जो व्यक्ति अपने राष्ट्र पर अभिमान नहीं करता वह मुर्दे के समान है. जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है. वह नर नहीं नीरा पशु है और मृतक सम्मान है. जननी और जन्मभूमि स्वर्ग में से बढ़कर हैं. प्रत्येक प्राणी की मृत्यु निश्चित है. कुछ लोग अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए अपनी जान की बाज़ी तक लगा देते हैं. तो कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपनी मातृभूमि के लिए मर मिटने हैं. इतिहास में केवल उन्हीं को याद किया जाता है. जिन्होंने अपने देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते अपने प्राणों का बलिदान कर दिया है. त्यागी व्यक्ति को अपने त्याग का फल एक न एक दिन अवश्य प्राप्त होता है. हम यहाँ शेयर कर रहे है, भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महान वीर नवाब वलीदाद खान की जीवनी (Biography of Nawab Walidad Khan) और उनसे जुड़ी अद्भुत जानकारी.
तो दोस्तों बने रहे हमारे साथ अंत तक नवाब वलीदाद खान की आश्चर्यजनक और रोचक जानकी के लिए.
हमारे देश का दुर्भाग्य रहा है, कि हम अपने शत्रुओं को पहचानने में असफल रहे. यदि पहचान भी लिया तो संगठित होकर उन्हें देश से बाहर निकालने का प्रयास नहीं किया. यदि समस्त भारतीय संगठित होकर मोहम्मद गौरी, बख्तियार खिलजी, बाबर एवं लॉर्ड क्लाइव का विरोध करते. तो आज भारतवर्ष का इतिहास ही कुछ और होता.
1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के समय पहली बार हिंदुओं ने मुसलमानों के सहयोग से अंग्रेजों को भारत के बाहर निकालने का प्रयास किया था. इससे पूर्व मेवाड़ के महाराणा प्रताप और महाराष्ट्र के छत्रपति शिवाजी ने मुगलों की हुकूमत के विरुद्ध अपनी आजादी के लिए संघर्ष किया था. इसलिए आज भी हम ताप तथा शिव जी का नाम लेते हुए अपने आप को गौरवान्वित कर समझते हैं.
वलीदाद खाँ कौन थे?
वर्तमान उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर तहसील से लगभग छह किमी दूर अगौता के गांव मालागढ़ का ऐतिहासिक टीला बगीचों से घिरा है. यहीं पर नवाब वलीदाद खां का जन्म हुआ था. दोस्तों 1857 के अमर क्रांतिकारियों में वलीदाद खां का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है. वलीदाद खान सहाब एक गुमनाम जरूर है, लेकिन इनके इतहास को हर भारतीय को के पास पहुंचना चाहिए. भारत वामपंथियों ने ऐसे महान वीरों का इतिहास का कोठरी में बंद कर के रख दिया. वलीदाद खां वर्तमान उत्तरप्रदेश बुलंदशहर के रहने वाले थे. और मालागढ़ के से क्रांति का संचालन करते थे. कुछ इतिहासकारों ने उनका संबंध दिल्ली के राजघराने से था. जो व्यक्ति अपने देश को प्यार करता था वह अपनी सुख-सुविधा की परवाह नहीं करता.
1857 के समय नवाब वलीदाद खाँ का मालागढ़ रियासत में शासन था, मुगल दरबार में उन्हें खास दर्जा हासिल था. गदर के समय बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र ने उन्हें बुलन्दशहर, अलीगढ़ और एतराफ की सूबेदारी भी सौंप दी. 1857 में मुगल बादशाह द्वारा क्रांतिकारियों का साथ देने के कारण वलीदाद खाँ ने भी उनका साथ दिया तथा अंग्रेजों के खिलाफ अपने इलाके का नेतृत्व किया.
