History and Tourist Places of Punjab || पंजाब का इतिहास

By | September 16, 2023
History and Tourist Places of Punjab
History and Tourist Places of Punjab

दोस्तों हम यहाँ पंजाब का इतिहास और पर्यटन स्थल (History and Tourist Places of Punjab) की वो अद्भुत और रोचक जानकारी आपके साथ शेयर करने वाले है. जिसके बारे में आप अब तक अनजान थे. तो दोस्तों चलते है और जानते है पंजाब की आश्चर्यजनक जानकारी. पंजाब एक कृषि प्रधान राज्य है, जिसे देश का एक संपन्न राज्य भी माना जाता है. यह लगभग 50362 वर्ग छेत्र में फैला हुआ है. तथा विस्तृत इस राज्य की कुल जनसंख्या 3 करोड़ के करीब है. यहां जनसंख्या का घनत्व 484 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है. चंडीगढ़ पंजाब की राजधानी है. तथा यहां की राज्य भाषा पंजाबी है. पंजाब का वर्तमान स्वरूप 1 नवंबर 1966 को निर्धारित किया गया था.

जब इसे भाषा के आधार पर पुनर्गठन हुआ, इस पुराने राज्य के पंजाबी भाषी क्षेत्र से पंजाब का निर्माण हुआ. जबकि हिंदी भाषी क्षेत्र के नए राज्य हरियाणा का जन्म हुआ. दोस्तों चंडीगढ़ केंद्र शासित प्रदेश में चंडीगढ़ पंजाब और हरियाणा की संयुक्त राजधानी है.

पंजाब शब्द फारसी भाषा के दो शब्द “पंज” “आब” को मिलाकर बना है. पंज का मतलब होता है पांच और आब काम अर्थ होता है पानी. अर्थात इसका अर्थ पांच नदियों की भूमि है. पंजाब की पांच नदियां हैं, सतलुज, व्यास, रावी, चिनाब और जेलम है. शायद इसके नाम की उत्पत्ति संस्कृत में पांच नदियों के लिए उपयुक्त शब्द पंचनंद से हुई है. और प्राचीन महाकाव्य महाभारत में इस क्षेत्र का यही नाम उल्लिखित है. भारत का वर्तमान पंजाब राज्य और अब पांच नदियों की भूमि नहीं है. क्योंकि विभाजन के बाद सिर्फ सतलुज और व्यास भारतीय क्षेत्र में है. जबकि रावी नदी इसकी पश्चिमी सीमा से होकर प्रवाहित होती है.

पंजाब का इतिहास (History of Punjab)

दोस्तों पंजाब के इतिहास की जानकारी वैदिक काल से ही प्राप्त होती है. आरंभिक वैदिक काल में आर्य पंजाब और उसके आसपास के क्षेत्रों में आकर बस गए. इससे पूर्व 522 में फारस के शासक डेरियश ने पंजाब के आसपास के इलाके को जीत लिया. और फारस के अधीन बना लिया था. 326 ईसवी पूर्व सिकंदर के आक्रमण तथा चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा उसे हराने का उल्लेख मिलता है. तथा बाद में इस प्रदेश पर कुषाण महमूद गजनबी तथा दिल्ली सल्तनत का विवरण मिलता है. वर्तमान पंजाब की आधारशिला ऐतिहासिक पंजाब बंदा सिंह बहादुर ने रखी थी. जो साधु थे और बाद में योद्धा बन गए उन्होंने सिखों के लड़ाकू जत्थे के साथ राज्य के पूर्वी हिस्से को सन 1709-1710 में कुछ समय के लिए मुगल शासन से आजाद करा लिया था.

1716 में बंदा सिंह बहादुर कि हार और उसे फांसी दिए जाने के बाद एक तरफ सीखो और दूसरी तरफ मुगलों गानों के मध्य एक दीर्घकालीन संघर्ष का शुभारंभ हो गया. सन 1764-1765 में इस क्षेत्र के सिखों ने अपना आधिपत्य कायम कर लिया था. महाराज रणजीतसिंह 1780 से 1839 ने पंजाब को एक शक्तिशाली राज्य बनाया. और मुल्तान कश्मीर व पेशावर के पड़ोसी राज्य पर अधिकार कर अपने राज्य का विस्तार किया. धीरे-धीरे भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रभाव बढ़ रहा था. जिससे पंजाब भी अछूता नहीं रहा 1849 में ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन हो गया.

