हम यहाँ वीर महाराणा बख्तावर सिंह राठौड़ जी की जीवनी (Biography of Maharana Bakhtawar Singh). और वो रोचक और अद्भुत तथ्य आपके साथ शेयर करने वाले है. जिसके बारे में आप आज से पहले अनजान थे. तो दोस्तों चलते है और जानते है, महाराणा बख्तावर सिंह जी जी रोचक जानकारी. महाराणा बख्तावर सिंह जी ने अट्ठारह सौ सत्तावन ईसवी में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान संपूर्ण मालवा और गुजरात से अंग्रेजों को खदेड़ने के लिए क्रांति करी थी. महाराणा बख्तावर सिंह अमझेरा के विद्रोही नरेश थे. इनको और इनके साथियो को इंदौर के सियागंज स्थित छावनी के मैदान में फांसी देने की पूरी तैयारी की जा चुकी थी. छावनी के इलाके में फौजी ग्रस्त कायम कर दी गई. ताकि महाराणा को बचाने के लिए उनकी कोई सहायक फौज आक्रमण न कर सके. सरकार को यह जानकारी मिली थी कि, आदिवासी भील लोगों की एक टुकड़ी इंदौर के आसपास मौजूद है.
वीर महाराणा बख्तावर सिंह राठौड़ जी का संघर्ष
महाराणा बख्तावर सिंह राठौड़ के साथ उनके सहयोगियों में से दीवान गुलाबराव, चिमनलाल एवं बशीर उल्ला खां को फांसी दी जाने वाली थी. फांसी से पूर्व महाराणा चाहते थे कि राजा होने के नाते सबसे पहले मुझे फांसी दी जाए. और उसके बाद किसी दूसरे को फांसी दी जाये. ब्रटिश सरकार ने इस विषय में ने लिया कि महाराणा को सबसे अंत में फांसी दी जाएगी. ताकि वे अपने साथियों को मरते देख कर उस वेदना ना का दंड भी भोग सके.
एक के बाद एक महाराणा बख्तावर सिंह राठौड़ के साथियों को फांसी पर लटका दिया गया. महाराणा को फांसी के तख्ते पर खड़ा किया, तब सूर्योदय हो चुका था. फांसी से पूर्व महाराणा ने हाथ जोड़कर मातृभूमि की वंदना की और उनका शरीर फांसी के फंदे पर भूल गया. एक देशभक्त को अपनी मातृभूमि की आजादी के सच्चे प्रयत्नो का पुरस्कार मिल चुका था.
महाराणा बख्तावर सिंह राठौड़ कौन थे?
महाराणा बख्तावर सिंह राठौड़ मध्य प्रदेश के धार जिले के अंतर्गत अमझेरा के शासक थे. इनका जन्म 14 दिसंबर 1824 ईसवी को वर्तमान मध्यप्रदेश के जिला धार में स्थित अमझेरा में हुआ था. महाराणा बख्तावर सिंह राठौड़ वीरों का बहुत आदर करते थे. उनके पूर्वज मूल रूप से जोधपुर राजस्थान के राठौड़ वंश के राजा थे. मुगल सम्राट जहांगीर ने प्रसन्न होकर उनके वंशजों को अमझेरा का शासक बनाया था. पहले अमझेरा राज्य बहुत बड़ा था. जिसमें भोपावर तथा दत्तीगांव भी सम्मिलित थे. कालांतर में अमझेरा भोपावर और दत्तीगांव प्रथक प्रथक राज्य हो गए. 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम समय अमझेरा के शासक थे, महाराणा बख्तावर सिंह इनके पिता का नाम अजीत सिंह और माता का नाम रानी इन्दर कँवर था.
महाराणा बख्तावर सिंह राठौड़ की शिक्षा-दीक्षा एवं अस्त्रों के संचालन का अच्छा प्रशिक्षण दिया गया था. उनके धार तथा इंदौर के शासकों के साथ अच्छे मैत्रीपूर्ण संबंध थे. इनकी गतिविधियों पर नियंत्रण रखने के तू ही अंग्रेजों ने यहां फौजी छावनी स्थापित की थी, और पोलिटिकल एजेंट भी नियुक्त किए थे.
