दोस्तों हम यहाँ बहादुर शाह ज़फ़र की जीवनी (Biography of Bahadur Shah Zafar) और उनसे जुड़ी आश्चर्यजनक और अद्भुत जानकारी शेयर करने वाले है. तो दोस्तों बहादुर शाह ज़फ़र की रोचक और अत्युत्तम जानकारी के लिए इस पेज को अंत तक जरूर पढ़े. बहादुर शाह ज़फ़र अंतिम मुगल सम्राट था, जिसने प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय क्रांतिकारियों का नेतृत्व किया. बहादुर शाह ज़फ़र का जन्म 24 अक्टूबर 1775 ईस्वी में दिल्ली के लाल किले में हुआ था. अपने पिता अकबर द्वितीय की मृत्यु के बाद वे दिल्ली के सिंहासन पर बैठे, उस समय देश की राजनीतिक स्थिति अत्यंत सोचनीय थी.
अंग्रेज समस्त भारत में अंग्रेज साम्राज्य के विस्तार का प्रयत्न कर रहे थे. बहादुर शाह ज़फ़र अंग्रेजों को छली,कपटी मानते थे. ज़फ़र कहना था कि अंग्रेजों की कथनी और करनी में अंतर होने के कारण उन पर विश्वास नहीं किया जा सकता. बहादुर शाह ज़फ़र बचपन से ही अंग्रेजों से नफरत करते थे, उन्हें देश से बाहर निकालना चाहते थे.
ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना से पूर्व एवं उसके बाद अंग्रेजों ने मुगल सम्राट से कई अधिकार प्राप्त किए थे. ईस्ट इंडिया कंपनी के सिक्कों पर मुगल सम्राट का नाम अंकित होता था. और समय-समय पर अंग्रेज सरकार मुगल दरबार में उपस्थित होकर मुगल सम्राट को उपहार स्वरूप भेंट आदि देते थे. परंतु धीरे-धीरे अंग्रेजों ने सम्राट को बहाना बनाकर उसका अपमान करना प्रारंभ कर दिया. बहादुर शाह ज़फ़र ने राज्याभिषेक के समय लेफ्टिनेंट गवर्नर ने उनकी पेंशन में वृद्धि करने का आश्वासन दिया था, परंतु बाद में वह इस वायदे से मुकर गया था.
बहादुर शाह ज़फ़र कौन थे? (Biography of Bahadur Shah Zafar)
दोस्तों बहादुर शाह जफर अंतिम मुगल सम्राट थे. बहादुर शाह ज़फ़र के वालिद का नाम अकबर शाह द्वितीय और माँ का नाम लालबाई था. बहादुर शाह ज़फ़र का जन्म 24 अक्टूबर 1775 ईस्वी में दिल्ली के लाल किले में हुआ था. अपने पिता अकबर शाह द्वितीय की मृत्यु के बाद 28 सितंबर, 1837 में वे दिल्ली के सिंहासन पर बैठे थे. और अंत में वे अंतिम मुगल बादशाह साबित हुए. दोस्तों ये तो एक किस्मत की बात थी, कि जब बहादुर शाह जफर मुगल सम्राट बने. उस समय तक दिल्ली की सल्तनत बेहद कमजोर हो गई थी. और मुगल बादशाह नाममात्र का सम्राट रह गया था. जिसका भरपूर फायदा अंग्रेजो ने उठाया था.
Summary
नाम | बहादुर शाह ज़फ़र || Biography of Bahadur Shah Zafar |
उपनाम | भारत का अंतिम मुग़ल सम्राट, |
जन्म स्थान | पुरानी दिल्ली (लाल किला) |
जन्म तारीख | 24 अक्टूबर 1775 ईस्वी |
वंश | मुगल |
माता का नाम | लालबाई |
पिता का नाम | अकबर शाह द्वितीय |
पत्नी का नाम | ज़ीनत महल |
उत्तराधिकारी | — |
भाई/बहन | — |
प्रसिद्धि | भारत का अंतिम मुगल सम्राट, स्वतंत्रता सेनानी, |
रचना | फारसी में कविता |
पेशा | राजा |
पुत्र और पुत्री का नाम | मिर्जा मुगल और खिजर सुल्तान |
गुरु/शिक्षक | अकबर शाह द्वितीय |
देश | भारत |
राज्य क्षेत्र | दिल्ली |
धर्म | मुस्लिम |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | उर्दू, हिंदी और फारसी |
मृत्यु | 7 नवंबर 1862 ईस्वी |
मृत्यु स्थान | रंगून, म्यांमार |
जीवन काल | 87 वर्ष |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Bahadur Shah Zafar |
बहादुर शाह ज़फ़र 1857 ईस्वी की क्रांति में क्यों कूदे?
