Biography Of Waris Ali | वारिस अली

By | December 13, 2023
Biography Of Waris Ali
Biography Of Waris Ali

कुछ अंग्रेज एवं भारतीय इतिहासकारों ने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को केवल सिपाही विद्रोह माना है. यह सत्य है कि इस संग्राम में भारतीय सिपाहियों की भूमिका महत्वपूर्ण थी. सर्वप्रथम मंगल पांडे नामक भारतीय सिपाही ने ही बैरकपुर छावनी में क्रांति का बिगुल बजाया था. इस घटना ने उत्तर-पश्चिम के प्रांतों को ही प्रभावित किया. कानपुर, दिल्ली, इलाहाबाद, लखनऊ, मेरठ, पटना एवं दानापुर आदि स्थानों पर सिपाहियों ने विद्रोह का झंडा खड़ा किया. इसके बावजूद हम इसे केवल सिपाही विद्रोह कहकर नहीं पुकार सकते. हम यहाँ 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के वीर शहीद वारिस अली की जीवनी (Biography Of Waris Ali). और उनसे जुड़ी वो रोचक जानकारी शेयर करने जार है, जिनके बारे में आप आज से पहले अनजान थे. तो दोस्तों चलते है और जानते है वारिस अली की अद्भुत जानकारी.

वारिस अली कौन थे?

वारिस अली बिहार के तिरहुत जिले में अंग्रेजी पुलिस का जमादार था. भारतीयों पर हो रहे अत्याचारी शासन ने उनको अंदर ही अंदर अंग्रजो से बदले की भावना पैदा कर दी थी. पटना के कमिश्नर एस टेलर का यह मानना था, कि बिहार में क्रांति का प्रसार निश्चित रूप से होगा. अतः उसके वहां पर सीआईडी का जाल बिछा दिया. इसी समय उसे यह सूचना प्राप्त हुई कि तिरहुत जिले का पुलिस जमादार वारिस अली अंग्रेजों का विरोध कर रहे हैं उसने क्रांतिकारियों से अपना संपर्क स्थापित कर रखा था. एक सरकारी पदाधिकारी का विद्रोहियों का साथ देना सरकार की दृष्टि में राजद्रोह था.

सरकारी आदेश से उनके मकान को घेर लिया गया. उस समय वे बिहार के गया जिले के अली करीम नामक क्रांतिकारी को पत्र लिख रहे थे. इस छापे में उनके घर से बहुत आपत्तिजनक पत्र प्राप्त हुआ. इस को आधार बनाकर 23 जून 18 सो 57 इसी को उनको गिरफ्तार कर मेजर होम्स के पास भेज दिया गया. मेजर होम्स ने उसे दानापुर कचहरी के कमिश्नर के पास भेज दिया. वहां उन पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें मृत्युदंड की सजा दी गई. 23 जुलाई अट्ठारह सौ सत्तावन ईसवी को वारिस अली को फांसी पर लटका दिया गया. कुछ विद्वानों के अनुसार वारिस अली जी को 6 जुलाई अट्ठारह सौ सत्तावन ईसवी को फांसी पर लटकाया गया था.

Summary

नामवारिस अली
उपनामपुलिस जमादार
जन्म स्थानतिरहुत
जन्म तारीख
वंश
माता का नाम
पिता का नाम
पत्नी का नाम
उत्तराधिकारी
भाई/बहन
प्रसिद्धिक्रांतिकारी
रचना
पेशास्वतंत्रता सेनानी
पुत्र और पुत्री का नाम
गुरु/शिक्षक
देशभारत
राज्य क्षेत्रबिहार
धर्ममुस्लिम
राष्ट्रीयताभारतीय
भाषाहिंदी/उर्दू/भोजपुरी
मृत्यु23-जुलाई-1857 फांसी
मृत्यु स्थानतिरहुत,बिहार
जीवन काललगभग 50 वर्ष
पोस्ट श्रेणीBiography Of Waris Ali
Biography Of Waris Ali

1857 ईस्वी के भारतीय प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में वारिस अली का क्या योगदान था?

