प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम 1857 मैं ने केवल पुरुषों ने अपितु महिलाओं ने भी सक्रिय रूप से भाग लिया था. और भारत माता को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त कराने के लिए अपना सर्वस्व निछावर कर दिया था. 1857 की आजादी की लड़ाई में अमरचंद बांठिया, महारानी लक्ष्मीबाई, जीनत महल, अजीजन, तात्या टोपे, मंगल पांडे, नाना साहब, अजीमुल्ला खान, रानी अवन्ति बाई लोधी और बेगम हजरत महल ने जो त्याग और बलिदान दिए उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. बेगम हजरत महल 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की एक महान नेत्री थी. हम यहाँ बेगम हजरत महल की जीवनी (Biography of Begum Hazrat Mahal). और 1857 की क्रांति में उनके योगदान का संछिप्त जानकारी शेयर कर रहे है. इस लिए दोस्तों आपको इस पेज तक और ध्यान से पढ़ना चाहिए.
Biography of Begum Hazrat Mahal (बेगम हजरत महल की जीवनी)
बेगम हजरत महल के वंश आदि के बारे में कोई प्रमाणिक जानकारी प्राप्त नहीं होती. शादी से पहले आपका नाम मुहम्मदी ख़ानुम था. मुहम्मदी ख़ानुम (बेगम हजरत महल) का जन्म 1820 ईस्वी फैज़ाबाद, अवध में हुआ था. हजरत महल फैजाबाद की एक नर्तकी थी. जिसे विलासी वाजिद अली शाह अपनी बेगमों की सेवा के लिए लाया था. पर फिर वह उसके प्रति भी प्रेममत्त हो गया. हजरत महल ने अपनी योग्यता से धीरे-धीरे सब बेगमों में अग्रणी स्थान प्राप्त कर लिया. एक अंग्रेज इतिहासकार के अनुसार वह नर्तकी थी. जो बाद में अपने सौंदर्य तथा गुणों के कारण अवध उत्तर प्रदेश के नवाब वाजिद अली शाह की बेगम बन गई. नवाब उसे दिलो जान से चाहते थे. लेकिन न केवल सुंदर थी अपितु सद्गुणों का भंडार भी थी. वह एक ईमानदार तथा भद्र महिला थी उसका व्यक्तित्व मोहक तथा आकर्षक था.
बेगम हजरत महल कौन थी?
दोस्तों 1857 की आजादी की लड़ाई में महारानी लक्ष्मीबाई, अजीजन बेगम, जीनत महल और बेगम हजरत महल ने जो त्याग और बलिदान दिए उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. बेगम हजरत महल 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की एक महान नेत्री थी. दोस्तों हज़रत महल उन कुछ महिलाओं में से एक थीं जिन्होंने 1857 की क्रांति में अंग्रेज़ों को चुनौती दी थी. बाद में उन्होंने नवाब वाजिद अली शाह के साथ निकाह किया और अवध की रानी बनी और नाना साहब और अन्य क्रन्तिकारियो से मिलकर अंग्रेजो से कई बार लड़ाई की थी.
Summary
नाम | मुहम्मदी ख़ानुम |
उपनाम | बेगम हजरत महल, अवध की बेगम, महक परि |
जन्म स्थान | फैज़ाबाद, अवध |
जन्म तारीख | 1820 ईस्वी |
वंश | ख़ानुम |
माता का नाम | — |
पिता का नाम | — |
पति का नाम | वाजिद अली शाह |
भाई/बहन | — |
प्रसिद्धि | स्वतंत्रता सेनानी के रूप में अंग्रेजों से लखनऊ और अवध की लड़ाईया लड़ी |
रचना | — |
पेशा | तवायफ़, स्वतंत्रता सेनानी, अवध कीरानी |
पुत्र और पुत्री का नाम | बिरजिस क़द्र |
गुरु/शिक्षक | — |
देश | भारत |
राज्य छेत्र | उत्तर प्रदेश, बिहार, नेपाल |
धर्म | शिया इस्लाम |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | हिंदी, उर्दू |
मृत्यु | 07-अप्रैल-1879 काठमांडू नेपाल |
जीवन काल | 59 वर्ष |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Begum Hazrat Mahal (बेगम हजरत महल की जीवनी) |
बेगम हजरत महल ने अंग्रेजों से लड़ाई क्यों लड़ी?