19वीं शताब्दी के अंतिम चरण तक इस राज्य में भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की स्थिति काफी सुदृढ़ हो गई थी. इस आंदोलन में एक प्रमुख घटना घटी जिसमें ब्रिटिश जनरल रेनाल्ट डायर ने के आदेश पर सन 1919 में अमृतसर में जलियांवाला बाग नरसंहार में लगभग 400 लोगों की मौत हुई और 1200 सो लोग घायल हुए. सन 1947 में भारत के स्वतंत्र होने पर पंजाब का ब्रिटिश राज्य भारत तथा पाकिस्तान के नए संप्रभुता संपन्न देशों के बीच बांट दिया गया. और छोटा पूर्वी हिस्सा भारत में शामिल किया गया.

Summary

राज्य का नामपंजाब
राज्य का उपनामपांच नदियों का क्षेत्र
राजधानीचंडीगढ़
स्थापना1 November 1966
जम्मू कश्मीर राज्य में में कितने जिले है23 जिले
प्रसिद्ध शहरलुधियाना/चंडीगढ़/अमृतसर/पटियाला
राज्य की जनसंख्या2 करोड़ 85 लाख
क्षेत्रफल19,445 square miles
प्रमुख भाषापंजाबी
साक्षरता–% (लगभग)
लिगं अनुपात1000/930 (लगभग)
सरकारी वेबसाइटwww.punjab.gov.in
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जिला सूची

  • अमृतसर
  • फतेहगढ़
  • साहिब फिरोजपुर
  • बठिंडा
  • फरीदकोट
  • कपूरथला
  • लुधियाना
  • गुरदासपुर
  • होशियारपुर
  • जालंधर
  • मानसा
  • मोगा
  • रूपनगर
  • बरनाला
  • तरनतारन
  • मोहाली
  • नवांशहर
  • पटियाला
  • संगरूर
  • मुक्तसर

स्वतंत्रता के पश्चात सिखों के आंदोलन

भारत की स्वतंत्रता के पश्चात सिखों ने आंदोलन शुरू कर दिया. जिसका नेतृत्व पहले मास्टर तारा सिंह है और बाद में उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी संत फतेह सिंह ने किया. यह आंदोलन इस बात को लेकर था कि पंजाब का भाषा के आधार पर पुनर्गठन किया जाए. अन्य बातों के अलावा यह मांग सन 1939 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रस्ताव के आधार पर भी न्यायोचित ठहराया जा रही थी. जिसमें आजादी के बाद भारत को भाषाई राज्यों में बांटने का प्रस्ताव किया गया था. नवंबर सन 1956 में पेप्सु को भी पंजाब में मिला दिया गया, इससे यह राज्य और बड़ा बन गया. पेप्सू स्वतंत्रता से पहले ही पटियाला, जींद, नाभा, फरीदकोट, कपूरथला, कलसिया, मलेरकोटला तथा नालागढ़ रियासतों का संयुक्त रुप था.

विधानसभा में सरदार प्रताप सिंह कैरो को कांग्रेस विधायक दल का नेता चुना गया. और इस पंजाब के विस्तृत राज्य के मुख्यमंत्री बने और सन 1956 से सन 1964 तक इस पद पर रहे.

पंजाब का पुनर्गठन

पुनर्गठन की मांग को अंततः सरकार ने स्वीकार किया और 1 नवंबर 1966 को इस राज्य की वर्तमान सीमा निर्धारित कर दी गई. गंगा नदी के दक्षिण और दक्षिण पूर्व में हिंदीभाषी क्षेत्र को अलग करके नया हरियाणा राज्य बनाया गया. सुदूर पर्वतीय क्षेत्र उत्तरी कांगड़ा, लाहौल स्पीति और शिमला प्रदेश में स्थानांतरित कर दिया गया. मूलतः पंजाब की राजधानी के रूप में निर्मित नगर चंडीगढ़ को उसके आसपास के क्षेत्रों के साथ अलग केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया.

पंजाब में खालिस्तान की मांग सबसे पहले कब से शुरू हुई?

पंजाब के पुन गठन के पश्चात सन 1980 के दशक में पंजाब में पुनः अशांति उत्पन्न हो गई. कुछ तत्वों में जिसमें न सिर्फ अतिवादी सिख और अखिल भारतीय सिख छात्र परिषद के लोग थे. बल्कि कुछ विदेशों में बसे हुए सिख भी थे. स्वायत्त सिख राज्य या खालिस्तानी राज्य की स्थापना की मांग उठाई. इस मांग की प्रकृति पूरी तरह स्पष्ट नहीं थी. कुछ लोगों ने इसे अलग सिख देश की मांग बताया, जबकि अन्य लोगों ने इसे भारतीय संघ के अंदर पंजाब को अतिरिक्त स्वायत्तता दिए जाने की मांग के रूप में देखा. यह अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए कुछ भी करने को तैयार थे.

