दोस्तों हम यहाँ शेयर करने जा रहे है, अट्ठारह सौ सत्तावन ईसवी की क्रांति में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की भांति राजस्थान की जिस महिला ने वैसा ही शौर्य और पराक्रम दिखाया था. जिसका नाम था लाडनू नागौर की सूजा कंवर राजपुरोहित की जीवनी (Biography of Suja Kanwar Rajpurohit) और उनके 1857 की क्रांति में योगदान. जिनको राजस्थान की झांसी की रानी के नाम से जाना जाता है. उसने पुरुष वेश में स्थानीय लोगों का नेतृत्व किया और युद्ध में मर्दों की तरह स्वतंत्रता प्रेमी सेना का नेतृत्व करते हुए. अंग्रेज सेना को पराजित करके भागने के लिए विवश किया. झांसी की रानी की भांति ही वीरांगना सूजा कंवर ने राजस्थान में अंग्रेजी सेना को मुंहतोड़ जवाब दिया. और उन पर विजय प्राप्त की इसलिए और सूजा कंवर राजपुरोहित को राजस्थान की लक्ष्मीबाई भी कहा जाता है.
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सूजा कँवर राजपुरोहित कौन थी?
सूजा कंवर का जन्म 1835 ईस्वी के लगभग मारवाड़ राज्य के लाडनू नागौर ठिकाने में हुआ था. उनका परिवार उच्च आदर्शों से परिपूर्ण था. उनके पिता का नाम हनवंत सिंह राजपुरोहित था. जिनके तत्कालीन ठिकानों के ठाकुर बहादुर सिंह जी से अत्यंत घनी संबंध थे. जो कि सूजा कंवर ठाकुर परिवार से थी, उसने बचपन में ही घुड़सवारी, तथा तलवार, तीर तथा बंदूक चलाना सीख लिया था. सुजा कँवर आत्मसम्मान वाली महिला थी. 1854 में उनका विवाह किशनगढ़ रियासत के अधीन बिल्ली गांव के बैजनाथ सिंह राजपुरोहित के साथ हुआ.
Summary
नाम | सूजा कंवर राजपुरोहित |
उपनाम | वीर सुजान सिंह राजपुरोहित, राजस्थान की लक्ष्मी बाई, |
जन्म स्थान | लाडनू, नागौर |
जन्म तारीख | 1835 ईस्वी |
वंश | राजपुरोहित |
माता का नाम | — |
पिता का नाम | हनवंत सिंह राजपुरोहित |
पति का नाम | बैजनाथ सिंह राजपुरोहित |
भाई/बहन | — |
प्रसिद्धि | लाडनूं की लड़ाई में अंग्रेजों को हराया |
रचना | — |
पेशा | स्वतंत्रता सेनानी |
पुत्र और पुत्री का नाम | — |
गुरु/शिक्षक | पिता हनवंत सिंह राजपुरोहित |
देश | भारत |
राज्य क्षेत्र | राजस्थान, नागौर |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | हिंदी, राजस्थानी |
मृत्यु | 1902 ईस्वी |
जीवन काल | 67 वर्ष |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Suja Kanwar Rajpurohit (सुजा कंवर राजपुरोहित की जीवनी) |
वीरांगना सूजा कंवर ने अपने पति को क्यों छोड़ा था?
दोस्तों विवाह के पश्चात जब सूजा कंवर अपने पति के साथ ससुराल जा रही थी तो रास्ते में डाकुओ ने उन्हें घेर लिया था. इस समय उसके पति ने कहा कि आभूषण लुटेरे को दे दो. लेकिन सुसूजा कंवर ने अपने पति की तलवार से डाकू के मुखिया को मार दिया. और अन्य को भागने के लिए मजबूर कर दिया. मगर इसके साथ ही उन्होंने अपने कायर पति के साथ जाने से इंकार कर दिया और जीवन भर मर्दाना वेश में जन सेवा करने का निश्चय किया.
