महात्मा ज़रथुष्ट्र पारसी धर्म के संस्थापक थे, इनके नाम पर ही पारसी धर्म को ‘ज़रथुष्ट्र धर्म’ भी कहा जाता है. पारसी धर्म के प्रवर्तक महात्मा जरथुस्त्र एक लोकमंगल साधक थे. उन्हें पारसी पैगम्बर कहा जाता है. वे बड़े ईश्वरभक्त, सत्यवादी और अन्धविश्वास के प्रबल विरोधी थे. तत्कालीन सामाजिक जीवन में व्याप्त अधर्म और पापो को दूर कर उन्होंने अज्ञान व अन्धकार में डूबी हुई जनता को ज्ञान का प्रकाश दिया. उन्होंने यह बताया कि: सर्वशक्तिमान ईश्वर एक है. परोपकार तथा जीवमात्र के प्रति दया की भावना ही सदधर्म है. हम यहाँ महात्मा जरथुस्त्र की जीवनी (Biography of Mahatma Zarathustra). और उनसे जुड़ी वो रोचक और अद्भुत जानकारी शेयर करने वाले है. जिसके बारे में आप अब से पहले अनजान थे. तो दोस्तों चलते है और जानते है, पारसी धर्म के संस्थापक जरथुस्त्र की रोचक जानकरी.
संत जरथुस्त्र का जीवन परिचय (Biography of Mahatma Zarathustra)
पारसी धर्म या जरथुस्त्र धर्म विश्व के अत्यंत प्राचीन धर्मों में से एक है. जिसकी स्थापना आर्यो की ईरानी शाखा के एक धर्म दूत जरथुस्त्र ने की थी. धर्मावलंबियों को पारसी या जरथुस्त्र कहा जाता है. यह धर्म एकेश्वरवादी धर्म है. इस धर्म में ईश्वर को ‘अहुर मज़्दा’ कहाँ जाता है. जरथुस्त्र इस धर्म के संस्थापक थे. जरथुस्त्र का जन्म प्राची ईरान में स्पित्मा अजरबेजान नगर में ईसा से 600 वर्ष पूर्व हुआ था. ग्रीक भाषा में इन्हें ‘ज़ोरोस्टर’ कहा जाता है और आधुनिक फ़ारसी में जारटोस्थ. पारसी धर्म ईरान का राजधर्म हुआ करता था. क्योंकि पैगंबर ज़रथुष्ट्र ने इस धर्म की स्थापना की थी. इनकी माता का नाम दुधधोवा था जो वहां के नरेश की पुत्री थीं. और पिता बोरशसफ भी कई राज्यों के शासक थे. वे दोनों धर्मपरायण व सद्गुणी थे. जरथुस्त्र बाल्यावस्था से ही बड़े ही असाधारण प्रतिभा के धनी थे.
पारसी समुदाय द्वारा जरथुस्त्र का जन्म 24 अगस्त को मनाया जाता है. जरथुस्त्र प्रेम और दया की मूर्ति के समाधि से निवृत्त होकर. रोगी की परिचर्या करना, वजन डोह रहे जानवरों का वजन खुद ढोना, दृष्टिहीन को मार्ग बताना, भूखे को भोजन और प्यासे को पानी पीलाना इनकी दिनचर्या थी. महात्मा ज़रथुष्ट्र को ऋग्वेद के अंगिरा, बृहस्पति आदि ऋषियों का समकालिक माना जाता है. परन्तु ऋग्वेदिक ऋषियों के विपरीत ज़रथुष्ट्र ने एक संस्थागत धर्म का प्रतिपादन किया था.
Summary
नाम | ज़रथुष्ट्र |
उपनाम | ज़ोरोस्टर, महात्मा जरथुस्त्र |
जन्म स्थान | स्पित्मा अजरबेजान नगर, ईरान |
जन्म तारीख | 1000 ईसा पूर्व |
वंश | – |
माता का नाम | दुधधोवा |
पिता का नाम | बोरशसफ |
पत्नी का नाम | — |
उत्तराधिकारी | — |
भाई/बहन | – |
प्रसिद्धि | पारसी धर्म के संस्थापक |
रचना | अवेस्ता |
पेशा | धर्म गुरु |
पुत्र और पुत्री का नाम | पौरुसिस्टा, इसत वस्तर, हवारे चित्रा, उरुवत-नारा, त्रिती, फ्रेनी |
गुरु/शिक्षक | – |
देश | ईरान |
राज्य क्षेत्र | अजरबेजान |
धर्म | पारसी |
राष्ट्रीयता | ईरानी |
भाषा | फ़ारसी, अरबी |
मृत्यु | — |
मृत्यु स्थान | ईरान |
जीवन काल | लगभग 50 वर्ष |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Mahatma Zarathustra (Biography of Mahatma Zarathustra) |
महात्मा जरथुस्त्र की कहानी
महात्मा ज़रथुष्ट्र बाल्यावस्था से ही बड़े ही असाधारण प्रतिभा के धनी थे. धर्मशास्त्रों में उनकी गहन रुचि थी. उस समय ईरान के समाज में धर्म चर्चाओं का बड़ा ही महत्त्व था. बालक जरथुस्त्र की धर्म सम्बन्धी व्याख्या को सुनकर सभी विद्वान् दंग रह जाया करते थे. इनके पिता बोरशसफ जब वृद्ध होने लगे, तो उन्होंने अपने पांच पुत्रों में राज्य की सम्पत्ति बराबर-बराबर बांट देनी चाही, परन्तु तीसरे पुत्र जरथुस्त्र ने सम्पत्ति में हिस्सा लेने से मना कर दिया. जब इनके पिता ने उनसे इसका कारण पूछा, तो उन्होंने उत्तर दिया मैंने सुविधाभोगी जीवन त्यागकर एक ऐसे जीवन की राह चुनी है. जो अज्ञान व अन्धकार में डूबे हुए लोगों को सच्चा धर्म और शिक्षा सिखा सके. उन्होंने अपने पिता को बताया मेरे भीतर का ईश्वर मुझे इस ओर प्रेरित कर रहा है. मैं भी दीन-दुखियों की तरह जीवन जीना चाहता हूं.