यहां तक कि सामान्य है ग्रामीण बेरोजगार छोटे कृषक वर्ग और सिख समाज के अन्य वर्गों के युवाओं से बने उग्रवादी संगठनों ने आतंकवाद का सहारा लेना शुरू कर दिया. जिसमें खालिस्तान का विरोध करने वाले पंजाबी हिंदुओं और सिखों का सफाया शामिल था. इस प्रक्रिया में मूलतः धार्मिक नेता माने जाने वाले संत जरनैल सिंह भिंडरावाले अपने हथियारबंद अनुयायियों के साथ एक महत्वपूर्ण शक्ति बन गए. उन लोगों ने अकाल तख्त और स्वर्ण मंदिर परिसर को अपना दुर्ग बनाया लिया था.

तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने इस आतंकवादी गतिविधि को समाप्त करने के उद्देश्य से सन 1984 में यहां सेना को लगा दिया गया. जो स्वर्ण मंदिर परिसर से भिंडरावाले और उनके शिष्यों को बाहर निकालने के लिए ऑपरेशन ब्लूस्टार किया तथा उग्रवादियों को उखाड़ फेंकने के प्रयास में स्वर्ण मंदिर पर धावा बोल दिया. इस हमले में भिंडरावाले और उसके अधिकांश अनुयाई तथा भारतीय सेना के लगभग 100 सैनिक मारे गए. इसी घटना के बाद प्रतिशोध की भावना से 31 अक्टूबर सन 1984 को इंदिरा गांधी की उनके 2 सिख अंगरक्ष को ने दिल्ली स्थित सरकारी आवास पर गोली मारकर हत्या कर दी. इस का परिणाम इतना भयानक हुआ कि दिल्ली और कई स्थानों पर अधिकांश उत्तर भारत में सिक्खों के खिलाफ दंगे भड़क उठे.

जिसमें कई हजार सिख मारे गए, बातचीत के दौरान स्थिति को सुलझा ने के प्रयासों के बावजूद संघ 1980 के दशक के दौरान. पंजाब में हिंसा अविश्वास और अव्यवस्था की स्थिति बनी रही. जिससे रक्षा और राजनीतिक अनिश्चितता का माहौल बन गया. काफी उथल-पुथल होने के बाद अंततः सन उन्नीस सौ नब्बे के दशक के शुरुआत में पंजाब वासियों को शांति वातावरण प्राप्त हुआ. तब से लेकर अब तक राज्य में लगभग सभी क्षेत्रों में सामान्य स्थिति बनी हुई है. आशावादी मनोवृति जो पंजाबियों की विशेषता है, अब इससे पहले व्याप्त निराशावाद का स्थान ग्रहण कर रही है.

स्वर्ण मंदिर अमृतसर
स्वर्ण मंदिर अमृतसर

“पंज” “आब” की भू-आकृति

पंजाब का अधिकांश भूभाग समतल मैदानी है. यह भू क्षेत्र उत्तर पूर्वी में समुंद्र तल से लगभग 275 मीटर से दक्षिण पश्चिम में लगभग 168 मीटर की ऊंचाई की अनुवर्ती ढलान वाला है. वह भौतिक रूप से इस प्रदेश को 3 हिस्सों में बांटा जा सकता है. पूर्वोत्तर में 274-914 मीटर की ऊंचाई पर स्थित शिवालिक पहाड़ियां राज्य का बहुत ही छोटा हिस्सा है. दक्षिण में शिवालिक पहाड़ियों का विस्तार संकरे और लहरदार तराई क्षेत्र के रूप में है.

जो अनेक मौसमी धाराओं की जननी है इनका स्थानीय नाम चोस है. और इनमें से कई स्थानों में किसी नदी में शामिल हुए बिना ही समाप्त हो जाती है. तीसरा क्षेत्र उपजाऊ जलोद मिट्टी वाला विशाल समतल मैदान है. मैदानी क्षेत्र में नदियों के किनारे निम्न भूमि पर स्थित बाढ़ के दौरान मैदान और उनके बीच में कम ऊंचाई पर स्थित समतल चित्रों को अलग-अलग पहचाना जा सकता है. पहले रेत के टीलों से ढंग के दक्षिण पश्चिमी उनके क्षेत्र को अलग-अलग सिंचाई के व्यापक विस्तार के साथ ही लगभग समतल कर दिया गया है. जिससे समूचा परिदृश्य ही परिवर्तित हो गया है.

पंजाब की जलवायु कैसी है?

