हमारे लिए यह सौभाग्य की बात है कि भारत की पवित्र भूमि पर जहां एक और देशद्रोही और विश्वासघात करने वाले गद्दार पैदा हुए हैं. वहीं दूसरी ओर ऐसे लाल भी पैदा हुए हैं जिन्होंने हंसते-हंसते अपने देश की आजादी के लिए अपने जीवन तक का बलिदान कर दिया. इसी श्रृंखला में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में रानी ईश्वर कुमारी का यश एव त्याग उल्लेखनीय है. यह सही है कि उनके समर्थन के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं. हमारी दृष्टि में इतिहास ने उनके साथ न्याय नहीं किया है. दोस्तों हम यहाँ भारत की महान वीर रानियों में से एक ईश्वर कुमारी जी की जीवनी (Biography of Ishwar Kumari) और उनके संघर्ष की कहानी आपके सामने प्रस्तुत करने जा रहे है. इस लिए दोस्तों इस पेज को अंत तक ध्यान से पढ़े.
हमारे समाज में कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो अन्याय को सहन कर लेते हैं. पर कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अत्याचार का विरोध करने के लिए अपनी जान की बाज़ी तक लगा देते हैं. भगवान श्री कृष्ण ने गीता में लिखा है कि बहादुर युद्ध से नहीं घबराते उन्होंने कहा है, कि युद्ध में पराजित होने पर वर्ग तथा विजय प्राप्त होने पर ऐश्वर्य मिलता है. राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने लिखा है कि अधिकार खोकर बैठे रहना यह महादुष्कर्म है. न्यायार्थ अपने बंधु को भी दंड देना धर्म है. इसका अर्थ यह है कि हमें अपना कर्तव्य समझते हुए अन्याय का विरोध करना चाहिए.
ईश्वर कुमारी कौन थी?
ईश्वर कुमारी तुलसीपुर के दृग नारायण सिंह की पत्नी थी. आपके पति की मृत्यु अंग्रेजो ने शोषण के कारण जेल में हत्या कर दी थी. अपने पति राजा द्रगराज सिंह की मृत्यु के बाद, ईश्वर कुमारी ने तुलसीपुर राज्य की बागडोर अपने हाथ में ले ली. जब सारे देश में 1857 की क्रांति की ज्वाला भड़क उठी तब रानी के कंपनी सरकार का विरोध किया. उसे कंपनी सरकार की तरफ से यह संदेश मिला कि या तो वह सरकार की अधीनता स्वीकार कर ले अन्यथा उसका राज्य हड़प लिया जाएगा. यद्यपि रानी ईश्वर कुमारी के साधन अत्यंत समिति थे तथापि उसने अंग्रेजों से लोहा लेने का निश्चय किया और अंग्रजो अंतिम समय तक लड़ाई करती रही.
Summary
नाम | ईश्वर कुमारी |
उपनाम | तुलसीपुर की रानी ईश्वर कुमारी |
जन्म स्थान | बलरामपुर जिला उत्तर प्रदेश के गांव तुलसीपुर |
जन्म तारीख | — |
वंश | राजपूत |
माता का नाम | — |
पिता का नाम | — |
पति का नाम | राजा दृगनाथ सिंह |
भाई/बहन | — |
प्रसिद्धि | स्वतंत्रता सेनानी, वीरांगना |
रचना | — |
पेशा | शासक, स्वतंत्रता सेनानी |
पुत्र और पुत्री का नाम | — |
गुरु/शिक्षक | — |
देश | भारत |
राज्य क्षेत्र | उत्तर प्रदेश, बिहार |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | हिंदी |
मृत्यु | 1865 ईस्वी दक्षिणी नेपाल में |
जीवन काल | लगभग 50 साल |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Ishwar Kumari (ईश्वर कुमारी की जीवनी) |
ईश्वर कुमारी का जीवन परिचय
तुलसीपुर की रानी ईश्वर कुमारी देवी 1857-1858 ई. के दौरान स्वतंत्रता संग्राम की संयुक्त नेता थीं. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान रानी को नायिका माना जाता था. जब राजा द्रिग नारायण सिंह लखनऊ किले में कैदी थे, तुलसीपुर की रानी सक्रिय रूप से साथ दे रही थी. बहराइच में स्वतंत्रता सेनानियों के साथ अपने पति और अपने देश को अंग्रेजों से मुक्त कराने के लिए. स्वतंत्रता के लिए उनका योगदान उल्लेखनीय था. उसने स्वतंत्रता बलों की सहायता करने और अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए एक बड़ी ताकत इकट्ठी की थी.
