दोस्तों हम यहाँ शेयर करने जा रहे है, भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 पहले शहीद मंगल पांडेय जी की जीवनी (Biography of Mangal Pandey). और उनकी 1857 क्रांति में क्या योगदान दिया और उनकी रोचक जानकारी. मित्रों 1857 ईस्वी की क्रांति में भारत मां के अनेक सपूतों ने प्राणों को न्यौछावर कर दिया था. मंगल पांडे भी उनमें से एक थे, वे 1857 स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम शहीद थे. जिन्होंने अपने देश की स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजों पर पहली गोली चलाई थी. मंगल पांडे गोली चलाने के परिणामों के बारे में अच्छी तरह जानते थे. किंतु वह दास्तां की पीड़ा से इतने व्याकुल हो चुके थे कि मृत्यु तथा फांसी कब है उनके दिल से निकल चुका था.
उन्होंने अपने स्वधर्म तथा स्वतंत्रता के लिए कर्तव्य का पालन करते हुए मुख्य मंच से अंग्रेज अधिकारी पर गोली चलाई। इस प्रकार वे हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए. और भारतीय इतिहास में अपना नाम अमर कर गए उनका साथ धन्यथा वंदनीय था. भारत की स्वतंत्रता की हुई बलिवेदी पर मर मिटने वाले अन्य वीरों की भांति उनका नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित है और रहेगा. इस अमर शहीद मंगल पांडे के प्रति हम नतमस्तक रहेंगे.
मंगल पांडे कौन थे? (Biography of Mangal Pandey)
भारत के पहले शहीद थे मंगल पांडेय, मंगल पांडे एक महान योद्धा थे, जिन्होंने 1857 की क्रांति का बिगुल फुका था. और इस भारत की आजादी के लिए पहली फांसी इनको ही लगी थी. मंगल पांडे अंग्रजो की सेना में एक साधारण से सिपाही थे. जिनके मन में देश के लिए मर मिटने की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी.
Biography of Mangal Pandey (मंगल पांडे की जीवनी)
मंगल पांडे का जन्म 19-जुलाई-1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के गांव नगवा के रहने वाले सरयूपारी ब्राह्मण के घर हुआ था. उनके माता-पिता साधारण परिवार के थे. आपकी माता जी का नाम अभय रानी तथा पिता जी का नाम श्री दिवाकर पांडे था. मंगल पांडे अधिक पढ़े-लिखे नहीं थे साधारण हिंदी भाषा जानते थे. युवावस्था प्रारंभ होते ही वे अंग्रेजी सेना में भर्ती हो गए थे. प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के समय मंगल पांडे कोलकाता के बैरकपुर की 19वीं बटालियन में एक साधारण सिपाही थे. वह बड़े साहसी हंसमुख एवं देश भक्त थे. उनके मित्र उन से इतने प्रभावित थे, कि वे उनके लिए कुछ भी करने के लिए हमेशा तैयार रहते थे.
Summary
नाम | मंगल पांडे || Biography of Mangal Pandey |
उपनाम | मंगल पांडेय |
जन्म स्थान | गांव नगवा, जिला बलिया, उत्तर प्रदेश |
जन्म तारीख | 19-जुलाई-1827 |
वंश | सरयूपारी ब्राह्मण |
माता का नाम | अभय रानी |
पिता का नाम | श्री दिवाकर पांडे |
पत्नी का नाम | अविवाहित |
भाई/बहन | एक बहन जिनका 1830 के अकाल में मर्त्य हो गयी |
प्रसिद्धि | भारत के पहले शहीद |
रचना | — |
पेशा | स्वतंत्रता सेनानी |
पुत्र और पुत्री का नाम | अविवाहित |
गुरु/शिक्षक | — |
देश | भारत |
राज्य छेत्र | उत्तर प्रदेश |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | हिंदी |
मृत्यु का कारण | 08-अप्रैल-1857 बैरकपुर पश्चिम बंगाल में फांसी |
जीवन काल | 30 वर्ष |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Mangal Pandey (मंगल पांडे की जीवनी) |
1857 की क्रांति में मंगल पांडे कैसे कूदे?