अंतर्देशीय उष्णकटिबंधीय स्थिति यहां की जलवायु अर्ध शुष्क से अर्ध नाम के मध्य काफी विनता लिए हुए हैं. ग्रीष्म ऋतु में यहां काफी गर्मी पड़ती है, जून में औसत तापमान 34 डिग्री से जायदा होता है. और विशेष रूप से गर्म दिनों में यह 45 डिग्री तक पहुंच जाता है. ठंडी भी बहुत ज्यादा ठण्ड पड़ती है. जनवरी में औसत तापमान 13 डिग्री होता है. और कई बार रात के समय तापमान जमाव बिंदु तक गिर जाता है. यहां के पूर्वोत्तर में स्थित शिवालिक की पहाड़ियों में 1245 में मिली मिली लीटर तक वर्षा होती है. जो कर्म से घटती हुई दक्षिण पश्चिम में लगभग 300 मिली मीटर रह जाती है. इस राज्य में मानसून आने का समय जुलाई सितंबर तक का है. पश्चिमी विक्षोभ के कारण दिसंबर से मार्च तक शीत ऋतु में होने वाली वर्षा कुल वर्षा के एक चौथाई हिस्से से भी कम होती है.

यहां मानव बस्तियों के तीव्र विकास की वजह से वन क्षेत्र पतन की तरफ अग्रसर है. शिवालिक पहाड़ियों के विशाल हिस्से में जंगलों की व्यापक कटाई के फलस्वरूप वृक्षों की जगह अभी धारीदार वनस्पति पाई जाती है. पर्वतीय ढलानों पर वन लगाने के प्रयास किए जा रहे हैं. प्रमुख सड़कों के किनारे ऊपर तथा बंजर भूमि पर यू के लिप्टस वह पॉपुलर के वृक्ष लगाए गए हैं. यहां का एक चौथाई भूभाग पर कृषि कार्य किया जाता, जिसके कारण वन्यजीवों के पर्यावास में भारी कमी आई है. इसके बावजूद अंखियों क्रीम क्रीम तक के जंतुओं और सात अन्य जानवरों की कई प्रजातियों ने कृषि पर्यावरण के अनुसार स्वयं को अनुकूलित कर लिया है.

जनजीवन एवं संस्कृति

पंजाब में आर्थो के वंशज भी पाए जाते हैं जो ईसा पूर्व की दूसरी सदी के दौरान पश्चिमोत्तर से आए थे. आर्यों से पहले के लोग संभवत है द्रविड़ हैं. जिनकी सभ्यता काफी विकसित थी. रोपड़ और संघौल में इस सभ्यता के अवशेष खोद कर निकाले गए हैं. यूनानी, पार्सियाई, कुषाण, और हूणों के लगातार आक्रमणों ने यहां की जातीय विविधता का विस्तार किया. इस क्षेत्र की संस्कृति पर भी प्रभाव डाला बाद में बाद में इस्लाम के झंडे तले आक्रमणकारियों ने यहां के लोगों को इस्लाम धर्म अपनाने पर मजबूर किया.

हालांकि सूफी संतों के प्रभाव की वजह से कुछ लोगों ने स्वयं अपना धर्म छोड़कर इस धर्म को स्वीकार कर लिया. यहां के लोग गुरुमुखी लिपि में लिखी पंजाबी भाषा बोलते हैं. जिसे राज्य भाषा का दर्जा भी प्राप्त है. पंजाब की लगभग दो-तिहाई आबादी सिख धर्म को मानती है. इस धर्म का प्रभाव सिखों के पहले गुरु नानक देव जी के उपदेशों से हुई थी. इस राज्य में लगभग एक तिहाई जनसंख्या हिंदुओं की है. इसके अलावा कुछ अन्य धर्मों जैसे इस्लाम, ईसाई, जैन आदि इत्यादि के लोग भी हैं. परंतु इनकी संख्या काफी कम है मुसलमान मलेरकोटला और उसके आसपास के क्षेत्रों में केंद्रित है. यह एक मुस्लिम नवाब द्वारा संचित रियासत थी पंजाब की जनसंख्या में 32% अनुसूचित जाति के लोग हैं जो अन्य राज्यों में उपेक्षा अधिक है.

यहां शहरीकरण भी काफी हुआ है, कुल जनसंख्या का एक तिहाई भाग शहरों में ही निवास करता है. शहरी क्षेत्रों में 10 नगर है जिनमें से प्रत्येक में 100000 से अधिक लोग रहते हैं. लुधियाना, अमृतसर, जालंधर और पटियाला 4 सबसे बड़े शहर हैं, हालांकि शहरों में तेजी से विकसित हो रहे उद्योग व्यापार और सेवा केंद्र हैं. लेकिन पंजाब के आधे से अधिक श्रमिक अब भी कृषि कार्य में सलंग्न है.

यहाँ संगीत प्रेम क्यों है?