1857 की क्रांति में सूजा कँवर क्यों कूदी
अट्ठारह सौ सत्तावन ईसवी में एक अंग्रेजी सैनिक टुकड़ी ने लाडनूं क्षेत्र में अचानक आक्रमण कर दिया और मारकाट प्रारंभ कर दिया. जब इस बात की जानकारी लाडनूं ठिकाने के ठाकुर बहादुर सिंह को मिली तो वह आश्चर्यचकित रह गए. उनके पास विरोध का सामर्थ्य सेना नहीं थी. ठाकुर बहादुर सिंह अपने विश्व सैनिकों से इस बारे में चर्चा कर रहे थे. कि अचानक पुरुष वेश में घोड़े पर सवार वीरांगना सूजा कंवर राजपुरोहित उनके सामने उपस्थित हो गई. सूजा कंवर के एक हाथ में लमछड़ बंदूक थी. जिसे लहराते हुए सिंह जैसी गर्जना करते हुए उसने कहा कि. ठाकुर साहब! आप हिम्मत रखो जब तक आपकी यह बेटी राजपूत जिंदा है. तब तक अंग्रेज सेना तो क्या उसकी परछाई भी इस ठिकाने को छू नहीं सकती.
सूजा कंवर राजपुरोहित की 1857 क्रांति में अंग्रेजो पर विजय
लाडनू नागौर के ठाकुर ने शीघ्र ही वीरांगना सूजा कंवर राजपुरोहित के नेतृत्व में अंग्रेजों का सामना करने के लिए एक सेना गठित की गई. राहु दरवाजे को मुख्य मोर्चा बनाया गया. अंग्रेजी सेना के लाडनूं पर आक्रमण करने से पूर्व ही वीरांगना सुजा कँवर रणचंडी का रूप धारण करके दुश्मन पर टूट पड़ी. अंग्रेजों को स्वपन में भी ख्याल नहीं था की यहां कोई हमारा सामना कर सकता है. सूजा कंवर और उनके सैनिकों की वीरता को देखकर अंग्रेज आश्चर्यचकित हुए. और अपने प्राण बचाकर भागने के लिए विवश हो गए. इस लड़ाई में लाडनू के कई सैनिक लड़ते हुए शहीद हो गए वीरांगना सुजा राजपुरोहित भी घायल हो गई थी.
अंग्रेजो को हराने के बाद सूजा कंवर राजपुरोहित को क्या सम्मान मिला?
20 वर्षीय वीरांगना सूजा कंवर राजपुरोहित जब अंग्रेजों के विरुद्ध अपने शौर्य का परचम लहरा कर अपने सैनिकों के साथ जयघोष करते हुए युद्ध में विजय प्राप्त कर लौटी. तो लाडनू के ठाकुर ने उन्हें राजस्थानी पगड़ी पहनाकर और तलवार भेंट कर सम्मानित किया. और उन्हें सुजा के स्थान पर वीर सुजान सिंह राजपुरोहित का नया नाम दिया. ठाकुर ने वीरांगना के सम्मान में वृद्धि करने हेतु कई घोषणाएं भी की.
जो इस प्रकार थी, सूजा कंवर हमेशा मर्दों के वेश में अपनी तलवार बांदे रहेगी. जब भी सुजा कँवर आएगी, तब राजपरिवार और आम नागरिक खड़े होकर उनका सम्मान करेंगे. आपसी झगड़ों विशेष रूप से महिलाओं के झगड़ों का निपटारा सूजा कंवर करेगी और इस क्षेत्र में उनका फैसला मान्य होगा. लाडनूं नागौर क्षेत्र में जितने भी आयोजन होंगे उनमें सुजा को विशेष रूप से आमंत्रित किया जाना आवश्यक होगा. दोस्तों 1902 ईस्वी के आस पास इस महान वीरांगना ने इस संसार विदाई ली, हम ऐसी महान वीरांगना को नमन करते है.
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FAQs
Ans- सूजा कँवर की शादी किशनगढ़ नागौर रियासत के बिली गांव के बैजनाथ सिंह राजपुरोहित के साथ हुई थी.
Ans- सूजा कंवर के पिता जी का नाम हनवंत सिंह राजपुरोहित था, जो लाड़नू ठिकाने के ठाकुर के पके दोस्त थे.