Summary
नाम | नवाब वलीदाद खां |
उपनाम | नवाब वलीदाद खां, मालागढ़ नवाब |
जन्म स्थान | मालागढ़, बुलंदशहर |
जन्म तारीख | — |
वंश | चौधरी |
माता का नाम | —- |
पिता का नाम | — |
पत्नी का नाम | – |
उत्तराधिकारी | – |
भाई/बहन | चौधरी जबरदस्त खाँ, समस्त खाँ, उल्फत खाँ, अमजद खाँ, दूल्हे खाँ- |
प्रसिद्धि | स्वतंत्रता सेनानी/क्रांतिकारी |
रचना | — |
पेशा | नवाब |
पुत्र और पुत्री का नाम | — |
गुरु/शिक्षक | — |
देश | भारत |
राज्य क्षेत्र | उत्तर प्रदेश |
धर्म | मुस्लिम |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | हिंदी/उर्दू |
मृत्यु | — |
मृत्यु स्थान | नेपाल |
जीवन काल | — |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Nawab Walidad Khan |
नवाब वलीदाद खाँ 1857 ईस्वी की क्रांति में क्यों कूदे थे?
वालिदाद खान कुछ कारणों से पहले से ही अंग्रजो की कंपनी सरकार से नाराज थे. वह अवसर की तलाश में थे, जब 1857 ईसवी में क्रांति प्रारंभ हुई तो उन्होंने सरकार के खिलाफ विद्रोह कर दिया. अपने थोड़े से साधनों के आधार पर ही अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई प्रारंभ कर दी. यद्यपि कुछ लोगों ने उनके देश भक्ति के कार्य की सराहना नहीं की. तथापि यह वीर पुरुष बिना प्रशंसा की परवाह किए हुए अपने उचित कार्य करते रहे. मालागढ़ वालिदाद खान का प्रमुख क्रांति केंद्र था. आपको कुछ आसपस के लोगों का समर्थन प्राप्त था, जिनमे चौधरी जबरदस्त खाँ प्रमुख थे.
माला गढ़ का किला कहाँ है?
दोस्तों माला गढ़ का किला उत्तरप्रदेश के बुलंदशहर जिले में स्थित है. भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 ईस्वी की क्रांति की शुरुआत ही इस किले से हुई थी. दुश्मनों की हर स्थिति से निपटने के लिए इस किले में हर वक्त भारी मात्रा में गोला बारूद भी रखा रहता था. एक दिन अंग्रेजों ने तोप के गोले से वार कर माला गढ़ किले को ही धराशायी कर दिया. तब से आज तक यह किला खंडहर बना हुआ है. निशानी के तौर पर किले की कुछ पुरानी दीवारें और एक कुआं आज भी है. अब गांववाले इस धराशायी किले के टीले पर उपले पाथने लगे हैं. ये किला इतिहासिक इस लिए भी है की, यहीं पर नवाब वलीदाद खां का जन्म हुआ था, जो एक महान क्रांतिकारी थे.
जब वलीदाद खाँ अपने बेटे की शादी में नहीं जा पाए!
मालागढ़ के नवाब वलीदाद खाँ तथा चौधरी जबरदस्त खाँ के दरम्यान दोस्ताना ताल्लुकात थे. चौधरी जबरदस्त खाँ का परिवार असौड़ा गाँव का रहने वाला था जो अपनी जमींदारी होने के कारण बाद में हापुड़ के मुहल्ला भण्ड़ा पट्टी में रहने लगे थे. चौधरी जबरदस्त खाँ, समस्त खाँ, उल्फत खाँ, अमजद खाँ, दूल्हे खाँ सहित सात भाई थे, एक बहन भी थी. नवाब वलीदाद खाँ के बेटे की शादी नवाब मुजफ्फरनगर की इकलौती बेटी के साथ हुई थी.
बारात मालागढ़ से मुजफ्फरनगर के लिए रवाना हुई, हापुड़ रास्ते में होने के कारण बारात यहाँ से होकर जानी थी. यहाँ आने पर नवाब वलीदाद खाँ ने चौधरी जबरदस्त खाँ को बारात का मुखिया बनाकर भेजा और खुद वापस लौट गए. नवाब वलीदाद की जगह चौधरी जबरदस्त खाँ ने दूल्हे के बाप की ज़िम्मेदारी निभाई. वलीदाद खाँ जंगे आज़ादी 1857 ईस्वी के मिशन में लगे होने के कारण अपने बेटे की शादी में न जा सके थे.
