दोस्तों वर्तमान छत्तीसगढ़ राज्य के रायपुर नगर (पूर्व में मध्य प्रदेश) के चौराहे पर जय स्तंभ बना हुआ है. जो आज भी प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में शहीद हुए असंख्य शहीदों की कृति की कहानी की स्मृति को ताजा कर देता है. इसी स्थान पर 10 दिसंबर अट्ठारह सौ सत्तावन ईसवी को अमर शहीद वीर नारायण सिंह को खुलेआम फांसी की सजा दी गई थी. अतः यह स्तम्भ आदिवासी महावीर नारायण सिंह के अद्भुत शौर्य का उद्घोषक भी है. हम यहाँ वीर नारयण सिंह जी (Biography of Veer Narayan Singh) की जीवनी. और और उनसे जुड़ी अद्भुत जानकारी आपके साथ शेयर करने जा रहे है. इस लिए दोस्तों इस पेज को अंत तक ध्यान से पढ़े.
वीर नारायण सिंह जी कौन थे?
वीर नारायण सिंह आदिवासी क्षेत्र सोनाखाना का जमीदार था. नारायण सिंह का जन्म सन् 1795 में सोनाखान के जमींदार श्री रामसहाय के घर में हुआ था. जिसमें वीरता देशभक्ति कर्तव्य निष्ठा एवं जन मंगल आदि गुण कूट-कूट कर भरे हुए थे. आप बिंझवार आदिवासी समुदाय के थे. आपके पिता जी ने भी अंग्रजो और भोंसले राजाओं के विरुद्ध तलवार उठाई लेकिन कैप्टन मैक्सन ने विद्रोह को दबा दिया था. दोस्तों वीर नारायण सिंह ने 1830 ईस्वी में जमीदार की बागडोर अपने हाथ में ली इस पद पर कार्य करते हुए उन्होंने निर्भीकता एवं जनहित होने का परिचय दिया था. वीर नारायण सिंह जी को छत्तीसगढ़ राज्य के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी और शहीद माना जाता है.
Summary
नाम | वीर नारायण सिंह |
उपनाम | छत्तीसगढ़ राज्य के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी और प्रथम शहीद. |
जन्म स्थान | सोनाखान, छत्तीसगढ़ |
जन्म तारीख | सन् 1795 |
वंश | बिंझवार आदिवासी |
माता का नाम | — |
पिता का नाम | रामसाय |
पत्नी का नाम | — |
उत्तराधिकारी | गोविंद सिंह |
भाई/बहन | — |
प्रसिद्धि | क्रांतिकारी |
रचना | — |
पेशा | स्वतंत्रता सेनानी |
पुत्र और पुत्री का नाम | गोविंद सिंह |
गुरु/शिक्षक | रामसाय |
देश | भारत |
राज्य क्षेत्र | छत्तीसगढ़ |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | आदिवासी भाषा/हिंदी |
मृत्यु | 10 दिसंबर 1857 ईस्वी रायपुर में फांसी |
मृत्यु स्थान | रायपुर के चौराहे पर |
जीवन काल | लगभग 62 वर्ष |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Veer Narayan Singh |
नारायण सिंह जी द्वारा जनमानस के कार्य और योगदान
दोस्तों 1856 ईसवी का वर्ष सोना खाना की जिम्मेदारी के लिए अभिशाप का वर्ष सिद्ध हुआ. इस वर्ष इस क्षेत्र में वर्षा नहीं होने से अकाल पड़ गया. लोग पीने के पानी के लिए तरस गए. धान का भंडार कहा जाने वाला क्षेत्र भयंकर सूखे का शिकार हो गया. सोनाखाना के लोगों ने करौंद गांव के एक व्यापारी से खेतों में बोने और खाने के लिए अनाज उधार देने की प्रार्थना की. परंतु उसने इंकार कर दिया तत्पश्चात वहां के लोगों ने इस संबंध में अपने लोकप्रिय जमींदार वीर नारायण सिंह से प्रार्थना की. वीर नारायण सिंह ने अकाल पीड़ितों की सहायता करने हेतु उस व्यापारी से कहा परंतु उसने झूठ बोलकर बहाना बनाते हुए सहायता देने से इंकार कर दिया.