अवध मुगल सम्राट के अधीन था, मुगल साम्राज्य की दुर्बलता के कारण वह एक स्वतंत्र राज्य बन गया था. अवध का अंतिम नवाब वाजिद अली शाह था उसके पूर्वज सहादत अली ने ईस्ट इंडिया कंपनी की सरकार के साथ संधि की. इस संधि के अनुसार राज्य की वास्तविक सत्ता ब्रटिश कंपनी के हाथ में आ गई. अवध के शासन पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए ब्रटिश कंपनी ने अपना रेजिडेंट नियुक्त किया था अवध की राजधानी लखनऊ थी.
जिस समय वाजिद अली अवध का नवाब था. उस समय लॉर्ड डलहौजी भारत का वायसराय था. डलहौजी ने ब्रटिश कंपनी के साम्राज्य विस्तार के लिए भारतीय रियासतों को हड़पने की नीति अपनाई. इस नीति के अनुसार उसने झांसी तथा सातारा आदि राज्यों को हड़प कर अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया.
उसने अवध के नवाब वाजिद अली शाह पर भी विलासिता का आरोप लगाकर उसे हटाने की एक योजना तैयार कर ली थी. अवध का नवाब बिलासी होने के कारण अपने मंत्रियों से बहुत कम मिलता था. लखनऊ के अंग्रेज रेजीडेंट ने 1849 ईसवी में उसके बारे में लिखा था. अवध अब असल में बिना सरकार के है. राजा गाने बजाने वालों हिजड़ो के अलावा और किसी से नहीं मिलता शासन की बातों की वह तनिक भी परवाह नहीं करता.
नवाब वाजिद अली शाह को कोलकाता में बंदी क्यों बनाया गया था?
1854 ईसवी में स्लीमैन के स्थान पर आउट टर्म को लखनऊ का रेजिडेंट नियुक्त किया गया. डलहौजी नवाब की विलासी प्रवृत्ति के बारे में जानता था. उसने अवध की रियासत को तुरंत खड़ा करने की एक योजना भी तैयार कर ली थी. उसने अपने एक दूत को पत्र लिखकर नवाब के पास भेजा जिसने नवाब को उस पत्र पर हस्ताक्षर करने हेतु कहा. इस पत्र के अनुसार अवध की वास्तविकत पर कभी अंग्रेजो की कंपनी का अधिकार स्थापित होना था. वाजिद अली ने इस पत्र पर हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया पता है उसे बंदी बनाकर 18 से 56 ईसवी में कोलकाता भेज दिया गया.
1857 का विद्रोह क्यों हुआ?
लॉर्ड डलहौजी के बाद लॉर्ड कैनिंग भारत का गवर्नर जनरल बना. डलहौजी की नीति से समस्त भारतवर्ष में अंग्रेजी शासन के विरुद्ध भयंकर असंतोष व्याप्त था. क्रांति का बीज बोया जा चुका था लोग मन ही मन अंग्रेज सरकार को जड़ से नष्ट करने का मानस बना चुके थे. लॉर्ड ममेटकाफ ने इस संबंध में लिखा था. पूरा भारत प्रतिक्षण यही कामना कर रहा है कि हमारा तख्त उलट जाए हमारे विनाश पर लोग एक जगह खुशियां मनाएंगे। और ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो उस घड़ी को नजदीक लाने से अपनी पूरी शक्ति लगा देंगे. अंग्रेजी स्मिथ ने इस संबंध में लिखा था विद्रोह है यद्यपि शुरू में बंगाल की एक फौजी बगावत थी. जो गाय और सुवर की चर्बी वाले कारतूसों को नहीं काम लेना चाहते थे.
मगर वह फौज तक ही सीमित नहीं थी. संतोष और बेचैनी आम जनता में व्यापक रूप में फैली और कई जगह आम जनता ने उसी स्थान के सिपाहियों के पहले से विद्रोह किया. डलहौजी की हड़प की नीति ने अग्नि में घी का कार्य किया. अट्ठारह सौ सत्तावन ईसवी में मंगल पांडे के विद्रोह के बाद मेरठ तक क्रांति फैल गई. मेरठ के सैनिकों ने दिल्ली की ओर प्रस्थान किया और वहां जाकर मुगल सम्राट बहादुरशाह से मिले. मुगल सम्राट तथा जीनत महल ने उनका साथ दिया और स्वतंत्रता की घोषणा की.
