Biography of Peer Ali | पीर अली कौन थे?

By | December 8, 2023
Biography of Peer Ali
Biography of Peer Ali

1857 की क्रांति ने बिहार को भी प्रभावित किया यद्यपि यह सत्य है कि यहां आगरा मेरठ तथा दिल्ली की भांति क्रांति का जोर नहीं था. तथापि बिहार के कई क्षेत्रों में क्रांति ने भीषण रूप धारण कर लिया था. सैकड़ों अंग्रेजों को यहां मौत के घाट उतार दिया था. दोस्तों हम यहाँ शेयर करने जा रहे है, भारत के 1857 क्रांति संग्राम के योद्धा पीर अली की जीवनी (Biography of Peer Ali) और उनसे जुड़े आश्चर्यचकित जानकारी. तो दोस्तों बने रहे हमारे साथ अंत तक पीर अली की रोचक जानकारी के लिए.

पीर अली कौन थे? (Biography of Peer Ali)

पीर अली खां का जन्म गांव मोहम्मदपुर,आजमगढ़ उत्तर प्रदेश में हुआ था. उनके बारे में विशेष जानकारी तो प्राप्त नहीं होती. पर इतना आवश्यक पता चला कि वह एक साधारण व्यक्ति थे. जिनमे देश प्रेम की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी. व्यक्ति की महानता उसके वंश ऐश्वर्य आदि से नहीं अपितु उसकी निष्ठा से आकर जाती है. हमारी दृष्टि में एक साधारण व्यक्ति जिस में देशभक्ति की भावना हो देश के लिए मर मिटने की लालसा हो वह व्यक्ति प्रखंड पंडितों एवं करोड़पति यो से हजार गुना बेहतर है. पीर अली आजमगढ़ से पटना आकर आजीविका के लिए उन्होंने पुस्तक बिक्री का व्यवसाय प्रारंभ किया. वे चाहते तो अन्य काम भी कर सकते थे. वह पहले पुस्तक पढ़ते और इसके बाद दूसरों को पढ़ने के लिए देते थे. वह पुरुष धन्य हैं जो अपने ज्ञान को अपने तक ही सीमित नहीं रखकर समस्त जनता को लाभान्वित करता है.

Summary

नामपीर अली
उपनामपीर अली खां
जन्म स्थानगांव मोहम्मदपुर, आजमगढ़ उत्तर प्रदेश
जन्म तारीखजन्म 1820
वंशअली
माता का नाम
पिता का नाम
पत्नी का नाम
भाई/बहन
प्रसिद्धिविद्रोही, स्वतंत्रता सेनानी, अंग्रेजो से लड़ाई
रचना
पेशाजिल्दसाज, स्वतंत्रता सेनानी
पुत्र और पुत्री का नामअमीर अली
गुरु/शिक्षकनवाब मीर अब्दुल्ला
देशभारत
राज्य क्षेत्रउत्तर प्रदेश, बिहार
धर्मइस्लाम
राष्ट्रीयताभारतीय
भाषाउर्दू, हिंदी
मृत्यु07 जुलाई 1857
जीवन काल37 वर्ष
पोस्ट श्रेणीBiography of Peer Ali (पीर अली खां की जीवनी)
Biography of Peer Ali

1857 की क्रांति में पीर अली क्यों कूदे?

पीर अली भी हर हिंदुस्तानी की तरह अंग्रजो के शोषण से मुक्ति चाहते थे. उनकी दोस्तों बिहार के 1857 क्रांति के हीरो बाबू कुंवर सिंह से दोस्ती थी. धीरे धीरे पीर अली उनकी हर सभा और मीटिंग में जाने लगे. और क्रांति का सन्देश गुप्त रूप से आस पास के क्षेत्रों में फैलाने लगे. दोस्तों कहा जाता है की, कुँवर सिंह जी के किले में बारादरी थी. जहाँ पे 12 जहाँ 12 दरी एकसाथ बिछाई जाती थी, यह एक प्रकार का बैठक का स्थान था. यहाँ वीर कुँवर सिंह जी के साथ पीर अली खां जी भी बैठक में अक्सर शामिल होते थे.