तब इस पर वीर नारायण सिंह ने अपने कर्मचारियों को आदेश देकर व्यापारी का अन्न भंडार खुलवा कर लोगों को बटवा दिया। और रायपुर के अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर को अपने इस कार्य के संबंध में सूचित कर दिया. उधर उस व्यापारी ने रायपुर के डिप्टी कमिश्नर के पास शिकायत की कि जमीदार वीर नारायण सिंह ने उसके घर पर डाका डालकर उसका सब कुछ लूट लिया है.
रायपुर का डिप्टी कमिश्नर वीर नारायण सिंह की जमीदारी हड़पने और उसे दंडित करने का अवसर ढूंढ रहा था. अतः उसने वीर नारायण सिंह को गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया. जब वे तीर्थ यात्रा से लौट रहे थे, तब उन्हें 24 अक्टूबर 1856 ईसवी को बंदी बना लिया गया. और उन्हें रायपुर की जेल में डाल दिया गया. इस घटना से सोनाखाना की जनता में अंग्रजो के लिए बगावत की भावना प्रबल हो उठी थी.
1857 ईस्वी के स्वतंत्रता संग्राम में वीर नारायण सिंह जी का क्या योगदान था?
उधर प्रथम स्वतंत्रता संग्राम प्रारंभ हो जाने के कारण जगह-जगह पर अंग्रेजो से लड़ाइयां होने लगी थी. वीर नारायण सिंह रायपुर की जेल में बंदी होने के कारण बैचन थे. परंतु वे इस मौके पर कुछ कर दिखाने के लिए बेचैन थे. उन्होंने अपने ऊपर तैनात तीसरी रेजिमेंट के पहरेदार ओं को अपनी ओर मिला लिया. और वे जेल से भाग गए, शेर पिंजरे से भाग चुका था. और अंग्रेज सरकार हाथ मलती रह गई जेल से भागकर वीर नारायण सिंह अपने गांव सोनाखाना पहुंचे और अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध की तैयारियां प्रारंभ कर दी.
सर्वप्रथम उन्होंने अपने गांव में आने जाने वाले रास्तों पर अवरोधक खड़े कर दिए. और वहां शस्त्र पहरेदार नियुक्त कर दिए उन्होंने आदिवासियों की शस्त्रों से सुसज्जित एवं एक विशाल सेना तैयार कर अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष करने हेतु तैयार किया. इसके अतिरिक्त उन्होंने आसपास के जमींदारों को भी साथ देने के लिए निमंत्रण पत्र भेज दिए. रायपुर के डिप्टी कमिश्नर मिस्टर इलियट ने लेफ्टिनेंट स्मिथ को आदेश दिया. कि वह नारायण सिंह पर आक्रमण करके उसे बंदी बना ले. स्मिथ ने एक विशाल सेना के साथ सोनाखाना की ओर प्रस्थान किया. कुछ गद्दार जमीदार भी अपनी सेनाएं लेकर स्मिथ के साथ हो गए. लेफ्टिनेंट स्मिथ ने अपनी सेना के साथ 10 नंबर 1857 इसी को रायपुर के लिए प्रस्थान किया.
नारायण सिंह जी का अंग्रेजो के साथ संघर्ष
नारायण सिंह के एक गुप्तचर ने अंग्रेज स्मिथ की सेना को भटका दिया था. जिससे वह गलत स्थान पर जा पहुंच गया. अगले दिन स्मिथ को मालूम हुआ कि नारायण सिंह ने अपने गांव के रास्ते में एक ऊंची दीवार बनाकर मार्ग को अवरुद्ध कर दिया है. और वह अंग्रेजों से संघर्ष हेतु पूर्ण रूप से तैयार है. स्मिथ ने करौदी गांव में अपना पड़ाव डाल कर अपनी शक्ति में वृद्धि करके अचानक आक्रमण करने का निश्चय किया. उसने कटंगी, बड़गांव एवं बिलाईगढ़ के जमीदारों को सेना सहित से अपने सहायता के लिए बुलाया. उसने नारायण सिंह के गांव सोनाखाना की ओर जाने वाले सारे रास्ते बंद कर दिए. ताकि वहां के लोगों को रसद एवं अन्य सामग्री प्राप्त न हो सके.
