दोस्तों हम यहाँ शेयर करने जार रहे है, खान बहादुर खान की जीवनी खान (Biography of Khan Bahadur Khan) और उनके संघर्ष की रोचक जानकारी. तो दोस्तों बने रहे हमारे साथ अंत तक खान बहादुर की आश्चर्यजनक जानकारी के लिए. दोसत खान बहादुर खान रूहेलखंड में क्रांतिकारी के सूत्रधार थे. जिन्होंने बड़ी सूझबूझ तथा वीरता के साथ महासमर समर की क्रांति का सफल संचालन किया था. उन्होंने नाना साहब की योजना अनुसार 31 मई अट्ठारह सौ सत्तावन इसी को बरेली में क्रांति प्रारंभ की. तथा एक दिन में ही रूहेलखंड को अंग्रेजों से अंग्रेजों के चुंगल से मुक्त करवा लिया था.
वे रुहेलों के सरदार हाफिज रहमत खां के वंस से संबंध रखते थे. सरकारी जज होने के कारण उन्हें दो पेंशन मिलती थी. अंग्रेज खान बहादुर खान पर पूरा विश्वास करते थे. और उन्होंने भी अंग्रेजों का आश्वस्त कर रखा था. अंग्रेजों खान पर पूरा विश्वास करते थे. परंतु गुप्त रूप से क्रांतिकारी को सहयोग करते थे.
खान बहादुर खान कौन थे?
दोस्तों खान बहादुर खां का जन्म 1791 रूहेलखंड में हुआ था. खान बहादुर खां रूहेला सरदार हाफिज रहमत खां के वंशज थे। रहमत खां के बेटों में जुल्फिकार अली खां, इनके पिता थे. आपके नाना जी काठेर के रहने वाले थे, खान साहब का ननिहाल कठेहर में होने के कारण इनका यहाँ आना जाना होता था. खान बहादुर खान अपने पिता के कहने पर बरेली शहर में आकर बस गए. यहां के भूड़ मोहल्ले में नवाब के ठेरे पर इनके परिवार की रिहायश थी. इनका विवाह शाहजहांपुर के मीरनपुर कटरा में कमाल की बेटी मुमताज से हुआ था. खान बहादुर खान यहां के सदर न्यायाधीश थे. आपको दो पेंशनें मिलती थीं, एक ब्रिटिश सरकार के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश की और दूसरी हाफिज रहमत खां के वंशज होने के नाते.
Summary
नाम | खान बहादुर खान रुहेला |
उपनाम | खान बहादुर खां |
जन्म स्थान | रूहेलखंड |
जन्म तारीख | जन्म 1791 ईस्वी |
वंश | रूहेला |
माता का नाम | — |
पिता का नाम | जुल्फिकार अली खां |
पत्नी का नाम | मुमताज |
उत्तराधिकारी | — |
भाई/बहन | — |
प्रसिद्धि | स्वतंत्रता सेनानी |
रचना | — |
पेशा | नवाब,क्रांतिकारी |
पुत्र और पुत्री का नाम | — |
गुरु/शिक्षक | बहादुर शाह जफ़र |
देश | भारत |
राज्य क्षेत्र | उत्तर प्रदेश |
धर्म | मुस्लिम |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | हिंदी/उर्दू |
मृत्यु | 24 February 1860 |
मृत्यु स्थान | बरेली कोतवाली में फांसी पर लटका दिया गया |
जीवन काल | लगभग 69 वर्ष |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Khan Bahadur Khan |
1857 की क्रांति में खान बहादुर खान का क्या योगदान था?
21 मई 1857 रविवार के दिन 11:00 बजे सैनिकों ने एक तोप चलाई और सैनिकों की टुकड़ी ने अंग्रेज अधिकारियों के बंगले पर आक्रमण कर दिया. और उन्हें मौत के घाट उतार दिया कुछ अंग्रेज जान बचाकर नैनीताल भाग गए. शाम होने से पूर्व ही विद्रोही सैनिकों ने बरेली को अंग्रेजों के चुगल से मुक्त करवा लिया. और खान बहादुर ने शासन की बागडोर अपने हाथ में ले ली. इसी दिन शाहजहांपुर की 28 वी रेजीमेंट एवं मुरादाबाद की 29 वी रेजिमेंट ने भी क्रांति का बिगुल बजा कर. संपूर्ण रुहलेखण्ड को एक दिन में ही अंग्रेजों से पूर्ण रूप से मुक्त करवा लिया था. सेनानियों ने सरकारी खजाने पर भी अपना अधिकार कर लिया था.
