दोस्तों अगर भारत की आजादी में सबसे बड़ा योगदान है तो वह है नाना साहब पेशवा का. भारत की स्वतंत्रता करने के लिए नाना साहब का नाम आधुनिक भारत के इतिहास में हमेशा सम्मान के साथ किया जाता रहेगा. दोस्तों भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में नाना साहब ने कानपुर में क्रांतिकारियों का नेतर्त्व किया था. हम यहाँ नाना साहब पेशवा की जीवनी (Biography of Nana Saheb Peshwa) और उनसे जुड़ी वो रोचक और अद्भुत जानकारी शेयर करने वाले है जिस के बारे में आप आज से पहले अनजान थे. तो दोस्तों चलते है और जानते है नाना जी की आचर्यजनक जानकारी.
नाना साहब बाजीराव पेशवा के दत्तक पुत्र थे. पेशवा बाजीराव वही थे, जिन्हें अंग्रेजों ने परास्त कर के पेशवा पद से हटा दिया था. तथा जिन का साम्राज्य छीन लिया था एवं पेंशन बनाकर कानपुर के पास बिठूर भेज दिया था. दोस्तों बाजीराव में कुल मिलाकर 11 शादी की थी जिससे उनके दो बेटी और एक बेटा हुआ पर बेटा जब तीन महीने का था तब ही मर गया था. और उनकी बेटिया शादी के बाद ससुराल चली गयी थी.
बाजीराव के कोई पुत्र नहीं होने के कारण वे दुखी तथा व्यथित थे. संयोग से 1827 ईसवी में बाजीराव के दरबार में पुणे के एक गांव के निवासी माधवराव भट्ट परिवार सहित उपस्थित हुए. माधवराव भट्ट के एक 3 वर्षीय पुत्र भी था जो बहुत तेजस्वी था. बाजीराव उस पर मोहित हो कर उनको गोद ले लिया. बाजीराव ने उसे अपना दत्तक पुत्र बना लिया. पेशवा बाजीराव का यह दत्तक पुत्र आगे चलकर इतिहास में नाना साहब पेशवा के नाम से विख्यात हुआ.
नाना साहब पेशवा कौन थे?
पेशवा नाना साहब भारतीय स्वतंत्रता के महान अमर सेनानी थे. नाना साहब पेशवा भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख सूत्रधार थे. नाना साहब ने 1857 ईस्वी क्रांति के प्रमुख नारा और स्लोगन “कमल का फूल, और चपाती” देश के कोने कोने में भिजवाये थे. नाना साहब का जन्म 19-मई-1824 ईस्वी में पूना के समीप एक गांव में हुआ था. आपके पिता जी का नाम नारायणराव भट्ट और आपकी माता जी का नाम गंगा बाई था. नाना साहब के एक बड़ा भाई था जिनका नाम था.
पेशवा नाना साहब का बचपन पुणे से बिठूर में बिता. क्यों की बाजीराव पेशवा को अंग्रेजो ने पेंसन देकर कानपूर के पास बिठूर भेज दिया था, और नाना साहब पेशवा बजीराज के दत्तक पुत्र थे. बचपन में आपको सभी सुख सुविधाओं में पाला गया था. थोड़े बड़े होने पर शिक्षा के साथ घुड़सवारी, तलवारबाजी, तीर चलाना शिख लिया था. आपके साथ ही मोरो पंत की पुर्त्री मनु बाई (झांसी की रानी लक्ष्मी बाई),तात्या टोपे, राव साहब, सदाशिव भट्ट आदि बच्चो ने ये कला साथ साथ सीखी थी.
