दोस्तों हम यहाँ शेयर कर रहे है, 1857 की क्रांति के एक आदिवासी महान वीर टंट्या भील की जीवनी और उनका इतिहास (Biography and History of Tantia Bhil). जिनको टंट्या मामा के नाम से भी जाना जाता है. दोस्तों आपके मन में बहुत सवाल चल रहे होंगे, जैसे टंट्या भील कौन थे?. भील टंट्या मामा का जन्म कब और कहाँ हुआ था. टंट्या भील का 1857 की क्रांति में क्या योगदान था. और टंट्या मामा को फांसी पर क्यों लटकाया गया था. और टंट्या भील टंट्या मामा की मृत्यु कैसे हुई?. ऐसे तमाम सवालों के जवाब आपको इस पेज पर मिलेंगे। तो दोस्तों चलते है और जानते है टंट्या भील की रोचक जानकारी.
टंट्या मामा उर्फ़ टंट्या भील कौन थे?
खंडवा जिला पंधाना तहसील के ग्राम बड़दा मध्य प्रदेश में 26-जनवरी-1842 ईस्वी टंट्या मामा, भारत के रॉबिन हुड टंट्या भील का जन्म एक आदिवासी समाज में हुआ था. आपको बचपन में तॉतिया, टंड्रा आदि नामों से पुकारा जाता था. टंट्या भील के पिताजी का नाम भाऊ सिंह भील था. और माता जी का नाम जीभानि देवी था. टंट्या भील की माता का देहांत जब टंट्या बहुत छोटे थे तभी हो गया था. पिता भाऊ सिंह भील जी ने टंट्या को लाठी, गोफन व तीर कमान चलाने का प्रशिक्षण दिया था. 1857 ईसवी के स्वतंत्रता संग्राम में जिन देशभक्त ने अपनी कुर्बानिया दी थी. उनमें से एक है आदिवासी टंट्या भील. आजादी के इतिहास में इन पर विशेष चर्चा नहीं हुई.
टंट्या भील की वीरता और अदम्य साहस से प्रभावित होकर तात्या टोपे ने उन्हें गुरिल्ला युद्ध में पारंगत बनाया था. वह भील जनजाति के ऐसे योद्धा थे, जो अंग्रेजों को लूटकर गरीबों की भूख मिटाने का काम करते थे. इस लिए अंग्रेजों ने उन्हें ‘इंडियन राबिन हुड’ कहा था.
और दोस्तों इस लिए ही मध्यप्रदेश के मालवा और निमाड़ अंचल के आदिवासी आज भी उन्हें अपना देवता मानते हैं. इसी कारण इंदौर के निकट पातालपानी में टंट्या भील की प्रतिमा स्थापित कर मंदिर बनाया गया है. जहां आज भी आदिवासी उनकी देवता की भांति पूजा करते हैं. और उनसे मनौती मांगते हैं. तो दोस्तों हम कह सकते है, टंट्या भील आदिवासी समाज के लोकल देवता है.
Summary
नाम | टंड्रा भील, टंट्या भील |
उपनाम | टंट्या मामा, भारत के रॉबिन हुड टंट्या भील |
जन्म स्थान | खंडवा जिला पंधाना तहसील के ग्राम बड़दा मध्य प्रदेश |
जन्म तारीख | 26-जनवरी-1842 ईस्वी |
वंश | भील |
माता का नाम | जीभानि देवी |
पिता का नाम | भाऊ सिंह भील |
पत्नी का नाम | — |
भाई/बहन | — |
प्रसिद्धि | गुरिल्ला युद्ध में पारंगत, आदिवासियों के हक के लिए लड़ाई |
रचना | — |
पेशा | क्रांतिकारी, स्वतंत्रता सेनानी |
पुत्र और पुत्री का नाम | — |
गुरु/शिक्षक | — |
देश | भारत |
राज्य क्षेत्र | मध्य प्रदेश |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | हिंदी, आदिवासी |
मृत्यु | 04 दिसम्बर 1889 को फाँसी दी गई थी |
जीवन काल | लगभग 47 साल |
पोस्ट श्रेणी | Biography and History of Tantia Bhil (तांतिया भील की जीवनी और इतिहास) |
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टंट्या भील का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
दोस्तों टंट्या भील का जन्म 20-अक्टूबर-1842 में मध्य प्रदेश के खंडवा मालवा बड़दा में हुआ था. आपका बचपन का नाम टंट्या भील नहीं तांतिया भील/टंड्रा भील था. अंग्रेजों ने उन्हें ‘इंडियन राबिन हुड’ कहा था. क्यों की टंट्या भील अंग्रजो से लूट कर गरीबो में बाट देते थे. इस लिए आदिवासी आज भी इनको देवता मानते है और इनकी पूजा करते है. आप एक आदिवासी परिवार में जन्म लिया और गरीबो के हीरो साथ ही आप 1857 की क्रांतिकारियों से बहुत प्रभावित थे. इस लिए आप समय-समय पर अंग्रजो को लूट लेते थे.
1857 की क्रांति में टंट्या भील का क्या योगदान था?