खान बहादुर ने क्रांतिकारियों की सहायता के लिए सेनापति वक्तखान के नेतृत्व में 16000 सैनिकों की सेना भेजी. उसने रुहेलखंड में स्वदेशी शासन स्थापित करने के बाद राज्य में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए 5000 घुड़सवार. तथा 25000 पैदल सैनिक भर्ती किए. लगभग 10 माह तक रुहेलखंड में शांति बनी रही क्रांतिकारियों की शक्तियों को देखकर अंग्रेज रूहेलखंड की ओर मुंह नहीं कर रहे थे.
फरवरी 1858 ईस्वी में अंग्रेजों ने लखनऊ तथा कानपुर पर अपना अधिकार कर लिया था. तब नाना साहब भी रूहेलखंड चले गए. 25 मार्च 18 सो 58 ईस्वी को बरेली पहुंचे अप्रैल में बरेली क्रांतिकारी गतिविधियों का प्रमुख केंद्र बन चुका था. इस समय यहां पर एक लाख से अधिक क्रांतिकारी मौजूद थे.
खान बहादुर खान और अंग्रजो के मध्य लड़ाईया और संघर्ष
विद्रोही सेना के पास 72 तोपे थी. इस विशाल क्रांतिकारी सेना का नेतृत्व खान बहादुर खान, फिरोज शाह एवं नाना साहब जैसे वरिष्ठ क्रांतिकारी कर रहे थे. अंग्रेज सेनापति कैंपबेल ने रूहेलखंड को चारों ओर से घेर कर उस पर आक्रमण करने की योजना बनाई. क्रांतिकारियों ने भी अंग्रेजों का मुकाबला करने के लिए अपने मोर्चे बना लिए. सिरसी में क्रांतिकारियों ने वॉलफोल की सेना पर आक्रमण किया. जिसके कारण उसे पीछे हटने के लिए विवश होना पड़ा. इस युद्ध में क्रांतिकारियों को विजय प्राप्त हुई. इसी बीच क्रांतिकारियों ने पेनी को मार डाला, परंतु क्रांतिकारियों की शक्ति अलग-अलग स्थानों पर बटी हुई थी. जिसके कारण अंग्रेज निरंतर आगे बढ़ते जा रहे थे. ऐसी स्थिति में खान बहादुर ने संपूर्ण शक्ति के साथ बरेली में अंग्रेजों से युद्ध लड़ने का निश्चयकिया.
5 मई 1858 ईस्वी में क्रांतिकारियों ने बरेली के पास नकटिया नदी के पास अंग्रेज सेना पर आक्रमण कर दिया. जिसमें खान बहादुर तथा उसके सैनिकों ने अद्भुत वीरता का प्रदर्शन किया. क्रांतिकारियों ने वालपोल और कैमरन को घायल कर दिया. अंग्रेज सेना बुरी तरह पराजित हुई और युद्ध के मैदान से भाग खड़ी हुई. 6 मई को कैंपबेल ने अपनी सेना के साथ क्रांतिकारियों की सेना पर आक्रमण किया. इस समय भी क्रांतिकारियों की सेना अंग्रेजों पर भारी पड़ रही थी. परंतु मुरादाबाद से अंग्रेजों की एक सैनिक टुकड़ी कैंपवेल की सहायता के लिए आ गई. जिससे अंग्रेजों की स्थिति बदल गई 6 मई को अंग्रेजों ने बरेली पर अधिकार कर लिया. फतेह खान बहादुर तथा अन्य क्रांतिकारी नेता पीलीभीत की ओर प्रस्थान कर गए.
खान बहादुर खान का अंतिम समय
जब क्रांतिकारियों की शक्ति छिन्न-भिन्न हो गई तब खान बहादुर अवध पहुंचे तथा वहां से बेगम हजरत महल तथा अन्य क्रांतिकारियों के साथ नेपाल चले गए. नेपाल के राणा जंग बहादुर ने धोखे से खान बहादुर को बंदी बनाकर उसे अंग्रेजों को सौंप दिया. अंग्रेजों ने खान बहादुर पर मुकदमा चलाया और 24 मार्च 1860 को उन्हें बरेली की कोतवाली के द्वार पर फांसी पर लटका दिया गया. हम ऐसे महान क्रांति वीर को नमन करते है.
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FAQs
Ans-खान बहादुर खान को फांसी पर 1860 को नेपाल से पकड़ कर लटकाया गया था.