Battle of Jhelum 326 AD || झेलम का युद्ध 326 ई

By | September 11, 2023
Battle of Jhelum 326 AD
Battle of Jhelum 326 AD

झेलम का युद्ध 326 ई (Battle of Jhelum 326 AD)- सिकंदर को अलेक्जेंडर III तथा मेसीडोनिया का अलेक्जेंडर आदि उपाधि से सम्मानित किया गया था इसका जन्म आज से 356 ई. पू. मकदूनिया में हुआ. सिकंदर ने अंग्रेजों के सम्राज्य को समाप्त करने के उद्देश्य से फारसी (ईरान) लोगों की सेना को समाप्त कर मकदूनिया की सेना को भारत में तथ्य यूनानियों का विकास करने के उद्देश्य से अनेक प्रत्यन्न किए. वर्ष से 16 वर्ष की उम्र तक उन्होंने अरस्तू से शिक्षा पाई, जिन्होंने दर्शन, औषधिशास्त्र तथा वैज्ञानिक अनुसंधान में सिकंदर की रुचि जागृत की. किंतु बाद में सिकन्दर अपने गुरु के इस संकीर्ण दृष्टिकोण से असहमत हो गए कि गैर ग्रीक लोगों को दास समझा जाए. 336 ई.पू. में अपने पिता और शासक राजा फ़िलिप 2nd की हत्या के बाद सिकंदर को सेना द्वारा मान्यता दी गई तथा वह निर्विरोध अपने पिता के उत्तराधिकारी बने.

उन्होंने तुरंत लिनसेस्टिस के राजकुमारों को मृत्युदंड दिया, जो राजा फ़िलिप की हत्या से संबंधित माने गए थे. और उस वर्ग के सभी लोगों को मौत के घाट उतार दिया, जो उनके विरोधी थे. और उनके संभावित प्रतिद्वंद्वी हो सकते थे। इसके बाद उन्होंने दक्षिण की ओर कूच किया, कमजोर थेसिली पर क़ब्ज़ा किया. कॉरिथ में हुए ग्रीक सम्मेलन में उन्हें एशिया पर अगले आक्रमण के लिए (जिसकी योजना का निर्माण और सूत्रपात राजा फ़िलिप द्वारा किया जा चुका था) महासेनाधिपति नियुक्त किया गया.

झेलम का युद्ध 326 ई.वी (Battle of Jhelum 326 AD)

327 ई.पू. में सिकंदर 35 हजार सैनिकों की पुनर्सज्जित सेना तथा पुनर्संगठित नायक दल के साथ बैक्ट्रिया से निकले. सिकंदर ने अपनी सेना को दो भागों में बाँट दिया और उन्होंने बड़ी सफलता से बामियान तथा गोरबंद घाटी से निकलते हुए हिंदुकुश को भी पार किया. और सेना के आधे हिस्से को सिकंदर के नेतृत्व में ही रखा गया, और बाकी आधी सेना को घुड़सवार सेनापति, और परडिकस के निमंत्रण में रखा गया और खैबर दर्रे से भेजा गया. स्वात और गांधार से बढ़ते हुए उन्होंने एओरनस (वर्तमान पीरसर, पाकिस्तान) के लगभग अजेय शिखर को जीत लिया, जो सिंधु नदी से कुछ कि.मी. की दूरी पर बुनेर नदी के उत्तर में है. यह घेराबंदी – कला की एक प्रभावशाली सफलता थी.

326 ई.पू. के वसंत में उन्होंने अत्तोक के पास सिंधु नदी को पार करके तक्षशिला में प्रवेश किया. तक्षशिला के शासक तक्षकों ने उन्हें अपने प्रतिद्वंद्वी पोरस के विरुद्ध लड़ने के लिए सेना तथा हाथी दिए. पोरस झेलम (हाइडास्पीज़) और चिनाब (एसेस्नीज़) नदी के मध्यवर्ती भूभाग के शासक थे. सिकंदर ने जून में झेलम के बाएं किनारे पर अपनी आख़िरी बड़ी लड़ाई लड़ी. वहां उन्होंने दो नगरों की नींव रखी-अलेक्जेंड्रिया निकीआ और बूसीफ़ला तथा पोरस उनके सहयोगी बन गए.

सिकंदर महान के भारतीय उपमहाद्वीप में युद्ध के बाद कार्य?

सिकंदर ने निर्माण सम्बन्धी भी बहुत से कार्य किए जैसे-ओलिंपियाई देवताओं के लिए 12 वेदिया झेलम नदी पर एक बेड़े की व्यवस्था की उनहोंने सिंधु नदी तक पहुचने के लिए पोरस को भी छोड़ दिया. उनकी आधी फौज जहाजों पर और आधी तीन क़तारों में दोनों किनारों पर चल रही थी. जहाजी बेड़े का नेतृत्व नीऑरकस कर रहे थे और स्वयं सिकंदर के कप्तान ओनेसीक्रिटस थे. बाद में इन दोनों ने इस अभियान के वृत्तांत लिखे. इस कूच के दौरान कई लड़ाइयां हुईं और निर्दयता से भारी क़त्लेआम किए गए. रावी (हाइड्रिओटिज़) नदी के तट पर बसे एक नगर मल्ली पर हमले के समय सिकंदर को एक गंभीर घाव लग गया, जिसने उन्हें कमजोर बना दिया.

