Biography of Narpati Singh | रूईया नरेश नरपति सिंह

By | December 10, 2023
रुईया नरेश नरपति सिंह
Biography of Narpati Singh

दोस्तों हम यहाँ शेयर करने जा रहे है, भारत की आजादी के दीवाने नरपति सिंह जी की जीवनी (Biography of Narpati Singh) और उनके संघर्ष की कहानी. दोस्तों बात शुरू होती है, भारत के प्रथम क्रांति 1857 से, उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले से करीब 40 किमी दूर स्थित रूइया गढ़ी गांव से. नरपति सिंह रूईया किले के एक छोटे से जमीदार और रक्षक थे. यह रूइया गांव रूइया दुर्ग या रूमगढ़ नाम से प्रसिद्ध रहा है. 1857 के महान नायको में से एक नाना साहब पेशवा जी के यहां से भेजे गए. 1857 की क्रांति के निसान “लाल कमल का फूल तथा रोटी का टुकड़ा”. जंग ए आजादी के संदेश जब नरपति सिंह को मिले थे. तब उन्होंने सन्देश को माथे से लगाकर नरपति सिंह ने प्रण किया कि. अंग्रेजों को क्षेत्र से मिटाकर स्वराज्य कायम रखेंगे.

नरपति सिंह कौन थे?

नरपति सिंह रूईया किले के एक छोटे से जमीदार और रक्षक थे. उन्हें यह पता चला कि प्रसिद्ध इतिहासकार जनरल वालपोल अंग्रेज सेना के नेतृत्व में उनके किले को तहस-नहस करने के लिए पहुंच रही है. तो यह प्रतिज्ञा की कि अपनी मुट्ठी भर सेना के बल पर यदि एक बार अंग्रेजों की विशाल सेना और उसके सेनापति वालपुल के दांत खट्टे करक खदेड़ न दिया तो मैं क्षत्रिय ही क्या.

रूईया राजा नरपति सिंह ने अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ 1857 में बिगुल बजाते हुए अंग्रेजों पर काल बन कर तलवार भांजी थी. और आजादी की जंग की वीर गाथा लिखी थी. उस समय राजा नरपति सिंह ने करीब डेढ़ वर्ष तक अंग्रेजों से लोहा लिया था. और तमाम अंग्रेजी हुकुमत के कई सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था. और हरदोई में अंग्रेजों को न घुसने दिया और न ही अपने जीवित रहते शासन करने दिया था.

Summary

नामनरपति सिंह रूईया (Biography of Narpati Singh)
उपनामनरपति सिंह
जन्म स्थानरूईया किला, हरदोई जिला, उत्तर प्रदेश
जन्म तारीख
वंशराजपूत
माता का नाम
पिता का नाम
पत्नी का नाम
भाई/बहन
प्रसिद्धिक्रांतिकारी, स्वतंत्रता सेनानी
रचना
पेशारूइया गांव रूइया दुर्ग या रूमगढ़ नरेश
पुत्र और पुत्री का नामरुइया गढ़ी राजकुमारी
गुरु/शिक्षकनानासाहब पेशवा
देशभारत
राज्य क्षेत्रहरदोई, उत्तर प्रदेश, भारत
धर्महिन्दू
राष्ट्रीयताभारतीय
भाषाहिंदी
मृत्यु1859 ईस्वी
जीवन काललगभग 62 वर्ष
पोस्ट श्रेणीBiography of Narpati Singh (नरपति सिंह की जीवनी)
Biography of Narpati Singh

1857 ईस्वी की क्रांति में नरपत सिंह क्यों कूदे थे?

जब अंग्रेज सेना के जनरल वालपोल ने नरपति सिंह की प्रतिज्ञा के बारे में सुनने के बाद कहा कि उस छीछोरे जमीदार की इतनी हिम्मत जो मुझे नीचा दिखाने के लिए प्रतिज्ञा करें मैं उसे पीसकर ही दम लूंगा. नरपति सिंह ने वालपोल तक अपनी प्रतिज्ञा पहुंचाने के लिए. अपने यहां केद अंग्रेजी सैनिकों में से एक को वालपोल के पास भेज दिया. उसने वालपोल को नरपति सिंह के प्रतिज्ञा के बारे में बताया. उसने यह भी बताया कि नरपति सिंह के पास 250 क्रांतिकारी सैनिक है. जनरल वालपोल के पास एक विशाल तोपखाना एवं हजारों सैनिक थे. अतः उसने सोचा कि ऐसे छोटे से जमीदार को पीसकर रख दूंगा.