बेगम हजरत महल और अंग्रेजो की लड़ाई क्यों हुई?
1857 क्रांति शीघ्र ही अवध, लखनऊ तथा रुहेलखंड में फैल गई. वाजिद अली शाह ने 11 वर्षीय पुत्र को अवैध का नवाब बना दिया गया. राज्य का कार्यभार उसकी मां बेगम हजरत महल देखती थी. 7 जुलाई 1857 से अवध का शासन हजरत महल से संभाल लिया था. बेगम हजरत महल एक योग्य प्रशासक सिद्ध हुई. यद्यपि यह सत्य है कि वह एक रानी लक्ष्मी बाई जैसी बुद्धि मती नहीं थी. और ना ही उसमें रानी जैसा रण कौशल था. तथापि उसने बड़ी तत्परता से शासन संबंधी कार्य करना प्रारंभ कर दिया. उसने हिंदुओं तथा मुसलमानों के लिए एक जैसी नीति बनाई.
और बिना किसी भेदभाव के दोनों ही जातियों के व्यक्तियों को बड़े-बड़े पदों पर नियुक्त किया. बेगम हजरत महल बहुत चालाक महिला थी. वह अपने सैनिकों के उत्साह में वृद्धि करने के लिए युद्ध भूमि में भी चली जाती थी. लखनऊ में अंग्रेजी सेना जम चुकी थी. उधर क्रांतिकारी उसका सामना करने के लिए तैयार थे. बेगम हाथी पर बैठकर युद्ध देखने गयी. रेजिडेंसी के भीतर हेनरी लॉरेंस युद्ध की संपूर्ण तैयारियां कर चूका था. क्रांतिकारियों की सेना में अनुशासन तथा एकता का अभाव होने के कारण युद्ध में अंग्रेजो को विजय प्राप्त हुई. 4 जुलाई को मृत्यु हेनरी लॉरेंस की मृत्यु हो जाने के कारण उसके स्थान पर नए ब्रिगेडियर जनरल की नियुक्ति की गई.
25 सितंबर को जनरल आउटर्म तथा हेवलॉक की सेना ने रेजिडेंसी पर अधिकार कर लिया. परंतु लखनऊ के अधिकांश भाग पर भी बेगम का अधिकार था. बेगम ने अपनी सेना को जौनपुर तथा आजमगढ़ पर आक्रमण करने का आदेश दिया. इस समय क्रांतिकारियों का मनोबल कमजोर था. और उनमें एकता का भी अभाव था.
उदा देवी कौन थी?
ब्रिटिश कंपनी शासन से आजादी की लड़ाई में उदा देवी जैसे दलित प्रतिरोध सेनानियों को भी शामिल किया गया था. उदा देवी और अन्य दलित क्रांतिकारियों को आज 1857 के भारतीय विद्रोह के योद्धाओं या “दलित वीरांगनाओं” के रूप में याद किया जाता है. उनका विवाह मक्का पासी से हुआ था जो हजरत महल की सेना में एक सैनिक थे.
अंग्रेजो के साथ भारतीय लोगों के बढ़ते गुस्से को देखकर. उदा देवी अवध जिले की रानी बेगम हजरत महल के पास युद्ध के लिए भर्ती होने के लिए पहुंचीं। उस लड़ाई की तैयारी के लिए जो उनके रास्ते में थी. हजरत बेगम ने उनकी कमान के तहत एक महिला बटालियन बनाने में मदद की. जब अंग्रेजों ने अवध पर हमला किया, तो उदा देवी और उनके पति दोनों सशस्त्र प्रतिरोध का हिस्सा थे. जब उदा देवी ने सुना कि उसका पति युद्ध में मर गया है.