1857 ईस्वी प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में वलीदाद खाँ जी का क्या योगदान था?
यदि आदमी हिम्मत से काम ले तो अपने किसी भी प्रकार के दुश्मन को भी शिकस्त कर सकता है. वलीदाद खान जी ने जो अंग्रेजों के विरुद्ध जमकर युद्ध लड़ा और गुलावठी की सैनिक चौकी पर अधिकार कर लिया. वलीदाद खान ने आगरा और मेरठ के बीच अंग्रेजों की संचार व्यवस्था तहस-नहस कर दी. यह भी पता चलता है कि खुर्जा पर भी कुछ दिनों तक उनका अधिकार बना रहा 10 सितंबर को गुलावठी के समीप वलीदाद खान अंग्रेजो की कंपनी की सेना के साथ जमकर युद्ध लड़ा. जिसमें अंग्रेजों को वलीदाद खां को पराजित करने में सफलता नहीं मिली थी.
इस बीच मेरठ के कमिश्नर ने सरकार को पत्र लिखा कि अगर वालिदाद खां की गतिविधियों पर नियंत्रण स्थापित नहीं किया गया. तो उसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं. वालिदाद खां बड़ी तीव्र गति से अपनी शक्ति में वृद्धि कर रहा था. उसके विरुद्ध कदम उठाना इसलिए आवश्यक था. ताकि वह सरकार के लिए सर दर्द न बन सके, क्रांतिकारी सरकार की नीति के बारे में अच्छी तरह जानते थे. अतः वालिदाद खां जी ने अपनी सेना को एक नए सिरे से संगठित किया. उसकी वीरता से मुगल सम्राट बहुत प्रसन्न हुआ और उसने उसे अलीगढ़ के सूबेदार के पद पर नियुक्त कर दिया.
वालिदाद खां जी की अंग्रेजो के लड़ाईया और बलिदान
वालिदाद खां ब्रिटिश कंपनी की सेना से युद्ध करने के लिए तैयार थे. 24 सितंबर अट्ठारह सौ सत्तावन ईसवी को उनका ब्रिटिश कंपनी के सैनिकों से घनघोर युद्ध हुआ. जिसमें अनेक लोग हताहत हो गए क्रांतिकारी अंग्रेजों की शास्त्रों से सुसज्जित सेना के समक्ष अधिक समय तक नहीं टिक सके. उन पर अंग्रेज सैनिक निरंतर गोलीबारी करते रहे. क्रांतिकारियों को बहुत नुकसान उठाना पड़ा क्रांतिकारियों ने भी अनेक अधिकारियों को मौत के घाट उतार दिया. परंतु अंत में उनकी पराजय हुई 29 सितंबर को अंग्रेजों ने मालागढ़ के दुर्ग पर डेरा डाल दिया. जिसके कारण वलिदाद खां को विवश होकर अपने साथियों के साथ यहाँ से भागना पड़ा. अंग्रेजों का मालागढ़ किले पर अधिकार हो गया परंतु सुरंग फट जाने के कारण लेफ्टिनेंट होम की मृत्यु हो गई.
यह पता नहीं है कि वलिदाद खान जी की मृत्यु कब और कहां पर हुई इतना सही है. कि उन्होंने अंग्रेजो की सरकार के समक्ष कभी अपने घुटने नहीं टेके. अन्य प्रसिद्ध क्रांतिकारी नेताओं के साथ भी उनका संपर्क था, खान बहादुर खान तथा नाना साहब से भी उनकी भेंट हुई थी. वलीदाद खां के त्याग एवं बलिदान को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता.
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FAQs
Ans- 1857 ईस्वी क्रांति के महान वीर नवाब वालिदाद खां का जन्म उत्तरप्रदेश के बुलंदशहर जिले में स्थित माला गढ़ किले में हुआ था.