यहां के लोगगीत, प्रेम और युद्ध के नृत्य, मेले और त्यौहार, नृत्य संगीत तथा पंजाबी साहित्य आदि पंजाबी संस्कृति की प्रमुख विशेषताएं हैं. जिसकी विपत्ति को तहरवी शताब्दी के मुसलमान सूफी संत शेख फरीद के रहस्यवादी और धार्मिक दोहे तथा सिख पंथ के संस्थापक बंदर भी 16वीं शताब्दी के गुरु नानक से जोड़ा जा सकता है. जिन्होंने पहली बार काव्य अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में व्यापक रूप से पंजाबी भाषा का उपयोग किया. 18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में पंजाबी साहित्य को समृद्ध बनाने में वारिस शाह की भूमिका उल्लेखनीय है. बीसवीं शताब्दी के आरंभ में कवी विवेक भाई वीर सिंह तथा कवि पूरन सिंह और धनीराम चित्र्य के लेखन के साथ ही पंजाबी साहित्य ने आधुनिक काल में प्रवेश किया. विगत कुछ वर्षों के दौरान पंजाबी संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को विचित्र करने वाली विभिन्न लेखकों कवियों और उपन्यास कारों की भूमिका भी काफी महत्वपूर्ण है.

पंजाब के प्रसिद्ध कवि कौन है?

मोहन सिंह माहिर और शिव कुमार बटालवी पंजाब के राज्य के प्रसिद्ध कवि थे. और जसवंत सिंह कंवल गुरदयाल सिंह और सोहन सिंह शीतल आदि का नाम प्रसिद्ध उपन्यास कारों में शामिल है. कुलवंत सिंह विर्क एक व्याख्यान लेखक है. पंजाब के ग्रामीण जीवन का चित्रण करने वाले सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों में से एक ज्ञानी गुरुदत्त सिंह का “मेरा पिण्ड” पंजाबी साहित्य की उत्कृष्ट रचना मानी गई है.

यहां के त्योहार और मेले बहुत ही आकर्षक होते हैं. पंजाब राज्य में मनाए जाने वाले धार्मि तथा मौसमी त्योहारों में दशहरा, दीपावली, बैसाकि और विभिन्न गुरुओ तथा संतों की वर्षगांठ आदि प्रमुख है. भांगड़ा, झूमर, सम्मी यहाँ के लोकप्रिय नर्त्य हैं. इस राज्य की स्थानीय नृत्य शैली गिद्दा है. महिलाओं की विनोद पुर गीत नृत्य शैली है. सिखों के धार्मिक संगीत के साथ-साथ उप शास्त्रीय मुगल शैली भी लोकप्रिय हैं, जैसे ख्याल, ठुमरी, गजल और कव्वाली.

राज्य की उत्कृष्ट वास्तुशिल्प में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर का नाम लिया जा सकता है, जिसका निर्माण मुगल शैली में किया गया है. जिसके गुंबद और ज्यामितीय रूपा कन जैसी प्रमुख अदाएं सिखों के अधिकांश पूजा स्थलों में दोहराई गई है. स्वर्ण मंदिर में सोने की जड़ दो जी का काम गोटेदार फलक और रंगीन पत्रों से सज्जित संगमरमर की दीवारें हैं. इसके अलावा पंजाब में और भी कई महत्वपूर्ण भवन स्मारक है. इसमें अमृतसर के जलियांवाला बाग में शहीद स्मारक दुर्गियाना अमृतसर में भी का हिंदू मंदिर कपूरथला में स्थित मूर शैली की मस्जिद और बठिंडा स्थित पुराने किले आदि प्रमुख हैं.

अर्थव्यवस्था

पंजाब वैसे तो कृषि प्रधान राज्य है इसलिए यहां की अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान सबसे ज्यादा है. कृषि के अलावा उद्योग भी यहां की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में योगदान देते हैं. पंजाब में विविध प्रकार के लघु व मध्यम आकार के उद्योग भी. हैं भारत के मुख्य राज्यों में से पंजाब के प्रति व्यक्ति आय सर्वाधिक है. भारत के कुल क्षेत्रफल के मात्र 1 पॉइंट 6 प्रतिशत भू भाग वाला पंजाब लगभग भारत के कुल उत्पादन का 12% हिस्सा उत्पादित करता है.

यह केंद्रीय भंडार उपयोग से अधिक अंतरराष्ट्रीय भंडारण प्रणाली में लगभग 40% चावल और 60% गेहूं की आपूर्ति करता है. इस समय पंजाब में कृषि की जो स्थिति है उसका श्रेय हरित क्रांति को जाता है. जिसने राज्य में आधुनिक कृषि प्रौद्योगिकी की शुरुआत की अधिक पैदावार वाले गेहूं और चावल के बीजों के आगमन साथ ही इन फसलों के उत्पादन में कई गुना वृद्धि हुई. इन्हीं दोनों फसलों का ही उत्पादन यहां अधिक किया जाता है. अन्य वाणिज्यिक फसलों में कपास, गन्ना, आलू और तिलहन है.