Summary
नाम | महाराणा बख्तावर सिंह राठौड़ |
उपनाम | राठौड़ जी |
जन्म स्थान | अमझेरा, जिला धार. मध्यप्रदेश |
जन्म तारीख | 14 दिसंबर 1824 ईस्वी |
वंश | राठौड़ |
माता का नाम | रानी इन्दर कँवर |
पिता का नाम | अजीत सिंह राठौड़ |
पत्नी का नाम | — |
उत्तराधिकारी | राव लक्ष्मण सिंह |
भाई/बहन | — |
प्रसिद्धि | स्वतंत्रता सेनानी |
रचना | — |
पेशा | स्वतंत्रता सेनानी/क्रांतिकारी |
पुत्र और पुत्री का नाम | — |
गुरु/शिक्षक | — |
देश | भारत |
राज्य क्षेत्र | मध्य प्रदेश |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | हिंदी |
मृत्यु | 10 फरवरी 1858 ईस्वी |
मृत्यु स्थान | इंदौर, महाराजा यशवंत चिकित्सालय परिसर |
जीवन काल | 34 वर्ष |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Maharana Bakhtawar Singh (महाराणा बख्तावर सिंह) |
अमझेरा महाराणा बख्तावर सिंह राठौड़ 1857 ईस्वी की क्रांति में क्यों कूदे?
महाराणा बख्तावर सिंह राठौड़ तथा इंदौर के महाराजा तुकोजीराव होलकर दितीय के पास प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के प्रारंभ होने की सूचना थी. अति शीघ्र ही मंगल पांडे ने इस क्रांति को प्रारंभ कर दिया. और इसकी आग मेरठ से दिल्ली कानपुर तक जा पहुंची. देखते ही देखते इस विद्रोह की आग देश में चारों और उठने लगी. इसी समय इंदौर के महाराजा तुकोजी राव होल्कर ने रेजिडेंसी पर आक्रमण कर दिया है. वहां का लेफ्टिनेंट डूरंड भागकर होशंगाबाद की अंग्रेजी छावनी में चला गया. इस अवसर का लाभ उठाकर महाराणा बख्तावर सिंह सेना ने भी भोपावर के पोलिटिकल एजेंट पर आक्रमण कर दिया. ताकि उसके जासूसी अड्डे को समाप्त किया जा सके. महाराणा राठौड़ ने अपनी सदला के भवानी सिंह अपने दीवान गुलाब राव के नेतृत्व में सेना भेजी थी.
महाराणा बख्तावर सिंह राठौड़ की सेना के आक्रमण करते ही. भोपावर की अंग्रेजी सेना के मालव भील भी महाराणा की सेना में आकर मिल गए. साथ ही भोपावर की जनता ने भी क्रांतिकारी सेना साथ दिया. अंग्रेज एजेंसी को नष्ट भ्रष्ट कर दिया गया. अतः में वहां के अंग्रेज अधिकारियों एवं सैनिकों को झाबुआ की ओर भागने के लिए विवश होना पड़ा. महाराणा ने अंग्रेज एजेंसी पर आक्रमण करके अपने राज्य 1857 ईस्वी क्रांति का बिगुल फुक दिया था. एक नागरिक मोहनलाल ने अंग्रेजी झंडा उतार कर अपनी रियासत का झंडा लगा दिया. महाराणा ने अमझेरा राज्य में कंपनी शासन को समाप्त कर दिया था.
1857 ईस्वी की क्रांति में महाराणा बख्तावर सिंह राठौड़ का क्या योगदान था?
भोपावर के पोलिटिकल एजेंट कैप्टन एचिसन झाबुआ से भी भागकर इंदौर पहुंच गए. और वहां पर अपनी स्थिति सुदृढ़ कर दी जब इंदौर में क्रांतिकारियों को कुचल दिया गया. तो होशंगाबाद से लेफ्टिनेंट डुरंड पुनः इंदौर आ गए. और यह निश्चित कैप्टन एचिसन को फिर से भोपावर पर अधिकार करने हेतु भेजा जाए.
