Biography Of Rao Rambakhsh Singh. 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अवध के पास के क्षेत्र बैसवारा के राजाओं ने चिरसमरणीय योगदान दिया. इस क्रान्ति के सूत्रधार नाना साहब तथा मौलवी अहमद शाह आदि ने क्रांति के सफल संचालन हेतु तीन केंद्रों की स्थापना की थी. पहला लखनऊ था, जिसका नेतृत्व बेगम हजरत महल और मौलवी अहमद शाह कर रहे थे. दूसरा कानपुर था जिसका नेतृत्व नाना साहब अजीमुल्ला खां एवं तात्या टोपे कर रहे थे. तीसरा केंद्र डोडिया था, जिसका संगठित रूप से नेतृत्व राव रामबख्श सिंह पुरवा का देवी बक्शसिंह तथा खागा के ठाकुर दरियाब सिंह कर रहे थे. जहां पर स्वतंत्रता का संघर्ष कमजोर हो जाता तो यह आपस में एक दूसरे की सहायता के लिए पहुंच जाते थे. हम यहाँ 1857 ईस्वी क्रांति के महान वीरों में से एक रामबक्स सिंह जी की जीवनी और उनसे जुड़े रोचक तथ्य यहाँ शेयर करने जा रहे है.
राव रामबख्श सिंह कौन थे? (Biography Of Rao Rambakhsh Singh)
दोस्तों राजा राव रामबख्श सिंह जी एक बैस राजपूत थे जो तत्कालीन अवध प्रांत में उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के डौंडिया खेरा के राजा राव थे. या कहते डोडिया के राजा थे. 1857 क्रांति में अवध के पास के क्षेत्र बैसवारा के राजाओं ने चिरसमरणीय योगदान दिया. राजा बसंत सिंह डौंडियाखेड़ा के राजा थे इनके बाद इनके पुत्र राव रामबख्श सिंह पदभार संभाला था. जो ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का एक जागीरदार राज्य था. 1857 सिपाही विद्रोह के नेताओं में से एक थे, और नाना साहब के बहुत करीबी सहयोगी थे.
Summary
नाम | राजा राव रामबख्श सिंह |
उपनाम | डौंडियाखेड़ा के राजा |
जन्म स्थान | डौंडियाखेड़ा |
जन्म तारीख | — |
वंश | बैस राजपूत |
माता का नाम | — |
पिता का नाम | राजा बसंत सिंह |
पत्नी का नाम | लल्लू कुंवरि तथा दूसरी रानी छात्रपाल कुंवरि |
उत्तराधिकारी | — |
भाई/बहन | — |
प्रसिद्धि | स्वतंत्रता सेनानी |
रचना | — |
पेशा | क्रांतिकारी |
पुत्र और पुत्री का नाम | नि:संतान |
गुरु/शिक्षक | नाना साहब |
देश | भारत |
राज्य क्षेत्र | उत्तर प्रदेश |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | हिंदी |
मृत्यु | 28 दिसंबर 1859 |
मृत्यु स्थान | दिलेश्वर |
जीवन काल | लगभग 50 वर्ष |
पोस्ट श्रेणी | Biography Of Rao Rambakhsh Singh |
1857 ईस्वी की क्रांति में राजा राव रामबख्श सिंह का क्या योगदान था?
दोस्तों डोडिया खेड़ा के नरेश रामबख्श सिंह जी ने न केवल अंग्रेजों से युद्ध किया. अपितु आसपास के राजाओं को संगठित करने एवं उनके स्वतंत्रता की भावना जागृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. नाना साहब ने जब कानपुर में अंग्रेजों पर आक्रमण किया. तब राव रामबख्श एक विशाल सेना लेकर नाना साहब की सहायता करने के लिए कानपुर पहुंच गए. कुछ समय बाद जनरल ग्रांट हॉप एक विशाल सेना के साथ बैसवारा के क्रांतिकारियों के दमन के लिए पहुंचा. तो उसे भयंकर चुनौती का सामना करना पड़ा. परंतु 1858 ईस्वी के बाद अंग्रेजों का पलड़ा भारी होने लगा. अंग्रेजी सेनाओं को बैसवारा के जमीदारो को पराजित करने में बहुत जोर लगाना पड़ रहा था. लड़ते-लड़ते जब ग्रांट और बिहारगढ़ी पहुंचा तो उसे यहां पर ठाकुर शिव रतन सिंह ने कड़ी चुनौती दी.
