भारत में एक से बढ़कर एक महापुरुषों और ऋषि-मुनि हुए जो बचपन से ही दैविये गुणों के कारण या तपस्या के फलस्वरूप कई प्रकार की सिद्धियाँ व शक्तियां प्राप्त कर लेते थे. और जिनका उपयोग मानव कल्याण तथा धर्म के रक्षार्थ हेतु हमेशा से किया जाता रहा है. इन सिद्धियाँ और शक्तियाँ ऋषि-मुनियों को एक चमत्कारी तथा प्रभावी व्यक्तित्व प्रदान करती हैं. और ऐसे सिद्ध योगियों के लिए भौतिक सीमाए किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न नहीं कर पाती है. हम यहाँ सन्त मत्स्येंद्रनाथ की जीवनी (Biography of Matsyendranath). और उनसे जुड़ी वो रोचक और अद्भुत जानकारी शेयर करने वाले है. जिसके बारे में आप अब से पहले अनजान थे. तो दोस्तों चलते है और जानते है, संत मत्स्येंद्रनाथ जी की आचर्यजनक जानकारी.
मत्स्येंद्रनाथ जी कौन थे? संत मत्स्येंद्रनाथ जी का जीवन परिचय और अद्भुत जानकारी
मत्स्येंद्रनाथ अथवा मचिन्द्रनाथ का जन्म 10 वीं शताब्दी की शुरुआत में माना जाता है. बौद्ध धर्म के वज्रयान शाखा के योगी के रूप में भी आपको जाना जाता है. सन्त मत्स्येंद्रनाथ जी को 84 महासिद्धों में एक माना जाता है, उनका अन्य नाम मुन्नानाथ और मिनापा, मचिन्द्रनाथ, मत्स्येंद्रनाथ थे. मत्स्येंद्रनाथ कई बौद्ध और हिंदू परंपराओं में एक संत और योगी थे. उन्हें पारंपरिक रूप से हठ योग के पुनरुत्थानवादी और साथ ही इसके कुछ शुरुआती ग्रंथों के लेखक के रूप में माना जाता है. उन्होंने नाथा सम्प्रदाय संस्थापक के रूप में देखा जाता है. मत्स्येंद्रनाथ जी विशेष रूप से कौला शैववाद से जुड़े हैं. चौरासी महासिद्ध पुरषो में एक गोरखनाथ के गुरु मत्स्येंद्रनाथ को माना जाता. आप हिंदुओं और बौद्धों दोनों द्वारा पूजनीय हैं. और कभी-कभी उन्हें अवलोकितेश्वर के अवतार के रूप में माना जाता है.
मत्स्येंद्रनाथ जी कथा और कहानी और इतिहास
मचिन्द्रनाथ 84 महासिद्धोंमें से एक थे. मचिन्द्रनाथ गोरखनाथ के गुरु थे जिनका मंदिर उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में है. और इसके प्रमुख महंत उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ जी है. मचिन्द्रनाथ जी ने हठयोग विद्यालय की स्थापना की थी. उन्हें संस्कृत में हठयोग की प्रारम्भिक रचनाओं में से एक कौलजणाननिर्णय के लेखक थे. मत्स्येन्द्रनाथ का भगवान् शंकर के भक्तों में विशिष्ट स्थान है. समस्त मानव जगत में शिव भक्ति का अलख जगाने वाले मत्स्येन्द्रनाथ की जन्मकथा अत्यन्त चमत्कारिक है.
