Biography of Swami Dayanand Saraswati स्वामी दयानंद सरस्वती

By | December 6, 2023
Biography of Swami Dayanand Saraswati
Biography of Swami Dayanand Saraswati

भारत की इस पवित्र भूमि पर अनेक संत, ऋषि, एवं मऋषि हुए है. जिन्होंने ईश्वर की उपासना करते हुए समाज तथा राष्ट्र की सेवा भी की है. हम यहाँ समाज सुधारक स्वामी दयानंद सरस्वती की जीवनी (Biography of Swami Dayanand Saraswati) और उनके द्वारा किये गए प्रमुख कार्य का वर्णन कर रहे है. इस लिए पाठको को इस पेज को अंत तक पढ़ना चाहिए. 19वीं शताब्दी में भारत के पुनर्जागरण के लिए जो विविध आंदोलन प्रारंभ हुए. उन में आर्य समाज का स्थान सर्वोपरि रहा है. आर्य समाज की स्थापना मुंबई में स्वामी दयानंद सरस्वती ने 10 अप्रैल 1875 ईसवी को की, इसका आधार वैदिक धर्म था.

स्वामी दयानंद के समय हिंदू धर्म की दशा काफी सोचनीय थी. हिंदू धर्म में अनेक आडंबर और रूढ़ियों तथा कर्मकांड ने प्रवेश कर लिया था. इस्लाम और ईसाई धर्म प्रचारक हिंदुत्व का आक्रमण कर रहे थे. राजा राममोहन राय के नेतृत्व में ब्रह्म समाज ने हिंदुओं को ईसाई धर्म की तरफ आकर्षित करने से रोका था. परंतु बाद में केशव चंद्र सेन के नेतृत्व में यह समाज धीरे-धीरे ईसाई धर्म की ओर झुकने लगा था.

Biography of Swami Dayanand Saraswati (स्वामी दयानंद सरस्वती जी की जीवनी)

स्वामी दयानंद सरस्वती के बचपन का नाम मुलशंकर था. उनका जन्म 12 फ़रवरी-1824 ईस्वी में गुजरात के टंकारा परगने के शिवपुर नामक ग्राम में धनी रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम अंबा शंकर था और माता जी का नाम यशोदाबाई था. जब आप 14 वर्ष के थे, तब एक बार शिवरात्रि पर वे अपने पिता के साथ शिव के मंदिर में गए. वहां उन्होंने देखा कि एक चूहा शिवलिंग पर चढ़कर प्रसाद खा रहा है. मूल शंकर ने सोचा कि जो महादेव अपने त्रिशूल से बड़े-बड़े राक्षसों का संहार करता है. क्या वह साधन चूहे को अपने ऊपर से नहीं हटा सकता. यह देखने के पश्चात उनका मूर्ति पूजा से विश्वास उठ गया.

जब उनके पिता 1845 ईस्वी में उनका विवाह करने लगे तो यह घर छोड़कर भाग गए. अगले 15 वर्षों तक वह विभिन्न स्थानों का भ्रमण करते रहे और अध्ययनरत करते रहे. 1807 ईस्वी में वे मथुरा पहुंचे और वहां स्वामी विरजानंद को अपना गुरु बनाया एवं वहीं पर इन्होंने वेदों का अध्ययन किया. इसके बाद उन्होंने अपने गुरु के आदेशानुसार वैदिक धर्म में व्याप्त बुराइयों तथा अन्य विश्वासों का खंडन कर देश में वैदिक धर्म एवं संस्कृति की प्रतिष्ठा पुणे स्थापित करने के लिए जीवन भर प्रयास किया.