महात्मा जरथुस्त्र घर से कब और क्यों निकले?
तत्कालीन ईरान में इनके राज्य का बंटवारा चार भाइयों में हो गया, जरथुस्त्र अपने शरीर पर छोटा-सा वस्त्र धारण कर महात्मा बुद्ध की तरह सत्य और ईश्वर की खोज में निरन्तर भटकते रहे. वे महात्मा तुर से मिले, जिनके स्नेह और प्रेमपूर्ण व्यवहार से दीक्षित होकर उन्होंने आत्मसाधना की. फिर एकान्त तप करने द्रोण पर्वत पर चले गये. एक गुफा में निराहार, निर्जल रहकर कठोर तप किया था. भगवान बुद्ध की तरह उन्होंने तत्त्वज्ञान प्राप्त किया, उस समय जरथुस्त्र लगभग 30 वर्ष की अवस्था में थे. उनके द्वारा प्रतिपादित सीधी-सच्ची भाषा में गाथाएं कहीं जो अवेस्ता में संग्रहित हैं.
प्रारम्भ में लोगों ने इसका मजाक उड़ाया, किन्तु उनकी वाणी का प्रभात ही कुछ ऐसा था. कि दूसरे प्रान्तों में उनके नये धर्म में लोग दीक्षित होने लगे. उनके तर्कयुक्त, ओजस्वी व्याख्यान और उपदेशों का ऐसा प्रभाव हुआ कि वे आसपास के देशों में भी फैलने लगा. उनके अनुयायियों की संख्या दिन परितदिन बढती चली गयी. अग्नि की उपासना करने वाले इस धर्म का मूल राग, द्वेष से दूर रहकर शान्ति का जीवन बिताना है. हिन्दू धर्म की भाती प्राणिमात्र के प्रति दया, करुणा का भाव तथा अन्धविश्वासों का विरोध इस धर्म का आधार है.
महात्मा जरथुस्त्र के महान् कार्य
जरथुस्त्र ने तत्कालीन ईरान (फारस) जहां अन्धविश्वासों और रूढ़ियों से जकड़े हुए समाज को ज्ञान का प्रकाश दिया. वहीं धर्म का सच्चा ज्ञान कराया. कहा जाता है कि वे इतने दयालु थे, कि एक बार उन्होंने भूख से छटपटाते हुए कुते को देखा तो दौड़कर पास की बस्ती जाकर उसके लिए खाना मांग लाये थे. किन्तु उनके पहुंचने से पहले कुत्ता दम तोड़ चुका था. इस घटना से वे इतने दुखी हुए कि कई दिनों तक उनसे खाना तक नहीं खाया था. गोदामों से भूसा-चारा निकालकर भूखे जानवरों को खिला दिया करते थे. कहाँ जाता है, जब जरथुस्त्र के घर में पर्याप्त भोजन या चारा नहीं होता था, तो वे जंगल या इधर-उधर से चारा तथा भोजन एकत्र करके बूढ़े, असहाय, लंगड़े, भूखे जानवरों को खिलाया करते थे.
उनके पास हर समय भूखे जानवरों की भीड़ सी लगा करती थी. एक बार उन्होंने एक परोपकारी गरीब को आटा बांटते देखा, तो वे भी उसके साथ आटा बांटने लगे थे. उन्हें परोपकार, दान पुर्ण्य में बड़ा आनन्द आता था. वे ईश्वर के सच्चे भक्त थे. ऐसे ही एक बार एक जादूगर को धर्म के नाम पर अन्धविश्वास फैलाते देखा, तो महात्मा जरथुस्त्र ने उसको ऐसा फटकारा कि वह उनके पैरों पर गिर पड़ा और अपने किये पर माफ़ी मांगने लगा.
महात्मा जरथुस्त्र के साथ धोखा
महात्मा जरथुस्त्र द्वारा धर्म का सच्चा स्वरूप बताने पर जरथुस्त्र को धर्म विरोधियों के छल-कपट का काफी सामना करना पड़ा. कई दुष्ट तो कुत्ते, बिल्ली, सुअर, चूहे आदि का सर कलम कर रख देते थे. और वहां के बादशाह के कान भरते थे कि यह तो जरथुस्त्र का करा धरा है. बादशाह ने प्रारम्भ में तो लोगों की इन बातों पर विश्वास कर लिया था. परन्तु बाद में उन्हें अपनी भूल का एहसास हुआ. इधर तोहरान का शासक कुमुक महात्मा जरथुस्त्र के प्रभाव से भयभीत था. उसने जरथुस्त्र के राज्य पर आक्रमण करके उस पर अपना अधिकार कर लिया था. बादशाह ने उन पर बिना किसी अभियोग के उन्हें मृत्युदण्ड दे दिया. उस समय महात्मा जरथुस्त्र की आयु लगभग 77 वर्ष की थी.
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FAQs
Ans- महात्मा जरथुस्त्र पारसी धर्म के संस्थापक थे, जरथुस्त्र का जन्म प्राची ईरान में स्पित्मा अजरबेजान नगर में ईसा से 600 वर्ष पूर्व हुआ था