दोस्तों 18 सो 57 के स्वतंत्रता क्रांति में दिल्ली से 20 मील पूर्व जाटों के एक नवयुवक राज नाहर सिंह ने भी अपने त्याग, बलिदान से सबको आश्चर्यचकित कर दिया था. जाट राजा बहुत ही वीर पराक्रमी एवं चतुर था. राजा नाहर सिंह बल्लभगढ़ की रियासत के एक जाट राजा थे. जिन्होंने 1739 के आसपास वर्तमान फरीदाबाद में एक किले का निर्माण भी करवाया था. दिल्ली का मुगल सम्राट उसका बहुत सम्मान करता था. उसके लिए सम्राट के सिंघासन के समीप ही सोने की कुर्सी लगाई जाती थी. वर्तमान में राजा नाहर सिंह के नाम पर हरियाणा के फरीदाबाद जिले में दिल्ली बल्लभगढ़ मैट्रो लाइन पर इनके नाम पर मैट्रो स्टेशन है. दोस्तों हम यहाँ शेयर करने जा रहे है, नाहर सिंह जी की जीवनी (Biography of Nahar Singh). और उनसे जुड़े अनसुने किस्से और रोचक जानकारी. तो दोस्तों चलते है और जानते है नाहर सिंह जी आचर्यजनक जानकारी.
नाहर सिंह कौन थे?(Biography of Nahar Singh)
राजा नाहर सिंह का जन्म 06 अप्रैल 1821 बल्लभगढ़ में हुआ था. आपका बचपन का नाम नरसिंह था. आपके पिता जी का नाम राजा रामसिंह था जो बल्लभगढ़ के राजा थे. दोस्तों कहाँ जाता है, बल्लभगढ़ राज्य तेवतिया वंश के जाटों द्वारा स्थापित एक महत्वपूर्ण रियासत थी. बलराम सिंह तेवतिया, जो भरतपुर राज्य के महाराजा सूरज मल सिनसिनवार के बहनोई थे. उन्होंने ही बल्लभगढ़ राज्य स्थापना की थी और यहाँ के पहले शासक थे. और नाहर सिंह उनके सातवीं पीढ़ी के वंशज थे. सन 1830 में नाहर सिंह जी के पिता की मृत्यु हो गई, जब वे लगभग 9 वर्ष के थे. उनका पालन-पोषण उनके चाचा नवल सिंह ने किया, जिन्होंने राज्य के मामलों को चलाने की जिम्मेदारी संभाली. नाहर सिंह को 20 जनवरी 1839 को बसन्त पंचमी के दिन 18 वर्ष की आयु में बल्लभगढ़ रियासत का ताज पहनाया गया था.
Summary
नाम | नरसिंह जी तेवतिया |
उपनाम | राजा नाहर सिंह |
जन्म स्थान | बल्लभगढ़, फरीदाबाद हरियाणा |
जन्म तारीख | 06 अप्रैल 1821 ईस्वी |
वंश | तेवतिया जाट |
माता का नाम | बसन्त कौर |
पिता का नाम | राजा रामसिंह |
पत्नी का नाम | राजकुमारी रघुबीर कौर |
भाई/बहन | रणजीत सिंह |
प्रसिद्धि | स्वतंत्रता सेनानी, बल्लभगढ़ में अंग्रेजो को हराना |
रचना | — |
पेशा | शासन, स्वतंत्रता सेनानी, क्रांतिकारी |
पुत्र और पुत्री का नाम | कुशल सिंह |
गुरु/शिक्षक | पण्डित कुलकर्णी जी |
देश | भारत |
राज्य क्षेत्र | हरियाणा |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | हिंदी, हरियाणवी |
मृत्यु | 09-जनवरी-1858 |
जीवन काल | लगभग 38 साल |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Nahar Singh (राजा नाहर सिंह का जीवन परिचय) |
नरसिंह से नाहर सिंह क्यों कहलाये?
दोस्तों एक बार नरसिंह जी जंगल में शिकार करने निकले थे. जब बिच जंगल में उनके ऊपर शिकार करते वक्त एक शेर ने हमला कर दिया था. तब नरसिंह और इनके अंगरक्षक ने शेर से टक्कर ली. पर अंगरक्षक मृत्यु हो गयी फिर भी नरसिंह ने शेर को मार गिराया. उस समय ये मात्र 16 साल के ही थे. तब इनका नाम नर सिंह से नाहर सिंह नाहर मतलब (शेर को मारने) से पड़ा था. उसके बाद आपका विवाह कपूरथला पंजाब रियासत के राजा की पुत्री रघुबीर कौर से कर दिया गया था.
20 जनवरी 1839 को को बसन्त पंचमी के दिन 18 वर्ष की छोटी सी उम्र में बल्लभगढ़ की गद्दी पर आपका का राजतिलक हुआ. राजा बनते ही उन्होंने सेना को मजबूत करना शुरू कर दिया. बल्लभगढ़ रियासत का उस समय नाम बलरामगढ़ था. जो इसके संस्थापक महाराजा बलराम सिंह के नाम पर पड़ा था. इस रियासत की ओर अंग्रेजों की आँख उठाने की हिम्मत कभी नही हुई.
1867 ईस्वी की क्रांति में राजा नाहर सिंह का क्या योगदान था?
