क्रांति दूत अजीमुल्ला खान प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के आधार स्तंभों में से एक थे. उन्होंने नाना साहब, अजीजन बाई (बेगम)के साथ मिलकर क्रांति की योजना तैयार की थी. नाना साहब ने अजीमुल्ला खां के साथ भारत के प्रमुख तीर्थ स्थलों का भ्रमण किया इस दौरान उन्होंने गुप्त रूप से क्रांति के संदेश का प्रचार किया था. अपनी बुद्धि चातुर्य एवं संगठन शक्ति के कारण वे इतिहास में अपना नाम अमर कर गए जब-जब भी प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की चर्चा की जाएगी. उनका नाम हमेशा बड़े आदर और गौरव के साथ लिया जाएगा. हम यहाँ Biography Of Azimullah Khan (अज़ीमुल्लाह खान की जीवनी) और उनके संघर्ष और देश के पर किये बलिदान के लिए बहुत ही संछेप में वर्णन कर रहे है. इस लिए इस पेज को अंत तक पढ़े.
1857 की सैनिक क्रांति की संग्राम में अजीमुल्ला खां का ही प्रमुख हाथ था. उन दिनों रूस व इंग्लैण्ड में युद्ध जारी था. यह भी कहा जाता है कि अज़ीमुल्लाह ख़ाँ ने अंग्रेज़ों के विरुद्ध रूसियों से मदद लेने का भी प्रयास किया था. अज़ीमुल्लाह ख़ाँ के भारत लौटने के बाद ही 1857 की क्रांति की तैयारियों में तेज़ी आई. उन्होंने नाना साहब, तात्या टोपे और रानी लक्ष्मीबाई के साथ मिलकर सैन्य रणनिति बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
कहा जाता है कि कानपुर के पास अहिराना नामक स्थान पर युद्ध करते हुए शहीद हुए. एक मान्यता यह भी है कि क्रांति के असफल होने के बाद नाना साहब के साथ वह भी नेपाल चले गए थे. वहीं 1859 में 39 वर्ष की अवस्था में उनकी मृत्यु हुई. अंग्रेज़ों ने अज़ीमुल्ला ख़ाँ को 1857 की क्रांति का सबसे शातिर और क्रूर नेता कहा है. तो चलिए जानते है अज़ीमुल्ला खां की जीवनी के अनसुने किस्से.
अज़ीमुल्लाह खान कौन थे? (Biography Of Azimullah Khan)
अज़ीमुल्ला खाँ 1857 की क्रांति के प्रमुख सुतर धार थे. लाल खिलता हुआ कमल और चपाती स्लोगन इन्होने ही दिया था. जो 1857 की क्रांति का एक प्रमुख स्लोगन था. आपका का जन्म सन 1820 में कानपुर शहर से सटी अंग्रेज़ी छावनी के परेड मैदान के समीप पटकापुर में हुआ था. आपके पिता जी पैसे से मिस्त्री थे. आपके पिता जी का नाम नजीब खान और माता जी का नाम करीमन था. घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी और परिवार गरीबी का जीवन व्यतीत कर रहा था. सैन्य छावनी व परेड मैदान से एकदम नजदीक होने के कारण अज़ीमुल्लाह खाँ का परिवार अंग्रेज़ सैनिकों द्वारा हिन्दुस्तानियों के प्रति किए जाने वाले दुर्व्यवहारों का चश्मदीद गवाह और भुक्त भोगी भी था.
Summary
नाम | अज़ीमुल्ला खाँ |
उपनाम | — |
जन्म स्थान | पटकापुर, कानपुर |
जन्म तारीख | सन 1820 |
वंश | — |
माता का नाम | करीमन |
पिता का नाम | नजीब खान |
पत्नी का नाम | अविवाहित |
प्रसिद्धि | 1857 की क्रांति में सैन्य रणनिति बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई |
रचना | — |
पेशा | क्रांतिकारी |
बेटा और बेटी का नाम | — |
गुरु/शिक्षक | नाना साहब |
देश | भारत |
राज्य छेत्र | उत्तर प्रदेश |
जिला | कानपुर |
धर्म | इस्लाम |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
मृत्यु | 1858 |
पोस्ट श्रेणी | Biography Of Azimullah Khan (अज़ीमुल्लाह खान की जीवनी) |
Azimullah Khan क्रांतिकारी कैसे बने?