ऐसा कहा जाता है कि 1 दिन मंगल पांडे दमदम कोलकाता के कुए के निकट पानी भर रहे थे. तभी वहां एक भंगी जी ने उनसे लौटा मांगा. उन्होंने लौटा देने से इनकार कर दिया. इस पर उस भंगी ने मंगल पांडे से कहा कि बाबा तुम मुझे लौटा भले मत दो. लेकिन तुम्हें जब फौज में गाय और सुअर की चर्बी लगे हुए कारतूसओं का प्रयोग करना पड़ेगा. तब आप अपने धर्म को कैसे बचाओगे. यह बात सुनकर मंगल पांडे ने सोचा की या तो उन्हें धर्म छोड़ना पड़ेगा या विद्रोह करना पड़ेगा. मंगल पांडे ने निश्चय किया कि उनकी जान चली जाए तब भी वे धर्म नहीं छोड़ेंगे. अतः उन्होंने अत्याचारी अंग्रेज सरकार के विरुद्ध विद्रोह करने का निश्चय किया और भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 की क्रांति में कूद पड़े.
1857 की क्रांति के मुख्य कारण क्या थे?
जब ब्रिटिश सरकार ने 19वीं रेजीमेंट को कारतूस प्रयोग करने का आदेश दिया जिसको सैनिकों ने मानने से इनकार कर दिया. इस अवसर पर सिपाहियों ने स्पष्ट रूप से कहा जरूरत पड़ी तो हम तलवार भले ही उठा लेंगे पर चर्बी युक्त कारतूस का प्रयोग नहीं करेंगे. ब्रिटिश सरकार ने पहले कठोर रुख अपनाया परंतु लाचार होकर उसे अपने विचारों में परिवर्तन करना पड़ा। इसका कारण यह था कि उस समय बंगाल में अंग्रेज सेना की एक भी रेजिमेंट नहीं थी. अंग्रेज सरकार ने निश्चय किया कि ब्रह्मा से अंग्रेज सेना के आने के बाद बैरकपुर के सिपाहियों को निशस्त्र कर दिया जाएगा. और रेजीमेंट को बंद कर दिया जाएगा.
दोस्तों कारतूस में गाय और सुअर की चर्बी थी या नहीं इस विषय पर कुछ समय तक विवाद बना रहा. और अंग्रेज सरकार ने घोषणा की कि कारतूस में गाय और सुअर की चर्बी का प्रयोग नहीं किया गया है. परंतु हिंदू तथा मुसलमान सिपाहियों का मानना था कि सरकार झूठ बोल कर उन्हें धोखा दे रही है.
अतः उन्होंने यह निश्चय कर लिया कि वह किसी भी कीमत पर जुल्मी सरकार का आदेश नहीं मानेंगे. क्रांति के प्रमाणिक लेखक सर जॉन के ने भी स्वीकार किया है. कि कारतूस में गाय और सुअर की चर्बी का प्रयोग किया गया था. उसने लिखा है इसमें कोई संदेह नहीं कि इस मसाले के बनाने में गाय की चर्बी का उपयोग किया गया था. उसने यह भी लिखा है दिसंबर 1853 ईस्वी में कर्नल रक्कर ने बहुत साफ शब्दों में इस बात को लिखा था कि नए कारतूसों में गाय और सुअर दोनों की चर्बी लगाई जाती थी.
भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 की क्रांति कैसे शुरू हुई?
दोस्तों अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालने के लिए 31 मई 1857 का दिन निश्चित किया गया था. जिस दिन सारे देश में एक साथ क्रांति प्रारंभ करने का निश्चय किया गया था. बैरकपुर से संबंधित केंद्रों को भी गुप्त पत्र भेजे गए थे.
29 मार्च का दिन भारतीय इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण दिन माना जाता है. इस दिन मंगल पांडे ने गोली चला कर इस महान 1857 की क्रांति को प्रारंभ कर दिया था. कुछ लोगों ने इसके लिए मंगल पांडे को दोषी ठहराते हुए लिखा है. कि यदि निर्धारित समय 31 मई से पूर्व मंगल पांडे गोली न चलाते तो महान क्रांति असफल नहीं होती. किन्तु मंगल पांडे को इसके लिए दोषी ठहराना उचित प्रतीत नहीं होता. उस समय परिस्थितियां ही ऐसी बन चुकी थी कि कोई भी देश भक्त अपने पर काबू नहीं रख सकता था. मंगल पांडे ने 29 मार्च को ही गोली चलाई इसके लिए दो बातें ध्यान में रखनी चाहिए जिन दिनों 31 मई को होने वाली क्रांति की चर्चा चल रही थी.
उन्ही दिनों यह अफवाह फैली कि अंग्रेज सरकार द्वारा सैनिकों को जो कारतूस दिए जा रहे हैं. जिन्हें वे अपने दांत से काट कर खोलते हैं उनमें गाय और सुअर की चर्बी लगी हुई है. इस अफवाह से हिंदू और मुसलमान सैनिक अंग्रेज सरकार के विरुद्ध विद्रोह करने हेतु तैयार हो गए. दूसरे सैनिक तो मौन रहे पर मंगल पांडे अपने धर्म एवं देश के इस अपमान को सहन नहीं कर सके. वह 31 मई तक प्रतीक्षा करने की स्थिति में नहीं रहे, वह तो शीघ्र ही अंग्रेज सरकार की छाती गोलियों से छलनी कर मृत्यु की गोद में सोने के लिए बेचैन हो उठे.