जनरल वालपोल ने आवेश में आकर सेना से पूछा कि नरपति सिंह के पास 2000 सैनिक है. क्या तुम उनसे निबटने की क्षमता रखते हो. इस पर सैनिकों ने गर्व से उत्तर दिया ₹2000 तो क्या 4000 हो तो भी हम उनको पीसकर कर रख देंगे. तब जनरल वालपोल सोचा तो यह लोग 4000 सैनिकों को पीसकर रख देंगे. तब वालपोल ने सोचा जब ये लोग 4000 सैनिकों को पीसकर रख देने का दम भरते हैं. तो केवल ढाई सौ सैनिकों को तो यह पलक झपकते ही समाप्त कर देंगे. उस ने तो यहां तक सोचा कि मेरी सेना के रुइया पहुंचने से पूर्व नरपति सिंह पीठ दिखा कर भाग जाएगा.

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अंग्रेजो ने नरपत सिंह से कब-कब और कितनी बार लड़ाईया लड़ी थी?

दोस्तों वैसे तो रुईया के राजा नरपति सिंह पर अंग्रेजो ने चार बार आक्रमण किए थे. पहली बार 15 अप्रैल 1858 रूइया दुर्ग पर, दूसरा 22 अप्रैल 1858 रामगंगा किनारे सिरसा ग्राम पर, तीसरा 28 अक्तूबर 1858 को पुन रूइया दुर्ग पर, चौथा 9 नवंबर 1858 को मिनौली पर इसके बाद जनपद में. अनेको आक्रमण से नरपति सिंह घबराये नहीं, और लगातार लड़ते रहे. और अपने जीवते जी कभी अंग्रजो के हाथ नहीं आये. नरपति सिंह जी को छोड़ सभी आस पास के राजा, नवाब, जमीदार अंग्रेजों के आगे अपने घुटने टेक दिए थे. और अंग्रजो की स्वाधीनता स्वीकार कर ली थी.

जब पहली बार अंग्रेज जनरल वालपोल की सेना ने रुइया के किले को घेर लिया था. तब दोनों ओर से गोलीबारी प्रारंभ हो गई. नरपति सिंह के सैनिकों ने शत्रु के जमाव के स्थान पर भयंकर गोली वर्षा की जिसमें 46 अंग्रेज सैनिक मारे गए. तत्पश्चात वालपोल की सेना ने किले की दीवार पर तोपों के गोले बरसानी शुरू कर दी.

इसी समय जनरल होपग्रांट एक सेना को लेकर जनरल वालपोल की सहायता के लिए आ गया. तब नरपति सिंह ने क्रोधित होकर जनरल होपग्रांट को अपनी गोलियों का निशाना बना दिया. अतः विवश होकर अंग्रेज सेना को पीछे हटने के लिए विवश होना पड़ा.

रूईया राजा नरपति सिंह जी की मृत्यु कैसे हुई?

रूईया राजा नरपति व अंग्रेजों में करीब डेढ़ साल तक अनेक लड़ाईया लड़ी. एक तरफ अंग्रेजों की बड़ी बड़ी तोपों से सजी सेना तो दूसरी तरफ नरपति सिंह की हौंसले से भरे सेनिको से मुकाबला हुआ. और तमाम अंग्रेज अफसरों को नरपति सिंह के वीर सैनिकों ने मार गिराया. डेढ़ साल तक चले लगातार युद्ध के बाद 1859 ईस्वी में नरपति सिंह शहीद हो गए थे. नरपति सिंह 1857 की क्रांति में उसने अपनी वीरता एवं आन बान का एक नया अध्याय जोड़ कर इतिहास में अपना नाम अमर कर गया था. हम ऐसे वीर माटी के लाल को नमन करते है.

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FAQs

Q- रुईया नरेश नरपति सिंह पर अंग्रेजो ने कितने आक्रमण किये?

Ans- रुईया नरेश नरपति सिंह पर अंग्रेजो ने चार बार आक्रमण किये थे. हर बार हार का सामना करना पड़ा था.

भारत की संस्कृति

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