दोस्तों ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना से पूर्व एवं उसके बाद अंग्रेजों ने मुगल सम्राट से कई अधिकार प्राप्त किए थे. ईस्ट इंडिया कंपनी के सिक्कों पर मुगल सम्राट का नाम लिखा होता था. और समय-समय पर अंग्रेज सरकार मुगल दरबार में हाजरी लगाते थे, और मुगल सम्राट को उपहार स्वरूप भेंट आदि देते थे. लेकिन धीरे धीरे अंग्रेज सम्राट का अपमान करते लगे, और राज की शक्तिया कम करने लगे.
बहादुर शाह ज़फ़र स्वभाव से बहुत दयालु एवं भावुक व्यक्ति था. देसी रियासतों के शासक एवं भारतीय जनता उनका बहुत श्रद्धा के साथ आदर करती थी. जब लॉर्ड डलहौजी ने मुगल सम्राट के साथ दुर्व्यवहार करना प्रारंभ किया. तो भारतीय जनता में तीव्र गति से असंतोष फैला. अंग्रेजों ने मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर का नाम अपने सिक्कों से हटा दिया. और उसको भेट देना बंद कर दिया. इस प्रकार अंग्रेज प्रतिनिधियों ने मुगल सम्राट के प्रति सम्मान प्रदर्शित करना बंद कर दिया.
इससे भी वे संतुष्ट नहीं हुए 1844 में गवर्नर जनरल ने आदेश जारी किया. कि जब दिल्ली के बादशाह की मृत्यु हो जाए तो उसका उत्तराधिकारी बनाने के सिलसिले में हर मामले में उसकी स्वीकृति गवर्नर जनरल से ली जाए. बहादुर शाह जफर का यह मानना था कि अंग्रेजों को उसके उत्तराधिकारी के संबंध में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है.
लॉर्ड डलहौजी ने मुगल सम्राट की उपाधि को समाप्त करने का निश्चय किया. उसने बहादुर शाह जफ़र के सबसे बड़े पुत्र जवाबख्त को अंग्रेजों का विरोधी होने के कारण युवराज मानने से इनकार कर दिया. बहादुर शाह के 8 पुत्र जीवित थे, उनमें से सबसे निकमे पुत्र मिर्जा कोयास के साथ डलहौजी ने एक समझौता कर लिया.
लॉर्ड डलहौजी और मिर्जा कोयास के मध्य समझौते की कुछ शर्ते
- मिर्जा कोयास शासक बनने पर अपने आप को बादशाह के बजाय शहजादा (राजकुमार) कहेगा.
- वह दिल्ली का लाल किला खाली कर देगा और कुतुब महरौली दिल्ली में जाकर रहेगा.
- उसे ₹100000 मासिक के स्थान पर केवल ₹15000 मासिक पेंशन दी जाएगी.
डलहौजी ने इस समझौते के बाद बहादुर शाह से अपनी पुश्तैनी निवास स्थान लाल किले को खाली कर कुतुब मीनार में रहने के लिए कहा. बहादुर शाह ने इसे अपना घोर अपमान समझा, जिसके कारण वह तथा उसके अनुयाई अंग्रेजों के कट्टर शत्रु बन गए. गवर्नर जनरल ने रेजीडेंट को एक पत्र लिखा जिस में पता चलता है कि अंग्रेज हर प्रकार से सम्राट को अपमानित कर देश की शासन सत्ता अपने हाथ में लेना चाहते थे.
1857 ईस्वी प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम (क्रांति) में बहादुर शाह ज़फ़र का क्या योगदान था?