Summary

नाममुलशंकर
उपनामस्वामी दयानंद सरस्वती
जन्म स्थानशिवपुर ग्राम, टंकारा, गुजरात
जन्म तारीख12 फ़रवरी-1824 ईस्वी
वंशब्राह्मण
माता का नामयशोदाबाई
पिता का नामअंबा शंकर
पत्नी का नामअविवाहित
प्रसिद्धिसंत, स्वतंत्रता सेनानी, हिन्दू धर्म के प्रचारक, समाज सुधारक, कवी, आर्य समाज की स्थापना
आर्य समाज की स्थापना10 अप्रैल 1875 ईसवी को मुंबई में
रचनासत्यार्थ प्रकाश, ऋग्वेदादि भाष्य, वेद भाष्य
पेशासंत, कवी
पुत्र और पुत्री का नाम
गुरु/शिक्षकस्वामी विरजानंद
देशभारत
राज्य छेत्रगुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और सम्पूर्ण भारत
धर्महिन्दू वैदिक
राष्ट्रीयताभारतीय
मृत्युराजस्थान के अजमेर के पास मुसलमान कृपा पात्र नन्ही जान ने 30 अक्टूबर 1883 ईस्वी को जहर देने से मर्त्यु हुई
पोस्ट श्रेणीBiography of Swami Dayanand Saraswati (स्वामी दयानंद सरस्वती की जीवनी)
Biography of Swami Dayanand Saraswati

स्वामी दयानंद सरस्वती ने हिंदू धर्म में क्या सुधार किये?

एक समय में स्वामी दयानंद सरस्वती ने हिंदू धर्म में प्रचलित बुराइयों को दूर कर हिंदुओं का ध्यान इस तरह के मूल रूप की ओर आकर्षित किया. उन्होंने वैदिक धर्म के आधार पर बताया कि वेद ज्ञान के भंडार हैं. और हिंदू धर्म ही संसार में सर्वश्रेष्ठ धर्म है भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीन और महत्वपूर्ण संस्कृति है. यदि हम चाहे तो विश्व में भारत की प्रतिष्ठा को फिर से स्थापित कर सकते हैं. ब्रह्मसमाज ईसाई धर्म की ओर आकर्षित होने लग गया था. परंतु आर्य समाज का आधार वैदिक धर्म था.

स्वामी दयानंद सरस्वती ने कहा था कि यदि वैदिक धर्म की बुराइयों को दूर कर दिया जाए तो भारत फिर से विश्व गुरु बन सकता है. इस प्रकार उन्होंने हिंदू धर्म में नवजीवन का संचार करने तथा सामाजिक दशा में सुधार हेतु महत्वपूर्ण प्रयास किए. और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को एक महत्वपूर्ण दिन दी इस प्रकार में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सुधार भी थे. अतः व राज्य के पथगामियो ने में प्रमुख स्थान पाने के अधिकारी है. रविंद्र नाथ टैगोर के शब्दों में स्वामी दयानंद सरस्वती आधुनिक भारत के एक महान पथ प्रदर्शक थे.

स्वामी दयानंद वेदों से बहुत प्रभावित थे ब्रह्म समाज के संस्थापक राजा राममोहन राय पाश्चात्य सभ्यता एवं पाश्चात्य संस्कृति के प्रबल समर्थक थे. स्वामी दयानंद ने हिंदू धर्म में प्रचलित बुराइयों को दूर करने का प्रयास किया था. कि हिंदू धर्म के प्रतिष्ठा फिर से स्थापित की जा सके. वे मूर्ति पूजा के विरोधी थे उन्होंने वेदों को प्रमाणिक ग्रंथ माना इसलिए वेदों की और लौटो का नारा लगाया अपने विचारों का प्रचार करने के लिए उन्होंने सारे देश का भ्रमण किया और कई विद्वानों को शास्त्रार्थ में पराजित किया.

आर्य समाज स्थापना किसने की थी?

स्वामी दयानंद सरस्वती ने 10 अप्रैल 1875 ईसवी को मुंबई में आर्य समाज की स्थापना की थी. स्वामी दयानंद सरस्वती धर्म एवं संस्कृति के प्रख्यात विद्वान थे. 1835 ईस्वी में उन्होंने ब्रह्म समाज के साथ मिलकर कार्य करने का प्रयास किया परंतु ब्रह्म समाज के सदस्य वेदों की श्रेष्ठ तथा पुनर्जन्म के सिद्धांतों में विश्वास नहीं करते थे. इसलिए स्वामी दयानंद का उनसे से मतभेद हो गया. वह अपने प्रचार कार्यों में संस्कृत भाषा का प्रयोग करते थे. किंतु केशव चंद्र सेन के परामर्श पर उन्होंने हिंदी भाषा के माध्यम से जनसाधारण को अपना संदेश दिया. 1863 ईस्वी के पश्चात उन्होंने भारत के विभिन्न स्थानों पर घूम घूम कर अपने विचारों का प्रचार किया.

