Battle of Plassey 1757 AD | प्लासी का युद्ध 1757 ई.

By | September 11, 2023
Battle of Plassey 1757 AD
Battle of Plassey 1757 AD

प्लासी का युद्ध बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला और अंग्रेजों के बीच 1757 ईस्वी (Battle of Plassey 1757 AD) में हुआ था. इसमें सिराजुद्दौला की पराजय और अंग्रेजों की विजय हुई थी. राजनीतिक दृष्टि से यह युद्ध बड़ा ही महत्वपूर्ण था. इस युद्ध के परिणाम स्वरुप ही अंग्रेजों की स्थिति भारत में अधिक सुदृढ़ हो गई थी. मुगल सम्राट जहांगीर के शासनकाल में ही अंग्रेजों ने भारत में व्यापार करने का अधिकार प्राप्त कर लिया था. शाहजहां और औरंगजेब के शासनकाल में अंग्रेजों ने कालीकट, मद्रास, मुंबई और कोलकाता आदि बड़े-बड़े नगरों में अपनी व्यापारी कोठियों की रक्षा के लिए अस्त्र और शस्त्र से सुसज्जित सेना रखने लगे. उनकी सेना में यूरोपियन सिपाही तो होते थे साथ ही भारतीय सिपाही भी होते थे.

हम यहाँ प्लासी के युद्ध के कारण, प्लासी युद्ध नवाब सिराजुद्दौला में हार के कारण क्या थे. सिराज उद दौला की मृत्यु कैसे हुई?, सिराजुद्दौला से पहले बंगाल का नवाब कौन था?. बंगाल का अंतिम शासक कौन था?. मीर जाफर कौन था ऐसे तमाम सवालों के जवाब आपको इस पेज पर मिलेंगे. तो दोस्तों चलते है, और जानते है प्लासी के युद्ध की रोचक जानकारी.

मिर्ज़ा मुहम्मद सिराजुद्दौला कौन था?

सिराजुद्दौला का जन्म 1733 ईस्वी में मुर्शिदाबाद बंगाल में हुआ था. नवाब का पूरा नाम मिर्ज़ा मुहम्मद सिराजुद्दौला था. अपने नाना अलीवर्दी खान नवाब की मौत के बाद अप्रैल सन 1756 में उन्होंने बंगाल की गद्दी संभाली थी. सिराजुद्दौला वैधानिक रूप से मुगल साम्राज्य केेे बंगाल प्रांंत जिसमें वर्तमान भारत के पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, उड़ीसा तथा बांग्लादेश सम्मिलित के नवाब बने. उस वक्त सिराजुद्दौला महज 24 साल की उम्र थी. उसी वक्त अंग्रेजों ने उपमहाद्वीप में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की थी.

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Battle of Plassey 1757 AD

मीर जाफ़र कौन था?

मीर जाफ़र शुरु में वह बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला का सेनापति था. और बाद में अंग्रेजो से मिलकर बंगाल का नवाब था. वह ऐसा आदमी था जो दिन रात एक ही सपना देखता था. की वो कब बंगाल का नवाब बनेगा. वह प्लासी के युद्ध में (Battle of Plassey 1757 AD) अंग्रेज सेनापति रोबर्ट क्लाइव के साथ मिल गया. क्योंकि रोबर्ट क्लाइव ने मीर जाफ़र को बंगाल का नवाब बनाने का लालच दे दिया था. इस घटना को भारत में ब्रिटिश राज की स्थापना की शुरुआत माना जाता है. और आगे चलकर मीर जाफ़र का नाम भारतीय उपमहाद्वीप में ‘देशद्रोही’ व ‘ग़द्दार’ का पर्यायवाची बन गया.

जब कभी भी ग़द्दारी की परिभाषा दी जाती है मीर जाफ़र का नाम सबसे ऊपर आता है. सन 1760 ई० में मीर जाफ़र और अंग्रेजो के संबंध खराब हो गए. और उसने तंग आकर बंगाल की गद्दी छोड़ दी. फिर, उसके दामाद मीर कासिम को गद्दी पर बैठाया गया था.

प्लासी के युद्ध के क्या कारण थे?