Summary
नाम | पेशवा नाना साहब || Biography of Nana Saheb Peshwa |
उपनाम | धोंडूपन्त, नाना साहब |
जन्म स्थान | पूना |
जन्म तारीख | 19-मई-1824 ईस्वी |
वंश | पेशवा |
माता का नाम | गंगा बाई |
पिता का नाम | नारायणराव भट्ट |
पत्नी का नाम | — |
उत्तराधिकारी | बाजी राव द्वितीय |
भाई/बहन | — |
प्रसिद्धि | 1857 ईस्वी क्रांति के अग्रदूत |
रचना | — |
पेशा | क्रांतिकारी/राजा |
पुत्र और पुत्री का नाम | राव साहेब |
गुरु/शिक्षक | बाजी राव द्वितीय |
देश | भारत |
राज्य क्षेत्र | महाराष्ट्र/उत्तर प्रदेश/मध्य प्रदेश |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | हिंदी/मराठी/अंग्रेजी |
मृत्यु | 24 सितम्बर 1859 |
मृत्यु स्थान | नेपाल |
जीवन काल | 35 वर्ष |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Nana Saheb Peshwa |
नाना साहब पेशवा 1857 ईस्वी की क्रांति में क्यों कूदे?
1851 ईस्वी में बाजीराव पेशवा की मृत्यु हो गयी थी. तब नाना साहब की उम्र लगभग 28 साल थी. नाना जी बहुत ही बुद्विमान, साहसी, धैर्यमान एवं कूटनीतिज्ञ थे. उनकी भाषण कला अद्भुत थी, एवं व्यक्तित्व आकर्षण था. अंग्रेजो के संबंध में नाना साहब की सारी धारणा उस दिन चकनाचूर हो गयी , जब अंग्रेजो ने बाजीराव को मिलने वाली सालाना 8 पेंसन बजीराज के मरने के बाद नाना साहब को देने से इंकार कर दिया. नाना साहब ने पेशवा बाजीराव की पेंसन दत्तक पुत्र होने के नाते उनको देन के लिए. अलग अलग अंग्रेज अधिकारियो को पत्र लिखे, और उनको बाजीराव पेशवा के साथ हुई सन्धि की याद दिलाई. पर अंग्रजो को इस बात का फरक नहीं पड़ा और वे नाना साहब को पेंसन देने से इंकार कर दिया.
नाना साहब ने अपनी पैरवी करने लिए भारत से इंग्लैंड किस को भेजा था भेजा?
नाना साहब ने अपनी अपील की पैरवी करने भारत से अजीमुल्ला खां और मुहम्मद अली को इंग्लैंड भेजा. उन्होंने इस समय अजीमुल्ला से कहाँ था. यदि अंग्रेज हमारे अधिकार को इस प्रकार नहीं देंगे, तो हम उसे तलवार की शक्ति से लेंगे. अजीमुल्ला खां और उसके साथी मुहम्मद अली बड़ी आसा और विश्वास के साथ इंग्लैंड गए थे. उन्होंने वहां बहुत हाथ पैर मारे और लन्दन में इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया और कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर से भी मुलाखात की थी. पर उनको कोई फरक नहीं पड़ा. और यही से उनके ह्रदय में विद्रोह बीज अंकुरित होने लगे थे.
लन्दन से भारत आकर अजीमुल्ला खां और नाना साहब ने 1857 क्रांति की रूप रेखा तैयार की. भारत की देसी रियासतों और को सूत्र में बांधने के लिए पत्र लिखे गए. हालांकि बहुत कम राज्य के राजाओ ने इनके पत्र का जवाब दिया, फिर भी इन्होने हिम्मत नहीं हारी. नाना साहब ने “खिलता हुआ कमल और चपाती” हर जगह भेजी . जो कमल का फूल और चपाती को स्वीकार करता वो 1857 की क्रांति में उनके विद्रोह में साथ थे.
1857 ईस्वी की क्रांति में नाना साहब पेशवा का क्या योगदान था?
दोस्तों नाना साहब पेशवा को अंग्रेजो ने पेंसन देने से इंकार करना और सुवर और गाय की चमड़ी से बनी कारतूस का उपयोग ही 1857 ईस्वी की क्रांति में आग में घी डालने वाला काम किया था. नाना साहब और अजीमुल्ला खां भारत की आजादी के लिए एक तीर्थयात्री के रूप में पुरे भारत में क्रांति की अलख जगाई. वे भारत की बड़ी-बड़ी रियासतो और बड़ी-बड़ी सैनिक छावनियों में भी गए और सैनको को विद्रोह के लिए तैयार किया और 31 मई 1857 को देश में एक साथ अग्रेजो के खिलाफ विद्रोह करने का निर्णय लिया. लेकिन होनी को कौन टाल सकता है, 29 मार्च 1857 ईस्वी को क्रांति एक महीने पहले ही कोलकाता की बैरकपुर छावनी के सैनिक मंगल पांडेय ने अंग्रेजो को गोली मार कर क्रांति का आगाज कर दिया था.