मक्का, मूंगफली चना, बाजरा और कुछ दुल्हनों की खेती में पिछले कुछ वर्षों में कमी आई है. वैसे तो इस राज्य में गेहूं और चावल का इस समय अच्छा उत्पादन हो रहा है. परंतु इसमें वृद्धि नहीं हो रही है, चावल के लिए अधिक पानी की व्यवस्था आवश्यकता होने के कारण भूमि के पोषक तत्व कम होते जा रहे हैं. जिससे मिट्टी अन्नउपजाऊ हो रही है. उत्पादकता बनाए रखने के लिए अधिक उर्वरक का इस्तेमाल करना पड़ता है. मिट्टी की उर्वरता को फिर से प्राप्त करने के लिए और कृषि को लाभकारी उद्यम बनाने के लिए कृषि में विविधता लाने का प्रयास किया जा रहा है. बागवानी फूलों की खेती मुर्गी पालन और डेयरी उद्योगों को भी यहां के विभिन्न हिस्सों में देखा जा सकता है. इनका विकास धीमा ही सही लेकिन लगातार हो रहा है.

पंजाब में कृषि की स्थिति सुदृढ़ होने का एक मुख्य प्रमुख कारण यह है. कि यह पूरे भारत में सबसे अधिक सिंचित प्रदेश है. इसका तकरीबन संपूर्ण कृषि क्षेत्र सिंचित है. यहां पर कई सरकारी नहर एवं नलकूप हैं जो सिंचाई के मुख्य स्रोत हैं. हिमाचल प्रदेश में स्थित भाखड़ा बांध परियोजना राज्य के सिंचाई का अधिकांश जल उपलब्ध कराती है. राज्य के दक्षिण और दक्षिण पश्चिम क्षेत्र में सिंचाई का प्रमुख साधन नहरे हैं.

जबकि उत्तर और पूर्वोत्तर पूर्वोत्तर में नलकूपों तीन चौथाई से अधिक नलकूप बिजली द्वारा चालित का व्यापक उपयोग होता है और दक्षिण पश्चिम में फुहारों से सिंचाई भी प्रचलित है पंजाब में सन 1970 के करीब चकबंदी की गई फल स्वरुप निजी नलकूप सिंचाई का तेजी से विकास हुआ. साथ ही यंत्रों के इस्तेमाल समेत कृषि की कार्यकुशलता में भी वृद्धि हुई. आमतौर पर ज्यादा खेतों वाले किसानों को हरित क्रांति से ज्यादा लाभ हुआ जिससे राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में आय की विषमता बढ़ी है.

पंजाब में अधिकांश मजदूर सूती और रेशमी वस्त्र उद्योग उत्पाद धातु उत्पाद परिवहन उपकरण व पुर्जे धातु व मिश्र धातु उद्योगों में कार्यरत है. होजरी साइकिल, सिलाई मशीन, खेल के सामान, बिजली की मशीनें, उपकरण व आदि यहां के अन्य महत्वपूर्ण उद्योग है. जीवाश्म इंधन के अभाव में पंजाब के उद्योगों को ऊर्जा की कमी का सामना करना पड़ता है. राज्य के लगभग तीन चौथाई घरों में बिजली का उपयोग होता है. हालांकि नए पवन बिजलीघर और ताप विद्युत पर योजनाएं काम कर रही हैं. लेकिन मांग आपूर्ति से कहीं अधिक है.

पंजाब की परिवहन व्यवस्था

इस राज्य में परिवहन व्यवस्था काफी सुदृढ़ है. लगभग 60000 हजार किलोमीटर लंबी सड़कों का विशाल जाल है. जिसमें से 80% सड़कें पक्की है सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि लगभग सभी गांव सड़कों से जुड़े हुए हैं. देश की रेल प्रणाली के एक हिस्से उत्तरी रेलवे का कार्य कुशल व्यापक संजाल पंजाब में है. दिल्ली से चंडीगढ़ और अमृतसर लुधियाना और भटिंडा नगरों के लिए भी नियमित हवाई सेवाएं उपलब्ध है. रेल सेवा की तरह ही डाक व तार सेवा और रेडियो तथा दिल्ली विजन के प्रसारण पर भारत सरकार का नियंत्रण है.

पंजाब में परिवहन व्यवस्था काफी सुदृढ़ है. यहां रेल, वायु और सड़क तीनो मार्गो से आने-जाने की अच्छी सुविधा है. पंजाब में सड़क मार्ग की कुल लंबाई 60000 किलोमीटर के आसपास है. जिसमें से राष्ट्रीय राजमार्ग की लंबाई 2000 किलोमीटर के आसपास है. पंजाब में रेल मार्ग की कुल लंबाई 3726 किलोमीटर है. पंजाब में अमृतसर से पाकिस्तान के लिए रेल मार्ग भी है. पंजाब की तरफ जाने वाली प्रमुख रेलगाड़ियां पठानकोट ज्वालामुखी रोड एक्सप्रेस, पठानकोट जोगिंद्रनगर एक्सप्रेस, पठानकोट बैजनाथ पपरोला एक्सप्रेस, हावड़ा एक्सप्रेस, राजधानी एक्सप्रेस गरीब रथ एक्सप्रेस प्रमुख है.