मुगल शासन जब कमजोर पड़ गया. तो अंग्रेज राजनीति में भी हस्तक्षेप करने लगे. वह कभी किसी राजा से मिलकर दूसरे राजा के विरुद्ध उसे लड़ाते थे. तो कभी किसी नवाब या राजा को मुगल शासन के विरुद्ध भड़काते थे. यही नहीं वह राजाओं और नवाबों के राज्य में मतभेद की आग लगाया करते थे. वह उन्हें आपस में ही लड़ा कर उससे लाभ उठाने का प्रयास किया करते थे. प्लासी का युद्ध अंग्रेजों की इसी कपट नीति के कारण हुआ था.

उन दिनों बंगाल का नवाब सिराजुद्दौला था. कोलकाता में अंग्रेजों की व्यापारिक कोठियां थी. कलकत्ते में रहकर अंग्रेज शतरंज की चाल चलने लगे. सिराजुद्दौला उनके मन के अनुकूल नहीं था, वह उन कामों को नहीं करता था जिन्हें वे चाहते थे. अतः अंग्रेज सिराजुद्दौला को गद्दी से उतार कर किसी ऐसे आदमी को नवाब बनाना चाहते थे.

जो उनके हाथों की कठपुतली बन कर रहे. अंग्रेजों ने इसके लिए मीरजाफर को चुना था. मीर जाफर सिराजुद्दौला का एक सेनापति था. वह बड़ा लोभी वह विलासिता से जीने वाला आदमी था. अंग्रेजों ने उसे यह प्रलोभन देकर अपने साथ कर लिया कि अगर वह उनका साथ देगा तो वह सिराजुद्दौला के बाद उसी को गद्दी पर बिठाया जायेगा. अंग्रेजों ने जगत सेठ और दुर्लभराम आदि को प्रलोभन देकर अपने पक्ष में मिला लिया था.

प्लासी का युद्ध 1757 ई (Battle of Plassey 1757 AD)

ऐतिहासिक दृष्टि से प्लासी के युद्ध को भारत का निर्णायक युद्ध कहा जाता है. इस वास्तविक युद्ध के पूर्व भी षड्यंत्र एवं विश्वासघात के माध्यम से युद्ध के निर्णय को अंग्रेजों द्वारा अपने पक्ष में किया जा चुका था. जिस समय कर्नाटक में फ्रांस तथा इंग्लैंड के मध्य सत्ता के लिए संघर्ष चल रहा था. यही स्थिति उस समय बंगाल की भी हो रही थी. बंगाल के सूबेदार अलीवर्दी खान तथा अंग्रेजों के साथ कोलकाता के बिना नवाब की आज्ञा के किले बंदी के प्रश्न पर मतभेद बढ़ गए. अलीवर्दी खान की मृत्यु के बाद 1756 ईस्वी में सिराजुद्दोला बंगाल का सूबेदार बना.

उसने इस प्रश्न को लेकर कलकत्ता पर अधिकार कर लिया था. ब्रिटिश कंपनी के कर्मचारी को बंदी बना लिया, तथा किले के कुछ सैनिक जलयान द्वारा हुगली नदी के मुहाने पर स्थित फॉल्टा द्वीप भाग गए. नवाब सिराजुद्दोला ने बंदी कर्मचारियों को एक काल कोठरी में बंद करवा दिया. जहां अधिकांश बंदी दम घुटने से मर गए. अंग्रेज इस अपमान का बदला लेना चाहते थे. इस घटना के बाद नवाब सिराजुद्दौला मुर्शिदाबाद लौट गए. उन्होंने सोचा भी नहीं था कि समुद्र मार्ग से अंग्रेजी कोलकाता को पुनः हतिया लेंगे. इसी कारण उसने कोलकाता की सुरक्षा व्यवस्था पर भी ध्यान नहीं दिया था.

अंग्रेजो द्वारा प्लासी का युद्ध जीतने के क्या कारण थे?

