दोस्तों हम यहाँ शेयर करने जा रहे है.1857 ईस्वी के महान क्रांतिकारी बरजोर सिंह जी की जीवनी (Biography of Barjor Singh) और उनसे जुड़े आचर्यजनक तथ्य. मित्रों बरजोर सिंह जी झांसी एवं कालपी के बीच में स्थित बिलिया गड्डी के रहने वाले थे. उन्होंने न केवल अंग्रेजों का सम्मान किया. अपितु जनसंपर्क द्वारा जनता को जागृत करने का भी प्रयास किया. जब झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने झांसी से कालपी की ओर प्रस्थान किया तो मार्ग में बरजोर सिंह ने उनसे भेंट की. रानी के आदेशा अनुसार इस वीर ने गांव-गांव में घूम घूमकर जनता को जागृत किया. और क्रांतिकारियों की शक्ति को कई गुना बढ़ा दिया.
बरजोर सिंह कौन थे?
दोस्तों बरजोर सिंह जी झांसी एवं कालपी के बीच में स्थित बिलिया गड्डी के रहने वाले थे.1857 के स्वतंत्रता संग्राम में देश की जनता ने भी क्रांतिकारियों को पूरा सहयोग दिया. इस क्रांति में अनेक देश भक्तों ने हंसते-हंसते अपने प्राणों की आहुति दे दी थी. इनमें से कुछ ऐसे वीर भी थे. जो जीवन पर्यंत अंग्रेजों से संघर्ष करते रहे परंतु अंग्रेजी सरकार उन्हें गिरफ्तार नहीं कर सकी ऐसे ही एक योद्धा थे बरजोर सिंह.
बरजोर सिंह और अंग्रेजों के बीच हुए युद्ध में 4 सितंबर 1858 ईस्वी को महू मिलोनी तथा 5 सितंबर को सरावन सहाव की लड़ाई विशेष रूप से उल्लेखनीय है. इन लड़ाइयों में क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए. अंग्रेज शासकों ने उन्हें गिरफ्तार करने एवं मृत्युदंड देने के अनेक प्रयास किए. परंतु वे जीवन पर्यंत अंग्रेजों की पकड़ में नहीं आए. अपने जीवन के अंतिम दिनों में अपनी बहन के पास मध्यप्रदेश में टीकमगढ़ जिले में पलेरा चले गए जहां 1869 ई मे वे परलोक सिधार गए.
Summary
नाम | बरजोर सिंह |
उपनाम | |
जन्म स्थान | उत्तर प्रदेश के जिला जालौन के कोच तहसील के बिलाया |
जन्म तारीख | सन 1818 ईस्वी |
वंश | पंवार |
माता का नाम | — |
पिता का नाम | कीरत साहा उर्फ़ रुक्मानन्द |
पत्नी का नाम | — |
उत्तराधिकारी | चंदरहास |
भाई/बहन | — |
प्रसिद्धि | स्वतंत्रता सेनानी |
रचना | — |
पेशा | क्रांतिकारी |
पुत्र और पुत्री का नाम | बेटा चंदरहास और बेटी लालकुँवरि |
गुरु/शिक्षक | रुक्मानन्द |
देश | भारत |
राज्य क्षेत्र | उत्तर प्रदेश/मध्य प्रदेश |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | हिंदी,कन्नौजी |
मृत्यु | 1869 ई |
मृत्यु स्थान | मध्यप्रदेश में टीकमगढ़ जिले में पलेरा |
जीवन काल | लगभग 51 साल |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Barjor Singh |
1857 ईस्वी की क्रांति में बरजोर सिंह का क्या योगदान था?
बरजोर सिंह ने कालपी की लड़ाई में भाग लिया, परंतु क्रांतिकारियों की पराजय होने से कालपी पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया. तत्पश्चात बरजोर सिंह ने झांसी कालपी मार्ग के प्रमुख ठिकानों के स्वतंत्रता प्रेमियों को संगठित किया. जिसमें अंग्रेजों की नींद हराम हो गई. उन्होंने अपने साथियों गंभीर सिंह तथा देवी सिंह मोठ की सहायता से अंग्रेजों के ठिकानों पर आक्रमण भी किए.
उधर झांसी की रानी ने ग्वालियर पर अधिकार कर के अंग्रेजों को नीचा दिखाया तो इधर बरजोर सिंह ने अंग्रेजों के ठिकानों पर कब्जा करना प्रारंभ कर दिया कालपी के बाद बिलाया गढ़ी में काले खां बरजोर सिंह दौलत सिंह एवं गंभीर सिंह आदि क्रांतिकारी एकत्रित हो गए इसके अतिरिक्त सेदनगर कोंटरा सवदा एवं भांडरो आदि अनेक स्थानों के क्रांतिकारी भी यहां आ गए जिससे बिलाया गढ़ी क्रांतिकारियों का केंद्र बन गया था.
अंग्रेजो और बरजोर सिंह का सघर्ष?
31 मई 1858 ईसवी में मेजर ओर ने एक विशाल सेना के साथ बिलिया गड्डी पर आक्रमण कर दिया. ब्रिटिश सेना की तोपों ने गढ़ी पर गोलाबारी शुरू की तो बरजोर सिंह घोड़े पर सवार होकर एक ध्वज लेकर अपने साथियों के साथ मैदान में आकर डट गए. युद्ध में क्रांतिकारियों ने अद्भुत वीरता का प्रदर्शन किया. इस युद्ध में अंग्रेजो को रौंदते हुए बरजोर सिंह भी घायल हो गए. इस स्थिति में उनके कुछ साथियों ने घोड़े से उतारकर बेतवा की ओर ले गए. तथा एक साथी मोती गुर्जर ने अपने हाथ में ध्वज लेकर बरजोर सिंह के घोड़े पर बैठकर अंग्रेजों से संघर्ष प्रारंभ कर दिया.
अंग्रेजों को बरजोर सिंह के युद्ध स्थल से जाने की कोई जानकारी नहीं मिली. स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजों की सेना से जमकर युद्ध लड़ा परंतु युद्ध में अंग्रेजो को विजय प्राप्त हुई. इस युद्ध में लगभग 150 क्रांतिकारी शहीद हुए अंग्रेजों ने मोती गुर्जर तथा 34 सैनिकों को बंदी बना लिया. मोती गुर्जर को अंग्रेजों ने फांसी के फंदे पर लटका दिया. बरजोर सिंह ने कुछ दिनों में स्वस्थ होने के बाद पुनः अंग्रेज सरकार का विरोध प्रारंभ कर दिया था.
बरजोर सिंह अब तात्या टोपे के दाहिने हाथ बन गए. तात्या के उस क्षेत्र से चले जाने के बाद में उस क्षेत्र में क्रांतिकारी गतिविधियों का संचालन बरजोर सिंह करते रहे. उन्होंने अंग्रेजों से छुटपुट लड़ाइयां लड़ी और अपना संघर्ष जारी रखा 2 अगस्त 1858 को अंग्रेजों ने उन्होंने जालौन के समर्थक शासक को हटा दिया और उस पर अपना अधिकार कर लिया.
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FAQs
Ans- बरजोर सिंह 1857 ईस्वी के महान क्रांतिकारी थे, जिन्होंने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे के साथ मिलकर अंग्रजो से बहुत लड़ाईया लड़ी.
WONDERFUL Post.thanks for share..more wait .. ?