अंग्रेज 1857 के महासमर को अन्य राज्यों की तरह मध्यप्रदेश में भी कुचलने पर तुले हुए थे. उस समय आदिवासी टंट्या भील ने अंग्रेजो के विरुद्ध बगावत का बिगुल बजा दिया. टंट्या का जन्म मालवा निमाड़ इलाके में हुआ था. धीरे-धीरे टंट्या भील का जलगांव, सतपुड़ा की पहाड़ियों से लेकर मालवा और बैतूल तक दबदबा बढ़ गया. वे आदिवासियों के सुख-दुख के समर्थन में थे. और उनके सम्मान की रक्षा के लिए कुछ भी करने के लिए तत्पर रहते थे.
टंट्या भील आदिवासी रोबिन हुड कैसे बन गए?
दोस्तों धीरे-धीरे टंट्या भील आदिवासी लोगों के इंडियन रोबिन हुड बन गए. और उन्होंने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया. क्यों की टंट्या अंग्रेजों की धन संपत्ति लूट कर गरीब आदिवासी में बांट देते थे. इनसे परेशान होकर अंग्रेजों ने उन्हें डाकू घोषित कर दिया. और उन पर इनाम भी रख दिया बाद में उन्हें गिरफ्तार कर जबलपुर की जेल में 1889 में इनको फांसी पर लटका दिया.
टंट्या भील में क्या-क्या शक्तियों थी?
दोस्तों टंट्या भील के बारे में कहा जाता है. कि उन्हें अनेक शक्तियां प्राप्त थीं. इन्हीं शक्तियों के सहारे टंट्या एक ही समय में एक साथ सैकड़ों गांवों में सभाएं करते थे. टंट्या मामा की इन शक्तियों के कारण अंग्रेजों के दो हजार सैनिक भी उन्हें पकड़ नहीं पाते थे. वे देखते ही देखते वह अंग्रेजों की आंखों के सामने से ओझल हो जाते थे.
आदिवासियों के लोकल देवता क्यों है टंटया भील?
इंदौर से 45 किलोमीटर दूर पातालपानी कालाकुंड रेलवे स्टेशन के लाइनमेन राम अवतार का मानना है. कि टंट्या भील के पास कई अद्भुत शक्तियां थी. जिनके कारण वे अंग्रेजों के साथ लुकाछिपी का खेल खेलते थे. यह भी माना जाता है कि पातालपानी में निर्मित टंट्या भील के मंदिर में मांगी गई मुरादें पूरी हो जाती है. इतना ही नहीं इस रेल मार्ग से गुजरने वाली प्रत्येक ट्रेन यहां टंट्या के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने के लिए रूकती है. और ट्रेन का ड्राइवर टंट्या की प्रतिमा को नारियल अगरबत्ती अर्पित करने के बाद ही ट्रेन को आगे बढ़ाता है.
दोस्तों अपने अलौकिक शक्तियों के कारण टंट्या भील अंग्रेजों से सामान लूटकर कुछ ही देर में ओझल हो जाते थे. वह गरीब लोगों की सहायता करते थे. इस कारण धीरे-धीरे उनका प्रभाव पूरे आदिवासी क्षेत्र में फैल गया. इनकी मृत्यु के बाद भी इनके चमत्कार माने जाते है, आज भी इनके मंदिर में मनत मांगने पर पूरी होती है का दावा यहाँ के लोग करते है.
टंट्या भील की मृत्यु कैसे हुई?
टंट्या भील की मृत्यु के बारे में कहा जाता है. एक बार इनके करीबी दोस्त ने इनके साथ धोखा किया. वो अंग्रजो के साथ मिला हुआ था, के कारण टंट्या अंग्रेजों की पकड़ में आ गए. और 04-दिसंबर-1889 को उन्हें फांसी दे दी गई. फांसी के बाद अंग्रेजों ने उनके शव को इंदौर के निकट खंडवा रेल मार्ग पर स्थित पातालपानी रेलवे स्टेशन के पास फेंक दिया. इसी जगह को टंट्या की समाधि स्थल माना जाता है. इस रेल मार्ग से गुजरने वाली प्रत्येक ट्रेन आज भी यहां टंट्या भील के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने के लिए रूकती है.
क्या लंदन भेज दिया था टंट्या भील का शव?
बताते हैं कि टंट्या भील को पीर बाबा की शक्ति थी. जिससे वे 2 मिनट में कहीं भी गायब हो सकते थे. निशाना तीर कमान का इतना तेज था. कि बंदूक की गोली भी उनके आगे फीकी पड़ती थी. टंट्या भील को आखिर क्यों फांसी दी गई. इसमें बहाना यह तय किया गया था. कि यहां के जमीदार से बदतमीजी और मनगढ़ंत डकैती के मामले उन पर लगा दिए गए थे.
वे सुलाखेड़ी गांव में उनकी मौसी के घर पकड़ाए गए थे. अंग्रेज इनसे इतने परेशान थे कि उन्होंने जबलपुर में फर्जी मुकदमा टंट्या भील पर चला कर तुरंत फांसी दे दी. अंग्रेजों को खौफ था कि जादुई करिश्मे से वे फिर जिंदा न हो जाए. इसलिए उनका शव भी लंदन ले जाया गया यह रहस्य एक रिसर्च के बाद पिछले दिनों कार्यशाला में खुलासा हुआ है. यह कितना सही और कितना गलत है इसका पता हमे आगे आने वाले दिनों पता लग सकता है.
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FAQs
Ans- टंट्या भील आदिवासी भील समाझ के लोकल देवता है.
Ans- टंट्या भील का इंदौर के निकट खंडवा रेल मार्ग पर स्थित पातालपानी रेलवे स्टेशन के समाधी स्थल ही मंदिर है.