पीर अली भारत माता को दासता की बेड़ियों से मुक्त करवाना चाहते थे. उनका मानना था कि गुलामी से मौत ज्यादा बेहतर होती है. उनका दिल्ली तथा अन्य स्थानों के क्रांतिकारियों के साथ बहुत अच्छा संपर्क था. वे उनसे समय-समय पर निर्देश प्राप्त करते थे. जो भी व्यक्ति उनके संपर्क में आता वह उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहता था. यद्यपि वैषणव पुस्तक विक्रेता थे तथा भी उन्हें पटना के विशिष्ट नागरिकों का समर्थन प्राप्त था. क्रांतिकारी परिषद पर अत्यधिक प्रभाव था.

उन्होंने धनी वर्ग के सहयोग से अनेक व्यक्तियों को संगठित किया और उन में क्रांति की भावना का प्रसार किया. लोगों ने उन्हें यह आश्वासन दिया कि वे अंग्रेजी सत्ता को जड़ मूल से नष्ट कर देंगे जब तक हमने में रक्त की धारा प्रवाहित होती रहेगी. हम फिरंगीयों का विरोध करेंगे लोगों ने उनसे मिल कर कसमें खाई.

टेलर ने पटना में दमन चक्कर लगाना शुरू किया तो पीर अली ने विद्रोह कर दिया. उनके स्वभाव में अद्भुत विवर्तन तथा उतावलापन था. वह देशवासियों का अपमान सहन नहीं कर सकते थे. तथा उन्होंने जनता को सरकार के विरुद्ध संघर्ष करने की प्रेरणा दी और समय संग्राम में कूद पड़े.

1857 की क्रांति और पीर अली का योगदान

दोस्तों 1857 की क्रांति ने बिहार को भी प्रभावित किया यद्यपि यह सत्य है कि यहां आगरा, मेरठ, तथा दिल्ली की भांति क्रांति का जोर नहीं था. अपितु बिहार के कई क्षेत्रों में क्रांति ने भीषण रूप धारण कर लिया था. सैकड़ों अंग्रेजों को यहां मौत के घाट उतार दिया था। यहाँ मुख्य रूप से कुंवर सिंह और बाँसुरिया बाबा और पीर अली की मुख्य भूमिका रही.

दोस्तों बिहार के गया, छपरा, आरा, पटना, मोतिहारी तथा मुजफ्फरपुर आदि नगरों में क्रांति ने भीषण रूप धारण कर लिया था. अंग्रेजों ने दानापुर में एक छावनी की स्थापना की ताकि बिहार पर नियंत्रण स्थापित किया जा सके. विदेशियों की सातवीं आठवीं तथा 40 वी पैदल सेनाएं थी. जिन पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए एक विदेशी कंपनी और तोप सेना बुला रखी थी. इनका प्रधान सेनापति मेजर जनरल लायड था. लेटर पटना का कमिश्नर था. जो बहुत दूरदर्शी था, उसमें प्रशासनिक क्षमता अत्यधिक थी उसका यह मानना था. कि पटना के मुसलमान भी इस क्रांति में हिंदुओं के साथ भाग लेंगे पटना में बहावी मुसलमानों की संख्या बहुत अधिक थी. अतः टेलर ने भावी मुसलमान नेताओं पर कड़ी नजर रखना प्रारंभ कर दिया.

पटना में क्रांति का बिगुल फुकना

पटना के नागरिकों ने कुछ वर्ष से ही क्रांति की तैयारी शुरू कर दी थी. इसके लिए संगठन स्थापित किए जा चुके थे. जिसमें शहर के व्यवसाई एवं धनिक वर्ग के लोग सम्मिलित थे. पटना के कुछ मौलवियों का लखनऊ के गुप्त संगठनों से पत्र व्यवहार चल रहा था. उनका दानापुर के सैनिकों से भी संपर्क स्थापित हो चुका था. ऐसा प्रतीत होता है कि पुलिस वाले भी क्रांतिकारियों का सहयोग कर रहे थे. दानापुर के सैनिक भी वृक्षों के नीचे गुप्त बैठकें किया करते और क्रांति की योजना बनाते थे. दानापुर के सैनिक मेरठ सैनिकों के असंतोष के बारे में जानते थे.