1857 की क्रांति निश्चित समय से पहले क्यों शुरू हुई?
दोस्तों 31 मई 1857 का दिन भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम शुरू होने की तारिक निर्धारित हुई थी. जिसके लिए भारत के महान क्रांतिकारियों ने देश में घूम घूम कर लोगो को अंग्रेजो के खिलाफ किया था. जिसमे तात्या टोपे, लक्मी बाई, अज़ीमुल्लाखा, अजीजन बाई, नाना साहब, अमरचंद बांठिया, बंसुरिया बाबा, कुंवर सिंह, अमर सिंह, स्वामी दयानंद सरस्वती, अवन्ति बाई लोधी प्रमुख थे.
29 मार्च को गोली चलने के लिए दूसरी बात यह थी. कि लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह को लखनऊ से निर्वासित कर दिया गया था. उन दिनों वाजिद अली शाह अपने वजीर अलीनक़ी खा के साथ बैरकपुर में रह रहे थे. जिनके हृदय में अंग्रेजों के विरुद्ध घृणा एवं शत्रुता की आग जल रही थी. इन दोनों घटनाओं ने सैनिकों को क्रांति करने हेतु प्रोत्साहित किया ऐसा कहा जाता है. कि मंगल पांडे ने अलीनक़ी खान के द्वारा उत्तेजित किए जाने के कारण ही 29 मार्च को गोली चला दी थी.
इस प्रकार मंगल पांडे ने निश्चित समय से पूर्व गोली चला कर 1857 क्रांति को आरंभ कर दिया था. जब सैनिकों को इसकी जानकारी मिली तो उन्होंने विद्रोह करने का निश्चय किया. अंग्रेजो ने इस विद्रोह को दबाने के लिए सैनिकों के वस्त्रो एवं हथियारों को छीनने का निश्चय किया. इसके अतिरिक्त 19 नंबर की पलटन को बंद करने एवं ब्रह्मा से गोरी पलटन मंगवाने का निश्चय किया.
19-मार्च-1857 भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?
29 मार्च का दिन भारतीय इतिहास में बहुत महत्व का दिन माना जाता है. इस दिन 10:00 बजे मंगल पांडे ने बंदूक भरी और उसे लेकर परेड के मैदान में जा पहुंचे. उन्होंने विद्रोह प्रारंभ करने का यह उपयुक्त अवसर समझा. वह सुबह से शीघ्रम में विश्वास करते थे. या कबीर जी की भाषा में कहे तो. “काल करे सो आज कर आज करे सो अब पल में प्रलय होएगी बहुरि करेगा कब”. तुलसीदास की रामचरितमानस के इस दोह से वे अत्यधिक प्रभावित थे कि का वर्षा जब कृषि सुखाने समय चूक पुनि का पछताने.
1857 की क्रांति कैसे शुरू हुई?
दोस्तों 29 मार्च का दिन भारतीय इतिहास में बहुत महत्व का दिन माना जाता है. इस दिन 10:00 बजे मंगल पांडे ने बंदूक भरी और उसे लेकर परेड के मैदान में जा पहुंचे उन्होंने विद्रोह प्रारंभ करने का यह उपयुक्त अवसर समझा. मंगल पांडे की देशभक्ति के बारे में दामोदर सावरकर ने लिखा है. कि उन्होंने परेड के मैदान में अपने दोस्त सिपाहियों को ललकार ते हुए कहा था. कि भाइयों चुपचाप क्यों बैठे हो देश और धर्म तुम्हें पुकार रहा है. उठो मेरा साथ दो फिरंगीयों को देश से बाहर निकाल दो. देश की बागडोर उनके हाथों से छीन लो. क्या तुम्हें भगवत गीता का अमृत संदेश याद नहीं यदि विद्रोह करते समय हम मारे जाएंगे तो स्वर्ग मिलेगा. अगर जीत जाएंगे तो अत्याचारी सरकार का विनाश हो जाएगा. दोस्तों ऐस अवसर बहुत कम मिलता है.
