Biography of Jaitpur Rani Fattamveer | जैतपुर रानी फत्तमवीर

By | December 10, 2023
Biography of Jaitpur Rani Fattamveer
Biography of Jaitpur Rani Fattamveer

दोस्तों हम यहाँ शेयर करने जा रहे है जैतपुर की रानी वीर बहूटी की जीवनी (Biography of Jaitpur Rani Fattamveer) और उनकी रोचक जानकारी. तो दोस्तों चलते है और जानते है, इस महान वीरांगना की आश्चर्यजनक जानकारी और 1857 में इनकी क्या भूमिक रही थी. जैतपुर बुंदेलखंड की एक छोटी सी रियासत थी प्रसिद्ध इतिहासकार सुंदरलाल ने लिखा है. कि कंपनी की सरकार ने 27 नवंबर 1842 ईस्वी में जैतपुर पर अधिकार कर अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया था. उस समय जैतपुर पर आजादी के प्रेमी राजा परीक्षित शासन कर रहे थे. उनका मुख्य उद्देश्य अंग्रेजी सत्ता को भारत से उखाड़ फेंकना था. पर वह ब्रटिश कंपनी की तुलना में कमजोर थे. अतः कंपनी की सेना ने बहुत आसानी से उन्हें पराजित कर दिया.

और जैतपुर पर अधिकार कर लिया ऐसी स्थिति में परीक्षित को जयपुर छोड़कर भागने के लिए विवश होना पड़ा. अंग्रेज सरकार ने अपने एक समर्थक सामंत को जैतपुर का शासन बना दिया. इससे जैतपुर के राजा परीक्षित को मानसिक आघात पहुंचा. वे इस दुख को सहन नहीं कर सके और इस दुनिया से चल बसे.

जैतपुर की रानी कौन थी?

दोस्तों जैतपुर की रानी का नाम फत्तमवीर था, जिन्होंने अपने पति के मृत्यु के बाद अंग्रजो के खिलाफ युद्ध में कूद पड़ी थी.1803 में महाराजा छत्रसाल के पौत्र पारीक्षत ने अंग्रेजों के खिलाफ आजादी का शंखनाद किया था. पारीक्षत के बाद जैतपुर की रानी फत्तमवीर ने उनकी इस चिंगारी को ज्वाला बनाने का काम किया. बुंदेलखंड के पूर्वी क्षेत्र में जैतपुर की रानी, जालौन की वीरांगना ताईबाई व झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के दांत खट्टे किए.

Summary

नामरानी फत्तमवीर
उपनामरानी वीर बहूटी
जन्म स्थानजैतपुर बुंदेलखंड
जन्म तारीख
वंश
माता का नाम
पिता का नाम
पति का नामराजा पारीक्षत
भाई/बहन
प्रसिद्धिरानी, शासक, स्वतंत्रता सेनानी
रचना
पेशाशासक, स्वतंत्रता सेनानी
पुत्र और पुत्री का नाम
गुरु/शिक्षक
देशभारत
राज्य क्षेत्रउत्तर प्रदेश, जैतपुर बुंदेलखंड
धर्महिन्दू
राष्ट्रीयताभारतीय
भाषाहिंदी
मृत्यु1857 ईस्वी
जीवन काललगभग 55 साल
पोस्ट श्रेणीBiography of Jaitpur Rani Fattamveer (जैतपुर रानी फत्तमवीर की जीवनी)
Biography of Jaitpur Rani Fattamveer

जैतपुर की रानी फत्तमवीर को किसका सहयोग मिल रहा था?

इतिहासकार डा. एलसी अनुरागी बताते हैं कि तत्कालीन चरखारी नरेश अंग्रेजों की गुलामी करते थे. उन्होंने एक बार अंग्रेजों के समक्ष प्रस्ताव रखा था कि यदि सरकार चाहे तो वह अपनी फौज जैतपुर की रानी से युद्ध करने के लिए भेज सकते हैं. अंग्रेजों ने जैतपुर की रानी से कई बार कहा कि वह यहां न आएं पर उन्होंने प्रस्ताव को ठुकरा दिया क्योंकि रानी को अलीपुरा, रेवारी, बीहट के जागीरदार देशपत, जैत¨सह का भी सहयोग मिल रहा था.

वीरांगना जैतपुर की रानी फत्तमवीर 1857 की क्रांति में क्यों कूदी?

अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी विस्तार वादी नीति का पालन कर रही थी. अंग्रेजी फौज गवनर लॉर्ड क्लाइव ने भारत में अंग्रेजी राज्य की स्थापना की थी. जिसे लार्ड कार्नवालिस तथा लार्ड वेलेजली ने भारत के कोने कोने में फैला दिया था. लॉर्ड डलहौजी ने हड़प नीति अपनाते हुए जहां से सातारा आदि राज्यों को भी कंपनी के साम्राज्य में मिला लिया था.

