Battle of Somnath in 1026 AD- ग्याहरवी शताब्दी के प्रारंभ में भारत की स्थिति बहुत ही कमजोर थी. वह राजनीतिक रूप से कमजोर था, परन्तु इसकी आर्थिक स्थिति बहुत सुदृढ़ थी. भारत अनेक विभागों, छोटे-छोटे शहरों आदि में बटाँ हुआ थे. उनमें राष्ट्रीय एकता तथा देशभक्ति का पूर्णतया अभाव था तथा मिलकर बाहरी आक्रमणकारियों का सामना करने की भावना भी शून्य थी. इस परिस्थितियों का लाभ उठाकर गनी के सुल्तान महमूद ने भारतीय शासकों एवं राज्यों पर अपना अधिकार जमाना आरंभ किया. महमूद ने राज्य सिंहासन पर बैठने से पूर्व भारत की विशाल धन-संपदा के किस्से सुने थे. अतः वह भारत के प्रति विशेष रूप से आकर्षित था.
जब उसके राज्याधिकार को बगदाद के खलीफा ने स्वीकृति प्रदान कर दी तो उसका निश्चय और भी दृढ़ हो गया. उसने प्रतिज्ञा की कि वह प्रतिवर्ष भारत पर पूरी शक्ति से आक्रमण करेगा. यही कारण है कि महमूद ने 1000 ई. से 1026 ई. के बीच भारत पर लगातार सत्रह बार आक्रमण किए और समस्त उत्तरी भारत को बुरी तरह रौंद डाला था.
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सुल्तान महमूद ग़ज़नवी ने भारत पर आक्रमण कब-कब किये?
सुल्तान महमूद ग़ज़नवी ने सर्वप्रथम 1000 ई. में भारत पर आक्रमण किया. उसने सिंधु नदी के पश्चिम प्रदेश में स्थित नगरों तथा किलों को लूटा. जीते हुए स्थानों पर अधिकार जमाकर वह वापस गजनी लौट गया. महमूद ने दूसरा आक्रमण पुनः एक वर्ष बाद यानी 1001 ई. में लाहौर के शासक जयपाल पर किया. पेशावर के निकट भीषण संघर्ष हुआ, परंतु सामरिक भूलों एवं कूटनीतिक चालों के अभाव में जयपाल को इस युद्ध में पराजित होना पड़ा. इस सफलता के परिणामस्वरूप महमूद का साहस बहुत बढ़ गया तथा धन-प्राप्ति की लालसा से उसे इस कार्य के लिए भी अधिक प्रेरित किया.
तीसरा आक्रमण 1003 ई. में सिंधुनदी के पार झेलम के किनारे स्थित भेरा राज्य पर किया. यह राज्य उस समय विजयराय के अधिकार में था. वहां का दुर्ग सैनिक दृष्टिकोण से बड़ा महत्वपूर्ण था. इस युद्ध में भी अंततः महमूद को भी सफलता प्राप्त हुई.महमूद ने चौथा आक्रमण 1006 ई. में मुल्तान के शासक अब्दुल-फतेह-दाऊद पर किया. इस अभियान में भी उसे सफलता प्राप्त हुई. इसके बाद पांवच आक्रमण (1007 ई.) में महमूद ने नावासाशाह को पराजित कर दिया. अपने छठे आक्रमण में महमूद ने 1008 ई. में लाहौर के राजा आनंदपाल को हराया. यह युद्ध अत्यंत संघर्षपूर्ण एवं रोमांचक रहा था.
Battle of Somnath in 1026 AD
महमूद ग़ज़नवी ने सातवे आक्रमण से पहले लाहौर पर अपना कब्जा कर लिया था यह सातंवा आक्रमण इन्होंने 1009 ई. में नगरकोट में किया और जब यह युद्ध छिड़ा तो ऐसा छिड़ा कि युद्धों का ऐक मेला सा लग गया और निरन्तर युद्ध होने लगी इन्हें इस युद्धों से भारी मात्रा में धन-संपदा प्राप्त होती थी. बारहवां आक्रमण 1018-19 में मथुरा और कन्नौज की विजय के उद्देश्य से किया और वह सफल भी हुआ. तेरहवां आक्रमण (1020 ई.) कालिंजर विजय के साथ समाप्त हुआ. इन आक्रमणों में सफलता प्राप्त करने के बाद लूटपाअ करके महमूद जल्दी ही लौट जाता था.
महमूद ग़ज़नवी का सोमनाथ पर आक्रमण और युद्ध 1026 ई.
सोमनाथ मंदिर गुजरात के सौराष्ट्रक में सरस्वती नदी के मुहाने के पस अरब सागर के तट पर स्थित है. यहाँ पर महमूद ने 1025 ई. में हमला किया था. इसमें हजारों पुजारी रहते थे. भारतीयों की दृष्टि से इस मंदिर का विशेष महत्त्व था. इसी कारण समस्त भारत में इसकी विशेष मान्यता थी. सूर्यग्रहण एवं चन्द्रग्रहण समय लाखों की संख्या में लोग एकत्रित होते थे. एक हजार पुजारी प्रतिदिन पूजा के लिए निर्धारित थे. मंदिर का मंडप 56 रत्नजटित भारी-भारी स्तंभों पर आश्रित था.
