दोस्तों हम यहाँ शेयर करने जा रहे है महारानी जिंदा की जीवनी (Biography of Maharani Zinda) और उनके रोचक तथ्य। तो दोस्तों बने रहे हमारे साथ अंत तक महारानी जिंदा की अद्भुत जानकारी के लिए. मित्रो महारानी जिंदा महाराजा राजा रंजीत सिंह की सबसे छोटी रानी थी. जिसे शेरे-ए- पंजाब के नाम से भी पुकारा जाता है. वह वीरता की मिसाल थी परंतु उनके दरबारी विश्वासघाती थे अतः उन्होंने षड्यंत्र रचे इसका परिणाम यह हुआ कि रानी और उसका नाबालिक बेटा अंग्रेजों की कूटनीति के शिकार हो गए. अंग्रेज कूटनीति के आधार पर सभी राज्यों को अपने अधीन करते जा रहे थे.
लेकिन जब तक महाराजा रणजीत सिंह जिन्दा रहे तब तक अंग्रेजों ने पंजाब पर अधिकार करने का साहस नहीं किया. राजा रणजीत सिंह की 1839 ईसवी में मृत्यु हुई. उसके बाद पंजाब में गृह युद्ध प्रारंभ हो गया था. रानी जिंदा और महाराजा रणजीत सिंह का पुत्र दिलीप सिंह अभी नाबालिग था.
महारानी जिंदा कौन थी? (Biography of Maharani Zinda)
मित्रो महारानी जिंदा महाराजा राजा रंजीत सिंह की सबसे छोटी रानी थी. जिसे शेरे-ए- पंजाब के नाम से भी पुकारा जाता है. महारानी जिन्द कौर का जन्म तत्कालीन अविभाजित भारत में पाकिस्तान के गांव चॉढ, जिला सियालकोट, तसील जफरवाल के निवासी जाट सरदार मन्ना सिंह औलख जाट की पुत्री थीं. बीबीसी के अनुसार आपके पिता जी कुत्तों के रखवाले करते थे. दोस्तों कुत्तों के रखवाले की बेटी से उत्तर भारत की सबसे शक्तिशाली महारानी बनने वाली जिन्द कौर की कहानी के किस्से भारत के हर कोने में सुनने को मिलेंगे.
आप सिख साम्राज्य के महाराजा रणजीत सिंह की पत्नी थी. महारानी जिन्द कौर को ‘विद्रोही रानी,’ ‘द मिसालिना ऑफ़ पंजाब’ और ‘द क्वीन मदर’ जैसे नामों से याद किया जाता है. साथ ही आपको रानी जिन्दां’ भी कहा जाता है. वह सिखों के शासनकाल में पंजाब के लाहौर की अंतिम रानी थीं. 1 अगस्त 1863 को महारानी जींद कौर साहिबा का निधन हो गया.
Summary
नाम | महारानी जिन्द कौर |
उपनाम | विद्रोही रानी, द मिसालिना ऑफ़ पंजाब और ‘द क्वीन मदर’, रानी जिन्दा |
जन्म स्थान | पाकिस्तान के गांव चॉढ, जिला सियालकोट, तसील जफरवाल |
जन्म तारीख | 1817 ईस्वी |
वंश | औलख, सन्धावालिया |
माता का नाम | — |
पिता का नाम | सरदार मन्ना सिंह औलख जाट |
पति का नाम | महाराजा रणजीत सिंह शेरे-ए- पंजाब |
भाई/बहन | — |
प्रसिद्धि | पंजाब लाहौर की अंतिम रानी, 1857 ईस्वी की क्रांति में अंग्रजो के खिलाफ गुप्त योजना तैयार करना |
रचना | – |
पेशा | महारानी, शासन |
पुत्र और पुत्री का नाम | दिलीपसिंह |
गुरु/शिक्षक | — |
देश | भारत |
राज्य छेत्र | पंजाब, हरयाणा, नेपाल, राजस्थान, पाकिस्तान |
धर्म | सिख |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | पंजाबी, हिंदी, अंग्रेजी |
मृत्यु | 01-अगस्त-1863 |
जीवन काल | 45 वर्ष |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Maharani Zinda |
दिलीपसिंह पंजाब के महाराजा कब बने?
पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह सन्धावालिया की मृत्यु के बाद उनकी महारानी जिंदा कौर सन्धावालिया ने अपने पुत्र दिलीपसिंह सन्धावालिया को पंजाब का महाराजा घोसित किया. उनके व्यस्क होने तक शासन की बागडोर अपने सम्भाल ली और अंग्रेजो को भारत से मार भगाने का निश्चय किया। उस समय वे इस संबंध में योजनाएं बनाएं ही रही थी. कि पंजाब पर संकट के बादल मंडराने लगे. उनके विश्वासघाती अधिकारियों ने रानी की अंग्रेज विरोधी नीति के बारे में अंग्रेजों को खबर पहुंचा दी.
