भारत के राज्य सिंहासन पर अधिकार करने में अपने समय का एक कुख्यात डाकू सफल हुआ, जिसका नाम नादिरशाह था. वह बहुत ही क्रूर व आतताई था. लूट और हत्या करना उसका धर्म था. फारस के सिंहासन को प्राप्त करने में उसने न जाने कितने लोगों को मौत के घाट उतार दिया था. लेकिन वह उससे संतुष्ट नहीं हुआ, नादिरशाह लूट में विश्वास करता था. नादिरशाह ने सुना था, कि भारत एक सोने की चिड़िया है. अतः उसने भारत में लूट करने की योजना बनाई. हम यहाँ नादिरशाह के आक्रमण और युद्ध 1739 ई (Battle of Nadirshah 1739 AD) की वो विस्तृत जानकारी शेयर करने वाले है. जिसके बारे में आप अब से पहले अनजान थे. तो दोस्तों चलते है और जानते है, नादिरशाह के युद्धों (Battle of Nadirshah 1739 AD) की रोचक जानकारी.
नादिरशाह कौन था?
नादिर शाह या ‘नादिर कोली बेग़ का जन्म सन 1688 ईस्वी फ़ारस वर्तमान ईरान का शाह था. नादिर शाह ने सदियों के बाद ईरानी प्रभुता स्थापित की थी. उसने अफ़्शरी वंश की स्थापना की थी और उसका उदय उस समय हुआ जब ईरान में पश्चिम से उस्मानी साम्राज्य (ऑटोमन) का आक्रमण हो रहा था. नादिरशाह ने अपना जीवन दासता से आरंभ किया था. और फ़ारस का शाह ही नहीं बना, बल्कि उसने उस समय ईरानी साम्राज्य के सबल शत्रु ‘उस्मानी’ साम्राज्य और ‘रूसी’ साम्राज्य को ईरानी क्षेत्रों से बाहर निकाल फेका था. और पूरब से अफ़गानों ने सफ़ावी राजधानी इस्फ़हान पर अधिकार कर लिया था. नादिरशाह ने भारत में मुंगलो की ताकत कमजोर कर दी थी. उसने दिल्ली के इतिहास में सबसे बड़ा नरसंगार किया था, और पूरी दिल्ली को जला दिया था.
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नादिर कोली बेग़ (नादिरशाह) ने भारत पर आक्रमण क्यों किया था?
उन दिनों मुंगल बादशाह औरंगजेब की मृत्यु के बाद मोहम्मद शाह दिल्ली के सिंहासन पर विराजमान था. वह बहुत ही विलासी एवं कमजोर शासक था. मोहम्मद शाह के राज्य में अर्थव्यवस्था तथा अस्थिरता फैली हुई थी. किसी डाकू के लिए लिए सबसे अनुकूल समय था. अंत नादिर शाह एक विशाल सेना लेकर भारत को लूटने के लिए भारत के दिल्ली की और चल पड़ा था.
मुगल राजवंश आपस की लड़ाई में बहुत कमजोर हो चुका था. उनकी स्थिति बहुत खराब थी. मुगल राज्य में अराजकता का दौर था. अंत नादिर शाह को गजनी और काबुल पर अधिकार स्थापित करने के बाद. लाहौर पर विजय प्राप्त करने पर अधिक कठिनाइयों नहीं हुई. नादिरशाह आंधी के रूप में सन 1739 ईस्वी में लाहौर पहुँचा. रास्ते में उसका विरोध करने वाला कोई नहीं मिला. बल्कि जहां भी वह पहुंचा, वहां उसके समक्ष भय कारण सभी के सिर झुक जाते थे.
जब नादिरशाह खैबर दर्रा पार कर रहा था. उसी समय लाहौर का गवर्नर जकरिया खान घबरा उठा. क्योंकि उसमें नादिर शाह के जुलम अत्याचारों के बारे में बहुत कुछ सुन रखा था. उसने मोहम्मद शाह के पास दिल्ली पत्र भेजकर, नादिरशाह के आक्रमण की सूचना दी. और उसका सामना करने के लिए उससे सहायता भी मांगी थी. परंतु मोहम्मद शाह ने उसके पत्र पर ध्यान नहीं दिया. वह उस पत्र को अविश्वसनीय समझ बैठा. लेकिन जब नादिरशाह लाहौर आ गया, तब उसे विश्वास हुआ कि नादिरशाह का भारत पर आक्रमण हो चुका है.