बहादुर शाह ज़फ़र अंग्रेजों से घृणा करता था. और उन को देश से बाहर निकालने के लिए तुला हुआ था. इसी समय झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, बिहारी केसरी बाबू कुंवर सिंह एवं नाना साहब पेशवा, अजीजन बेगम, अकबर खान, अज़ीमुल्लाह खान, आनंद सिंह, अवन्ति बाई लोधी,अमरचंद बांठिया, बंसुरिया बाबा, महारानी तपस्विनी, बेगम हजरत महल, गोविंद गिरि, भास्कर राव बाबासाहेब नरगुंडकर, कुमारी मैना, महारानी जिंदा कौर, झलकारी बाई, वृंदावन तिवारी, तिलका मांझी, सूजा कंवर राजपुरोहित, पीर अली, ईश्वर कुमारी, ठाकुर कुशल सिंह, उदमी राम ,चौहान रानी, जगत सेठ रामजीदास गुड़ वाला, जगजोत सिंह, ज़ीनत महल ,जैतपुर रानी, जोधारा सिंह, टंट्या भील, ठाकुर रणमत सिंह, नरपति सिंह, दूदू मियां, नाहर सिंह, मौलवी अहमदुल्लाह फैजाबादी, बहादुर खान, गोंड राजा शंकर शाह, रंगो बापूजी गुप्ते.
और बरजोर सिंह, बलभद्र सिंह, रानी तेजबाई, वीर नारायण सिंह, वारिस अली, वलीदाद खान, झांसी की रानी लक्ष्मी बाई, नाना साहब पेशवा, राव तुलाराम, बाबू अमर सिंह आदि सहित की देश की रियासतों के कई शासको में अंग्रेजों के विरुद्ध घोर असंतोष विद्यमान था. और उनके सामने शस्त्र बगावत करने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं था. बहादुर शाह ने देश को अंग्रेजो की दासता से मुक्त करवाने के लिए इन असंतुष्ट शासकों से संपर्क स्थापित किया.
उसने सारे देश के लोगों से संपर्क करके यह निश्चित कर लिया, कि 31 मई 1857 को सारे देश की जनता राजा महाराजा एवं नवाब एक साथ अंग्रेजों पर आक्रमण करेंगे और उन्हें भारत से बाहर निकाल देंगे. यह योजना पूर्ण नियोजित तथा संगठित थी, कमल का फूल तथा चपाती क्रांति के चिन्ह घोषित किए गए. इसके कारण प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम प्रारंभ हो गया. बहादुर शाह तथा बेगम जीनत महल ने इन समय क्रांतिकारियों का नेतृत्व किया. इस संग्राम में हिंदू और मुसलमानों की ने कंधे से कंधा मिलाकर भाग लिया यह संग्राम राष्ट्रीय एकता का सबसे बड़ा उदाहरण था.
1857 ईस्वी की क्रांति समय से पहले शुरू होने के मुख्य कारण क्या थे?
दोस्तों 1857 ईस्वी क्रांति को प्रारंभ करने की तिथि 31 मई 1857 निश्चित की गई थी. परंतु मंगल पांडे नामक एक बहादुर सैनिक 31 मई तक प्रतीक्षा नहीं कर सका. जब उसे पता चला कि अंग्रेजों ने सैनिकों को ऐसे कारतूस दिए हैं, जिसमें गाय और सुअर की चर्बी मिली हुई है और ऐसे कारतूस व को मुंह से बोलना पड़ता है. उसने सोचा कि अंग्रेजों ने जानबूझकर हिंदुओं और मुसलमानों का धर्म भ्रष्ट करने के लिए इस प्रकार के कारतूस बनाए हैं.
मंगल पांडे इस बात को सहन नहीं कर सका. और उसने क्रुद्ध होकर अपने अन्य साथियों के सहयोग से कुछ अंग्रेज सैनिक अधिकारियों को मौत के घाट उतार दिया. मंगल पांडे एवं उसके साथियों को फांसी पर लटका दिया गया. बस यही से भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम प्रारंभ हो गया. देश की समस्त सैनिक छावनी ओं में भारतीय सैनिकों ने क्रांति का बिगुल बजा दिया. जगह जगह पर अंग्रेजों को मौत के घाट उतारा जाने लगा.