एक बार भगवान् शंकर समुद्र तट पर विचरण करते हुए पार्वतीजी को एक अमर कथा सुना रहे थे. तभी कथा सुनते-सुनते माँ पार्वतीजी को एक नींद की झपकीआ गयी थी. कथा सुनने के पश्चात् हुंकारा देने का जो कार्य पार्वतीजी को करना था, वह कार्य एक अण्डे से निकले तोते ने कर दिया. उसी समय महादेवजी ने देखा कि एक विशालकाय मत्स्य बालक को निगल गया था. भगवान ने मन्त्र प्रयोग कर उस मत्स्य को जल से बाहर बुलाया. तभी वह रूपवान बालक उस मत्स्य के मुख से निकलकर देवी पार्वती और भगवान् शिव के चरणों में जा गिरा. महादेवजी ने पार्वती से कहा कि यह आज से तुम्हारा पुत्र है. तुम इसका लालन-पालन करोगे. पार्वती ने उस बालक को अत्यन्त प्रेमपूर्वक गोद में उठाकर कहा: “जगत में तुम्हारा यश विख्यात होगा. ऐसा करके शंकर-पार्वती अन्तर्ध्यान हो गये.
बालक समुद्र तट के रास्ते कामाक्षा देवी असम जा पहुंचा. वहां देवी को प्रसन्न कर वर प्राप्त करते हुए उत्तराखंड के बद्रीकाश्रम पहुंचा. वहां पर शंकर-पार्वती की कठोर तपस्या केवल वायु का आहार लेकर करने लगा था. उस बालक ने बारह वर्षो तक लगातार तपस्या की थी, जिस से उसका शरीर पूरी तरह से सूख गया था. कहाँ जाता है, महादेव जी उसकी तपस्या पूर्ण करने के उपरान्त उसे वर देने चले आये.
मत्स्येंद्रनाथ जी का अंतिम समय
बालक ने भगवान् शिव से कहा कि, आप अपना स्वरूप मुझे प्रदान करें. शंकरजी ने तथास्तु कहा, इस तरह महादेवजी ने कुण्डल आदि पहनाकर बालक का नाम मत्स्येन्द्रनाथ रखा था. वह शिव भक्ति का प्रचार करता हुआ जगन्नाथपुरी आ पहुंचा. यहां पर भिक्षावृत्ति के साथ-साथ शिव भक्ति का प्रचार किया. इस तरह मत्स्येन्द्रनाथ शिव भक्तों में बड़ी श्रद्धा से पूजा जाता है. देवी पार्वती का दिया हुआ आशीर्वाद सफल हुआ. वह संसार में यशस्वी तथा अपने कार्य को पूर्ण करता हुआ देवलोकवासी हो गए थे.
भारत के महान साधु संतों की जीवनी
मत्स्येंद्रनाथ जी नेपाल में वर्षा के देवता क्यों है?
नेपाल में प्रचलित एक लोकोक्ति के अनुसार जब गोरक्षनाथ जी ने नेपाल में पाटन का दौरा किया. तो उन्होंने पाटन के सभी बारिश वाले सांपों को पकड़ लिया, और स्थानीय लोगों द्वारा निराश होने के बाद ध्यान करना शुरू कर दिया. क्योंकि नेपाल के पाटन के लोगो ने गोरक्षनाथ जी को भिक्षा नहीं दी थी. नतीजतन, पाटन को लंबे समय तक सूखे का सामना करना पड़ा. पाटन के राजा ने अपने सलाहकारों की सलाह पर, गोरक्षनाथ के गुरु मत्स्येंद्रनाथ को पाटन में आमंत्रित किया.
जब गोरक्षनाथ को पता चला कि उनके गुरु पाटन में हैं, तो उन्होंने बारिश करने वाले सभी नागों को छोड़ दिया और उनसे मिलने गए. जैसे ही वर्षा करने वाले नागों को मुक्त किया गया, पाटन में हर साल फिर से भरपूर वर्षा हुई. उस दिन के बाद, पाटन के स्थानीय लोगों ने मत्स्येंद्रनाथ को वर्षा के देवता के रूप में पूजा करते है.
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FAQs
Ans- संत मत्स्येंद्रनाथ जी के प्रमुख चेले जालंधरनाथ, कनिफ्नाथ, गहिनीनाथ, बद्रीनाथ, रेवन नाथ, चरपतिनाथ, नागा नाथ, गोरखनाथ थे.