मोहम्मद शाह और नादिरशाह के मध्य करनाल का युद्ध
मोहम्मद शाह ने अपने दोनों सेनापतियों दौलत खां व निजाममुल्लक को आदेश दिया. कि वे नादिरशाह का आगमन रोके, लेकिन उन दोनों ने नादिरशाह के नाम से भयभीत थे. दोनों सेनापतियों ने रणभूमि में जाने से इंकार कर दिया. अतःमोहम्मद शाह के पास इसके अतिरिक्त कोई सेना नहीं थी. कि वह समय सेना लेकर नादिरशाह का मुकाबला करें.
अतः मोहम्मद शाह सेना लेकर नादिरशाह का मुकाबला करने के लिए लाहौर की और बढ़ा. वर्तमान हरियाणा के करनाल में नादिर शाह की सेना से मुगल सेना का मुकाबला हो गया. नादिरशाह की सेना ने प्रथम आक्रमण में मुगल सेना के होश उड़ा दिए. मुगल सेना में भगदड़ मच गई, सेनापति दौलत आहत हो गया. उसने मरते-मरते मोहम्मद शाह को सलाह दी कि वह नादिरशाह को बड़ी-बड़ी भेंट देकर उसे फारस वापस भेज दें. परंतु मोहम्मद शाह ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया. परिणाम यह हुआ कि मुगल सेना युद्ध क्षेत्र में भाग खड़ी हुई.
नादिरशाह की विजय से मोहम्मद शाह घबरा गया. आखिर निजाम ने आगे बढ़कर उसकी सहायता की. उसने नादिरशाह के सामने 2 करोड रुपए रख कर उसे प्रार्थना की कि वह दिल्ली न जाकर ईरान वापस लोट जाये. नादिरशाह निजाम के व्यवहार से बहुत प्रसन्न हुआ. उसने उसे अमीर-उल- उमरा की उपाधि दी. वह करनाल से ईरान लौट जाना चाहता था, पर अवध के नवाब अब्बास की स्वार्थपरता ने उसे रोक लिया. नादिरशाह ने जब निजाम को अमीर-उल- उमरा की उपाधि दी. तो अब्बास के हृदय में ईष्या की आग जल उठी. उसने नादिरशाह की सेवा में उपस्थिति होकर उसने कहा. श्रीमान, 2 करोड रुपए तो कुछ नहीं आप दिल्ली में प्रवेश करेंगे तो न जाने कितने करोड रुपए आपके चरणों में बिखर जाएंगे.
नादिरशाह ने दिल्ली पर आक्रमण और कत्लेआम क्यों किया था?
ईरानी लुटरे नादिरशाह ने दिल्ली के वैभव के संबंध में पहले ही बड़ी-बड़ी बातें सुन चुका था. जब उसने अब्बास के मुख से भी दिल्ली के वैभव की प्रशंसा सुनी तो उसके मुंह में पानी आ गया. उसने ईरान लौटने का विचार छोड़कर दिल्ली में प्रवेश करने का दृढ़ निश्चय किया. करनाल से नादिरशाह अपनी सेना के साथ दिल्ली पहुंचा. दिल्ली में मोहम्मदशाह ने उनका विरोध किया. उसने दिल्ली पहुंचकर लाल किले पर अधिकार कर लिया.
दिल्ली में चारों ओर शांति एवं सन्नाटा था. कहीं किसी कोने में भी अव्यवस्था नहीं थी. अव्यवस्था तो रात में तब पैदा हुई, जब कुछ लोगों ने नादिरशाह के मारे जाने की खबर उड़ा दी. दिल्ली के बाजार में कुछ फारसी सिपाही मौत के घाट उतार दिए गए. फ़ारसी सिपाहियों में भगदड़ मच गई. उन्होंने नादिरशाह के पास जाकर उसे उसकी सूचना दी. बस फिर क्या था, नादिरशाह के गुस्से का ठिकाना नहीं रहा. उसने अपने सिपाहियों को दिल्ली में कत्लेआम का आदेश दिया.
नादिरशाह ने दिल्ली में कत्लेआम कब किया था?
सन 1739 ईस्वी में 11 मार्च को नादिरशाह दिल्ली की उन गलियों में गए. जहां ईरान के सैनिकों के शव पड़े थे. नादिरशाह रोशनउद्दौला की मस्जिद के पास गया. तो कुछ लोगों ने उस पर पत्थर फेके. उसका एक सिपाही उसकी आंखों के सामने बंदूक की गोली से मार डाला गया. नादिरशाह आग बबूला हो गया, उसने अपने सिपाहियों को आदेश दिया कि दिल्ली की जनता को सबक सिखाया जाये, उनका कत्लेआम किया जाए. बस कहने की देरी थी.