ऐसे समय में डोडिया खेड़ा के राव रामबख्श सिंह ने उसकी सहायता के लिए एक सेना भेजी. ग्रांट होप कि सेना ने पुरवा की ओर प्रस्थान किया, तो राव राम बख्श सिंह और राणा बेनी माधव ने अंग्रेजी सेना पर आक्रमण कर दिया. स्वतंत्रता प्रेमी सैनिकों के अद्भुत वीरता के आगे अंग्रेज सैनिकों को यहां से भी भागना पड़ा. कुछ दिनों बाद मौका देखकर अंग्रेजों ने पुनः पुरवा पर आक्रमण कर दिया.और बिहारगढ़ी पर अपना अधिकार कर लिया. इस समाचार के मिलते ही राणा तथा राव ने पुरवा पर आक्रमण कर दिया 5 घंटे तक युद्ध चलता रहा. परंतु जब क्रांतिकारियों की तोपों ने गोली उगलना बंद कर दिया तो उन्हें पीछे हटने के लिए विवश होना पड़ा.
राजा राव रामबख्श सिंह जी और अंग्रेजो के मध्य संघर्ष और फांसी
जनरल ग्रांट हॉप अपने एक विशाल सेना के साथ दिसंबर 1858 ईस्वी में डोडिया खेड़ा के दुर्ग को घेर लिया. तब वहां के नरेश राव राम बख्श सिंह अंग्रेज सेना का डटकर मुकाबला किया. इसी समय राणा बेनी माधव भी उसकी सहायता के लिए आ गए. बैसवारा के इस अंतिम निर्णय के युद्ध में अंग्रेजो की विशाल सेना के समक्ष बहुत कम क्रांतिकारी सैनिक ही बचे थे. अंत में दुर्ग का पतन हो गया, तब राणा बेनी माधव तो तात्या टोपे के पास चले गए. और राव राम बक्श सिंह गुरिल्ला युद्ध से अंग्रेज़ो को छकाने लगे. इसी समय अंग्रेजों ने कूटनीति में राव साहब को गिरफ्तार कर लिया. और 28 दिसंबर 1861 ईसवी को बक्सर में एक शिवालय के पास खड़े बरगद के पेड़ पर फांसी पर लटका दिया.
दोस्तों कहाँ जाता है, 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत राव रामबख्श सिंह जी जिन्हें फांसी देने के दौरान 2 बार फंदे की रस्सी टूटी। इनके सर्वोच्च त्याग व बलिदान को वंदन एवं कोटि-कोटि नमन् करते है.
डौंडियाखेड़ा के किले पर अंग्रेजों का हमला और नष्ट करना
दोस्तों डौंडियाखेड़ा को प्राचीनकाल में द्रोणिक्षेत्र या द्रोणिखेर भी कहा जाता था. ईस्ट इंडिया कंपनी ने डौंडियाखेड़ा के अंतिम राजा राव रामबख्श सिंह को फांसी देने के बाद. इस किले पर हमला करके तहस नहस कर दिया था. बाद में टूटे फूटे किले को एक दूसरे राजपूत राजा दिग्विजय सिंह को सौंप दिया. डौंडियाखेड़ा किला उन्नाव जिले से 33 मील दूर दक्षिण पूर्व में है, जो 50 फुट उंचे विशाल टीले पर बना था. पश्चिम की ओर गंगा नदी की धारा टीले को छूती बहती है. किले का मुख्य द्वार पूर्व की ओर था. किले की सामने से लंबाई लगभग 385 फुट थी और पीछे का हिस्सा इससे कुछ और अधिक चौड़ा था.
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FAQs
Ans- राव रामबख्श सिंह डोडिया खेड़ा के अंतिम राजा थे.
It’s the wrong photograph of Raja Rao Ram Baksh Singh. Please Remove and update the Correct One. It’s a Statue of Prathvi Raj Chauhan. Please check
Done Sir, Thanks for suggesting