महमूद की सेना में लगभग 80,000 योद्धा संगठित थे, जिसमें लगभग 30,000 नियमित अश्वारोही तथा शेष पैदल सैनिक के रूप में उसके स्वयंसेवी सैनिक थे. उसने अपनी सैन्य शक्ति का समुचित प्रयोग करने के लिए आपूर्ति व्यवस्था पर विशेष रूप से ध्यान दिया था, क्योंकि उसे विगत कई लड़ाइयों का अनुभव भी प्राप्त था. इसके साथ ही जल-पूर्ति के लिए उसने 30,000 ऊँटों पर पानी तथा अन्य आवश्यक सामग्री इस अभियान के एिल रखी, ताकि रेगिस्तान की समस्याओं से भी सुरक्षा की जा सके.
सोमनाथ के इस आक्रमण में राजपूतों की निश्चित संख्या का स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता, परंतु यह अनुमान है कि लगभग 50,000 सैनिक ही रहे होंगे. इसके साथ ही उनकी सैन्य शक्ति का समुचित उपयोग नहीं हो सकता. अबर सागर के तट पर स्थित सोमनाथ मंदिर की किलेबंदी सुदृढ़ थी और सतर्कता के साथ प्रत्येक दिशा में होनेवाले आक्रमण का सामना किया जा सकता था. महमूद ने कूटनीति से काम किया और गुप्त रूप से अपनी सेना मंदिर की किलेबंदी में प्रवेश करा दी. 6 जनवरी, 1026 ई. को महमूद की सेना देलवाड़ा (गुजरात) से सोमनाथ में मंदिर को घेरने के लिए तेजी के साथ आगे बढ़ी.
Battle of Somnath in 1026 AD
उसने अपनी निर्धारित योजना के आधार पर कार्यवाही करना आरंभ कर दिया. जिससे उसके कुछ सैनिक दुर्ग की प्राचीर को तोड़कर आगे बढ़ गए. इस युद्ध के दौरान बहुत मारामारी हुई जिस कारण कही अधिक हिंसा न फेल जाए महमूद की सेना कुछ समय के लिए युद्ध से पीछे हट गई परन्तु साथ ही उन्होंने बड़ी चतुराई से राजपूतों की कमियां का लाभ उठाया और अपनी सेना को बनाए रखा बार की जोरदारी कार्यवाही से उनके सैनिक सोमनाथ मंदिर की ओर बढ़ने में सफल हो गए. जिस समय महमूद की सेना मंदिर में प्रवेश कर रही थी, बहुत बड़ी संख्या में मंदिर के पुजारी तथा हिंदू जनता मंदिर की दीवार एवं छतों पर खड़ी होकर उपहासों तथा धमकियों द्वारा उसकी सेना का स्वागत कर रही थी.
सोमनाथ युद्ध में राजपूत सेना के हार के कारण?
जब सोमनाथ युद्ध में महमुद सेना थोड़ी कमजोर हुई तो महमुद ने खुदा को याद किया ओर जोर से अल्लाह-हू अकबर बोलकर जिस से युद्ध के लिए डट कर और लाखों हिन्दुओं को मौत के घाट उतार दिया. लगभग 5,000 हिन्दू सैनिक इस दौरान मारे गये. मंदिर के पुजारी छत पर खड़े होकर तमाशा देख रहे थे कि मंदिर से भगवान् शंकर स्वयं निकलकर अपनी तीसरे नेत्र को खोलकर इन आक्रांत अफगानों को विनष्ट कर देंगे. इसके साथ ही महमूद की सेना ने सोमनाथ के मंदिर में गुप्त मार्ग से प्रवेश किया. महमूद ने अपनी गदा के द्वारा शिवलिंग के टुकड़े-टुकड़े कर दिए. किलेबंदी के कुछ सैनिकों ने भागकर समुद्र तट पर छिपने का प्रयास किया, किन्तु महमूद के पूर्व तैनात सैनिकों ने उन्हें मौत के घाट उतार दिया. मंदिर का समस्त धन एवं बहुमूल्य वस्तुएं, मंदिर के विशाल दरवाजे समेत लूटकर महमूद गजनी वापस लौट गया.
इस प्रकार इस युद्ध की समाप्ति तो हो गई, परंतु यह युद्ध सामरिक दृष्टिकोण से शायद इतना महत्त्वपूर्ण नहीं रहा, जितना सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक दृष्टिकोण से इस युद्ध ने ये प्रामाणित कर दिया कि कर्तव्य को छोड़कर केवल धार्मिक आस्था को आधार पर युद्धों में सुरक्षा या सफलता पाना कभी संभव नहीं है. यदि समस्त हिन्दू के पुजारियों ने इस आक्रमणकारियों का सामना किया होता तो महमूद अपने इस आक्रमण में कभी सफल नहीं हो सकता था. महमूद ने अपने पूर्व आक्रमणों द्वारा हिन्दुओं की कमजोरियों का अनुभव कर लिया था. जिनका लाभ उठाकर वह सदैव सफल होता रहा. महमूद की सेना से भी राजपूत सेना आतंकित नहीं हुई, किन्तु उसकी धूर्ततापूर्ण चालों से अवश्य भारी हानि उठानी पड़ी थी.
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FAQs
Ans- सोमनाथ का युद्ध 1026 ईस्वी गुजरात के सोमनाथ मंदिर के पास हुआ था.