पंजाब के प्रमुख धार्मिक और पर्यटन स्थल कौन से है

  • भटिंडा – दुर्ग के लिए जाना जाता है.
  • डेरा बाबा नानक- इसे सिख धर्म की तीर्थ स्थल के लिए जाना जाता है.
  • जालंधर-इसे खेल का सम्मान, प्रकाशन केंद्र व दुर्ग के लिए जाना जाता है.
  • चंडीगढ़- इसे संग्रहालय, कला दीर्धा, रॉक गार्डन, एशिया का सबसे बड़ा गुलाब बाग,सुकना झील, सचिवालय व विधानसभा भवन, पंजाब विश्वविद्यालय के लिए जाना जाता है.
  • राम तीर्थ- हिंदू तीर्थ स्थल है जो लव कुश के जन्म स्थान हेतु जाना जाता है.
  • गोविंदवाल- इसे सिख गुरु अंगद देव जी की समाधि के लिए जाना जाता है.
  • व्यास – राधा स्वामी सत्संग आश्रम धार्मिक केंद्र के लिए जाना जाता है.
  • डेरा बाबा जयमल सिंह – इसे सभी धर्मों के आश्रम के रूप में जाना जाता है.
  • अमृतसर- इसे स्वर्ण मंदिर अकाल तख्त, जलियांवाला बाग, किला, संग्रहालय आदि के लिए जाना जाता है.
  • ढोलबहा -इसे मंदिर, पौराणिक स्थल आदि के लिए जाना जाता है.
  • कपूरथला – इसे प्राचीन राजधानी महल मंदिर आदि के लिए जाना जाता है.
  • किरतपुर – इसे सिख तीर्थ स्थल के लिए जाना जाता है.
  • सैफाबाद- इसे ऐतिहासिक महल, किले झील के लिए जाना जाता है.
  • फतेहगढ़ साहिब – इसे सिख तीर्थ स्थल लिए जाना जाता है.
  • आनंदपुर साहिब – इसे ऐतिहासिक गुरुद्वारा जहां गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी, नैना देवी मंदिर किले के लिए जाना जाता है.
  • लुधियाना- इसे छोटे उद्योग के लिए जाना जाता है.
  • तरन- तारण – इसे गुरु राम दास जी गुरुद्वारा के लिए जाना जाता है.
  • संगरूर – इसे बाग बगीचे सिखों के पौराणिक स्थल के लिए जाना जाता है.
  • फरीदकोट- इसे दुर्ग के लिए जाना जाता है, और किले के अंदर शीशे के महल के लिए भी जाना जाता है.
  • सरहिंद – इसी को शीख, मुस्लिम समाधिया, फतेहगढ़ साहिब गुरुद्वारा, झील पर बाग बगीचे के लिए जाना जाता है.
  • संगल – हड़प्पा कालीन स्थल के लिए जाना जाता है.
  • पठानकोट- इसे कश्मीर कांगड़ा घाटी के प्रवेश द्वार लिए जाना जाता है.
  • पटियाला – राष्ट्र खेल संस्थान, किला, बाग बगीचे के लिए जाना जाता है.
  • शाहपुर – इसे मुस्लिम पौराणिक स्थल के लिए जाना जाता है.
  • माइसरखाना- इसे माइसर चानामल मंदिर के लिए जाना जाता है.
  • रूपनगर – इसको पुरातत्व स्थल, झील में नौकाविहार व मछली पकड़ने के लिए जाना जाता है.

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राजर्षि अंबरीश की जीवनीदिव्यदृष्टा संजय की जीवनी
ठाकुर बिल्वमंगल की जीवनीगुरु तेग बहादुर की जीवनी
सप्तऋषियों की जीवनीमलूकदास जी की जीवनी
निम्बार्काचार्य जी की जीवनीसंत शेख सादी की जीवनी
भक्त प्रह्लाद की जीवनीमहारथी कर्ण की जीवनी
भक्त बालक ध्रुव की जीवनीजिज्ञासु नचिकेता की जीवनी
महारथी कर्ण की जीवनीगुरु भक्त अरुणी की जीवनी
भक्त उपमन्यु की जीवनीकृष्ण सखा उद्धव की जीवनी
महावीर स्वामी की जीवनीओशो की जीवनी
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1857 ईस्वी क्रांति और उसके महान वीरों की जीवनी और रोचक जानकारी