अंत में 10 मई 18 सो 57 में मेरठ के क्रांतिकारियों ने दिल्ली की ओर कूच कर दिया. उन्होंने दिल्ली पर अधिकार करने के बाद बहादुर शाह को पुनः देश का सम्राट घोषित कर दिया. क्रांतिकारी सेना ने भारत के अंतिम मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर से जाकर इस प्रकार निवेदन किया. जहांपना एक बार दिल्ली का तोफा कबूल करके हमारे बादशाह बनना स्वीकार कीजिए. बहादुर शाह जफर ने जवाब देते हुए कहा, कि मेरे खजाने तो खाली हो चुके हैं. आप लोगों को वेतन कहां से दूंगा, देशभक्तों ने गूंजते हुए शहरों में यह शब्द कहे. हम भाड़े के सैनिक नहीं हैं, वेतन लेकर लड़ने वाले और होंगे. हम तो आजादी की कीमत अपने सिरों से देने आपके झंडे के नीचे आए हैं. आप हुक्म दे तो हम अंग्रेजों के सारे खजाने लूटकर आपके कदमों में डाल दें.
बहादुर शाह ज़फ़र द्वारा 1857 ईस्वी क्रांति का नेतृत्व
सम्राट बहादुर शाह जफर वृद्ध होने के बावजूद भी 1857 ईस्वी की क्रांति में क्रांतिकारियों का नेतृत्व किया. उसने देश की जनता का आह्वान करते हुए कहा फिरंगीयों को हिंदुस्तान से बाहर निकालने में सब को एक हो जाना चाहिए. क्रांति की जो आग जली है, वह तब तक भुजनि नहीं चाहिए. जब तक फिरंगी देश से बाहर न निकल जाए. इसके बाद बहादुर शाह ने विद्रोहियों के समक्ष भाषण देते हुए कहा था. दिल्ली से अंग्रेज जा चुके हैं, किंतु अभी वह हिंदुस्तान में मौजूद हैं. हमारा अनुष्ठान तब पूरा होगा. जब अंग्रेज सारे हिंदुस्तान से निकल जाएंगे.
बहादुर शाह जफर ने पुणे सम्राट बनने के बाद, अपने पुत्र मिर्जा कोयास के स्थान पर जवाबख्त को मुख्य सेनापति के पद पर नियुक्त किया. उससे कहा कि बहादुर मुझे तुम पर पूरा भरोसा है. मुझे तुम खुदा के हवाले करो और तुम यहां के मैदान-ए-जंग में जाओ और कुछ करके दिखाओ. प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का प्रमुख उद्देश्य स्वराज्य को प्राप्त करना था. वीर सावरकर ने तत्कालीन साहित्य के आधार पर यह सिद्ध कर दिया. कि भारतीयों ने अपने देश तथा धर्म की रक्षा के लिए अट्ठारह सौ सत्तावन में पहला शस्त्र विद्रोह किया था.
बहादुर शाह द्वारा इस क्रांति के समय जारी किए गए घोषणापत्र से भी उस बात की पूर्ति होती हैं. इस घोषणापत्र में कहा गया था कि “भारत के हिंदुओं और मुसलमानों उठो भाइयों! उठो परमात्मा के सभी वरदानओं में स्वराजय ही उसका दिया हुआ सर्वोत्तम वरदान है. जिस शैतान ने उसे हमसे छल से लूट लिया देखें वह कब तक उसे संभाल सकता है”.
मुगल सम्राट बहादुर शाह जफ़र का राजाओ के नाम पत्र
मुगल सम्राट बहादुरशाह ने 1857 ईस्वी की क्रांति में शामिल होने के लिए भारतीय नरेशों को एक पत्र भेजा था. जिसमें कहा गया था कि मेरी यह दिल ख्वाहिश है. कि जिस जरिए से भी और जिस कीमत पर भी हो सके फिरंगीओ को हिंदुस्तान से बाहर निकाल दिया जाए. मेरी यह जबरदस्त ख्वाहिश है, कि तमाम हिंदुस्तान आजाद हो जाए. अंग्रेजों को निकाल दिया जाए जाने के बाद अपने निजी लाभ के लिए हिंदुस्तान पर हुकूमत करने कि मुझ में जरा भी ख्वाहिश नहीं है.