अंग्रेजों ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए मानिकचंद ,ओमीचन्द, जगत सेठ तथा कुछ दरबारियों को अपने पक्ष में कर लिया था. उसी दौरान नवाब के आक्रमण की सूचना मद्रास पहुंची. तो मेजर किल पैट्रिक के नेतृत्व में 230 यूरोपियन सैनिक बंगाल की ओर भेजे गए. परंतु जब मद्रास प्रेसिडेंसी को यह सूचना मिली कि नवाब ने वहां अधिकार कर लिया है. ब्रिटिश कंपनी के कर्मचारियों को कालकोठरी में मार डाला है. तो कर्नल रोबर्ट क्लाइव तथा नौसेना अधिकारी वाट्सन के नेतृत्व में एक सेना तोपों सहित हुगली नदी में छोड़ा. नवंबर 1756 को ये सेना नदी मार्ग से 15 दिसंबर 1756 को फाल्टा दीप पहुंची गयी थी. तथा वहीं पर मेजर किल पैट्रिक से रोबर्ट क्लाइव तथा नौसेना अधिकारी वाट्सन भेंट हुई थी.

इस दौरान कोलकाता के गवर्नर ड्रेक ने नवाब से संधि वार्ता शुरू कर दी. क्योंकि उन्हें अपनी इस सहायता का आभास नहीं था. नौसेना अधिकारी वाटसन ने 17 दिसंबर 1756 को पूर्व अधिकारी की प्राप्ति तथा मुआवजे के लिए नवाब को पत्र लिखा. इस पत्र का क्या जवाब आया ज्ञात नहीं हुआ. परंतु 01 जनवरी 1757 को अंग्रेजों का एक जंगी बड़ा कलकत्ता की ओर आगे बढ़ा। तथा 02 जनवरी 1757 को बिना किसी बड़े संघर्ष के उसने कोलकाता पर अपना अधिकार जमा लिया था.

रॉबर्ट क्लाइव और नवाब सिराजुद्दौला के मध्य संधि

रोबर्ट क्लाइव इस सफलता के साथ ही, बंगाल प्रांत के संपन्न हुगली बंदरगाह पर भी अपना अधिकार स्थापित कर लिया. जब नवाब को इस बात का पता लगा. तो अंग्रेजों को सबक सिखाने के लिए वह पुनः आगे आ गया. जिस समय आक्रमण के उद्देश्य से नवाब सिराजुद्दौला कोलकाता की ओर आगे बढ़ रहा था. तभी इस बात का पता अंग्रेजी सेनापति क्लाइव को लग गया. उसने नवाब के आक्रमण को विफल करने के लिए महत्वपूर्ण योजना तैयार की. जिसके अंतर्गत उसने 5 फरवरी 1757 ईस्वी को प्रातः काल कोहरे की स्थिति में नवाब के शिविर पर आकस्मिक तथा गतिशील आक्रमण कर दिया. जिससे भयभीत होकर नवाब ने क्लाइव के समक्ष संधि का प्रस्ताव रखा.

इधर फ्रांसीसी सेनाओं के कारण रोबर्ट क्लाइव भी संधि के लिए प्रबल इच्छा रखता था. इसी कारण 09 फरवरी 1757 को दोनों के मिले अलीपुर में एक संधि प्रस्ताव पर हस्ताक्षर हुए. संधि के परिणाम स्वरुप अंग्रेजों को अपनी व्यापारिक स्थिति पुण्य प्राप्त हो गई थी. तथा उन्हें मुआवजे के रूप में धन भी प्राप्त हो गया. इतना ही नहीं इस अलीपुर संधि के अनुसार अंग्रेजों ने कलकत्ता के किले को मजबूत तथा सुरक्षित रखने के साथ-साथ अपना सिक्का भी डालने का अधिकार प्राप्त कर लिया था. और नवाब के शाही दरबार में एक ब्रिटिश प्रतिनिधि रखने का अवसर भी प्राप्त किया. ब्रिटिश प्रतिनिधि के रूप में वाट्स को नवाब के दरबार में रखा गया था.

प्लासी के युद्ध में मीर जाफर, मानिकचंद, दुर्लभराम की ग़द्दारी और नवाब सिराजुद्दौला की हार के प्रमुख कारण?

