दोस्तों जैसा आपको मालूम ही है 1857 ईस्वी की क्रांति भारत को आजाद कराने के लिए की गयी पहली क्रांति थी. जिस में पुरे भारत में युवा, बुजुर्ग, महिलाओ और राजा, महारानियाँ और देश के सेनिको ने अंग्रेजो के खिलाफ बिगुल फुका था. मित्रों 1857 की क्रांति में अजीजन बेगम, नाना साहब, अवन्ति बाई, लक्मी बाई, अज़ीमुल्लाह खान, तात्या टोपे, मंगलपांडे जैसे विरो ने अपना जीवन दाव लगाकर इस प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में जन चेतना और आजादी की अलख जगाई. अपितु प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में सफल नहीं हुए लेकिन देश को गुलामी की जंजीरो से निकलने के लिए प्रेरित किया था. आज हम इसी कड़ी में राजस्थान के अमर शहीद श्री अमरचंद बांठिया जी की जीवनी (Biography of Amarchand Banthia) का संक्षिप्त वर्णन कर रहे है. तो दोस्तों चलते है और जानते है अमर शहीद श्री अमरचंद बांठिया जी की रोचक जानकारी.
Biography of Amarchand Banthia (अमरचंद बांठिया जी का जीवन परिचय)
भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के अमर शहीद श्री अमरचंद बांठिया राजस्थान के बीकानेर के निवासी थे. राजस्थान की राजपूतानी शौर्य भूमि बीकानेर में उनका जन्म 1793 ईस्वी में हुआ था. भारत देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा उनमे बचपन से ही था. बाल्यकाल से ही उन्होंने ठान रखा था. कि देश की आन-बान और शान के लिए कुछ कर गुजरना है. उनके पिता का नाम अबीर चंद भाटिया था. वे अपने पिता के साथ व्यापार के सिलसिले में मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर गए. उनके गुणों को देखकर वहां के तत्कालीन राजा जिया जी राव सिंधिया ने उन्हें ग्वालियर में बस जाने का आग्रह किया. अतः के परिवार से ग्वालियर में ही बस गए थे. दोस्तों ग्वालियर के तत्कालीन राजा सिंधिया जी ने अमरचंद जी भाटिया को नगर सेठ की उपाधि प्रदान की तथा पैर में सोने का कड़ा पहनने का अधिकार भी दिया.
बाद में अमर सिंह भाटिया को ग्वालियर के राजा ने गंगाजली कोश का कोषाध्यक्ष बना दिया. जयाजीराव सिंधिया के अंग्रेजों मित्र होने के कारण उनकी सहायता करते रहते थे. जबकि अमरचंद बांठिया अंग्रेजों से नफरत करते थे. और देश को उनके चंगुल से आजाद करवाना चाहते थे.
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Summary
नाम | श्री अमरचंद बांठिया (Biography of Amarchand Banthia) |
उपनाम | नगर सेठ |
जन्म स्थान | बीकानेर, राजस्थान |
जन्म तारीख | 1793 ईस्वी |
वंश | बांठिया |
माता का नाम | — |
पिता का नाम | अबीर चंद बांठिया |
पत्नी का नाम | — |
प्रसिद्धि | गंगाजलि कोष को रानी लक्ष्मी बाई को सोपना, अंग्रजो ने सराफा बाजार में फांसी, देश के लिए अपनी और अपने बेटे की कुर्बानी |
रचना | — |
पेशा | स्वतंत्रता सेनानी, गंगाजलि कोषाध्यक्ष |
पुत्र और पुत्री का नाम | — |
गुरु/शिक्षक | मुनि बुद्धि विजय जी |
देश | भारत |
राज्य छेत्र | राजस्थान, मध्य प्रदेश |
धर्म | जैन, हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
मृत्यु | 22 जून 1858, ग्वालियर, मध्य प्रदेश |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Amarchand Banthia (अमरचंद बांठिया जी की जीवनी) |
अमरचंद बांठिया जी 1857 की क्रांति में क्यों कूदे?