अगर आप सब देसी नरेश दुश्मन को निकालने की गरज से अपनी अपनी तलवार खींचने के लिए तैयार हो. तो मैं इस बात के लिए राजी हूं कि अपने तमाम सारी अखियां रात और हुकुम देसी नरेश हो के किसी ऐसे गिरोह के हाथों में सौंप दूं. जिसे उस काम के लिए चुन लिया जाए. बहादुर शाह ने के संदेश का जनता पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा.
भारत के प्रमुख युद्ध
इसके अतिरिक्त उसने एक अन्य संदेश जारी करते हुए कहा था. कि कुछ हिंदू और मुसलमान सरदारों ने जिन्होंने अपने धर्म की रक्षा के लिए अपने घरों को अलविदा कह दिया है. और जो भारत से अंग्रेजों को उखाड़ फेंकने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. मां बदौलत के समक्ष उपस्थित हुए और उन्होंने वर्तमान मुक्ति युद्ध में भाग लिया. इस बात की प्रबल संभावना है कि निकट भविष्य में मां बदौलत को पश्चिम की ओर से फौजी कुमुक मिलेगी. इसलिए सर्वसाधारण के लिए यह इतिहास जारी किया जाता है. कि हर व्यक्ति का सर्वप्रथम कर्तव्य है, कि वह इस इस्तिहार का पूरी तरह ध्यान रखें. और हमेशा इसमें कही गई बातों पर अमल करें. जीविका से वंचित व्यक्तियों को इस संयुक्त संघर्ष में सम्मिलित होना चाहिए. मां बदौलत की ओर से गुजारा मिलेगा बहादुर शाह जनता का पूरा ध्यान रखता था. उसकी अपील का जनता पर बहुत प्रभाव पड़ा.
मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर ने अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति का दमन कैसे किया?
बहादुर शाह जफ़र के ऐलान से प्रभावित होकर जनता स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ी. यह क्रांति शीघ्र ही देश के अन्य भागों में फैल गई. क्रांतिकारियों ने उत्तर भारत के अनेक राज्यों पर अधिकार कर लिया. इसी समय लॉर्ड कैनिंग ने फूट डालो और राज करो की नीति पर चलते हुए हिंदुओं और मुसलमानों में फूट डालने का प्रयास किया. अतः उसने मुसलमानों से यह कहा कि नाना साहब तथा लक्ष्मीबाई अंग्रेजों को भारत से इसलिए बाहर निकालना चाहते हैं. ताकि वह हिंदू राज्य स्थापित कर सके. इसलिए मुसलमानों को चाहिए कि वह इस संग्राम में हिंदुओं का साथ न दे. परंतु बहादुर शाह जफ़र ने इस बारे में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि. हिंदुस्तान में हम पैदा हुए हैं, हिंदुस्तान हमारा वतन है हम हिंदुस्तान की आजादी के लिए नाना साहब का साथ अवश्य देंगे.
भले ही हिंदुस्तान में हिंदुओं का राज स्थापित हो. पर मुझे यकीन है हिंदुओं का वह राज्य फिरंगीयों के राज्य से बहुत अच्छा होगा. अंग्रेजों ने इसी प्रकार हिंदुओं को भड़काया की बहादुर शाह मुगल शासक की जड़ें मजबूत करना चाहता है. दूसरी ओर सरकार ने क्रांति को कुचलने के लिए पटियाला, नाभा, जिंद, नेपाल, हैदराबाद और ग्वालियर के शासकों से सहायता प्राप्त की. सीखो और गोरखा ने इस क्रांति को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार को पूरी पूरी सहायता दी. सीखो तथा गौर को की सहायता से जनरल विल्सन ने मई 1857 में दिल्ली को घेर लिया. दिल्ली में सप्लाई की कमी थी और बहादुर साहब बूढ़े होने के कारण दिल्ली को अच्छी तरह संगठित नहीं कर सका. इतना होते हुए भी दिल्ली की सेनाओं ने जवान देश भक्तों को नेतृत्व में अंग्रेजों का डटकर मुकाबला किया.