नादिरशाह के हजारों सिपाही दिल्ली की जनता पर टूट पड़े. चांदनी चौक, दरीबा किला, जामा मस्जिद, चावड़ी बाजार आदि जगह बाजारों एवं घरों में आग लगा दी गई. मकान जलने लगे उनमें रहने वाले लोग बड़ी बेरहमी से मरने लगे. सिपाही लूटपाट करने लगे, जो भी सामने पड़ता उसी को मृत्यु के घाट उतार दिया जाता. गलियों और सड़कों पर लाशों के ढेर पड़े थे. सारी दिल्ली में हाहाकार मचा हुआ था. इतिहास में इतना क्रूर आदमी शायद ही कोई देखने को मिले. दिल्ली में इतना बड़ा नरसंहार कभी नहीं हुआ था, जितना नादिरशाह ने किया था.
नादिरशाह का कत्लेआम का दौर लगभग 5- 6 घंटे तक चलता रहा. निर अपराधी स्त्री, पुरुष, बच्चों की हत्या की गई. आखिरकार मोहब्बतशाह और अमीर उमराव की प्रार्थना पर नादिरशाह ने हत्या को रोकने का आदेश दिया गया. लेकिन दिल्ली में लूटपाट फिर भी चलती रही. सारी दिल्ली को उसके सिपाहियों ने लूट लिया, दिल्ली को वीरान कर दिया गया.
दिल्ली पर आक्रमण से नादिरशाह ने क्या-क्या लुटा?
नादिरशाह लगभग 2 माह तक दिल्ली के लाल किले में रहा. उसने मुगलों के उस धन को छीन लिया. जिसे उन्होंने 300 वर्षों से भी अधिक समय में एकत्रित किया था. उसने सोना चांदी हीरे और जवाहरात आदि तो अपने अधिकार में किए ही थे. साथ ही उसने मयूर सिंहासन और कोहिनूर हीरा भी अपने अधिकार में ले लिया था. नादिरशाह दिल्ली से कितना धन लूटकर इरान ले गया इसकी सूची कुछ इतिहासकारों ने बनाई है जो इस प्रकार है. 50 करोड़ के जवाहरात, एक करोड रुपए का सोना, 60 लाख की अशर्फियां, 100 हाथी, 7000 घोड़ी, 100 नाजिर, 300 लेखक, 200 सुनार, 300 कारीगर, 200 बढ़ई, मयूर सिंहासन व कोहिनूर हीरा प्रमुख थे.
इस प्रकार नादिरशाह ने दिल्ली को कंगाल बना दिया. उसके जाने के बाद दिल्ली में काफी दिनों तक दुख के बादल मंडराते रहे. मुगल शासन नाम की कोई चीज नहीं रह गई थी. केवल नाम था, परंतु उसका प्रभाव नष्ट हो गया था. चारों और विद्रोह हो उठा था. सिंध, पेशावर, पंजाब के विस्तृत भू-भाग को ईरानियों के हाथों सौंप दिया गया था. उत्तर पश्चिम की ओर से पुनः आक्रमण होने लगे थे. सबसे बड़ा आक्रमण अहमदशाह अब्दाली ने किया था.
उसने सन 1748 ईस्वी में आक्रमण किया, वह नादिरशाह की तरह लूट का माल लेकर ईरान वापस नहीं लोटा. बल्कि अपनी सेना के साथ भारत में ही बना रहा. वह भारत में शासन करना चाहता था, उसने कई युद्ध लड़े थे. नादिर शाह ने मुगल शासन को नष्ट कर दिया था. उसके बाद कई मुगल शासक दिल्ली के लाल किले में बैठे, लेकिन वह नाम मात्र के राजा थे. सबसे बाद में बादशाह बहादुर शाह जफर था. जिसे अंग्रेजों ने कैद कर रंगून भेज दिया था, और वही उसकी मृत्यु हो गई थी.
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FAQs
Ans- नादिर शाह ने दिल्ली के मुगल राजा मोहम्मद शाह को युद्ध में हराकर कोहिनूर हीरा और मयूर सिंहासन जीता था.
Ans- ईरान के लुटेरे नादिरशाह ने एक अफवाह पर 11 मार्च सन 1739 ईस्वी को दिल्ली में कत्लेआम किया था. जिसमे हजारों नीअपराध आम जनता के साथ साथ स्त्रियों और बच्चों को मौत के घाट उत्तारा गया था.