुम्हारे जैसे शिष्य को पाकर भला कौन सा गुरु ऐसा होगा जो पसंद नहीं होगा. तुम यशस्वी बनो, संसार में आज से तुम आरुणि उद्दालक के नाम से जाने जाओगे.
उपसंहार
जितने भी महान शिष्य हुए हैं, उतने ही महान उनके गुरु भी हुए हैं. आयोद धौम्य ऋषि होने के साथ-साथ महान गुरु भी थे. उनकी गुरु शिष्य परंपरा में उपमन्यु के साथ-साथ आरुणि जैसे शिष्य का नाम अमर रहेगा.
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FAQs
Ans- आरुणि के गुरु आयोद धौम्य ऋषि उनकी गुरु भक्ति से प्रभावित होकर उनका नाम आरुणि उद्दालक रखा था.
Ans- आरुणि के गुरु आयोद धौम्य ऋषि थे.
Ans- आयोद धौम्य ऋषि के आश्रम में आरुणि के साथ गुरु भक्त उपमन्यु भी शिक्षा ले रहे थे.