भारत के राज्य और उनका इतिहास और पर्यटन स्थल
स्वरूप विल्सन को दिल्ली पर अधिकार करने में सफलता नहीं मिली. बाद में जनरल विल्सन को कश्मीर तथा पंजाब के सिखों से बहुत अधिक सहायता प्राप्त हुई. अंग्रेजों ने भारतीयों की फूट का भी पूरा पूरा लाभ उठाया. और उन्होंने सम्राट बहादुरशाह जफ़र के समधी मिर्जा इलाही बख्श को भारत का सम्राट बनाने का लालच देकर अपनी ओर मिला लिया. फलस्वरूप 24 सितंबर 1857 को ब्रिटिश सेना का दिल्ली पर अधिकार हो गया. इलाही बख्श की सहायता से बहादुर शाह के दो पुत्रों को नंगा करके मौत के घाट उतार दिया. और उनके सिर काटकर सम्राट के पास भेंट के रूप में भेज दिए गए. बहादुर शाह जफ़र की बेगमओ के साथ दुर्व्यवहार किया गया उनको भी बहुत सताया गया.
बहादुर शाह ज़फ़र को कैद और उनका अंतिम समय
अंतिम मुग़ल सम्राट बहादुर शाह ज़फ़र को गिरफ्तार करने के बाद अंग्रेज सेना ने लगभग सप्ताह तक दिल्ली में लूटमार, बलात्कार, कत्लेआम किया. उत्तर भारत के अनेक गांवों को मशीन गन से भून दिया गया. बहादुर साहब पर मुकदमा चलाया गया. और उसे आजीवन कार्यों कारावास की सजा देकर रंगून भेज दिया गया. वहां उन्हें भूखा पैसा रखा गया, और अंग्रेजों द्वारा उन पर बहुत अत्याचार किए गए. सम्राट बहादुर शाह ने एक राजनीतिक बंदी की भाती 5 वर्ष तक जीवन व्यतीत किया. एक इतिहास का ने लिखा है कि वृद्ध बहादुर शाह को अंग्रेज छोटी-सी कोठरी में अकेले रखते थे. उसे निम्न कोटि का खाना दिया जाता था. पानी पीने के लिए उसके पास गिलास नहीं होता था.
उसके किसी कुटुंबी या रिश्तेदार को उससे मिलने नहीं दिया जाता था. उसे बाहर की खुली हवा में भी आने नहीं दिया जाता था. दिन रात वह अपनी कोठरी में पड़ा रहता था. तथा अपने भाग्य पर आंसू बहाया करता था. अंत में 7 नवंबर 1862 ईस्वी को आजादी का यह दीवाना इस संसार से विदा हो गया. उसकी कब्र रंगून में बनी हुई, उसकी कब्र पर आज वहां कोई दीपक नहीं जलाता हो परंतु भारत में आज भी उसका नाम बड़े आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है. आज भी स्वतंत्रता का इतिहास लिखने वाले इतिहासकार उसके नाम का उल्लेख बड़े गर्व के साथ करते हैं.
बहादुर शाह ज़फ़र को किस बात का मलाल मरते समय तक रहा?
दोस्तों मरते समय भी बहादुर शाह ज़फ़र (Biography of Bahadur Shah Zafar) ने कहा कि मुझे मरने का गम नहीं. गम सिर्फ इस बात का है कि मुझे अपने मुल्क में 2 गज जमीन भी नहीं मिल सकी. वह अपने जीवन के अंतिम समय तक स्वाधीनता के लिए संघर्ष करते रहे. उनका यह वाक्य आज भी हमारे कानों में गूंजता है, आजादी हमारी सबसे बड़ी बरकत है. इसकी हिफाजत करना हमारा फर्ज है. मुगल वंश में कई शासक हुए थे.परंतु बहादुर शाह ही एकमात्र ऐसा पहला मुगल शासक था. जिसके होठों पर यह शब्द आए थे, हिंदुस्तान मेरा वतन है मैं यहीं पैदा हुआ हूं मेरी एक ही कामना है. मरो तो हिंदुस्तान की मिट्टी की सेज पर ही मरूं.
1857 ईस्वी की क्रांति के महान वीरों की रोचक और अद्भुत जानकारी
भारत के महान साधु संतों और महान लोगो की जीवनी
FAQs
Ans- अंतिम मुग़ल सम्राट बहादुर शाह ज़फ़र था, जिनकी मृत्यु काला पानी की सजा के दौरान 7 नवंबर 1862 ईस्वी को रंगून में हुई थी.