उन्होंने 10 अप्रैल 1875 ईस्वी मैं मुंबई जाकर आर्य समाज की स्थापना की इसके बाद स्वामी जी दिल्ली गए जहां उन्होंने सत्य की खोज के लिए हिंदू, मुसलमान और ईसाई विद्वानों का एक सम्मेलन बुलाया. इसमें 2 दिन तक विचार-विमर्श चलता रहा परंतु सत्य के बारे में कोई निष्कर्ष नहीं निकल सका. आप दिल्ली से पंजाब , हरियाणा गए जहां उन्होंने अपने विचारों का प्रसार किया. उनके प्रयासों से पंजाब में कई स्थानों पर आर्य समाज की शाखाएं स्थापित हो गई. इसके बाद मध्य प्रदेश के ग्वालियर, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और गुजरात में उनको से सफलता प्राप्त हुई.

स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने कौन कौन से ग्रंथ लिखे थे?

स्वामी दयानंद सरस्वती ने तीन ग्रंथ लिखे :–

ऋग्वेदादि भाष्य से भूमिका ’नामक ग्रंथ में उन्होंने वेदों के संबंध में अपने विचार व्यक्त किए.

दूसरे ग्रंथ वेद भाष्य में उन्होंने यजुर्वेद और वेद की टीका लिखी.

उनका तीसरा ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश है जो सर्वाधिक महत्वपूर्ण ग्रंथ है. और जिसे बहुत प्रसिद्धि मिली उन्होंने इस ग्रंथ की रचना 1874 ईस्वी में की थी. इस ग्रंथ में उन्होंने सभी धर्मों का आलोचनात्मक विश्लेषण करने के पश्चात यह सिद्ध किया है. कि वैदिक धर्म की सभी धर्मों में श्रेष्ठ है. उन्होंने अपने इस ग्रंथ में हिंदू धर्म की कुरीतियां का खंडन निर्भयता से किया है. उसी ढंग से इस्लाम तथा ईसाई धर्म के आडंबरो और अंधविश्वासों की भी तीव्र आलोचना की है. इससे हिंदू जनता को पता चल गया कि ईसाई तथा इस्लाम धर्म में भी कुरीतियां व्याप्त हैं. और यह हिंदू धर्म से अच्छी नहीं है. इसके अतिरिक्त हिंदू अपने मूल धर्म की तरफ आकर्षित हुए. और वह अपनी प्राचीन परंपरा के गौरव को अनुभव करने लगे. स्वामी जी ने इस्लाम तथा ईसाइयत की श्रेष्ठता पर पानी फेर दिया. उनका हिंदुओं पर यह बहुत बड़ा उपकार था.

स्वामी दयानंद सरस्वती जी के सत्यार्थ प्रकाश ग्रंथ में क्या लिखा हुआ है?

दयानंद सरस्वती जी ने अपने ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश में बताया कि वेद ही सभी ज्ञान के आधार हैं. उन्होंने मूर्ति पूजा अवतारवाद, तीर्थ यात्रा, श्राद्ध, व्रत अनुष्ठान आदि बुराइयों का खंडन किया. उन्होंने इस वेद में बताया की प्रतिदिन निधिस्त यज्ञ तथा संध्या करना प्रत्येक आर्य के लिए आवश्यक बताया. वे छुआछूत, बाल विवाह, बहुविवाह, प्रथा पर्दा प्रथा के विरोधी थे. उन्होंने स्त्री शिक्षा और अंतरजातीय एवं विधवा विवाह का समर्थन किया था.

दयानंद सरस्वती जी का राष्ट्रीय आंदोलन में क्या योगदान था?