सिंधु नदी के डेल्टा पर बसे पटाला नगर पहुंचने पर उन्होंने एक बन्दरगाह और नौकाघाट बनवाए और सिंधु नदी के दोनों किनारों की खोजबीन की. तब संभवतः सिंधु कच्छ के रण में बहती थी. उन्होंने अपनी फ़ौज के एक भाग को भूमि मार्ग से वापस ले जाने की योजना बनाई तथा शेष भाग को 100 से 150 जहाज़ों में नीऑरकस की अगुआई में फ़ारस की खाड़ी में मार्ग खोजते हुए जाना था. स्थानीय विरोध के कारण नीऑरकस सितंबर 325 ई.पू. में ही रवाना होने को तैयार हो सके और उन्हें तीन सप्ताह पूर्वोत्तर मानसून के आगमन के समय देर अक्तूबर तक रुकना पड़ा.

सिकंदर ने अपनी रवाना सितंबर माह से प्रारंभ की और गेद्रोसिया मार्ग से होते हुए गए. समतल रास्ता न होने के कारण वह सेना के लिए पूर्ण व्यवस्था अर्थात् खाना-पानी आदि अन्य चीजों को साथ नहीं ले सके. और उन्हें वैसे भी इस युद्ध के लिए भीतरी मार्ग में से होकर जाना था.

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सिकंदर महान भारतीय उपमहाद्वीप से वापसी

अलेक्जेंडर द ग्रेट के एक उच्च अधिकारी क्रेटेरस को पहले ही साजो-सामान, हाथियों, बीमार तथा घायल लोगों के साथ आगे भेजा जा चुका था. उनके साथ सेना की तीन टुकड़ियां भी थीं. क्रेटेरस की यात्रा का मार्ग मुल्ला दर्रा में से होते हुए क्वेटा और कांधार होकर हेलमंद घाटी तक पहुंचने का था. यहां से उसे इंगियाना होते हुए कार्मेनिया में मिनाब (भूतपूर्व अमानिस) नदी के किनारे मुख्य सेना से मिलना था. गेद्रोसिया से होकर सिकंदर की यात्रा संकट भरी रही. जलविहीन रेगिस्तान तथा भोजन और ईंधन की कमी से बहुत दुःख झेलना पड़ा और कई लोग विशेषतः स्त्रियां व बच्चे, एक घाटी में बसेरे के समय आई आकस्मिक मानसूनी बाढ़ में बह गए. अंत में वह मिनाब नदी पर नीऑरकस और उनके बेड़े से मिला. नीऑरकस वाले बेड़े ने भी मार्ग में भारी कष्ट सहे थे.

हाइफ़ेसिस (संभवतः आधुनिक व्यास) नदी के आगे सिकंदर भारत के बारे में कितना जानते थे. यह कहना अनिश्चित है, परंतु वह आगे बढ़ते जाने को उत्सुक थे. झेलम नदी तक बढ़ने के बाद जब उनकी फ़ौज ने बग़ावत कर दी और उष्णकटिबंधीय बारिश में और आगे बढ़ने से इनकार कर दिया. वे सब शारीरिक और मानसिक रूप से थक गए थे और सिकंदर के चार प्रमुख सिपहसालारों में से एक, कोएनस, विद्रोहियों के प्रवक्ता बन गए. अपनी सेना की जिद को समझकर सिकंदर वापस लौटने को राजी हो गए.

Battle of Jhelum 326 AD

जब सिकंदर झेलम वापिस गया तो सर्वप्रथम उसने उन प्रदेशों का सम्पूर्ण विकास किया जिन्हें उसमें युद्ध के दौरान विजय के रूप में प्राप्त किया था और उसने प्यास और झेलम के मध्य का भाग को और झेलम और सिंध के मध्य का भाग गांधार राज आम्भी को दे दिया. क्योंकि पुरुराज से युद्ध में आम्भी ने उसकी मदद की थी. सिकन्दर ने सिंध के पश्चिम के भारतीय प्रदेश सेनापति फिलिप्स को दिए. भारत के जिन प्रदेशों पर सिकंदर का आधिपत्य स्थापित हो गया था, उनके अनेक नगरों में यवन सेना की छावनियाँ स्थापित की गई ताकि ये प्रदेश यवनराज के विरुद्ध बगावत न कर सकें.

अलेक्जेंडर द ग्रेट (सिकंदर) के भारत में अन्य युद्ध और वतन वापसी

लौटते समय झेलम के समीपवर्ती प्रदेश में सिकंदर ने सौभूति को हराया. रावी नदी के साथ के प्रदेश में मालव गण स्थित था. मालवों के पूर्व में क्षुद्रक गण था. सिकंदर ने अचानक मालवों पर हमला किया. बहुत से मालव अपनी जन्मभूमि की रक्षा के लिए लड़ते हुए युद्ध में काम आ गए. सिकंदर ने क्षुद्रकों से संधि कर ली.

इनके अतिरिक्त सिकंदर को अंबष्ठ, क्षत् और वसाति आदि जातियों से भी लड़ना पड़ा. उत्तरी सिंध में सिकंदर ने मूसिकानोई नामक जनपद को हराया. सिंधु नदी के मुहाने पर पहुँचकर उसने अपनी सेना को दो भागों में विभक्त किया. जल सेनापति नियाकंस को जहाजी बेड़े के साथ समुद्र के मार्ग से वापस लौटने का आदेश देकर वह स्वयं मकरान के किनारे-किनारे स्थल मार्ग से अपने देश की ओर चला. रास्ते में 323 ई. पू. में बेबीलोन में सिकंदर की मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु का कारण युद्ध में उसका बुरी तरह घायल हो जाना था.

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FAQs

Q- झेलम का युद्ध 326 ई किस के मध्य हुआ था?

Ans- झेलम का युद्ध 326 ई में यूनान के राजा अलेक्जेंडर द ग्रेट (सिकंदर) और भारत के सिंध के राजा पोरस के मध्य हुआ था, जिस में सिकंदर की जीत हुई और राजा पोरस बाद में उसका सहयोगी बना.

भारत की संस्कृति

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