एक बार एक अंग्रेज़ अधिकारी ने अज़ीमुल्लाह के पिता जी जो नजीब खान मिस्त्री को घोड़ों का अस्तबल साफ़ करने को कहा. उनके इंकार करने पर उसने नजीब को छत से नीचे गिरा दिया और फिर ऊपर से ईंट फेंककर मारी. इसके परिणाम स्वरूप नजीब खान छह महीने तक बिस्तर पर पड़े रहे, फिर उनका निधन हो गया. माँ-बेटे पर भीषण विपदा आन पड़ी और आठ साल के अज़ीमुल्ला को दूसरों के घर काम करने के लिए मजबूर होना पड़ा. और यही कारण था की आगे जाकर अज़ीमुल्लाह खान अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ खड़े हुए.
उनके एक पड़ोसी मानिक चंद ने बालक अज़ीमुल्लाह को एक अंग्रेज़ अधिकारी हीलर्सडन के घर की सफाई का काम दिलवा दिया. दो वर्ष बाद ही उनकी माँ का भी इन्तकाल हो गया. अब अज़ीमुल्लाह ख़ाँ अंग्रेज़ अधिकारी हीलर्सडन के यहाँ रहने लगे. अजीमुल्ला खान न केवल अंग्रेजी, अपितु फ्रेंच भी सीख ली वह पढ़ने लिखने के बहुत शौकीन थे. अतः काम करते हुए पुस्तक और अखबार भी बराबर पढ़ते रहते थे. नौकरी से प्रथक होने पर अजीमुल्ला खान अध्ययन करने हेतु कानपुर के पैटर्न स्कूल में प्रवेश ले लिया. शिक्षा प्राप्ति के पश्चात वे इसी स्कूल में शिक्षक नियुक्त हो गए. और ईमानदारी तथा निष्ठा से विद्यार्थियों को पढ़ाने लगे कानपुर में ही रहकर वे अपना जीवन व्यतीत करने लगे.
नाना साहब और अजीमुल्ला खां की नजदीकियां
अजीमुल्ला खां का व्यक्तित्व बहुत आकर्षक एवं वाणी प्रभावशाली थी. वे ठाट बाट से रहते थे. धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलते थे. बड़े बड़े अंग्रेज उनसे परिचित थे. एक बार जो व्यक्ति उनके संपर्क में आता था. उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहता था. उन दिनों पेशवा बाजीराव स्वर्ग सिधार चुके थे. उनके स्थान पर पेशवा के सिंहासन पर नाना साहब सुशोभित थे. उनके कानों में अजीमुल्ला खां की योग्यताएं इमानदारी की खबर पहुंची तो नाना का मन उनसे मिलने के लिए बेचैन हो उठा. और एक दिन उन्होंने अपना एक विशेष दूत अपने छोटे से पत्र के साथ अजीमुल्ला खां के पास कानपुर बिठूर से कानपुर की दूरी 13 मिल ही भेजा. नाना साहब ने दूत को उसी दिन अपने साथ ही अजीमुल्ला खां को लाने का आदेश दिया था. परंतु यह संभव नहीं हो सका.
नाना साहब का दूत अपने एक विश्वस्त व्यक्ति के साथ अजीमुल्ला खा के घर पहुंचा. तो पड़ोसियों ने उसे बताया कि अजीमुल्ला खां का शहर मजिस्ट्रेट के घर शनिवार के रात्रि भोज में सम्मिलित होने गए हैं. अतः दूत को विवश होकर वहीं पर रुकना पड़ा रात को काफी देर से अजीमुल्ला खां वापस घर लौट कर आए. उन्होंने जब अपने घर के बाहर बग्गी एवं दो व्यक्तियों को बातें करते हुए देखा. तो उन्होंने पूछा यहां आप किस के इंतजार में बैठे हैं. हुजूर हम अध्यापक अजीमुल्ला खां से मिलना चाहते हैं. उनमें से एक ने जवाब दिया, फरमाइए मैं ही अजीमुल्ला खां हूं.
Biography Of Azimullah Khan
हुजूर आप कुछ घाट महेश्वर में नाना साहब का दूत अजीम के बिल्कुल निकट आकर फुसफुस आहत के स्वर में बोला हुजूर हम भी दूर से आ रहे हैं. नाना सर ने आपके नाम खत भेजा है. और सन्देश वाहक थैले में से लेटर निकालने लगा लेकिन अजीमुल्ला खान ने उसे मना करते हुए कहा अभी रुक जाओ घर के अंदर चल कर रोशनी में देखेंगे. ताला खोलकर अजीमुल्ला खान दोनों को घर के अंदर ले गए फिर चिराग की रोशनी में उन्होंने नाना साहब का संक्षिप्त पत्र पढ़ा.