भारत के राज्य और उनका इतिहास और पर्यटन स्थल
नाना साहब और अजीमुल्ला खां देश के कोने कोने में अंग्रजो के खिलाफ जहर भर दिया था. सब 31 मई का इन्तजार कर रहे थे. दोस्तों भारत की आजादी की इस पहली लड़ाई में लाखो लोगो ने क़ुरबानी और इतने लोग प्रचार में लगे थे. 1857 की क्रांति तय समय से पहले प्रारम्भ हो चुकी थी. बिठूर और उनके आस पास नाना साहब ने मोर्चा सम्भाल लिया। झांसी में रानी लक्मी बाई, तो देश के कोने कोने में लोगो ने अंग्रेजो के खिलाफ 1857 क्रांति का बिगुल फुक दिया था.
नाना साहब ने देसी सैनिकों को अंग्रेजो के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए प्रेरित किया. उन्होंने कानपूर के सिपाहियों को भी ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह की प्रेणना दी थी. उन्होंने बड़ी ही कुशलता के साथ इस कार्य को किया था. हलाकि शुर में प्रत्यक्ष रूप से मैदान में नहीं उतरे थे. न ही खुल कर मैदान में आये पर अंदर ही अंदर अंग्रेजो की जड़ काट रहे थे. आगे चलकर नाना साहब खुल कर बगावत पर आ गए थे.
नाना साहब पेशवा और अंग्रेजो के मध्य लड़ाई
दोस्तों 1857 ईस्वी की क्रांति बड़ी तेजी से देश में फैली. नाना साहब ने सबसे पहले अपनी स्थिति को सुदृढ़ किया. नाना साहब ने जून महीने में विद्रोह में शामिल होने का निश्चय किया था. किंतु विद्रोही रूपी ये तूफान कानपुर में 1 जून से पहले ही पहुंच चुका था. विद्रोह की आग कानपुर के साथ-साथ दिल्ली, मेरठ, कालपी, झांसी, बिहार अवध आदि स्थानों पर फैली हुई थी. सारा देश विद्रोह की आग में जल रहा था. सैकड़ों अंग्रेजों का वध किया जा चुका था. अंग्रेजों में भगदड़ मची हुई थी. हर गांव और हर घर में विद्रोहियों का केंद्र बना हुआ था. मुस्लिम फकीर तथा हिंदू संत घूम घूम कर कमल तथा चपातियां क्रांतियों के निशान बांट रहे थे.
उधर कानपुर के बिठूर में नाना साहब राज्य अभिषेक किया गया. वे पेशवा बन गए, तथा कानपुर और इसके आसपास के गांव का शासन करने लगे. जब अंग्रेजों के आगे बढ़ने की सूचना मिली तो, नाना साहब ने उनको खदेड़ने के लिए तात्या टोपे एवं अपने बड़े भाई को सेना के साथ भेजा. और नाना साहब खुद भी हाथ में तलवार लेकर घोड़े पर सवार हुए. तथा अपने राज्य की रक्षा के लिए निकल पड़े. लेकिन भाग्य उनके साथ में नहीं था. प्रत्येक मोर्चे पर उन्हें विफलता का सामना करना पड़ा. तात्या टोपे को रणभूमि से भागना पड़ा, उनके भाई युद्ध करते हुए मारे गए. फतेहपुर पर विजय प्राप्त करने के पश्चात अंग्रेजों ने कानपुर की ओर रुख किया. नाना साहब ने कानपुर की रक्षा के लिए अंग्रेजों से जमकर संघर्ष किया किंतु वे कानपुर की रक्षा नहीं कर सकें.
