First Battle of Tarain 1191- मौहम्मद गोरी ने लाहौर को अपना स्थान उस समय बनाया जब कि पंजाब का समापन अर्थात् विलय हो चुका था उसने लाहौर से ही राजपूतों के विरुद्ध युद्ध प्रारंभ करने की योजना बनाई. मौहम्मद, गौरी ने पृथ्वीराज को युद्ध के लिए ललकारन से कम से कम तीन साल पहले ही स्वयं को अत्यन्त मजबूत व शक्तिशाली बना लिया था ताकि वह पृथ्वीराज का सामना डरकर कर सके. सन् 1189 में उसने भटिंडा (ताबरहिन्द), जो चौहान राज्य की रक्षा चौकी थी, पर तूफान की तरह आक्रमण कर दिया और घिरे हुए सशस्त्र सैनिकों को दिल्ली में सैन्य कुमुक आने से पूर्व आत्म-समर्पण करने के लिए विवश कर दिया. मुहम्मद गोरी ने एक तुर्की सामन्त के प्रभाव में 12,000 अश्वारोही सैनिकों को गजनी से नई सेना के साथ लौटकर आने तक लगभग दो माह राजतपूतों को रोकने के निर्देशों के साथ नियुक्त किया.
तराइन का प्रथम युद्ध सन् 1191 (First Battle of Tarain 1191)
पृथ्वीराज चौहान ने गजनी की शाक्ति के विकास पर कोई ध्यान नहीं दिया, न ही वह मुहम्मद गोरी के मुल्तान और लाहौर पर नियन्त्रण करने से चिन्तित था. उसने सन् 1182 के बाद भी जब उसके दिल्ली का तूमर राज्य अपने नाना के पैतृक निधि के रूप में लिये गया था, अजमेर की प्रशासनिक मुख्यालय रखा. उसने अपने छोटे भाई गोविन्द राय को दिल्ली का राज्यपाल नियुक्त किया था. पृथ्वीराज को दिल्ली के गोविन्द राय द्वारा एक अधिकृत दल के माध्यम से तुर्की के उसके राज्य में घुसपैठ और भटिण्डा के तपन का समाचार मिला था. तदुपरान्त पृथ्वीराज ने घुसपैठियों को दण्ड देने के लिए अजमेर से विशाल सेना भेजी.
गोविन्दराय और कुछ अन्य राजपूत सरदारों की सैन्य टुकड़ियों भी भटिण्डा के मार्ग में सम्मिलित हो गई. इन सब को पूर्ण से बनाने के लिए बहुत ही अधिक समय लगा और मोहम्मद गोरी ने लाहौर और गजनी से सेना को इकट्ठा कर एक शक्तिशाली व कुशल सेना बनाई और पृथ्वीराज चौहान को उसी के क्षेत्र में परास्त करने का निश्चय किया. सन् 1191 के प्रारम्भ में तराइन के मैदान में राजपूतों के साथ सशस्त्र संघर्ष हुआ लेकिन राजपूतों के हाथों उनकी विनाशकारी राजय हुई. इतिहासकारों के अनुसार पृथ्वीराज चौहान की सेना में लगभग 3,00,000 अश्वारोही, 5,000 हस्ती तथा बड़ी संख्या में पढ़ाती थे. जबकि मुहम्मद गौरी के पास प्रमुख रूप से दो प्रकार की सेनाएं थी, अश्वारोही तथा ऊँट सवार इसके अलावा गोरी ने 1,20,000 कवचित धनुर्धारी तथा मालाधारी अश्वारोही सैनिकों को संगठित किया था.
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तराइन के प्रथम युद्ध में किसकी जीत हुई?
गोरी की सेना का प्रमुख हथियार धनुष वाण था, जबकि पृथ्वीराज की सेना में मूल-रूप हथियार तलवार एवं भाला थे. अश्वारोही सेना ही प्रमुख लड़ाकू सेना के रूप में दोनों ओर से थी। युद्ध स्थल की स्थिति के विषय में तीव्र मतभेद है. ए.बी.एम. हबीबुल्लाह कनिंघम द्वारा चिह्नित भटिण्डा और सिरसा के मध्य स्थित तोरवन नाम के गांव को युद्ध भूमि को स्वीकार करते हैं. फरिश्ता ने लिखा कि तराइन तरीरी के नाम से भी विदित था. इसके अनुसार एल्फिन्सटन ने इसी करनाल और थानेसर के मध्य स्थित कहा है. जब तराइन का युद्ध प्रारंभ हुआ तो पृथ्वीराज चौहान से पहले ही वार में गोरी की सेना को चित कर दिया पृथ्वी ने गोरी की सेना पर चारों तरफ से हमला कर दिया जिस कारण वह अपने आप को सभाल नहीं पाए और पृथ्वी के सेना के सामने टिक नहीं पाए.
इस तरह राजपूत सैनिक तुर्क सेना के दोनों पत्रों पर आक्रमण करते हुए गोरी की सेना के मध्य भाग में जा पहुँचे, जहाँ आपीसेना की बागडोर स्वयं मुहम्मद गोरी ने संभाल रखी थी. लेकिन इस प्रहार को वो भी नहीं झेल सका कि युद्ध के विवरण के विषय में मिन्हाजुस मिराज लिखते है, आमने-सामने के युद्ध में गोविन्दराय ने मुहम्मद गौरी का एक भाला फेंका और उसकी बांह को गम्भीर रूप से घायल कर दिया. सुल्तान ने अपने अश्व के सिर को घुमा दिया और पीछे हट गया.
First Battle of Tarain 1191
घाव की अत्यधिक पीड़ा के कारण वह घोड़े की पीठ पर सीधे बैठने में असमर्थ था और जमीन पर गिरने ही वाला था कि तभी एक अदम्य साहसी योद्धा ने उसके पहचान लिया, सुल्तान के पीछे से (घोड़े की पीठ पर झपट कर आया और उसकी अपनी बाँहों का सहारा देकर रणभूमि से घोड़से चलने के लिए कहां और उसको युद्ध भूमि से बाहर ले आया.
लेकिन फरिश्ता इस घटना का भिन्न वर्णन देते हैं। वे लिखते हैं कि घायल सुल्तान युद्ध भूमि में मृत और मरणासन्न सैनिकों के मध्य अचेतन पड़े थे और उसके दास रात्रि में उसको उठा कर ले गये थे. रात्रि के समय वे बारी-बारी से उसको अपने कंधों पर ले गये. दूसरे दि प्रातः वे अपने शिविर में पहुँचे और उसको तृणशय्या में रख दिया था.
तराइन का प्रथम युद्ध 1191 ई के बाद राजपूतों ने जीत के पश्चात् भटिण्डा को चारो तरफ से घेर लिया और तुर्कों की सेना जो कि बन्दी बनी हुई थी उनके अपने आप को सौपने से पहले कम से कम 13 महीने तक राजपूतों को बन्दी बना कर रखा. यह राजपूतों के निकृष्ट सैन्स संगठन और दोषपूर्ण रणनीति की दुःखद व्याख्या है. कि उन्होंने तुर्कों से अपना ही दुर्ग वापिस लेने में इतना अधिक समय नष्ट किया. जबकि उसे तुर्कों ने कुछ समय पूर्व एक ही झटके में राजपूतों से ले लिया था.
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FAQs
Ans- तराइन का प्रथम युद्ध 1191 ईस्वी में पृथ्वीराज चौहान और गजनी के सुल्तान मौहम्मद गोरी के मध्य हुआ था, जिसमे मौहम्मद गोरी की बुरी तरह से हार हुई थी.