ऐसा कहा जाता है. कहाँ जाता है 1854 और 1855 ईस्वी में मुनि बुद्धि विजय जी के अजमेर में चातुर्मास हुए थे. सेठ अमरचंद भाटिया जी ने मुनि श्री के प्रवचन सुने और उन से अत्यधिक प्रभावित हुए. मुनि श्री के प्रवचनों से आपको देश की सेवा आपको देश की आजादी के लिए कुछ कर गुजरने की प्रेरणा मिली थी.
अमरचंद बांठिया कौन थे?
अमरचंद बांठिया (नगर सेठ, कोषाध्यक्ष) 1857 क्रांति के राजस्थान में प्रथम शहीद होने वाले क्रांति कारी थे. आप मूल रूप से बीकानेर का निवासी थे. आपके पिता जी ग्वालियर में व्यापार करते थे. आपके द्वारा तात्या टोपे व लक्ष्मी बाई को आर्थिक सहायता की गई. 22 जून 1858 को ग्वालियर में इनको फांसी दे दी गई. आपको राजस्थान का मंगल पांडे व 1857 की क्रांति का भामाशाह कहा जाता है.
1857 की क्रांति में अमरचंद बांठिया जी का क्या योगदान था?
दोस्तों जब 1857 ईस्वी में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम प्रारंभ हुआ. तो अमर सिंह भाटिया जी ने अंग्रेजों के विरुद्ध संग्राम में भाग लिया। अंग्रेजी सेना ने ग्वालियर पर आक्रमण किया तो उन्होंने रियासती सेना के साथ राजकोष का खजाना अपनी पैतृक संपत्ति अंग्रेजों के विरोध में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को सोप कर स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया.
नगर सेठ अमरचंद बांठिया जी को फांसी क्यों दी गयी?
18 जून 1858 ईस्वी में अंग्रेजों ने ग्वालियर पर अधिकार करने के बाद जयाजीराव सिंधिया को पुनः ग्वालियर का शासक बना दिया. सेठ अमरचंद को गिरफ्तार कर लिया गया उन पर धोरे राजद्रोह का आरोप लगाते हुए मुकदमा चलाया गया. अंग्रेजी ब्रिगेडियर नेपियर ने सेठ अमरचंद जी से कहा तुम पर दौरे राज द्रोह के आरोप है तुम्हें फांसी की सजा क्यों न दी जाए.
तब सेठ अमरचंद भाटिया ने उत्तर देते हुए हैं नेपियर से कहाँ “मिस्टर नेपियर” यह तो मुझे मालूम है कि तुम मुझे फांसी की सजा दोगे। फिर यह न्याय का नाटक क्यों कर रहे हो क्या तुम मुझ पर लगाए गए धोरे राजद्रोह के आरोप का खुलासा करोगे।
नेपियर बोला तुम पर पहला आरोप तो ग्वालियर राज्य की गंगा जली कोस का धन महारानी लक्ष्मीबाई के सैनिकों को बांटने का है तथा दूसरा राजद्रोह कंपनी सरकार के प्रति है इसका नाश करने के लिए तुमने क्रांतिकारियों को दिया.
सेठ अमरचंद ने नेपियर को उत्तर देते हुए कहा यह दोनों आरोप गलत हैं. तुम्हारे पहले आरोप का उत्तर तो यह है कि जिस समय क्रांतिकारियों के सैनिकों को धन वितरित किया गया उस समय ग्वालियर पर महारानी लक्ष्मीबाई का अधिकार था. मैंने महारानी की आज्ञा का पालन करके सेवा धर्म का निर्वाह किया था. दूसरे आरोप का उत्तर यह है कि तुम हमारे देश के दुश्मन हो और दुश्मन के प्रति विद्रोह करना अपने देश के लिए वफादारी है.
अमरचंद बांठिया जी का 1857 की क्रांति में बलिदान?