अंग्रेजी सेना लेफ्टिनेंट स्मिथ ने बिलासपुर से भी सहायता सेना की प्रार्थना की. परंतु उसे वहां से कोई सहायता प्राप्त नहीं हो सकी. इस पर रायपुर के डिप्टी कमिश्नर ने उसके पास अतिरिक्त सेना भेज दी. इसमें कटंगी, बड़गांव तथा बिलाईगढ़ के जमीदार भी अपनी सेनाओं को लेकर स्मिथ की सहायता के लिए पहुंच गए. लेफ्टिनेंट स्मिथ ने सेना के साथ निमतल्ला से देवरी के लिए प्रस्थान किया. और अपने सहायकों को नाकाबंदी करने का आदेश दिया. नारायण सिंह के एक दूसरे गुप्तचर ने स्मिथ को मार्ग से भटका कर गलत स्थान पर पहुंचा दिया. बड़ी मुश्किल से वह 30 नवंबर को देवरी पहुंचा. सोनाखाना से देवरी की दूरी 10 मील थी, देवरी का जमीदार रिश्ते में नारायण सिंह का काका था.
वीर नारायण सिंह जी की मोर्चाबंदी
परंतु पारिवारिक वैमनस्यता के कारण वह स्मिथ की मदद करने के लिए तैयार हो गया. स्मिथ ने देवरी के जमीदार के निर्देशन में अपनी सेना को आगे बढ़ाया और वह सोनाखाना से 3 मील दूरी तक पहुंच गया. जिधर अवरोध अधूरा रह गया था उस रास्ते पर वह गद्दार जमींदार सेना को लेकर गया. इधर वीर नारायण सिंह और स्मिथ की सेनाओं के बीच युद्ध प्रारंभ हो गया. और वीर नारायण सिंह ने अपने गांव सोनाखाना को खाली कर दिया. और कुछ चुने हुए योद्धाओं को लेकर पहाड़ पर जा पहुंचा. और वही तगड़ी मोर्चाबंदी कर ली उसने अपने पुत्र तथा परिवार के अन्य लोगों को सोनाखाना से बाहर सुरक्षित स्थान पर भेज दिया.
वीर नारायण सिंह जी का बलिदान
अगले दिन अंग्रेजी सेना लेफ्टिनेंट स्मिथ सोनाखाना गांव पहुंचा. जो खाली हो चुका था उसने पूरे गांव में आग लगवा दी रात को पहाड़ से स्मिथ की सेना पर गोलियों की बौछार शुरू हो गई. विवश होकर जान बचाने के लिए स्मिथ को पीछे हटना पड़ा. प्रथम युद्ध में नारायण सिंह ने स्मिथ को सेना सहित पीछे हटने के लिए विवश कर दिया. अब स्मिथ ने और सेना एकत्रित करके पूरे पहाड़ को चारों ओर से घेर लिया. पहाड़ पर रसद सामग्री नहीं पहुंच सकती थी. देवरी का जमीदार स्मिथ को सारी गुप्त सूचनाएं दे रहा था. नारायण सिंह ने निरपराध लोगों की बलि देने के स्थान पर सोनाखाना के लोगो के लिए प्राण देकर अपने साथियों की प्राण रक्षा करने का निश्चय किया.
5 दिसंबर अट्ठारह सौ सत्तावन ईसवी को नारायण सिंह ने रायपुर पहुंच कर वहां के डिप्टी कमिश्नर मिस्टर इलियट के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया. उस देश भक्तों के लिए अंग्रेजों के पास एक ही पुरस्कार था. और वह था फांसी का फंदा. वीर नारायण सिंह 10 दिसंबर 18 सो 57 को रायपुर के चौराहे पर खुले आम लोगों के सामने फांसी पर लटका दिया गया. रायपुर के उस चौराहे पर खड़ा हुआ जय स्तम्भ आज भी उस के बलिदान, वीरता, देशभक्ति की गाथा को ताजा कर देता है. माटी पुत्र , अमर शहीद वीर नारायण सिंह जी को हम नमन करते है.
दोस्तों कुछ इतिहासकारो के अनुसार वीर नारायण सिंह जी को तोप से बांध कर उड़ा दिया गया था. तो कुछ इतिहासकारो के अनुसार उनको फांसी हुई. पर ये तो एक सर्च का विषय है, पर यह सत्य है, देश की माटी के लिए नारायण सिंह जी ने अपने प्राणो की आहुति दी थी.
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FAQs
Ans- वीर नारायण सिंह जी को 10 दिसंबर 1857 ईस्वी में रायपुर के चौराहे पर खुले आम लोगों के सामने फांसी पर लटका दिया गया था.