लेकिन इसका कोई असर भारतीय सैनिकों पर नहीं पड़ा वे चुपचाप थे. एक तरफ सरकारी आदेश की अवमानना और दूसरी तरफ नेताओं के द्वारा निश्चित तिथि से पहले विद्रोह का बिगुल बजाना. इस दुविधा में वे अपना कर्तव्य सुनिश्चित न कर सके. यह सही है कि बहादुर किसी के सहयोग की उम्मीद नहीं करते है.
मंगल पांडे की बगावत
किन्तु भारतीय सैनिक अपने स्थान पर बैठे हुए चुपचाप मंगल पांडे की बातें सुनते रहे थे. पर उन्होंने कुछ भी उत्तर नहीं दिया. मंगल पांडे को परेड के मैदान में शेर की तरह गर्जना करते हुए जब मेजर ह्युसन ने सुना तो उसे सैनिकों को आदेश दिया कि पांडे को गिरफ्तार कर लो. भारतीय सैनिकों ने ह्युसन के आदेश का पालन नहीं किया. यद्यपि वे मंगल पांडे का साथ नहीं दे रहे थे. लेकिन वह उसे बंदी बनाने के लिए तैयार नहीं थे. क्योंकि वह भी अंग्रेजों का विनाश चाहते थे. सैनिकों को मौन देखकर ह्युसन उनसे ने गरजते हुए कहा मेरा हुक्म मानो पांडे को गिरफ्तार करो. इस पर सिपाहियों ने स्पष्ट रूप से कहा कि हम ब्राह्मण देवता को कभी बंदी नहीं बनाएंगे.
1857 की क्रांति की पहली गोली कहाँ और किसने चलाई?
दोस्तों वर्तमान कलकत्ता से लगभग 16 मील दूर बैरकपुर एक शाँत सैनिक छावनी में मंगल पांडे ने 1857 की क्रांति की पहली गोली अंग्रजो पर चलाई थी. और यही से 1857 की क्रांति का बिगुल बजा था. जल्दी हे ये क्रांति मेरठ, कानपूर, राजस्थान, मध्य प्रदेश होते हुए पुरे देश में फेल गयी थी.
दोस्तों हुआ ये था, जब मंगल पांडे को भारतीय सैनिक गिरफ्तार नहीं कर रहे थे और सब मौन समर्थन दे रहे थे. तब मंगल पांडे ने झट से पहली गोली अंग्रजी सार्जेंट ह्युसन पर चलाई और वो वही मर गया था. तुरंत लेफ्टिनेंट बाघ नामक दूसरा अंग्रेज सरकारी ऑफिसर घोड़े पर बैठकर वहां आ गया. मंगल पांडे ने उसे देखते ही गोली चला दी जिससे बाघ घोड़े सहित जमीन पर गिर पड़ा. मंगल पांडे पुणे बंदूक में गोली भर ही रहे थे, कि बाघ उठ कर खड़ा हो गया उसने अपनी पिस्तौल से मंगल पांडे पर गोली चलाई. पर ईश्वर की कृपा से मंगल पांडे बाल-बाल बच गए. तब बाग म्यान से अपनी तलवार निकाल ही रहा था. कि मंगल पांडे ने उसे गोली का निशाना बनाया जिससे देखते ही देखते उसके प्राण पखेरू उड़ गए.
लेफ्टिनेंट बाघ की मृत्यु के बाद तीसरा अंग्रेज अधिकारी वहां आ पहुंचा. और उसने मंगल पांडे पर वार करना चाहा. तभी किसी भारतीय सिपाही ने अपनी बंदूक के कुंदे से उसके सिर पर वार करके उसे भी धराशाई कर दिया. इस समय सिपाहियों के समूह से आवाज सुनाई दी कि मंगल पांडे को छूने का साहस मत करो. इस घटना से यह सिद्ध हो गया कि भारतीय सिपाही मंगल पांडे के विरुद्ध कुछ भी करने के लिए तैयार नहीं थे.
मंगल पांडे कैसे शहीद हुए?
तीन गोरो की लाशों से बैरकपुर छावनी कोलकाता की धरती रक्त से लाल हो गई थी. मंगल पांडे शेर के सम्मान हाथ में बंदूक लिए परेड के मैदान में खड़े हुए थे. इस उत्तेजना पूर्ण वातावरण में कर्नल व्हीलर परेड के मैदान में आ पहुंचा. उसने भी सिपाहियों को मंगल पांडे को गिरफ्तार करने का आदेश दिया. परंतु उन्होंने इस आदेश का पालन करने से इंकार कर दिया और यह कहा कि हम साथ रहते ब्राह्मण का बाल बांका न होने देंगे.