वारिस अली अपने वतन को बहुत प्यार करते थे अतः उसके लिए उन्होंने अपनी जिंदगी तक कुर्बान कर दी. वह साधारण व्यक्ति थे उनका दिल्ली के साईं घराने से संबंध था. उन्होंने अंग्रजो की कंपनी में नौकरी कब ज्वाइन की. इस बारे में हमें कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती। वारिस अली की कुर्बानी के बाद सारे प्रांत में क्रांति की लहर फैल गई थी. इधर पटना में पीर अली को भी फांसी पर लटका दिया गया कमिश्नर टेलर ने अनेक क्रांतिकारियों को बंदी बनाकर उन पर मुकदमे चलाए उनके घर उजाड़ दिए गए. उसका मानना था कि क्रांति को कुचलने से वह रुक जाएगी पर उसका प्रभाव उल्टा हुआ.

दोस्तों डलहौजी की हड़प नीति ने भारतीय राजघराने जनमानस को असंतुष्ट कर दिया था. उच्च शिक्षित वर्ग को सरकारी नौकरियों से वंचित कर दिया गया था. अतः उन्हें सरकार के विरुद्ध भयंकर असंतोष व्याप्त था. इसलिए सरकार ने लौटा के बदले मिट्टी का बर्तन देना प्रारंभ किया. कैदियों द्वारा इसका विरोध किया गया विवश होकर सरकार को ये आदेश वापस लेना पड़ा पर इसके दूरगामी परिणाम हुए. इस घटना को कुछ लोगों ने लूटा विद्रोह के नाम से संबोधित किया.

वस्तुतः 18 सो 57 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम एक ऐसा जन आंदोलन था जिसमें राजे महाराजे सामंत सरकारी पदाधिकारी साधु एवं सन्यासी आदि सभी ने सक्रिय रूप से भाग लिया. 1833 के चार्टर एक्ट का शिक्षित वर्ग ने विद्रोह प्रारंभ कर दिया था. बंबई और मद्रास के कुछ लोगों के प्रयासों के कारण 18 सो 53 ईसवी के चार्टर एक्ट में कुछ बातें ऐसी थी जो भारतीय हितों से संबंधित थी. पर 18 से 30 के एक्ट के भांति इस का भी उल्लंघन किया जाने लगा था.

वारिस अली का बलिदान

वारिस अली ने भी अंग्रेजों की नौकरी के साथ साथ आम जनमानस में विद्रोह की भावना पैदा की थी. आपने गुप्त रूप से 1857 ईस्वी क्रांति का संचार किया और लोगो को अंग्रजो के खिलाफ किया. दानापुर के सिपाहियों ने भी क्रांति कर दी और वे बाबू कुंवर सिंह की सेना से जाकर मिल गए. कुंवर सिंह के साथ युद्ध करते हुए डनवर मारा गया. अंग्रेज सैनिक हताहत हुए क्रांति का चिंगारी बिहार के अन्य भागों में भी प्रसार हो गया. छपरा आरा मोतिहारी मुजफ्फरपुर दरभंगा भागलपुर आदि में क्रांति का प्रसार हो गया. गोरखपुर से भी विद्रोहियों का एक दिन आ गया कहने का मतलब यह है कि वारिस अली का बलिदान व्यर्थ नहीं गया.

18 सो 57 की क्रांति से अंग्रेज कंपनी सरकार की जड़े हिल गई. और अंत में ब्रिटिश रानी सम्राट की महारानी विक्टोरिया ने भारत में कंपनी के शासन का अंत कर दिया. और हिंदुस्तान के शासन का भारत में अपनी सरकार के अधीन किया भारत के शासन पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए एक भारतीय सचिव को नियुक्त किया गया. इस समय ब्रिटिश सरकार ने क्रांति की ज्वाला को शांति करने के लिए बड़े-बड़े वायदे किए. परंतु सरकार ने उनको पूरा नहीं किया वारिस अली 18 सो 57 की क्रांति के एक महान योद्धा थे जिनकी कुर्बानी को कभी नहीं भुलाया जा सकता.

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FAQs

Q- वारिस अली जी ने 1857 ईस्वी की क्रांति का प्रचार कहा किया?

Ans- वारिस अली बिहार के तिरहुत जिले में अंग्रेजी के खिलाफ 1857 की क्रांति का बिगुल फुका था.

भारत की संस्कृति

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