वीरांगना ईश्वर कुमारी 1857 की क्रांति में क्यों कूदी
1857 ईस्वी तुलसीपुर गोरखपुर उत्तर प्रदेश में एक बहुत ही छोटा जनपद था. इस समय वहां राजा राजा दृग नारायण सिंह शासन कर रहा था. उसने अंग्रेज सरकार के विरोध में आवाज बुलंद की है उसे नजर बंद कर दिया गया जहां उसकी मृत्यु हो गई. उसके बाद तुलसीपुर जनपद की रानी बनी. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने फूट डालो और राज करो नीति के आधार पर शासन का संचालन किया. उसका शासन अन्याय तथा अत्याचार पर आधारित रहा. हमारे यहां कुछ राजा और नवाब इतने गद्दार थे, कि उन्होंने भ्रष्टाचार तथा अत्याचार का विरोध करने के लिए स्थान पर अंग्रेजों के पक्ष में तथा भारतीयों के विरोध में युद्ध में भाग लिया. इतना ही नहीं ऐसे देशद्रोहियों ने अंग्रेजो के तलवे तक सहलाने प्रारंभ कर दिए थे.
13 जनवरी 1859 ईसवी के एक दस्तावेज के अनुसार 1857 के ग़दर में राजा दृग नारायण सिंह की रानी ने इस अंग्रेजी राज्य के खिलाफ बहुत बड़े पैमाने पर विद्रोह किया था. साही फरमान को मानने से रानी ने इंकार कर दिया इसलिए उसका राज्य छीनकर बलरामपुर राज्य में मिला लिया गया था. रानी को हथियार डाल देने और अंग्रेजों की सत्ता स्वीकार करने के लिए प्रलोभन दिए गए. तब उनका जप्त किया हुआ राज्य उन्हें वापस लौटाने का आश्वासन भी दिया गया. पर रानी ने आत्मसमर्पण के बजाय बेगम हजरत महल की तरह देश से बाहर निर्वासित जीवन बिताना स्वीकार किया. और अंग्रेजो के खिलाफ खुलकर मैदान में आ गयी थी.
ईश्वर कुमारी जी का अंतिम समय
रानी राजेश्वरी कुमारी अपने अस्तित्व के लिए लड़ती रही. उसने कभी भी हार नहीं मानी कंपनी सरकार ने रानी पर अमानवीय अत्याचार किए. हम जब भी उन्हें याद करते हैं, तो हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं. इस पर कुमारी यह समझ गई थी कि सीमित साधनो शस्त्रों तथा कम सैनिकों की सहायता से विशाल अंग्रेज सेना का मुकाबला अधिक समय तक नहीं किया जा सकता. इस वीरांगना ने शत्रुओं के हाथों मरने के स्थान पर स्वयं मर जाना अधिक श्रेयस्कर समझा. उसने मातृभूमि तुलसीपुर को नमन किया और उसे छोड़कर वह नेपाल के जंगलों में जाकर छुप गई ऐसा कहा जाता है कि रानी का बेगम हजरत महल से घनिष्ठ संपर्क बना हुआ था. हजरत महल कुछ दिनों तक रानी के यहां भी ठहरी थी.
दोस्तों कहाँ जाता है, अंग्रेजो से लड़ते और बचते हुए ईश्वर कुमारी जी नेपाल जा पहुंची. नेपाल जाने के बाद ईश्वर कुमारी की क्या गतिविधियां रही इस संबंध में कोई विशेष जानकारी प्राप्त नहीं होती. ऐसा कहा जाता है कि रानी ने नेपाल में ही इस दुनिया से चल बसी होंगी. इतिहास इस विषय पर मौन है अंग्रेज सेनापति भी रानी के शौर्य तथा उत्साह का लोहा मानते थे. नि:संदेह ईश्वर कुमारी भारतवर्ष की एक ऐसी वीरांगना हुई है जिस पर हम आज भी गर्व कर सकते हैं.
तुलसीपुर की रानी राजेश्वरी देवी की मृत्यु कैसे हुई?
तुलसीपुर की रानी, ईश्वर कुमारी देवी, गोंडा के राजा देवी बख्श और बाला राव ने कभी आत्मसमर्पण नहीं किया. बाला-राव की बाद में नेपाल के जंगलो में मलेरिया से मृत्यु हो गई थी. तुलसीपुर के अंतिम राजा, चौहान ड्रिग नारायण सिंह, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के एक राजनीतिक कैदी, 1859 में स्वतंत्रता के पहले युद्ध के दौरान एक शहीद के रूप में थे जाने जाते है.
तुलसीपुर की रक्तरंजित, क्रोधित रानी, जिसने बिना किसी लड़ाई के हार मानने से इनकार कर दिया, अंग्रेजों के कब्जे से बच गई. और 1865 ईस्वी में दक्षिणी नेपाल के जंगलों में बीमारी से मृत्यु हो गई बताया जाता है.
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FAQs
Ans- तुलसीपुर की रानी,ईश्वर कुमारी की मृत्यु 1865 ईस्वी में दक्षिणी नेपाल के जंगलों में बीमारी से मृत्यु हो गई बताया जाता है.