दोस्तों हम यहाँ शेयर करने जा रहे है, हरयाणा के महान वीर और 1857 ईस्वी की क्रांतिकारी उदमीराम की जीवनी (Biography of Udmi ram) और उनसे जुड़े रोचक तथ्य. तो दोस्तों बने रहे हमारे साथ अंत तक चौधरी उदमीराम की रोचक जानकारी के लिए. कुछ लोग दिल्ली से हरयाणा के सोनीपत जाने वाली सड़क पर अंग्रेजों का शिकार करने के लिए खड़े हुए थे. 1857 ईसवी की क्रांति के दिनों में अंग्रेज लोग अपने परिवारों सहित किसी सुरक्षित स्थान पर शरण लेते थे. उस समय अंग्रेजो के परिवार ऊंटगाड़ियों में सवार होकर दिल्ली से सोनीपत जाया करते थे.
इसी सड़क से हटकर एक छोटा सा गांव लिबासपुर था. इस गांव में जाट लोग रहते थे. उदमीराम नामक नौजवान इसी गांव का निवासी था. वह शरीर से हष्ट पुष्ट था. उसने कसरती नौजवानों का एक दल बना रखा था. जिसके सदस्यों का प्रमुख कार्य इक्के दुक्के अंग्रेजों को पकड़कर एकांत में ले जाकर कत्ल करना था.
उदमीराम कौन थे? (Biography of Udmi ram)
उदमीराम दिल्ली और सोनीपत के बिच एक गांव है लिबासपुर. उदमी राम तक्षक (सरोहा) लिबासपुर के मूल निवासी थे. 1857 में अपने गाँव के नम्बरदार थे और देशभक्ति रग-रग में भरी हुई थी. आप और आपके साथी ऊंटगाड़ी से आने वाले अंग्रजो को पकड़ कर मारते थे. और अंग्रजो के शोषण का बदला लेते थे. उदमीराम जाट थे, और एक तंदुरस्त नौजवान थे. आपकी वीरता के चर्चे दूर दूर तक थे, आप एक महान क्रांति कारी और वीर योद्धा थे.
Summary
नाम | उदमीराम |
उपनाम | उदमी राम तक्षक (सरोहा) |
जन्म स्थान | लिबासपुर, सोनीपत |
जन्म तारीख | अपरिचित |
वंश | सरोहा जाट |
माता का नाम | — |
पिता का नाम | — |
पत्नी का नाम | — |
भाई/बहन | — |
प्रसिद्धि | नम्बरदार, स्वतंत्रता सेनानी |
रचना | — |
पेशा | स्वतंत्रता सेनानी |
पुत्र और पुत्री का नाम | — |
गुरु/शिक्षक | — |
देश | भारत |
राज्य क्षेत्र | हरयाणा |
जिला | सोनीपत |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | हिंदी, हरयाणवी |
मृत्यु | 28 जून, 1858 |
जीवन काल | लगभग 40 साल |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Udmi ram (स्वतंत्रता सेनानी उदमी राम जी की जीवनी) |
1857 ईसवी की क्रांति में उदमीराम कैसे कूदे?
एक दिन उदमीराम अपने साथियों के साथ अंग्रेजों के शिकार की प्रतीक्षा कर रहा था. तभी उन्हें एक ऊंट गाड़ी आती दिखाई दी, उन्होंने गाड़ी में बैठे हुए अंग्रेज दंपति को एकांत में ले जाकर अंग्रेज को समाप्त कर दिया. परंतु भारतीय आदर्श के अनुसार महिला पर वार नहीं किया.
उदमी राम उस अंग्रेज महिला को लेकर अपने गांव लिबासपुर आ गए. और उसे एक ब्राह्मण बाई की देखरेख में एक कमरे में बंद कर दिया. अंग्रेज महिला को गांव में रखने का समाचार इधर-उधर फैलने लगा. तब राठधना गांव का निवासी सीताराम उस के घर तक पहुंच गया.
इस समय बंदी उस अंग्रेज महिला ने ब्राह्मण बाई तथा सीताराम से कहा. कि यदि वे उसे सोनीपत के कैंप तक पहुंचा देंगे तो वह उनको बहुत से पुरस्कार दिलवाएगी. रात होने तक उन लोगों ने एक बैलगाड़ी का प्रबंध करके उस अंग्रेज महिला को सोनीपत कैंप में पहुंचा दिया.
अंग्रेजों का उदमीराम से बदला और फांसी
1857 ईस्वी की क्रांति के दिनों में जैसे ही अंग्रेजों का पलड़ा भारी हुआ. तो उस अंग्रेज महिला की सूचना पर अंग्रेज सेना ने लिबासपुर नामक ग्राम का घेरा डाल दिया उदमीराम और उसने उनके साथियों ने युद्ध में लड़कर वीरगति प्राप्त करने का निश्चय कर लिया. अतः वे और उनके साथियों ने बल्लम, भाले, फरसे, कुल्हाड़ियाँ एवं गंडासे से अंग्रेजी सेना पर आक्रमण कर दिया. उन्होंने जी जान से युद्ध लड़ते हुए कुछ अंग्रेजों को मार गिराया. परंतु अंत में कुछ लोग लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए और शेष को और अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया.
अंग्रेज सैनिकों ने जी भरकर लिबासपुर नामक गांव में लूटमार की और गाड़ियों में भरकर लूट का माल लेकर गए. सीताराम जो अंग्रेजों का भक्त था उसने देशद्रोही की भूमिका निभाते हुए अपराधियों को पहचानने की भूमिका का निर्वाह किया.
गिरफ्तार क्रांतिकारियों को राई के कैंप में लाया गया. कुछ लोगों को भारी पत्थरों के नीचे दबाकर मार दिया गया. उदमीराम को एक पीपल के वृक्ष पर लटका कर फांसी दी गई. अंग्रेजों ने 20-22 दिनों तक इन पर अलग अलग शोषण किये, आपके साथियो को कोलू के भारी पत्थर से कुचला गया. पर इस निसंतान पूर्ण अत्याचार एवं आजादी के उस दीवाने के बलिदान को कभी भी नहीं बलाया जा सकता. अपने 22 साथियो के साथ बलिदान के साथ. लिबासपुर के इस वीर लाल को पीपल के पेड़ पर लटकाकर फांसी पर चढ़ा दिया गया.
खुनी कोल्हू के पत्थर का इतिहास
देश की आजादी की लड़ाई सन 1857 की क्रांति में लड़ने वाले गांव लिबासपुर के वीर योद्धाओ ने अंग्रेज शासन का डटकर मुकाबला किया था. और उनकी अनेक यतनाओं एवं सजा भुगति थी. वीर उद्यमी राम को जिंदा पेड़ पर बांध कर उसके पुरे शरीर में लोहे की किले ठोक दी थी. कई दिन विश्राम घर के निकट स्थित पीपल के पेड़ के साथ बांधे रखा. यह वीर २०-२२ दिनों तक तड़पता रहा और फिर प्राण त्याग दिए थे. उनके साथियों को नीच दिए हुए फोटो में कोल्हू के पत्थर के निचे रोंध कर मार दिया था. भारत की आजादी की लड़ाई में अंग्रजो की यातनाओं का इतिहास आज भी लिबासपुर में स्थित कोल्हू का पत्थर देता है.
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FAQs
Ans- 1857 के क्रांति वीर उदमीराम का जन्म सोनीपत के गांव लिबासपुर में एक जाट परिवार में हुआ था. आप 1857 में अपने गांव के नम्बरदार भी थे.