उसने भारत के बचे हुए सरदारों तथा राजाओं के अधिकार को भी समाप्त कर दिया था. लॉर्ड ऐलनबरो ने जैतपुर की छोटी सी स्वतंत्रता रियासत के अस्तित्व को भी तहस-नहस कर दिया था. इस कारण जैतपुर की रानी अपने राज्य प्राप्त करने और अंग्रजो से बदला लेने के लिए अंग्रज सेना से लड़ाईया लड़ी थी.

1857 ईस्वी की क्रांति में जैतपुर की रानी का क्या योगदान था?

जैतपुर के राजा परीक्षित की मृत्यु के बाद उनकी रानी ने प्रतिज्ञा की कि वे अपने जीवन के अंतिम समय में अंग्रेजों की दासता स्वीकार नहीं करेगी. उन्होंने प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय अन्य राजाओं की भांति विद्रोह किया और अपने राज्य को पुनः प्राप्त करने के लिए अंग्रेजों से संघर्ष प्रारंभ कर दिया. मालवा, बानपुर तथा शाहगढ़ आदि स्थानों पर विद्रोह का झंडा फहरा दिया गया.

1857 की क्रांति के समय रानी को स्थानीय ठाकुरों का भी सहयोग प्राप्त हुआ. उसने उनके सहयोग से अपने को स्वतंत्र घोषित कर दिया. और तहसीलदारों के समस्त सुरक्षित कोष पर अधिकार कर लिया था. इस प्रकार जैतपुर की रानी ने अंग्रजो को तंग कर दिया था. और अपना खोया हुआ सम्राज्य प्राप्त किया था. जैतपुर की रानी ने अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष जारी रखा परंतु, अंत में उन्हें युद्ध के मैदान से भागने के लिए विवश होना पड़ा. जैतपुर की रानी के उत्साह एवं साहस को हम कभी नहीं भुला सकते उन्होंने अपने त्याग और बलिदान के कारण भारतीय इतिहास में अपना नाम अमर कर दिया.

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भारत के क्रांतिकारी 1857 की क्रांति क्यों नहीं जीत पाए

भारत के लिए यह दुर्भाग्य की बात है कि अपने ही लोग संकट के समय देश के दुश्मन की मदद करते रहे हैं. अगर जयचंद पृथ्वीराज चौहान की मदद कर देता तो हिंदुस्तान में मोहम्मद गौरी का शासन कभी स्थापित नहीं होता. अगर प्लासी के युद्ध में 1757 में नवाब सिराजुद्दौला का मुख्य सेनापति मीर जाफर अंग्रेजों से मिलकर नवाब के साथ धोखा ना करता. तो आज भारत का इतिहास ही कुछ और होता. प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जहां एक ओर रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, बाबू कुंवर सिंह आदि ने अंग्रेजी हुकूमत को धराशाई करने के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया.

वही दूसरी ओर कुछ राजपूत शासकों, सिखो तथा गोरखो ने इस संग्राम को कुचलने में अंग्रेज सरकार की मदद की. यहां भी यही हुआ एक महिला अंग्रेजो के खिलाफ संघर्ष कर रही थी. तो कुछ देशद्रोही शासक तथा सामंत उसके विरुद्ध अंग्रेजों की मदद कर रहे थे. चरखेरी का राजा अंग्रेजों का मित्र था. उसने अंग्रेज सरकार के समर्थन में रानी की सेना से युद्ध प्रारंभ कर दिया कुछ दिनों तक भयंकर युद्ध चला जिसमें अनेक क्रांतिकारी इस देश की आजादी के लिए शहीद हो गए. और रानी को कैद कर लिया गया.

जैतपुर की रानी फत्तमवीर का अंतिम समय

रानी फत्तमवीर अपने आसा पास के ठाकुर और अन्य सबके सहयोग से जैतपुर रियासत पर कब्जा कर लिया और मैहर पर भी अधिकार कर लिया था. सिमरिया व मैहर में अंग्रेजों ने बाद में अपना हक जमा लिया पर जैतपुर की रानी उनसे लोहा लेती रहीं. इसके बाद 20 जुलाई 1857 को चरखारी नरेश व अंग्रेजो ने धोखे से रानी को बंदी बना टेहरी रियासत भिजवा दिया. जहां उन्हें गढ़ कुंडार के मजबूत किले में कैद करके रखा गया.

उसके बाद जतारा के एक किले में रखा गया. जैतपुर की रानी के उत्साह एवं साहस को हम कभी नहीं भुला सकते. उन्होंने अपने त्याग और बलिदान के कारण भारतीय इतिहास में अपना नाम अमर कर दिया. हम जैतपुर की रानी को नमन करते है, ऐसी महान वीरांगना के बलिदान से हम आज खुली हवा में साँस ले रहे है.

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FAQs

Q- जैतपुर की रानी फत्तमवीर के पति पारीक्षत किस के पौत्र थे?

Ans- जैतपुर की रानी फत्तमवीर के पति पारीक्षत महाराजा छत्रसाल के पौत्र थे.

Q- जैतपुर रानी फत्तमवीर के पति का क्या नाम था?

Ans- पारीक्षत.

भारत की संस्कृति

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