जिसमें केवल इतना ही लिखा था मैंने आपकी तारीफ सुनी है. मन आपसे मिलने को बेचैन है बग्गी में दूत को भेज रहा हूं कृपा कर दूतो के साथ आ जाए मिलकर अच्छा लगेगा. अजीमुल्ला खां का मन प्रसन्न हो उठा क्योंकि बिठूर के शासक ने उन्हें याद किया था. कुछ देर तक सोचने के बाद उन्होंने कहा आप लोग यहां आराम फरमाएं सुबह चलेंगे.
अजीमुल्ला खां का नाना साहब के लिए नौकरी छोड़ना
नाना साहब के साथ एक मुलाकात के बाद ही अजीमुल्ला खां ने नौकरी छोड़ दी थी. अजीमुल्ला खाने फ्री स्कूल के अध्यापक पद से त्यागपत्र दे दिया. उन्होंने हिलर्सडेन को यह बताया कि मैं नाना साहब के सलाहकार बनकर बिठूर जा रहे हैं. तब हीलर्सडेने प्रसन्न होते हुए कहा. नाना साहब बहुत अच्छा आदमी है. एक इंसान बेचारा नाना कंपनी ने उसकी पेंशन बंद कर दी लेकिन कोई क्या कर सकता है. अजीम में नाना की मदद करना चाहता हूं. लेकिन नहीं कर सकता यह तो गवर्नर जनरल का आदेश है. किंतु तुमने ठीक किया नाना एक भला आदमी है. तुम उस के दरबार में सुखी रहोगे नाना मेरा दोस्त है. मैं तो आता ही रहूंगा बिठूर हम वहां मिलेंगे.
जब अजीमुल्ला खां बिठूर पहुंचे तो नाना साहब सामने उन्हें अपने दरबार में मंत्री के पद पर नियुक्त कर दिया। अजीमुल्ला खान नाना साहब के विश्वस्त व्यक्ति थे अतः नाना साबुन के परामर्श से ही भावी योजना तैयार करते थे.
भारत के राज्य और उनका इतिहास और पर्यटन स्थल
नाना साहब की जीवन कथा में लिखा जा चुका है. कि पेशवा बाजीराव द्वितीय की मृत्यु के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी की सरकार ने उन्हें बाजीराव का दत्तक पुत्र मानने से इंकार कर दिया. और आठ लाख वार्षिक पेंशन बंद कर दी नाना साहब अंग्रेजो को कई पत्र लिखे परंतु उत्तर नहीं मिलने पर उन्होंने अजीमुल्ला खां को इंग्लैंड जाकर ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों से बात करने की सलाह दी. और उनसे कहा कि आप से ज्यादा योग्य कौन हो सकता है. खान साहब आप ही खर्च का मसौदा तैयार कर लीजिए और मुझसे हस्ताक्षर करवाकर मोहर लगवा दीजिए और एक दिन चले जाये विलायत.
अजीम मैं वहां कहां जाऊंगा तुम ही चले जाओ क्योंकि हो बातचीत करना जानते हो अंग्रेजी भाषा जानते हो. उनके बीच उठने बैठने का तौर तरीका जानते हैं. और एक बात यह भी कि अविवाहित हो फिर कुछ रुक कर बड़े शांत स्वर में नाना साहब ने कहा शादी क्यों नहीं कर लेते खान.
अजीमुल्ला खान ने शादी क्यों नहीं की?
एक नाना साहब ने अजीमुल्ला खान से कहाँ तुम शादी क्यों नहीं कर लेते हो खान, अजीमुल्ला खान ने हंसते हुए कहा हुजूर शादी बिना बहुत दुखी हूं. शादी कर के बंधन में नहीं फंसना चाहता. तब भारत मां की और आपकी इतनी सेवा न कर सकुंगा. अजीमुल्ला खां अंग्रेजी के ज्ञाता थे. उनका व्यक्तित्व भी अत्यंत आकर्षक था. बातचीत करने की कला में वे बड़े दक्ष थे. नाना साहब अपनी पेंशन प्राप्त करना चाहते थे. अतः उन्होंने अपनी अपील की पैरवी करने हेतु 1857 ईस्वी में अजीमुल्ला खां को अपना राजदूत बनाकर इंग्लैंड भेजा.
