शेख़ सादी ईरान (फारस) के एक बहुत बड़े संत थे. वे बड़े ही ज्ञानी, धर्मशास्त्री, नीतिवान, परोपकारी पुरुष थे. उन्होंने कुल 16 पुस्तकें लिखी थी, जिनमें गुलिस्ता और बोस्ता प्रमुख है. वे फारसी के ऊंचे दर्जे के लेखक भी थे. उनके विचार बड़े ही प्रभावशाली थे. हम यहाँ संत शेख सादी की जीवनी (Biography of Sant Sheikh Saadi). और उनसे जुड़ी हुई वो रोचक और अद्भुत जानकारी शेयर करने वाले है. जिसके बारे में आप अबसे पहले अनजान थे. तो मित्रों चलते है, और जानते है शेख सादी की रोचक जानकारी.
संत शेख सादी का जीवन परिचय (Biography of Sant Sheikh Saadi)
शेख़ सादी का जन्म फारस ईरान के शिराज नामक शहर में 1210 ईस्वी में हुआ था. उनका सादी का असली नाम मसलाहुद्दीन था. उनके पिता का नाम शेख अब्दुल्लाह था, वे बड़े ही धार्मिक व विद्या प्रेमी थे. उनके दादा का नाम शरफुद्दीन था, ‘शेख़’ इस घराने की सम्मान सूचक पदवी थी. क्योंकि उनकी वृत्ति धार्मिक शिक्षा-दीक्षा देने की थी. लेकिन इनका ख़ानदान सैयद था. अतः शिराज का बादशाह उनका बड़ा ही आदर किया करता था. उनके पिता सादी को भी अपने साथ दरबार ले जाया करते थे.
बादशाह ने एक बार उनकी उम्र पूछी, तो छोटे से शेख सादी ने कहा जहांपनाह की शानदार हुकूमत के जमाने से 12 साल छोटा हूं. बादशाह इस उत्तर से गदगद हो गए, और बोले यह दुनिया में बहुत नाम कमाएगा. बालक शेख़ सादी ने आगे चलकर फारस का नाम रोशन किया था. शेख़ सादी ने फ़ारसी साहित्य को जो मुकाम दिया वह कोई नहीं दे पाया है.
Summary
नाम | मसलाहुद्दीन |
उपनाम | शेख़ सादी, मुस्लिहुद्दीन मुश्रीफ़ इब्न अब्दुल्लाह शीराज़ी |
जन्म स्थान | शिराज नामक शहर, ईरान |
जन्म तारीख | 1210 ईस्वी |
वंश | सैयद |
माता का नाम | – |
पिता का नाम | अब्दुल्लाह |
पत्नी का नाम | – |
उत्तराधिकारी | – |
भाई/बहन | – |
प्रसिद्धि | महान संत और लेखक |
रचना | गुलिस्ता और बोस्ता प्रमुख है |
पेशा | संत, लेखक |
पुत्र और पुत्री का नाम | — |
गुरु/शिक्षक | — |
देश | ईरान |
राज्य क्षेत्र | सिराज |
धर्म | इस्लाम |
राष्ट्रीयता | ईरानी |
भाषा | फ़ारसी, अरबी |
मृत्यु | 1291-92 |
मृत्यु स्थान | शिराज, ईरान |
जीवन काल | 81 वर्ष |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Sant Sheikh Saadi (संत शेख सादिक की जीवनी) |
कवी संत शेख सादी की शिक्षा
उन दिनों शिराज ईरान विधा एवं कला का केंद्र था. फारस में विदेशों से भी विद्यार्थी विद्या अध्ययन हेतु आया करते थे. परंतु शेख़ सादी बिना जंगी बादशाह को लड़ाई का बहुत शौक था. जिसके कारण वहां की पढ़ाई ठीक नहीं हो पाती थी. अंत उन्होंने शिराज के मदरसे मदरस ए-अजदिया को छोड़ दिया. और वहां से आगे की पढ़ाई के लिए वह बगदाद इराक चले गए. बगदाद का रास्ता बड़े ही खतरनाक और डाकू से भरा पड़ा था. चोर और डाकुओ ने उनसे कहा तुम्हारे पास क्या है. उन्होंने उसे कुरान दे दी और कहा यह बड़ा ही पवित्र धार्मिक ग्रंथ है. इसका सम्मान करना, उनकी वाणी का कुछ ऐसा प्रभाव था कि डाकू ने उन्हें बिना हानि पहुंचाए सुरक्षित बगदाद तक पहुंचा दिया.
सही-सलामत बगदाद पहुंचने पर उन्होंने मदरसे में दाखिला ले लिया। कुशाग्र बुद्धि होने के कारण उन्हें वजीफा मिल गया. इससे उन्होंने 10 साल तक उसी मदरसे में धर्मशास्त्र, विज्ञान, गणित, भूगोल आदि विषयों का अध्ययन किया. और अल्लामा की डिग्री प्राप्त की. अब उन्होंने अपने ज्ञान का प्रचार प्रसार करने का निश्चय किया. सो वापस फारस न जाकर तीस-चालीस साल तक ईरान, इराक, कुर्दिस्तान, लेबनान, फिलिस्तीन, अरब, मिश्र, एशिया, हिंदुस्तान तक की यात्राए की. हमेशा पैदल सफर करते हुए भले लोगों की संगती में उन्होंने फाफी ज्ञान प्रपात किया.