तो उसने अपना अंतिम अभियान पूरी ताकत से शुरू किया. कहाँ जाता है एक पीपल के पेड़ पर चढ़ कर 36 अंग्रेज सैनिक को मौत की नींद सुला दिया. जब सेना के अधिकारी मौत के कारण को पता लगाने वहां पहुँचा और जांच में पाया कि गोली पीपल के पेड़ से ऊपर से आया तब उदा देवी को मार गिराया.
इस दलित वीरांगना उदा देवी के वीरता की कहानी भले जनमानस में नहीं पहुंच पायी. लेकिन आज भी कई इतिहासकार उस वीरांगना के वीर गाथा को लिखते रहते हैं। हम 1857 के क्रांति वीरांगना उदा देवी को नमन करते है.
हजरत महल ने सामंतों को संबोधित करते हुए क्या था?
बेगम ने 22 दिसंबर 1857 ईसवी को सामंतों को संबोधित करते हुए कहा. शक्तिशाली दिल्ली में हमें बहुत आशाएं थी. उस नगर से प्राप्त समाचारों से मेरे दिल में खुशी की उमंगे उठती थी. लेकिन अब बादशाह का तख्ता पलट गया है. और उसकी फौज तितर-बितर हो गई है. अंग्रेजों ने सिखों और राजाओं को खरीद लिया है. और यातायात के संबंध टूट गए हैं नाना साहब की पराजय हो गई है.
लखनऊ खतरे में है अब क्या किया जाए हमारी सारी फौज इस समय लखनऊ में है. परंतु सिपाहियों के हौसले पस्त हो गए हैं. आलमबाग पर धावा क्यों नहीं बोल देते क्या वे अंग्रेजों को मजबूत बनाने के और लखनऊ के घेरे जाने की राह देख रहे हैं. निकम्मा बैठने के लिए मैं कितने दिनों तक सिपाहियों की तनख्वाह देती रहूंगी मुझे अभी जवाब दो यदि तुम लोग लड़ना नहीं चाहते तो मैं अपनी जान बचाने के लिए अंग्रेजों से सुलह कर लूंगी.
इस पर सरदारों ने हजरत बेगम को जवाब दिया कि आप घबराएं नहीं हम लड़ेंगे अवश्य। यदि लड़ेंगे नहीं तो हमें एक एक करके फांसी पर लटका दिया जाएगा. यह बात हम अच्छी तरह जानते हैं मार्च 1858 ईस्वी में क्रांतिकारियों का कालीन कैंबेल तथा आउटर्म की सेना के साथ लखनऊ में घमासान युद्ध हुआ. यह युद्ध 6 मार्च से 15 मार्च तक चला 21 मार्च को बेगम की कोठी सहित संपूर्ण लखनऊ पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया.
बेगम हजरत महल ने इससे पूर्व ही महल छोड़ दिया था. लखनऊ के पतन के बाद भी बेगम ने हिम्मत से काम लेते हुए अपने सैनिकों को आदेश दिया खुले मैदान में दुश्मन का सामना करो. नदियों के घाटों पर पहरा रखो दुश्मन की डाक काटो, रसद रोको और चौकियां तोड़ दो फिरंगी को चेन न लेने दो का आदेश दिया था.
बेगम हजरत महल ने नेपाल में शरण क्यों ली?
हजरत महल ने पेशवा नाना साहब से बराबर संपर्क बनाए रखा था. और कई बार मौलवी अहमद साहब को बड़ी मदद पहुंचाई। लखनऊ के पतन के बाद भी बेगम के पास कुछ विश्वस्त सैनिक और उसका पुत्र बिरजिस कदर थे. बेगम हजरत महल लड़ते लड़ते थक चुकी थी. अब वह किसी तरह भारत छोड़ना चाहती थी. अंग्रेजी के मित्र और नेपाल के राजा जंग बहादुर ने बेगम हजरत महल को अपने यहां शरण दी बेगम अपने लड़के वृद्धि दर के साथ नेपाल चले गए और वहीं पर 07-अप्रैल-1879 ईसवी में इस दुनिया से चल बसी. उनकी काठमांडू की खबर आज भी उनके त्याग तथा बलिदान की कहानी सुनाती है.
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FAQs
Ans- 07-अप्रैल-1879 ईसवी में काठमांडू नेपाल में हजरत महल की मृत्यु हो गयी थी.