अजीमुल्ला खान नाना साहब की पेंशन के लिए इंग्लैंड गए
अजीमुल्ला खां ने इंग्लैंड जाकर ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों से मिलकर बड़ी बुद्धिमता के साथ नाना साहब की अपील की पैरवी की. कंपनी के अधिकारी बहुत दिनों तक दौडाते रहे परंतु उन्हें सफलता प्राप्त नहीं हुई. कंपनी के निदेशक ने उन्हें कहा कि हम गवर्नर जनरल के निर्णय से पूर्णतया सहमत हैं. कि बाजीराव के दत्तक पुत्र को अपने पिता की पेंशन नहीं दी जा सकती. अजीमुल्ला खां का हृदय निराशा की पीड़ा से भरा उठा. उन्होंने अनुभव किया कि अंग्रेजों के रहते हुए भारतीयों को न्याय प्राप्त नहीं हो सकेगा. यदि भारतीयों को न्याय चाहिए तो उसके लिए अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालना होगा. भारत में उनके शासन को समाप्त करना होगा.
निराश होने पर भी अजीमुल्ला खान ने कुछ समय लंदन में ही रहना उचित समझा. वहां उन्होंने बड़े-बड़े अंग्रेजों से संपर्क किए अंग्रेजों के परिवारों में भी उनका आना-जाना था. उनके रंग रूप एवं वाणी से प्रभावित होकर कई अंग्रेज स्त्रियां उनसे प्रेम करने लगी. उनको प्रेम भरे पत्र भी लिखने लगी अब वे इंग्लैंड से भारत आ गए उस समय भी उनके इंग्लैंड से प्रेम पत्र आते रहते थे. उनके प्रेम पत्रों पर एक पुस्तक भी प्रकाशित हुई थी इसका बहुत प्रचार हुआ था.
इंग्लैंड में अजीमुल्ला खान की सतारा रंगो जी बापूजी से भेंट
ईस्ट इंडिया कंपनी ने सतारा के उत्तर अधिकारियों को भी अधिकारों से वंचित कर दिया था. अतः रंगोजी बापू भी अजीमुल्ला खान की भांति सतारा की पैरवी करने लंदन आए हुए थे. परंतु उन्हें भी ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यवहार से बहुत निराशा हुई थी. उनका हृदय प्रतिशोध लेने के लिए तड़प रहा था. वह भी मन ही मन उसी बात को सोच रहे थे जो अजीमुल्ला का सोच रहे थे. दोनों ने मिलकर इंग्लैंड में ही अंग्रेजों के विरुद्ध भारत में विप्लव की योजना बनाई थी.
अजीमुल्ला खान ने रंगों जी बापू से कहा कि इसके लिए सशस्त्र क्रांति की जरूरत है. और क्रांति मात्र राजा महाराजाओं और उनकी सेनाओं द्वारा ही अंग्रेजों के विरुद्ध नहीं लड़ी जानी होगी. बल्कि जन जन तक को उस व्यक्ति आग में जलने के लिए तैयार रहना होगा. मेरे कहने का तात्पर्य यह है रंगों जी की आज जरूरत है हिंदुस्तान में जनक्रांति की तभी यह अंग्रेज भाग सकेंगे. लेकिन सोच ना जितना आसान है करना उतना ही कठिन.
अजीमुल्ला खान का रूस और यूरोप दौरा
Azimullah khan (Biography Of Azimullah Khan) और रंगों जी बापू इंग्लैंड में निराश होते और आपस में निर्धारित करते है. की जन -जन को अंग्रेजों के विरुद्ध तैयार करने की जरूरत है. यह इसलिए भी कठिन है क्योंकि भारतीय जन समूह में अशिक्षित हैं. लेकिन इसलिए सरल भी है क्योंकि वह जनसमूह ने राजाओं पर आज भी भरोसा करता है. जैसा उनका राजा कहेगा वह वैसा ही करने को तैयार हो जाएंगे. इसलिए जरूरत है कि पहले ऐसे राजे महाराजे को और जागीरदारों से बात की जाए जो अंग्रेजों के विरुद्ध हो. और उन्हीं को उनकी जनता को तैयार करने का कार्य सौंप दिया जाए.