शेख सादी की शिक्षाएं
इस तरह ज्ञान प्राप्ति से किये गए देशाटन द्वारा उन्होंने लोगों को सदाचार, धर्म, निति आदि की शिक्षाए दी. आम लोगों की सेवाएं भी की. जब वे जन्म भूमि फारस पहुंचे, तब उनकी उम्र लगभग ७० वर्ष रही होगी. अब वहां का राजा साद बिन जंगी का बेटा अलावक अबू बकर था. वह बड़ा ही न्यायी और दयालु शासक था.
उनके राज्य में लोग शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे थे. शेख़ सादी के फारस लौटने पर बादशाह और उसकी प्रजा ने उनका बड़ा आदर सत्कार किया था. और वे शिराज में बैठकर साहित्य साधना करने लगे. कुछ दिनों बाद उन्होंने पुनः बगदाद की राह पकड़ी, बगदाद का बादशाह एक जालिम बादशाह था. उसका बेटा अब शासक बन बैठा था जिसका नाम हलाकू खां था. उसका मंत्री एक बार शेख़ सादी से मिलने गया तो वह उसका मुरीद बन गया. वह शेख़ सादी की हर समय सहायता करता था. उसने प्राप्त 50000 हजार दीनार से शेख़ सादी ने एक मदरसा और मुसाफिरखाना बनवाया। तथा 100 वर्ष की आयु जीते-जीते हुए 1292 ईस्वी में अल्लाह को प्यारे हो गए थे.
शेख सादी की प्रमुख सीखें (वचन)?
शेख़ सादी की बहुत सी नीतिपरक कहानियां तथा किस्से हैं. उनकी प्रमुख सिखों में यह है.
- अपने दुश्मनों के साथ भी बुराई का व्यवहार मत करो, क्या पता वह कब आपका दोस्त बन जाए.
- दीवारों के भी कान होते हैं.
- जो इंसान ताकतवर होकर दूसरों की मदद नहीं करता, कमजोर होने पर दुख उठाता है.
- बुराई से बचते रहे तो कोई किसी का कुछ नहीं बिगाड़ सकता.
- दूसरों से जलने वाले आदमी को सताना बेकार है, क्योंकि वह तो खुद आग में जलता रहता है.
संत शेख़ सादी के प्रमुख ग्रन्थ और रचनाएँ
वर्षों की लंबी यात्रा के बाद शेख़ सादी शीराज़ ईरान लौट आये. और अपनी प्रसिद्ध पुस्तकों बोस्ताँ तथा ‘गुलिस्ताँ के लेखन का आरंभ किया. इनमें उसके साहसिक जीवन की अनेक मनोरंजक घटनाओं का और विभिन्न देशों में प्राप्त अनोखे तथा मूल्यवान् अनुभवों का वर्णन है. गुलिस्ताँ का प्रणयन सन् 1258 में पूरा हुआ. यह मुख्य रूप से गद्य में लिखी हुई उपदेशप्रधान रचना है. जिसमें बीच बीच में सुंदर पद्य और दिलचस्प कथाएँ दी गई हैं. यह आठ अध्यायों में विभक्त है जिनमें अलग अलग विषय वर्णित हैं. उदाहरण के लिए एक में प्रेम और यौवन का विवेचन है। ‘गुलिस्ताँ’ ने प्रकाशन के बाद से अद्वितीय लोकप्रियता प्राप्त की. वह कई भाषाओं में अनूदित हो चुकी है जैसे लैटिन, फ्रेंच, अंग्रेजी, तुर्की, हिंदी आदि. शेख़ सादी की अन्य प्रतिरूप रचनाओं में से दो के नाम हैं बहारिस्ताँ तथा निगारिस्ताँ है.
बोस्ताँ की रचना एक वर्ष पहले (1257 में) हो चुकी थी. शेख़ सादी ने उसे अपने शाही संरक्षक अतालीक को समर्पित किया था. गुलिस्ताँ की तरह इसमें भी शिक्षा और उपदेश की प्रधानता है. इसके दस अनुभाग है। प्रत्येक में मनोरंजक कथाएँ हैं जिनमें किसी न किसी व्यावहारिक बात या शिक्षा पर बल दिया गया है. एक और पुस्तक पंदनामा (या करीमा) भी उनकी लिखी बताई जाती है. किंतु इसकी सत्यता में संदेह है. शेख़ सादी उत्कृष्ट गीतिकार भी थे, और हाफिज के प्रकटीकरण के पहले तक वे गीतिकाव्य के महान् रचयिता माने जाते थे. अपनी कविताओं के कई संग्रह वे छोड़ गए हैं. उनकी ख्याति उनकी काव्यशैली एवं गद्य की उत्कृष्टता पर ही अवलंबित नहीं है. वरन् इस बात पर भी आश्रित है. कि उनकी रचनाओं में अपने युग की विद्वत्ता और ज्ञान की तथा मध्यकालीन पूर्वी समाज की सर्वोत्कृष्ट सांस्कृतिक परंपरा की छाप मौजूद है.
उपसंहार
संत शेख़ सादी का संपूर्ण जीवन दर्शन मानव जाति के लिए समर्पित था. उन्होंने जो कुछ भी ज्ञान प्राप्त किया, वह दूसरों की भलाई हेतु था. संतों का जीवन परोपकारी वृक्ष की तरह होता है.
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FAQs
Ans- शेख़ सादी ईरान (फारस) के एक बहुत बड़े संत थे. वे बड़े ही ज्ञानी, धर्मशास्त्री, नीतिवान, परोपकारी पुरुष थे. उन्होंने कुल 16 पुस्तकें लिखी थी, जिनमें गुलिस्ता और बोस्ता प्रमुख है. वे फारसी के ऊंचे दर्जे के लेखक भी थे. उनके विचार बड़े ही प्रभावशाली थे.