24 जुलाई अट्ठारह सौ सत्तावन ईसवी को एक विशाल सेना के साथ कैप्टन एचिसन ने भोपावर पर आक्रमण कर दिया, और अपने अधिकार में ले लिया. और दीवान गुलाबराव, कामदार भवानी सिंह एवं चिमनलाल को बंदी बनाकर जेल में डाल दिया गया. अतः महाराणा बख्तावर सिंह राठौड़ ने पुनः भोपावर पर आक्रमण कर दिया. कैप्टन एचिसन के कुछ सैनिक बख्तावर सिंह की सेना में आकर मिल गए, और कुछ भाग गए. भोपावर पर फिर से क्रांतिकारी सेना और महाराणा बख्तावर सिंह राठौड़ का अधिकार हो गया था.
क्रांतिकारी सेना ने भोपावर के बाद सरदारपुर पर आक्रमण कर दिया. जहां अंग्रेजी सेना ने क्रांतिकारियों पर तोपों से गोले बरसाने शुरू कर दिए. परंतु महाराणा बख्तावर सिंह ने सेना की एक टुकड़ी तो वही रखी, और दूसरी टुकड़ी ने धार वह राजगढ़ के क्रांतिकारियों के सहयोग से नदी की ओर से सरदारपुर पर भयंकर आक्रमण कर दिया. दोनों सेनाओं में घमासान युद्ध हुआ. अंत में क्रांतिकारियों की विजय हुई और उन्होंने सरदारपुर पर अपना अधिकार कर लिया. तत्पश्चात क्रांतिकारी सेना ने धार की ओर प्रस्थान किया जहां के शासन भीमराव भोसले ने उनका शानदार स्वागत किया था.
महाराणा बख्तावर सिंह राठौड़ की अंग्रेजों से लड़ाई और फांसी
महाराणा बख्तावर सिंह के नेतृत्व में क्रांतिकारी सेना ने महू, मानपुर एवं मंडलेश्वर पर आक्रमण करने का निश्चय किया. इस पर लेफ्टिनेंट डुरंड महाराणा बख्तावर सिंह को संदेशा भिजवाया. कि हम अमझेरा को स्वतंत्र राज्य मान लेंगे, और अब वहां कोई पोलिटिकल एजेंट नियुक्त नहीं करेंगे. उसने यह भी कहलवाया कि आप महू आकर संधि की विस्तृत शर्तें निश्चित कर ले. महाराणा बख्तावर अंग्रेजों की चालाकी नहीं समझ पाए और वे उनके जाल में फस गए. वह अपने 10 योद्धाओं को साथ लेकर महू में संधि वार्ता के लिए जा पहुंचे. जहां लेफ्टिनेंट डुरंड उनका शानदार स्वागत किया.
एक दिन महाराणा बख्तावर सिंह राठौड़ अपने साथियों के साथ नदी में स्नान करने के लिए गए. उन्होंने हथियार नदी के किनारे पर रख दिए थे,और स्नान करने के लिए नदी में उतर गए. तब छिपे हुए अंग्रेजी सैनिकों ने उनके हथियारों पर कब्जा कर लिया. और महाराणा को उनके साथियों सहित बंदी बना लिया गया. उन पर मुकदमा चलाया गया 28 दिसंबर 1857 ईस्वी को मृत्युदंड की सजा सुनाई गई. 10 फरवरी 18 सो 58 ईस्वी को इंदौर की सियागंज स्थित छावनी के मैदान में महाराणा बख्तावर सिंह राठौड़ तथा उनके कुछ साथियों को फांसी पर लटका दिया गया. स्वाधीनता का यह पुजारी हंसते-हंसते अपनी मातृभूमि के लिए जीवन का बलिदान कर गया.
1857 ईस्वी क्रांति के महान वीरों की गाथा
भारत के महान साधु संतों की जीवनी और रोचक जानकारी
भारत के प्रमुख युद्ध
भारत के राज्य और उनका इतिहास और पर्यटन स्थल
FAQs
Ans- महाराणा बख्तावर सिंह के पूर्वज मूल रूप से जोधपुर राजस्थान के राठौड़ वंश के राजा थे. मुगल सम्राट जहांगीर ने प्रसन्न होकर उनके वंशजों को अमझेरा का शासक बनाया था.