1857 ईस्वी क्रांति के महान वीरों की गाथा1857 की क्रांति में महान रानियों का योगदान
अजीजन बेगम की जीवनीअकबर खान की जीवनी
अज़ीमुल्लाह खान की जीवनीपृथ्वीराज चौहान III की जीवनी
आनंद सिंह जी की जीवनीअवन्ति बाई लोधी की जीवनी
अमरचंद बांठिया जी की जीवनीस्वामी दयानंद सरस्वती जी की जीवनी
बंसुरिया बाबा की जीवनीतात्या टोपे की जीवनी
मंगल पांडे की जीवनीमहारानी तपस्विनी की जीवनी
बेगम हजरत महल की जीवनीगोविंद गिरि की जीवनी
भास्कर राव बाबासाहेब नरगुंडकर कौन थेकुमारी मैना की जीवनी
महारानी जिंदा कौर की जीवनीवीर सुरेंद्र साय की जीवनी
झलकारी बाई की जीवनीवृंदावन तिवारी की जीवनी
तिलका मांझी की जीवनीसूजा कंवर राजपुरोहित की जीवनी
पीर अली की जीवनीबाबू कुंवर सिंह की जीवनी
ईश्वर कुमारी की जीवनीठाकुर कुशल सिंह की जीवनी
उदमी राम की जीवनीचौहान रानी की जीवनी
जगत सेठ रामजीदास गुड़ वाला की जीवनीजगजोत सिंह की जीवनी
ज़ीनत महल की जीवनीजैतपुर रानी की जीवनी
जोधारा सिंह जी की जीवनीटंट्या भील की जीवनी
ठाकुर रणमत सिंह की जीवनीनरपति सिंह जी की जीवनी
दूदू मियां की जीवनीनाहर सिंह जी की जीवनी
मौलवी अहमदुल्लाह फैजाबादी की जीवनीखान बहादुर खान की जीवनी
गोंड राजा शंकर शाह की जीवनीरंगो बापूजी गुप्ते की जीवनी
बरजोर सिंह की जीवनीराजा बलभद्र सिंह की जीवनी
रानी तेजबाई की जीवनीवीर नारायण सिंह जी की जीवनी
वारिस अली की जीवनीवलीदाद खान की जीवनी
झांसी की रानी लक्ष्मी बाई की जीवनीनाना साहब पेशवा की जीवनी
राव तुलाराम की जीवनीबाबू अमर सिंह जी की जीवनी
रिचर्ड विलियम्स की जीवनीबहादुर शाह ज़फ़री की जीवनी
राव रामबख्श सिंह की जीवनीभागीरथ सिलावट की जीवनी
महाराणा बख्तावर सिंह की जीवनीअहमदुल्लाह की जीवनी
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भारत के राज्य और उनका इतिहास और पर्यटन स्थल

जम्मू कश्मीर का इतिहास और पर्यटन स्थलहिमाचल प्रदेश का इतिहास और पर्यटन स्थल
पंजाब का इतिहास और पर्यटन स्थलहरियाणा का इतिहास और पर्यटन स्थल
उत्तराखंड का इतिहास और पर्यटन स्थलपश्चिम बंगाल का इतिहास और पर्यटन स्थल
झारखंड का इतिहास और पर्यटन स्थलबिहार का इतिहास और पर्यटन स्थल
उत्तर प्रदेश का इतिहास और पर्यटन स्थलराजस्थान का इतिहास और पर्यटन स्थल
मध्य प्रदेश का इतिहास और पर्यटन स्थलछत्तीसगढ़ का इतिहास और पर्यटन स्थल
उड़ीसा का इतिहास और पर्यटन स्थलगुजरात का इतिहास और पर्यटन स्थल
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भारत के प्रमुख युद्ध

हल्दीघाटी का युद्धहल्दीघाटी का युद्ध 1576 ईचित्तौड़गढ़ किला
विश्व की प्राचीन सभ्यताएंझेलम का युद्धकलिंग युद्ध का इतिहास
1845 ई. में सिखों और अंग्रेजों का युद्धभारत चीन युद्ध 1962कश्मीर का इतिहास और युद्ध 1947-1948
सोमनाथ का युद्धतराइन का प्रथम युद्धतराइन का दूसरा युद्ध
पानीपत का प्रथम युद्धपानीपत की दूसरी लड़ाईपानीपत की तीसरी लड़ाई 1761 ई
खानवा की लड़ाई 1527नादिरशाह का युद्ध 1739 ईसवीप्लासी का युद्ध 1757 ई
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FAQs

Q-पंजाब की राजधानी कहा है?

Ans- चंडीगढ़.

भारत की संस्कृति

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