नगर सेठ अमरचंद बांठिया को राजद्रोही मांगते हुए ब्रिटिश कंपनी की सरकार ने उनकी गिरफ्तारी के वारंट जारी कर दिए भाटिया जी गिरफ्तारी से बचने हेतु भूमिगत हो गए और अंग्रेजों के विरोध आंदोलन का संचालन करते रहे. एक दिन भाटिया जी अंग्रेजों द्वारा पकड़े गए इसके बाद उन पर मुकदमा चलाया गया.
अमरचंद भाटिया जी को जेल में काफी यातनाएं दी गई जैसे मुर्गा बनाना पेड़ पर उल्टा लटकाना, चाबुक से मारना, हाथ पैर बांधकर चारों और से खींचना, लोहे के टोपस वाले जूतों की ठोकर से मारना, अंडकोशों पर वजन बांध कर दौड़ाना एवं पेशाब पिलाना आदी. अंग्रेजों ने उनका शरीर का चप्पा चप्पा विकृत कर दिया था. अंग्रेजों ने अमरचंद भाटिया जी को चेतावनी देते हुए कहा कि या तो माफी मांग ले तथा भविष्य में विद्रोही कारनामे न करने का वादा करें. अन्यथा उनके 8 वर्षीय पुत्र को मार दिया जाएगा. अमरचंद भाटिया जी ने अंग्रेजों की चेतावनी को दरकिनार कर दिया. इस पर अंग्रेजों ने उनके 8 वर्षीय पुत्र को तोप के मुंह पर बांधकर उड़ा दिया. जिससे उसके चिथड़े उड़ गए. अंत में एक दिन अंग्रेजों ने भाटिया जी को फांसी की सजा सुना दी.
अमरचंद बांठिया जी को फांसी की सजा?
फांसी पर चढ़ाने से पूर्व अमरचंद भाटिया जी से उनकी अंतिम इच्छा पूछी गई. इस पर उन्होंने कहा मैं फांसी पर लटकने से पूर्व एक सामायिक करना चाहता हूं. आपकी अंतिम इच्छा पूरी की गई. आपने सामायिक करके नवकार मंत्र का स्मरण किया. इसके बाद 65 वर्षीय भाटिया जी को 22 जून 1858 ईस्वी को ग्वालियर में सर्राफा बाजार में नीम के पेड़ पर लटका कर सार्वजनिक रूप से फांसी दी गई थी. आजादी का यह दीवाना हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गया इनके शव को अंग्रेजों ने जलाने के स्थान पर दफना दिया अंग्रेजों द्वारा भाटिया जी को दी गई फांसी का शासकीय रिकॉर्ड भी नहीं रखा गया.
राजस्थान के प्रथम शहीद अमरचंद बांठिया जी थे?
ऐसा कहते हैं कि शहीदों की कतार में शहीद होने वाले अमरचंद बांठिया राजस्थान के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी थे. स्वतंत्रता संग्राम में राजस्थान के इस प्रथम अमर शहीद के बारे में राजस्थान स्वर्ण जयंती प्रकाशन समिति प्रकाशन कर रही है. श्री अमरचंद जी भाटिया का देश प्रेम त्याग एवं बलिदान को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता. उनके जीवन में हमेशा भारतीयों को देश प्रेम तथा देश भक्ति के लिए मर मिटने की प्रेरणा मिलती रहेगी. जबकि भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की चर्चा होगी सेठ अमृत सिंह भाटिया जी का नाम हमेशा आदर और सम्मान के साथ लिया जाता रहेगा. आजादी के इस दीवाने को हमारी (uniinfos.com Team) तरफ से शत-शत नमन.
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FAQs
Ans- अमरचंद बांठिया जी का जन्म 1793 राजस्थान के बीकानेर में हुआ था.
Ans- अमरचंद बांठिया जी ग्वालियर राजा सिंधिया के कोषाध्यक्ष थे, जिसका नाम गंगाजलि कोष था.