स्वामी दयानंद सरस्वती ने राष्ट्रीय आंदोलन में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया उनके दो प्रमुख नारो भारत भारतीयों का है. तथा वैदिक सभ्यता को अपनाइए ने भारतीयों में नवीन उत्साह भर दिया। स्वामी दयानंद सरस्वती ने हिंदू समाज में नव चेतना का संचार किया तो हिंदुओं में आत्मसम्मान की भावना जागृत की. उन्होंने हिंदुओं को यह बताया कि उनकी संस्कृति विश्व की प्राचीन और महान संस्कृति है. इस पर वे अपनी संस्कृति पर गर्व करने लगे आर्य समाज ने नमस्ते शब्द का प्रचलित किया जो आज भी भारत तथा विदेशों में लोकप्रियता प्राप्त किए हुए हैं.

दयानंद सरस्वती जी ने भारतवासियों में भी राजनीतिक चेतना जागृत की स्वामी दयानंद सरस्वती जी की जीवनी के एक लेखक ने उनके बारे में लिखा है. कि जयानंद का मुख्य लक्ष्य राजनीतिक स्वतंत्रता था. वास्तव में वह प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना तथा स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करना सिखाया. वह प्रथम व्यक्ति थे उन्होंने हिंदी को राष्ट्रभाषा स्वीकार किया. स्वामी जी ने हिंदू मेरा स्वाभिमान और जो देश प्रेम की भावना जागृत की थी. उन्होंने अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश में लिखा है. कि अच्छा से अच्छा विदेशी राज्य से सवदेशी राज्य का मुकाबला नहीं कर सकता है. इस प्रकार स्वामी जी ने भारतीयों में देशभक्ति की भावना का संचार किया और उन्हें अपनी सभ्यता से प्रेम करना सिखाया.

1857 की क्रांति में स्वामी दयानंद सरस्वती जी का योगदान

दोस्तों 1855 ईस्वी में हरिद्वार में विशाल कुंभ मेला लगा. स्वामी दयानंद जी भी इस मेले में भाग लेने के लिए हरिद्वार पहुंचे। इस समय अंग्रेजों के अत्याचारों के कारण संपूर्ण देश की जनता में उनके विरुद्ध भयंकर असंतोष व्याप्त था. नाना साहब, अजीमुल्ला खान, और पवन सिंह, अजीजन बाई, महारानी लक्ष्मीबाई, अवन्ति बाई लोधी आदि मेले में भाग लेने के लिए हरिद्वार पहुंचे. वहां स्वामी जी से मिले नाना सहाब ने उन्हें अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति करने के लिए प्रेरित किया.

स्वामी दयानंद सरस्वती ने 1857 ईसवी से 1883 ईस्वी तक काल में भारतीय जनता में राष्ट्रीय चेतना जागृत करने का हर संभव प्रयास किया. 1857 की क्रांति की असफलता के बारे में स्वामी जी का विचार था. कि यदि देशी रियासतें के नरेशों ने भी स्वाधीनता संग्राम में सहयोग दिया होता तो. भारत 1857 में ही स्वतंत्र हो जाता. परंतु कुछ सवदेशी रियासतों के शासकों ने क्रांतिकारियों का साथ देने से स्थान पर क्रांति को कुचलने के लिए अंग्रेजों को सहायता दी थी. इस लिए 1857 असफल हुई थी लेकिन अंग्रेजो की नींद उड़ा दी थी.

गवर्नर लॉर्ड नार्थब्रुक से स्वामी जी की भेंट

स्वामी दयानंद सरस्वती 1872 में कोलकाता पहुंचे, वहां उनके तत्कालीन गवर्नर लॉर्ड नार्थ ब्रूक से भेंट हुई थी. गवर्नर लॉर्ड नार्थ ब्रूक ने स्वामी जी से कहा कि आप अपने भाषणों में अखंड अंग्रेजी साम्राज्य की स्थापना पर बल दिया करे. परंतु स्वामी जी ने कहा कि मैं तो हमेशा भारत की स्वतंत्रता और अंग्रेजी राज्य की समाप्ति के लिए कहता हूं. इस बात पर वार्ता भंग हो गई. इसके पश्चात गवर्नर लॉर्ड नार्थ ब्रूक ने स्वामी जी को अंग्रेजों का शत्रु समझ कर उनके पीछे गुप्तचर लगा दिए. इस पर भी स्वामी जी ने अपना प्रचार कार्य जारी रखा उन्होंने अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश में लिखा है. हे प्रभु हमारे देश में कभी विदेशी राजा का राज नहीं रहे. उन्होंने आगे लिखा है कि कोई कितना ही करें परंतु जो स्वदेशी राज्य होता है सर्वोपरि उत्तम होता है.