पेशवा नाना साहब का 1857 ईस्वी की क्रांति में सहयोग
नाना साहब ने अट्ठारह सौ सत्तावन ईसवी की क्रांति की का नेतृत्व किया था. क्रांति की योजना अत्यंत गुप्त रूप से बनाई गई थी. तथा अंतिम समय तक अंग्रेजों को इसकी भनक भी नहीं पड़ सकी थी. सन 18 सो 58 ईस्वी के शुरुआत में अंग्रेजों की यह धारणा बन चुकी थी. कि अगर विद्रोह को और भड़कने से बचाना है. तथा विद्रोह का दमन करना है तो नाना साहब को बंदी बना लेना चाहिए. नाना साहब अवध, रोहिलखंड व अन्य क्षेत्रों में बेगम हजरत महल, मौलवी अहमदुल्लाह शाह, खान बहादुर खां इत्यादि का साथ दे रहे थे. नाना साहब का कुछ भी पता नहीं चल पाता था. अंत में जनरल आवुट्रम ने 28 फरवरी 18 सो 58 ईस्वी को एक विज्ञापन निकलवाया. जिसमे नाना साहब को गिरफ्तार करवाने वाले व्यक्ति को ₹100000 इनाम की घोषणा की गई थी.
पेशवा नाना साहब ने विद्रोह के समय सहयोग हेतु फ्रांस के सम्राट नेपोलियन तृतीय से भी पत्र व्यवहार किया था. नाना साहब ने फ्रांसीसी सम्राट को पहला पत्र 20 अक्टूबर अट्ठारह सौ सत्तावन ईसवी को लिखा था. इन पत्रों को फ्रांसीसी उपनिवेश चन्द्रनगर के गवर्नर लव के माध्यम से फ्रांसीसी सम्राट तक पहुंचाया जाना था. इस पत्र व्यवहार के पीछे नाना साहब के दो उद्देश्य थे. पहला विद्रोह हेतु फ़्रांस और अन्य यूरोपीय देशों साहनुभूति चाहते थे. दूसरा वह संकट पड़ने पर चन्द्रनगर में शरण लेना चाहते थे.
नाना साहब पेशवा का अंतिम समय
अंग्रेजों के बढ़ते कदम देखकर नाना साहब ने बिठूर का प्रबंध अपने विश्वस्त व्यक्ति को सौंप दिया. तथा स्वयं गायब हो गए, उन्होंने अदृश्य रूप से उन्नाव, कालपी, ग्वालियर एवं लखनऊ के मोर्चे को दृढ़ बनाने का प्रयास किया, किंतु उन्हें विफलताओं का सामना करना पड़ा, लखनऊ के पतन के बाद नाना साहब भागकर नेपाल की तराई में चले गए. अंग्रेज बहराइच से आगे नहीं बढ़े. उन्होंने नेपाल के राना जंग बहादुर सिंह पत्र लिखा और सहायता की गुजारिस की. नेपाल नरेश अंग्रेजो का दोस्त था, तो उन्होंने नाना साहब को शरण देने से इंकार कर दिया पर उनकी फैमिली की महिलाओ को शरण दी.
नाना साहब बड़े साहसी एवं निर्भीक थे, उन्हें मृत्यु का कोई डर नहीं था. वह अपने लंबे जीवन में अपनी चालाकी से अंग्रेजों को परेशान करते रहे. उन्होंने न तो कभी आत्मसमर्पण किया और ना ही अंग्रेजों उनको कभी पकड़ सके. वे ब्रिटिश साम्राज्य की परिधि में अज्ञातवास कर रहे थे.
नाना साहब भारतीय स्वतंत्रता के महान अमर सेनानी थे. जिनका नाम इतिहास में सदैव स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा. उन्होंने पेशवाई सुख को छोड़ते हुए 1857 ईस्वी के विद्रोह का नेतृत्व किया था. भले ही 1857 ईस्वी की क्रांति विफल हो गई हो. लेकिन नाना साहब के बलिदान और नेतृत्व को कभी भुलाया नहीं जा सकता. नाना साहब का नाम भारत के इतिहास में अमर रहेगा, हम ऐसे महान बलिदानी को शत-शत नमन करते हैं.
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FAQs
Ans- नाना साहब का जन्म 19-मई-1824 ईस्वी में पूना के समीप एक गांव में हुआ था.