उन्होंने महारानी पर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ षडयंत्र रचने का आरोप लगाया और उन्हें बंदी बना लिया. इस घटना से न केवल जनता उत्तेजित हो गई अपितु उनका वफादार सेनापति शेर सिंह भी बहुत क्रोधित हुआ. परंतु रानी का प्रधानमंत्री भी विश्वासघाती निकला उसने समय पर धोखा दे दिया. इसलिए जनता जन आंदोलन न कर सकी. शेर सिंह अकेला पड़ जाने से उसे अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा.
महारानी जिंदा कौर पंजाब की महारानी कब बनी?
पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह सन्धावालिया की मृत्यु के बाद उनकी महारानी जिंदा ने अपने पुत्र दिलीपसिंह को पंजाब का महाराजा घोसित किया. उनके व्यस्क होने तक शासन की बागडोर आपने सम्भाल ली. और अंग्रेजो को भारत से मार भगाने का निश्चय किया. अतः महारानी जिंदा ने शासन सूत्र अपने हाथ में लेने का निश्चय किया. रानी शासन प्रबंधन को सम्भालने के लिए पूर्ण रूप से योग्य थी.
परंतु उनके कुछ अधिकारी एवं मंत्री उनके साथ विश्वासघात करते रहे. वे लालची बनकर भ्रष्टाचार में गए और षड्यंत्र रचते राजकोष को खाली करते जा रहे थे. इस तरह प्रत्येक रूप से वे अंग्रेजों की सहायता कर रहे थे. अंग्रेजों को पंजाब हड़पने का बहाना मिल गया. वे लालची बनकर भ्रष्टाचार में दुब गए और षड्यंत्र रचकर राजकोष को खाली करते जा रहे थे. इस तरह प्रत्येक रूप से वे अंग्रेजों की सहायता कर रहे थे. और इस प्रकार अंग्रेजों को पंजाब हड़पने का बहाना मिल गया.
महारानी जिंदा कौर को देश निकाला का आदेश क्यों दिया गया!
महाराणा रंजीत सिंह और उनकी पत्नी जिंदा के सेनापति की मृत्यु के बाद. अंग्रेजों ने उनके बेटे दिलीप सिंह को फुसलाकर अपने वश में कर लिया. मई 1835 ईस्वी में महारानी को देश निकाला दे दिया गया. और उस आदेश पत्र पर अंग्रेजों ने उनके ही बेटे दिलीप सिंह के हस्ताक्षर करवा लिए.
रानी जिंदा शेखपुरा की जेल में बंद थी. उसने गिरफ्तारी आदेश पर अपने पुत्र के हस्ताक्षर पहचान लिए. परंतु वह जहर का घूंट पीकर रह गई और वह अगले अवसर की तलाश में तड़प रही थी. इस समय कुछ नहीं कर सकती थी उन्हें कासी जेल में भेज दिया गया. महारानी पर कड़ा कड़ा पहरा लगा हुआ था. इसके बावजूद वह किसी तरह काशी की जेल से भाग कर नेपाल पहुंच गई. रानी ज़िंदा नेपाल कैसे पहुंची इस बारे में कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती है.
नेपाल में रहकर महारानी जिंदा ने पंजाब में अपने समर्थकों से गुप्त संबंध स्थापित किया. और पंजाब वापस लेने की योजनाएं बनाएं जो असफल रही. इस बारे में ऐतिहासिक प्रमाण प्राप्त होते हैं. उधर दिलीप सिंह अंग्रेजी की गिरफ्त में था. उधर महारानी से संपर्क स्थापित करने वाले लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया.
पंजाब पर अंग्रेजो का अधिकार कब और कैसे हुआ?
दोस्तों राजा रंजीत सिंह सन्धावालिया के पुत्र महाराजा दिलीप सिंह सन्धावालिया पंजाब के अंतिम राजा थे. राजकुमार दिलीप सिंह अभी 11 वर्ष का था. अंग्रेजों ने उसे गद्दी से हटा दिया और उसकी समस्त संपत्ति हड़प ली. उसको मासिक पेंशन देना प्रारंभ कर दिया था. दिलीप सिंह अवयस्क होने के कारण अंग्रेजो की सारी बातें स्वीकार करता रहा. क्योंकि उनकी मां उनसे दूर थी और दरबारी उसे गलत सलाह देकर गुमराह कर रहे थे. उसे ईसाई धर्म ग्रहण करवा दिया गया फिर पढ़ने के लिए इंग्लैंड भेज दिया गया.
दिलीप सिंह बड़े हुए और अंग्रेजों की कुकर्मो के बारे में जानकारी प्राप्त हुई. परंतु तक बहुत देर हो चुकी थी. उन्हें हिंदुस्तान आने की अनुमति नहीं दी गयी. और न ही उनकी मां को मिलने के लिए परमिशन दी गई. अब दिलीप सिंह समझ में गए थे. और उन्होंने सबसे पहले ईशाई धर्म छोड़ कर वापस सिख धर्म को अपना लिया था.
महारानी जिंदा कौर दिलीप सिंह से कब मिली?