कर्नल व्हीलर के अनुभव किया कि अब सिपाहियों के अंदर विद्रोह की भावना घर कर गई है. तो वह अपनी जान बचाने के लिए जनरल के बंगले में जाकर छुप गया. मंगल पांडे अपने रक्त रंजित हाथों से उत्सव और में ललकार रहे थे. भाइयों हथियार उठाओ समय आ गया है. जब तक क्रांति की खबर बिजली की तरह सारे देश में फैल चुकी थी. इसी समय जनरल डीएसई कुछ अंग्रेजी सैनिकों को अपने साथ लेकर परेड के मैदान में आ पहुंचा. इस पर भी मंगल पांडे शेर की भांति मैदान में डटे रहा.
क्रांतिकारी मंगल पांडे ने खुद पर गोली क्यों चलाई
तीन अंग्रज अफसरों को मारने के बाद मंगल पांडे ने अनुभव किया कि सिपाही प्रत्यक्ष रूप से उनका साथ नहीं दे रहे हैं. ऐसी हालात में अकेले अंग्रेज सेना से टक्कर लेना संभव नहीं है. उन्होंने सोचा कि अंग्रेजो के हाथों से मरने के स्थान पर स्वय मरना अच्छा है. अतः उन्होंने अपनी ही बंदूक से अपनी छाती में गोली मार ली जिससे वे घायल होकर धरती मां की गोद में गिर पड़े. अंग्रेज ने इस वीर पुरुष को घायल अवस्था में ही चिकित्सा हेतु अस्पताल पहुंचाया. सभी सिपाही मन ही मन मंगल बाबा के ठीक होने के लिए भगवान से प्रार्थना करने लगे.
मंगल पांडे तो हमेशा के लिए धरती मां की गोद में चीरन निंद्रा में सोना चाहते थे. परंतु चिकित्सा से भी अच्छे हो गए उन पर सैनिक अदालत में मुकदमा चलाया गया. उनसे अन्य विद्रोहियों के नाम पूछे गए परंतु उन्होंने किसी का नाम नहीं बताया. उन्होंने कहा कि जो कुछ किया है अकेले ही किया है. तीनों गोरो की हत्या मैंने ही की है उनसे मेरी कोई शत्रुता नहीं है मैंने जो कुछ किया है अपने देश और धर्म के प्रेम में किया है.
मंगल पांडे को फांसी कब हुई थी?
सैनिक अदालत ने मंगल पांडे को मृत्युदंड की सजा दी. यह सुनिश्चित हुआ कि 8 अप्रेल 1857 ईसवी को फांसी पर लटका दिया जाए. मंगल पांडे उस समय इतनी लोकप्रिय हो गए थे. कि कोई जल्लाद उन्हें फांसी पर चढ़ाने के लिए तैयार नहीं था. अंग्रेजों ने इस कुकर्म के लिए कोलकाता से चार जलादो को बुलवाया और उन्हें विशेष पारिश्रमिक देने का प्रलोभन दिया. जलादो को यह जानकारी नहीं थी कि मंगल पांडे कौन है.
और उन्होंने अंग्रेज अधिकारियों को मौत के घाट क्यों उतारा. दोस्तों 8 अप्रैल 1857 को आजादी के इस दीवाने को फांसी के तख्ते पर लटका दिया गया. उस समय भी उनका मस्तक गर्व से ऊंचा था. फांसी का फंदा गले में पड़ जाने पर भी इस वीर पुरुष ने किसी भी क्रांतिकारी का नाम नहीं बताया यद्यपि वे आज हमारे बीच नहीं है. परंतु उनके यह आग एवं बलिदान का शरीर आज भी विद्यमान है और रहेगा.
मंगल पांडे के अमर बलिदान की खबर बिजली की भांति सारे देश में फैल गई. जिससे चारों तरफ क्रांति भड़क उठी मेरठ, लखनऊ, दिल्ली, कानपुर एवं बिहार आदि सभी इसकी चपेट में आ गए, यद्यपि 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में असफल रहा परंतु अंग्रेजों को यह पता चल गया कि वह अब लंबे समय तक भारत पर शासन नहीं कर सकेंगे. स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम अमर शहीद मंगल पांडे ने अपने त्याग एवं बलिदान से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में नाम अमर कर दिया. भारत मां के इस सपूत के प्रति भारतीय सदैव नतमस्तक रहेंगे.
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1857 ईस्वी क्रांति और उसके महान वीरों की जीवनी
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FAQs
Ans- 1857 की क्रांति का बिगुल बैरकपुर कलकत्ता की छावनी के एक सैनिक मंगल पांडे ने फुका था. 8-अप्रैल-1857 को इनको फांसी हुई. इस लिए इनको भारत का पहला शहीद मानते है.