दोस्तों 18 सो 57 के स्वतंत्रता संग्राम में देश की जनता ने भी क्रांतिकारियों को पूरा सहयोग दिया. इस क्रांति में अनेक देश भक्तों ने हंसते-हंसते अपने प्राणों की आहुति दे दी थी. इनमें से कुछ ऐसे वीर भी थे जो जीवन पर्यंत अंग्रेजों से संघर्ष करते रहे परंतु अंग्रेजी सरकार उन्हें गिरफ्तार नहीं कर सकी, उनमे से एक थे रंगो बापूजी गुप्ते. हम यहाँ रंगो बापूजी की जीवनी (Biography of Rango Bapuji Gupte). और उनके जीवनी की वो रोचक जानकारी शेयर कर रहे है. इस लिए दोस्तों इस पेज को ध्यान से और अंत तक पढ़े.
रंगो बापूजी कौन थे?
रंगोजी बापू जी गुप्ते महाराष्ट्र के सतारा राज्य के रहने वाले थे. वहां के शासक प्रताप सिंह ने अपनी पेंसन बहाल के लिए बापू जी को लंदन भेजा था. लंदन में उनकी भेंट अन्य क्रांतिकारी अजीमुल्ला खान से हुई जो नाना साहब की पेंसन के कार्य के लिए वहां गए हुए थे.
रंगोजी बापू इंग्लैंड की राजधानी लंदन में जहां भी गए वहां लोगों के आकर्षण एवं मनोरंजन का केंद्र बन गए. महाराष्ट्रीयन ढंग कि पंडिताऊ धोती घुटनों तक लटकने वाला बंद गले का कोट कंधे पर झूलता हुआ दुपट्टा. सिर पर भारी पगड़ी घनी और काली मूछें तथा माथे पर आडा तिलक यह उस की वेशभूषा एवं ब्रह्माकृति लोगों का अनुमान था. वह व्यक्ति अंग्रेजी नहीं जानता होगा पर जब भी मैं उसे धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलते हुए देखते तो दंग रह जाते थे.
Summary
नाम | रंगोजी बापू गुप्ते |
उपनाम | रंगोजी |
जन्म स्थान | सतारा |
जन्म तारीख | — |
वंश | गुप्ते |
माता का नाम | — |
पिता का नाम | — |
पत्नी का नाम | — |
उत्तराधिकारी | — |
भाई/बहन | — |
प्रसिद्धि | क्रांतिकारी |
रचना | — |
पेशा | स्वतंत्रता सेनानी |
पुत्र और पुत्री का नाम | — |
गुरु/शिक्षक | प्रताप सिंह |
देश | भारत |
राज्य क्षेत्र | महाराष्ट्र |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | मराठी/अंग्रेजी/हिंदी |
मृत्यु | — |
मृत्यु स्थान | — |
जीवन काल | — |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Rango Bapuji Gupte |
रंगो जी बापूजी गुप्ते का 1857 ईस्वी की क्रांति में क्या योगदान था?
दोस्तों रंगो जी अपने राज्य के राजा की पेंसन की वकालत करने के लिए लंदन गए थे. परंतु परिस्थितियों ने उन्हें बागी बना दिया. उन्होंने संपूर्ण इंग्लैंड में व्यक्तिगत स्वतंत्रता को देखा. जबकि भारतीयों को किसी प्रकार की स्वतंत्रता प्राप्त नहीं थी. अंग्रेजों के इस आचरण के विरोधाभास के कारण उनके मन में अंग्रेजों के प्रति घृणा और विद्वेष के भाव जागृत हो गए. और वे अंग्रेजों के कट्टर शत्रु बन गए. यधपी उन्हें इंग्लैंड में किसी भी प्रकार की सफलता प्राप्त नहीं हुई तथापी क्रांति का सपना संजो कर भारत लौट आए
फ्रांस की राज्यक्रांति में जो महत्व रूसो एवं वाल्टेयर का है. वही महत्व 18 सो 57 की क्रांति में अजीमुल्ला खां एवं रंगो बापूजी गुप्ते का है. अजीमुल्ला खान ने उत्तरी भारत एवं रंगो बापूजी गुप्ते ने महाराष्ट्र में क्रांति की चेतना का प्रसार करके अंग्रेजों को मुसीबत में डाल दिया था. इन दोनों ने भी 1857 की क्रांति में खुलकर भाग लिया था.
1853 ईस्वी में रंगोजी लदन से लौटकर भारत आए. इसके बाद उन्होंने कोल्हापुर बेलगांव धारवाड़ तथा सातारा आदि क्षेत्र में गुप्त रूप से उग्र क्रांति का प्रसार किया. 1858 ईस्वी में उनके एक विश्वासघाती मित्र ने उन्हें अंग्रेजों के हाथों बंदी बनाने का प्रयास किया. परंतु इसकी जानकारी मिलने पर वे से फरार हो गए पता नहीं कब और कहां यह महान क्रांतिकारी परलोक सिधार गए.
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FAQs
Ans- रंगोजी बापू सतारा राज्य शासक प्रताप सिंह की पेंशन बहाली के लिए लंदन गए थे.