आर्य समाजी स्वामी दयानंद सरस्वती की मृत्यु कैसे हुई?

स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपने जीवन का अंतिम समय राजस्थान में वितरित किया. जहां अनेक राजा तथा जागीरदार उनके शिष्य बने. उदयपुर के महाराणा सज्जन सिंह ने उनसे मनुस्मृति, राजनीति तथा राजधर्म की शिक्षा ग्रहण की. उनके राजनीतिक विचार बड़े प्रगतिशील थे. उन्होंने अपने ग्रंथ सत्यप्रकाश में लिखा है. कि विदेशी राज्य में से स्वराज्य हर प्रकार से अच्छा है. जोधपुर महाराजा जसवंत सिंह एक व्यसनी नरेश थे. उनको स्वामी जी को कठोर शब्द कहे. इस लिए उनकी मुसलमान कृपा पात्र नन्ही जान 30 अक्टूबर 1883 ईस्वी को स्वामी जी को विश दे दिया जिसके कारण अजमेर में उनकी मृत्यु हो गई.

उनकी मृत्यु पर हैलीना ब्लावाट्स्की ने लिखा था. कि यह बिल्कुल सही बात है कि शंकराचार्य के बाद से भारत में कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं हुआ जो स्वामी से बड़ा संस्कृतयज्ञ उनसे बड़ा दार्शनिक उनसे अधिक तेजस्वी वक्ता तथा कुरीतियों पर टूट पड़ने में उनसे अधिक निर्भीक रहा हो.

स्वामी जी की मृत्यु के बाद दी थियोसॉफिस्ट नामक समाचार पत्र ने उनके तारीफ में लिखा था. उन्होंने जर्जर हिंदुत्व के गतिहीन, जनसमूह पर बाहरी बम का प्रहार किया और अपने भाषणों से लोगों के हृदय में नीतियों और वेदों के लिए अपरिमित उत्साह की आग जला दी सारे भारतवर्ष में उनके सम्मान हिंदी और संस्कृत का वक्ता दूसरा और नहीं था. रविंद्र नाथ टैगोर ने कहा था कि आधुनिक भारत के मार्गदर्शन महर्षि दयानंद जी सरस्वती को मैं सादर श्रद्धांजलि समर्पित करता हूं. पाल रिचार्ज ने स्वामी जी के संबंध में लिखा कि स्वामी दयानंद निसंदेह एक ऋषि थे. उनका प्रादुर्भाव लोगों को कारागार से मुक्त करने और जाति बंधन तोड़ने के लिए हुआ था.

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FAQs

Q- स्वामी दयानन्द सरस्वती जी का जन्म कहाँ हुआ था?

Ans- स्वामी दयानन्द सरस्वती जी का जन्म भारत के गुजरात राज्य के मोरबी ज़िले में स्थित टंकारा नगर में कहाँ हुआ था.

Q- स्वामी दयानन्द सरस्वती जी का असली नाम क्या है?

Ans- स्वामी जी का असली नाम मूलशंकर है.

Q-स्वामी दयानंद सरस्वती जी की मृत्यु कब हुई थी?

Ans- स्वामी दयानंद सरस्वती की सहयोगी नन्ही जान ने 30 अक्टूबर 1883 ईस्वी को स्वामी जी को विश दे दिया जिसके कारण अजमेर राजस्थान में उनकी मृत्यु हो गई थी.

Q- स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने कितने ग्रंथ लिखे?

Ans-स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने तीन कितने ग्रंथ लिखे थे. सत्यार्थ प्रकाश, ऋग्वेदादि भाष्य से भूमिका, वेद भाष्य.

Q- आर्य समाज की इस्थापना किस ने की थी?

Ans-10 अप्रैल 1875 ईसवी को मुंबई में आर्य समाज की स्थापना स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने की थी.

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