Second Battle of Tarain in 1192- जब मुहम्मद गौरी तराइन का प्रथम युद्ध 1191 ई में पृथ्वीराज से हार गया. तो यह वह हार सहन नहीं कर पराया, और वह हार के कारण अपनी सेना को ही दण्डित करने लगा. उसने अपने सेनापति सेनानायक आदि को बहुत ही बुरे ढंग से अपमानित किया व बहुत कठिन दण्ड भी दिए. इनमें से अनेक कुलीन कारागृहों में उस समय तक जीवन व्यतीत करते रहे जब तक राजपूतों के विरुद्ध युद्ध में सक्रिय रूप से भाग लेने और पूर्व पराजय के कलंक को मिटाने की तीव्र उत्सुकता व्यक्त करने पर उनको अगले वर्ष मुक्त नहीं कर दिया गया.
फरिश्ता के अनुसार मुहम्मद गौरी दुःख और अपमान की भावना से इतना अधिक पीड़ित था कि वह न खाता था और न पीता था. वह अपनी पत्नी के पास नहीं गया और उसने अपने कपडे भी नहीं बदले जो वह अपने शरीर पर पहने हुये था. दिन रात वह पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्ध की तैयारी में व्यस्त रहता था. उसने अपने अथक प्रयास से तुर्क एवं अफगान नागरिकों की विशाल सेना तैयार की और डेढ़ वर्ष के अन्दर ही एक लाख बीस हजार कवचधरी अश्वारोही सैनिक तैयार कर लिये.
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इस गहन तैयारी के बाद तत्काल उसने हिन्दुस्तान के लिए कूच किया. जब पृथ्वीराज चौहान को पता चला कि मुहम्मद गौरी अपनी सेना एकत्रित करके पुनः दिल्ली की ओर बढ़ रहा है. तो वह भी अपनी संपूर्ण शक्ति को एकत्रित करके दिल्ली से भटिंडा की ओर बढ़ा और तराइन के मैदान में पड़ाव डालकर शत्रु के आने की प्रतिक्षा करने लगा. दूसरी ओर मुम्मद गोरी भी अपनी सेनाओं सहित पेशावर से आगे बढ़कर आया, लेकिन पृथ्वीराज के पड़ाव से लगभग 16 किमी. दूर ही रूक गया और शुद्ध व्यूत बनाने में जुट गया.
तराइन का द्वितीय युद्ध 1192 ई (Second Battle of Tarain in 1192)
दोनों विरोधी एक बार पुनः अपने विवारों का निर्णय करने के लिए तराइन के मैदान में मिले. मुहम्मद गौरी ने शत्रु को पराजित करने के लिय चतुर रणनीति का प्रयोग किया. उसके 13,000 अश्वारोही धनुर्धरों की 4 शाखाओं में राजपूतों को पिछवाड़े सहित चारों ओर से व्यस्त कर दिया. शत्रु के बहुत निकट नहीं आने के लिए लेकिन यत्र-तत्र बिखने हुये संघर्षों में राजपूतों के धैर्य और शक्ति को क्षीण करने के लिए उनको विशेष निर्देश थे और किसी भी मोर्चे पर दबाव बढ़ने पर व्यवस्थित ढंग से पीछे हटने का भी निर्देश था. सुरक्षित सैनिकों (रिजर्व) की उसने युद्धभूमि से अनेक मीन दूर स्थित किया था.
उसने शत्रु को उसकी वास्तविक शक्ति का आकलन करने का अवसर नहीं दिया. जब दिन भर के सशस्त्र संघर्षों (झड़पों) और बहुत बड़ी संख्या में धनुर्धरों की रणनीति के कारण राजपूत किंकर्तव्यविमूढ़ और असंगठित हो गये तब मुहम्मद गौरी ने सुरक्षित सैनिकों (रिजर्व) को यूद्धभूमि में प्रयुक्त कर दिया और विजय प्राप्त कर ली. समस्त राजपूत सेना का संहार हो गया. गोविन्द राय युद्ध करते हुये शहीद हो गया जबकि पृथ्वीराज युद्ध भूमि से भाग गया. लेकिन पकड़ा गया और तत्काल अथवा कुछ समय बाद उसकी हत्या कर दी गई. पृथ्वीराज चौहान का अस्तित्व समाप्त होने से न केवल पृथ्वी की छवि लप्त हुई अपितु यह राजपूतों के लिए भी घातक साबित हुआ. तराइन के युद्ध के दौरान लाखो करोड़ों वीरो. सैनिकों योद्धाओं आदि की मृत्यु हुई परन्तु फिर भी कोई लाभ नहीं हुआ क्योंकि पृथ्वीराज का अस्तित्व लुप्त हो चुका था.
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FAQs
Ans- तराइन का द्वितीय युद्ध 1192 ई में मुहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के मध्य हुआ था, जिसने पृथ्वीराज की धोखे से हार हुई थी.