महारानी जिंदा जब बूढ़ी हो गई थी और उनकी आंखों की रोशनी चली गई थी. तब जाकर अंग्रेजों ने उनको इंग्लैंड में दिलीप सिंह से मिलने की अनुमति प्रदान की. यदि वह आंखों में रोशनी होते हुए दिलीप सिंह से मिल पाती या दिलीप सिंह हिंदुस्तान आ जाते तो शायद कुछ हो सकता था. पर अबोध दिलीप सिंह अंग्रेजों के वश में था. अतः रानी की सारी योजनाएं धरी की धरी रह गई थी. अपनी आंखे खोने के बाद वह इंग्लैंड पहुंची और 1863 में वही पर परलोक सिधार गई थी.
जिंदा कौर काशी जेल से भाग कर जब वह नेपाल पहुंची थी. तब पंजाब के गुरदासपुर जिले के मेहर सिंह तथा किशन सिंह नेपाल जाकर रानी से अक्सर गुप्त रूप से मिलते रहते थे. इसकी सूचना 1850 ईस्वी में लाहौर के कमिश्नर को प्राप्त हो गई थी. इस अपराध के लिए अंग्रेजों ने दोनों को सजा दी थी. महाराजा खड़क सिंह की विधवा रानी कुलवाली के एक संबंधी जवाहर सिंह भी नेपाल में जाकर महारानी जिंदा से गुप्त रूप से मिलते रहते थे. इस बारे में जानकारी मिलने पर ब्रिटिश सरकार ने इन पर रोक लगा दी और जमानत पर होने वाले ने दिया.
1857 की क्रांति में महारानी जिंदा कौर का क्या योगदान रहा?
1857 की क्रांति के बाद महारानी जिंदा ने एक बार फिर अवसर का लाभ उठाने का निश्चय किया. उन्होंने महाराजा कश्मीर को पत्र लिखा कि नाना साहब एवं बेगम हजरत महल नेपाल में है. अतः वह पंजाब को अंग्रेजों से मुक्त करवाने के लिए पंजाब पर आक्रमण करें. पर रानी का यह संदेश उन तक नहीं पहुंचा रानी का पत्र बीच में ही पकड़ा गया और लिखावट पहचान में आ गई. दोस्तों इसके बाद अंग्रेजों ने नेपाल के राणा की सहायता से महारानी जिंदा पर कड़े प्रतिबंध लगवा दिए थे.
यह सर्वविदित है की अट्ठारह सौ सत्तावन ईसवी के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में पंजाब के सिखों ने कोई कोई भाग नहीं लिया था. पर जब हम रानी जिंदा की कहानी का अध्ययन करते हैं तो हमें ऐसे प्रमाण प्राप्त होते हैं कि आंदोलन को तीन और से दबा कर रखा हुआ था. रानी ज़िंदा ने जैसे ही विद्रोह के लिए सिर उठाया अंग्रेजों ने उनकी गतिविधियों पर रोक लगाकर उन्हें गिरफ्तार कर पंजाब से बहार काशी जेल में भेज दिया.
दिलीप सिंह बालक था अतः वह अंग्रेजों के बस में आ गया और शेर सिंह को छोड़कर अन्य दरबारी प्रलोभन में आकर अंग्रेजों से मिल गए. उन्होंने रानी ज़िंदा के साथ विश्वासघात किया. और रानी के अधिक सौंदर्य के कारण उन पर अवैध संबंधों के आरोप लगाए गए. जिसके कारण इस देशभक्त रानी का चरित्र और कार्य दोनों इतिहास विवाद विषय बन गए.
पंजाब के अंतिम राजा दिलीप सिंह के अंतिम दिन?
इस प्रकार महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद पंजाब नेतृत्व विहीन हो गया हो गया था. अंग्रेजों ने पंजाब के विद्रोह का 1857 की क्रांति से कुछ वर्ष पूर्व ही तो बंद कर लिया था. राजकुमार दिलीप सिंह जीवन पर्यंत इंग्लैंड में ही रहा. अंग्रेजों ने उसको भारत आने की अनुमति नहीं दी थी. और पंजाब के अधिकारी अंग्रेजों के गुलाम बने हुए थे. उस समय भी पंजाब के सिखों को नेतृत्व नहीं मिल सकता. यदि रानी ज़िंदा को पंजाब आने की योजना में सफलता मिल जाती. और उनके समर्थक गिरफ्तार नहीं किए जाते तो पंजाब में भी अंग्रेजों के विरोद्ध में जन आंदोलन लहर उठ सकती थी.
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FAQs
Ans- पंजाब के अंतिम शासक राजा रंजीत सिंह के बेटे दिलीपसिंह थे. जो उस समय बालक थे तो उनकी माँ ज़िंदा कौर ने सत्ता अपनी हाथ में ली थी.
Ans- पंजाब के अंतिम राजा दिलीपसिंह जब बालक थे तो उनको अंग्रेजो ने क्रिस्चन धर्म ग्रहण करा दिया था. जब दिलीपसिंह बड़े हुए और उनको अंग्रजो की सचाई पता चली तो, वे वापस सिख धर्म अपना लिया था.