क्लाइव ने वाट्स के माध्यम से ही नवाब के प्रमुख सेनापति तथा सूबे के सेठों को राष्ट्रीय विरोधी गतिविधियों में जुटा दिया था. इसके परिणाम स्वरूप मीर जाफर, मानिकचंद, दुर्लभराम लालच में आकर अंग्रेजों की बातों में आ गए. जब नवाब के प्रमुख दरबारी अंग्रेजों की जाल में फंस गए. तो ब्रटिश प्रतिनिधि वाट्स ने क्लाइव को नवाब पर आक्रमण करने का संदेश भेजा. जिसके परिणाम स्वरूप 13 जून 1757 ईस्वी को ब्रिटिश सेना आक्रमण के उद्देश्य से क्लाइव के नेतृत्व में आगे बढ़ी और उसने चंदननगर के किले पर अपना अधिकार कर लिया. इससे फ्रांसीसी अंग्रेजों के विरोधी बन गए. जब नवाब को यह सूचना मिली तो वह बड़े आवेश में आ गया. और उसने एक सेना की टुकड़ी क्लाइव का सामना करने के लिए प्लासी के मैदान में तैनात होने के आदेश दिए.

इधर जब नवाब को मीर जाफर पर शक हुआ, तो उसने सेना की कमान अपने हाथों में ले ली. परंतु युद्ध की गंभीरता को देखते हुए पुनः मीर जाफर से समझौता कर लिया. वह जून 21 को प्लासी के निकट पहुंचा तथा अपना पड़ाव डाल दिया. दूसरी ओर क्लाइव 17 जून को पाटली पहुंचा, और कटवा के किले पर अधिकार कर लिया. क्लाइव की सारी सेना कटवा में एकत्रित हुई. तो स्थिति यह थी कि वर्षा के कारण भागीरथी नदी में बाढ़ आने वाली थी. उसने सोचा कि वह तुरंत नदी पार कर लेगा, तो हारने पर वापस नदी पार करना उसके लिए संभव नहीं होगा.

Battle of Plassey 1757 AD

क्योंकि तब तक नदी में बाढ़ आ चुकी होगी, और यदि यही रहेगा तो फिर भागीरथी नदी पार करना कठिन होगा। इधर मीर जाफर का कोई समाचार प्राप्त नहीं हुआ था. उसने तुरंत मीर जाफर को पत्र लिखा तथा दूसरी ओर वर्धमान से घुड़सवार सैनिक मांगे। इसी समय मीर जाफर के दो पत्र मिले, जिसमें यह निश्चित हो गया कि मीर जाफर नवाब को धोखा देगा। 22 जून 1757 को शाम 5:00 बजे क्लाइव की सेना ने नदी पार कर ली. और आधी रात को प्लासी के मैदान में पहुंच गया. उसने बड़े आम के पेड़ो में अपने सैनिकों की मोर्चाबंदी करी थी.

प्लासी के युद्ध में अंग्रेजों और नवाब सिराजुद्दौला की सेना में किसकी सेना अधिक थी?

सिराजुद्दौला की सेना में लगभग 35000 सिपाही थे. घोड़े, हाथी और बड़ी-बड़ी तोपें थी. गोला-बारूद भी प्रचुर मात्रा में था. मीर जाफर, मीर मदान और दुर्लभराय आदि सेनापति सेना के संचालक थे. उधर अंग्रेजों की सेना में केवल 5000 ही सिपाही थे. सिपाहियों में यूरोपियन और भारतीय दोनों थे. अंग्रेजों की सेना में भी तोपें और गोला-बारूद था. क्लाइव सेना का सेनापति था. क्लाइव बड़ा ही कुशल रणकुशल था. वह जानता था कि उसके सैनिकों की अपेक्षा सिराजुद्दौला के सैनिकों की संख्या अधिक है. उसके पास तोपें और गोला-बारूद भी अधिक है. उसकी सेना में घोड़े और हाथी की अधिक संख्या में थे. उनकी विशाल और मजबूत सेना पर वह केवल बुद्धिमानी और नीति से काम में लेने लगा.