परंतु वह अवसर की प्रतीक्षा में थे टेलर को पता चला कि दानापुर के सैनिकों में असंतोष व्याप्त है. तो उसने विस्फोट होने से पूर्व ही उसे कुचलना उचित समझा इसके लिए उसने तुरंत प्रभावशाली पद उठाएं जिसके कारण वहां क्रांति भीषण रूप धारण नहीं कर सकी. 3 जुलाई 1857 को एक छोटी सी क्रांति अवश्य हुई जिसे अंग्रेजों ने सिख सैनिकों की सहायता से कुचल दिया.

तिरहुत जिले में अंग्रेजों ने कर्फ्यू क्यों लगाया?

तिरहुत जिले के पुलिस जमादार वारिस अली पर अंग्रेजों को संदेह हुआ और तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया. उसे उसके घर पर छापा डाला गया जिसमें आपत्तिजनक कागजात प्राप्त हुए. इस अभियोग में उसे फांसी पर लटका दिया गया तत्पश्चात अन्य क्रांतिकारियों को बंदी बनाकर जेल में डाल दिया गया. नागरिकों के हथियार लेकर चलने पर प्रतिबंध लगा दिया गया रात को 9:00 बजे घर से निकलने पर रोक लगा दी गई. और कर्फ्यू लगा दिया गया परिणाम स्वरुप क्रांतिकारी रात्रि को मीटिंग नहीं बुला सकते थे. बिहार के प्रसिद्ध क्रांतिकारी बाबू कुंवर सिंह एवं अमर सिंह के बारे में तो सभी जानते थे. परंतु बिहार के ही एक प्रमुख मुस्लिम क्रांतिकारी पीर अली के बारे में बहुत कम लोग जानते थे. वह सिर्फ मुसलमानों के ही नेता नहीं थे, अपितु उन्हें समस्त क्रांतिकारियों का विश्वास एवं समर्थन प्राप्त था.

पीर अली की क्रांति और अंतिम समय

दोस्तों कहते है न समय का डंडा सबसे भारी होता है. उन्होंने स्वय कहा था मैं समय से पहले ही विद्रोह कर उठा था. सरकार ने पीर अली को गिरफ्तार कर लिया और उन पर मुकदमा चलाकर उन्हें मृत्युदंड की सजा दी गई. फिर भी पीर अली ने निडर होकर हंसते हंसते मृत्यु आलिंगन कर लिया.

श्री विनायक दामोदर सावरकर ने पीर अली के मृत्युदंड के समय का बहुत अच्छा वर्णन किया है. हाथों में हथकड़ी या बाहों में रक्त की धारा सामने फांसी का फंदा पीर अली के मुख पर विरोध चित्र मुस्कान मानोगे सामने कहीं मृत्यु को चुनौती दे रहे हो. इस महान शहीद ने मरते मरते कहा था तुम मुझे फांसी पर लटका सकते हो. किंतु तुम हमारे आदर्श की हत्या नहीं कर सकते मैं मर जाऊंगा. किंतु मेरे रक्त से शस्त्रों योद्धा जन्म लेंगे और तुम्हारे साम्राज्य को नष्ट कर देंगे.

कमिश्नर टेलर ने भी लिखा है की पीर अली ने मृत्युदंड के समय बड़ी वीरता तथा निडरता का परिचय दिया. पीर अली का बलिदान व्यर्थ नहीं गया उनकी मृत्यु के बाद 25 जुलाई को दानापुर की विदेशी पलटन और ने अपने आप को स्वतंत्र घोषित कर दिया. दानापुर के सैनिकों ने जगदीशपुर के बाबू कुंवर सिंह को अपना नेता स्वीकार कर लिया यद्यपि कुंवर सिंह बूढ़े हो गए थे पर उनमें बहुत जोश था. उनमें अद्भुत सैनिक सकती थी वृद्ध कुंवर सिंह ने क्रांतिकारियों का नेतृत्व स्वीकार कर लिया. और यह प्रमाणित कर दिया है कि बिहार की भूमि में अद्भुत शक्ति है.

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FAQs

Q- पीर अली का जन्म कहाँ हुआ था?

Ans- पीर अली का जन्म गांव मोहम्मदपुर,आजमगढ़ उत्तर प्रदेश के रहने वाले थे.

भारत की संस्कृति

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