आप ठीक कह रहे हैं मेरा विश्वास है कि तब क्रांति और सफल होगी रंगों जी बापू ने कहा इसे हम वक्त पर छोड़ देते हैं. वक्त बड़ा गुरु होता है. लेकिन मैं यह जरूर कहना चाहता हूं कि दक्षिण को आप संभालिए और उत्तर भारतीयों में देख लूंगा. आप तो एक-दो दिन में ही भारत के लिए प्रस्थान करेंगे. लेकिन मैं अभी यूरोप के एक दो देशों में घूमते घूमते हुए वापस लौटना चाहता हूं. चाहता हूं रूस तक पहुंच आऊं और सुना है वह अंग्रेजों के खिलाफ है. शायद कुछ मदद ही कर दे क्रांति के दौरान यदि उत्तर पश्चिम से उसकी सेनाएं हमला कर दें और अंदर से हम लोग तो अंग्रेजों का रोकना कठिन हो जाएगा.
ईश्वर आपकी मदद करें मैं आपके सलाह के मुताबिक दक्षिण में अलख जगाने की कोशिश करूंगा. पंडित सुंदरलाल के अनुसार इसमें कोई संदेह नहीं कि रंगो जी बापू जी और अजीमुल्ला खां ने लंदन के कमरों में बैठकर बहुत चिंतन के बाद भावी क्रांति की योजना बनाई थी.
अजीमुल्ला खान की प्रेमिका रोजी और देश प्रेम
जब अजीमुल्ला खान ने इंग्लैंड छोड़ने का मानस बना लिया. तो उनकी प्रेमिका को इससे बड़ी निराशा हुई उनमें से एक ने जिसका नाम रोजी था. उन्हें रात्रि भोज के लिए घर पर आमंत्रित किया बातचीत का सिलसिला चल पड़ा. मैंने सुना है कि तुमने अपने देश लौट जाने का फैसला कर लिया है तुमने ठीक ही सुना है अजीमुल्ला ने कहाँ.
रोजी- क्या मैं यह जान सकती हूं कि तुम ने यह फैसला क्यों लिया है. सुनो रोजी मैं यहां जिंदगी भर रहने के इरादे से तो नहीं आया था. मैं जिस काम के लिए आया था वह पूरा नहीं हो रहा है. इसलिए वापस जा रहा हूं. नहीं अजीम अब मैं तुम्हें नहीं जाने दूंगी तुम्हारे जाने से मेरा दिल टूट जाएगा. और यहां आकर मेरा दिल जो टूट गया है तुम्हारे दिल का इलाज मेरे पास है. मैं तुमसे शादी करूंगी मेरे पास धन दौलत ऐश्वर्या की क्या कमी है. मेरी पहुंच राजघराने तक है मैं तुम्हें बहुत अच्छी नौकरी दिला दूंगी हम लोगों का जीवन बड़े सुख से व्यतीत होगा.
अब मैं अपने और अपने मालिक नाना साहब पेशवा की सुख की बात नहीं सोचता. रोजी मैं तो अपने संपूर्ण देश और देशवासियों की सुख की बात सोचता हूं. मेरा देश परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़ा रहे और मैं यहां आजाद रहकर रंगरेलियां मनावउ. में मेरे देशवासी एक-एक दाने को मोहताज रहे और मैं यहां ऐश्वर्य का जीवन व्यतीत करो यह सब मुझसे कैसे होगा. यह तो बहुत बड़े-बड़े मसले हैं अजीम जो धीरे-धीरे हल होंगे तुम तो यह बताओ कि इस समय मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकती हूं.
भारत की प्रमुख लड़ाईया
रोजी तुमने अभी बताया कि तुम्हारी पहुंच राजघराने तक है. तुम अपने पहुंच और प्रभाव का इस्तेमाल करके भेजा रे नाना साहब को उनके छीने हो गए अधिकार क्यों नहीं वापस दिला देती हो. देखो अजीम यह राष्ट्रीय नीति का मामला है मैं व्यक्तिगत संबंधों से राष्ट्रीय नीति को प्रभावित क्यों करू. जिस तरह से तुम व्यक्तिगत संबंधों को से राष्ट्रीय नीति को प्रभावित नहीं करना चाहती. उसी प्रकार में भी राष्ट्रीय सम्मान पर बात करके व्यक्तिगत संबंध कायम करना नहीं चाहता. तुम प्रेम का दम भर्ती थी. उसकी गहराई भी मैंने देख ली मैं जा रहा हूं. और अजीमुल्ला खां बिना भोजन किए रोजी जी का घर छोड़ कर चल दिया.
भारत के महान साधु संतों की जीवनी और रोचक जानकारी
1857 ईस्वी की क्रांति के महान वीरों की जीवनी और रोचक जानकारी
FAQs
Ans-नाना साहब से मिलने से पहले अजीमुल्ला खान मास्टर थे.
Ans- अजीमुल्ला खान की माता का नाम करीमन था.