क्लाइव अपने सैनिकों को आम के एक बगीचे में खड़ा किया, जिससे सिद्धि पंक्तियों में वृक्ष खड़े थे. उधर सिराजुद्दौला की सेना सपाट मैदान में खड़ी थी. इसमें छुपने का कोई साधन नहीं था. 23 जून 1757 को प्रातः काल प्लासी का युद्ध शुरू हुआ. दोनों और की तोपें शोले बरसाने लगी. अंग्रेजों की ओर से जो गोले छूटते थे, सीधे सिराजुद्दौला के सैनिकों पर पड़ते थे. पर सिराजुद्दौला के सैनिकों की ओर से जो गोले छूटते थे. वह सैनिकों पर न पड़कर पेड़ों पर पड़ते थे. क्योंकि सैनिक पेड़ों के पीछे खड़े थे, परिणाम स्वरूप सिराजुद्दौला के सैनिक तो अधिक संख्या में मरते या हताहत होते थे. पर अंग्रेज सेना के सैनिकों के मुकाबले में कम संख्या में मरते और हताहत होते थे.

Battle of Plassey 1757 AD

मीर जाफर वह दुर्लभराम तो पहले से ही अंग्रेजों से मिले हुए थे. परिणाम यह हुआ कि युद्ध शुरू होने के बाद से ही सिराजुद्दौला की सेना हारने लगी थी. उसने अपनी पराजय होती देखकर घुड़सवारों और हाथी सेना को आगे बढ़ने का आदेश दिया. घुड़सवार वह हाथी सेना जब आगे बढ़े, तो तोपों से गोले बरसा कर उन्हें पीछे धकेल दिया. परिणाम स्वरूप सिराजुद्दौला के घुड़सवार और हाथी सवार सेना का आक्रमण विफल हो गया था.

1757 AD प्लासी के युद्ध के बाद अंग्रेजी सल्तनत को क्या फायदा हुआ?

समाप्ति युद्ध समाप्ति के दूसरे दिन क्लाइव और मीर जाफर की मुलाकात हुई और उसे कलाई ने बंगाल का सूबेदार कहकर संबोधित किया. क्लाइव जब मुर्शिदाबाद पहुंचा तो उसे पता लगा कि नवाब वहाँ से भाग गया है. परंतु कुछ समय बाद उसे कैद करने में सफलता मिल गई. बाद में उसका कत्ल कर दिया गया. मुर्शिदाबाद में अंग्रेजों को 10766000 रूपये मिले. इस धन से ब्रिटिश व्यापार तेजी से आगे बढ़ा. तथा अंग्रेजों के प्रसार के लिए उनका मार्ग परस्त हो गया. इंग्लैंड के उद्योग भी इसके फलस्वरूप प्रगति कर सकें. इसी कारण इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के समय यूरोप के सभी राष्ट्रों की तुलना में सबसे आगे बढ़ गया था.

इस युद्ध में क्लाइव की सेना के 17 यूरोपियन तथा 36 सिपाही मारे गए. और 13 यूरोपियन 36 सिपाही घायल हुए. जबकि नवाब की सेना के लगभग 500 सैनिक मारे गए, तथा घायल हुए. कुल मिलाकर इस युद्ध में नवाब की सेना को भारी हानि उठानी पड़ी. इतना ही नहीं इस युद्ध में जनहानि तथा धन हानि कम होते हुए भी अंग्रेजों के लिए भारत पर शासन करने का रास्ता खुल गया. क्योंकि उन्होंने स्नेह स्नेह उतरी भारत पर कब्जा करना शुरू कर दिया था. अगर मीर जाफर ने गद्दारी न की होती। तो शायद भारत को इतने लंबे समय तक गुलाम नहीं देना पड़ता. अंग्रेजों की वास्तविक विजय का कारण उनकी समर तांत्रिक समरतांत्रिक सरंचना न होकर उनका षड्यंत्र एवं नवाब के सेनापतियों की स्वार्थ भावना थी.

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FAQs

प्लासी में कितने युद्ध हुए थे?

Ans- प्लासी में एक मात्र युद्ध 23 जून 1757 को बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला और अंग्रजो के सेनापति रोबर्ट क्लाइव के बीच पश्चिमी बंगाल के मुर्शिदाबाद के दक्षिण में 22 मील दूर नदिया जिले में भागीरथी नदी के किनारे ‘प्लासी’ नामक स्थान में हुआ था.

भारत की संस्कृति

One thought on “Battle of Plassey 1757 AD | प्लासी का युद्ध 1757 ई.

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