मेरठ के क्रांतिकारियों ने जब दिल्ली पर अधिकार करने के बाद बहादुरशाह जफ़र को पुनः मुगल सम्राट बनाकर सिंहासन पर बैठाया दिया था. तो यह सवाल सभी के मन में चल रहा था. की दिल्ली की सुरक्षा का दायित्व किसे दिया जाए. उन्ही दिनों मोहब्बत बख्त खां 15 रुहेल सैनिकों सहित मुगल सम्राट की सहायता के लिए दिल्ली पहुंच चुका था. उसने भी यही सुझाव दिया कि दिल्ली के पूर्वी मोर्चे की कमान का उत्तरदायित्व नाहर सिंह को सौंप दिया जाए. बहादुर शाह जफर तो नाहर सिंह को बहुत मानता था.
अंग्रेजों की दासता से मुक्ति प्राप्त करने के बाद दिल्ली में 134 दिन स्वतंत्र जीवन व्यतीत किया। इस काल में राजा नाहर सिंह ने स्थान स्थान पर चौकियां बनवाई और उनके रक्षक तथा गुप्तचर नियुक्त कर दिए. उन्होंने दिल्ली के पर्व में भी सुदृढ़ मोर्चाबंदी कर ली थी. अंग्रेजों ने दिल्ली पर पूर्व की ओर से आक्रमण करने का साहस तक नहीं किया था. 13 सितंबर अट्ठारह सौ सत्तावन ईसवी को अंग्रेजों ने कश्मीरी दरवाजा जिसको आज कल कश्मीरी गेट के नाम से पुकारते हैं दिल्ली पर आक्रमण किया.
तो वहां के लोगों में भगदड़ मच गई बहादुर शाह जफर को भी भागकर हुमायूं के मकबरे में शरण लेनी पड़ी. नाहर सिंह में मुगल सम्राट से बल्लभगढ़ चलने का सुझाव दिया. पर सम्राट के अंग्रेज भक्त सलाहकार इलाही बख्श के निवेदन पर बहादुरशाह जफ़र ने हुमायु के मकबरे में रेहान ही उचित समझा. इलाही बख्श के मन में बेईमानी थी, अंत इसका परिणाम भी विपरीत आने ही थे.
अंग्रेजो द्वारा बहादुर शाह जफर को कब और कहाँ गिरफ्तार किया गया था?
अंग्रेज शर्मा के मेजर हडसन में बहादुरशाह जफर को हुमायूं के मकबरे के गिरफ्तार कर लिया. और उनके दोनों बेटो को मौत के घाट उतार दिया. नाहर सिंह ने बल्लभगढ़ पहुंचते के बाद नए सिरे से मोर्चाबंदी की. और अंग्रेजों से संघर्ष करने का निश्चय किया. उन्होंने आगरा से दिल्ली की ओर बढ़ने वाली अंग्रेजी फौज की धज्जियां उड़ा दी. बल्लभगढ़ के मोर्चे पर बहुत बड़ी संख्या में अंग्रेजी मारे गए. और हजारों अंग्रेजों को बंदी बना लिया गया था. कहते है की, इतने अंग्रेज मारे गए की नालियों में से खून बहकर जब नगर तालाब में पहुंचा. तब उस बल्लभगढ़ नगर तालाब का पानी भी लाल हो गया था.
1857 ईस्वी की क्रांति और बल्लभगढ़ पर अंग्रजो का आक्रमण
जब अंग्रेजों को लगा कि नाहर सिंह पर विजय प्राप्त करना कठिन है. तो उन्होंने जुठ और कपट का सहारा लिया. उन्होंने युद्ध बंद करने के लिए संदेश सूचक सफेद झंडा फेरा दिया. तत्पश्चात अंग्रेज सेना के 2 प्रतिनिधि किले में जाकर नाहर सिंह से मिले. और उसे बताया कि दिल्ली से समाचार प्राप्त हुआ है. कि मुगल सम्राट तथा अंग्रेजों के बीच संधि हो रही है. और सम्राट के शुभचिंतक और विश्वासपात्र के नाते परामर्श के लिए सम्राट ने आपको याद किया है. उन्होंने बताया कि इसी कारण हमें संधि का सफेद झंडा फहराया है.
जाट राजा नाहर सिंह बहुत ही भोला था. वह झूठे कपटी अंग्रेजों की चाल में आ गया. उन्होंने अपने 500 सैनिकों के साथ दिल्ली की ओर प्रस्थान कर लिया. दिल्ली में नाहर सिंह को गिरफ्तार करने के लिए एक विशाल अंग्रेज सेना को छिपा दी गई थी. जैसे ही जाट राजा ने किले में प्रवेश किया, अंग्रेजी फौज ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. अब शेर अंग्रेजों के पिंजरे में बंद हो गया था. अगले दिन अंग्रेजी फौज अपनी संपूर्ण शक्ति से बिना राजा की सेना बल्लभगढ़ पर आक्रमण कर दिया. दोस्तों 3 दिन तक घमासान युद्ध हुआ अंग्रेजों का बल्लभगढ़ पर अधिकार हो गया.
नाहर सिंह को समर्पण के लिए हडसन की कोशिस
जिस हडसन ने बहादुरशाह जफ़र को गिरफ्तार किया था और उसके बेटों को मौत के घाट उतारा था और उसका चुल्लू भर खून पिया था. उस हडसन ने नाहर सिंह से कहाँ नाहर सिंह मैं तुम्हें फांसी से बचाने के लिए कह रहा हूं तुम थोड़ा झुक जाओ. नाहर सिंह हडसन का अपमान करने की दृष्टि से उसकी और पीठ करते हुए कहा. जाट नाहर सिंह वह राजा नहीं है जो अपने देश के शत्रुओं के आगे झुक जाए. अंग्रेज लोग मेरे देश के दुश्मन हैं मैं उनसे क्षमा नहीं मांग सकता. एक नाहर सिंह चला गया तो क्या हुआ कल लाखों नाहर सिंह पैदा हो जाएंगे.
नाहर सिंह को फांसी पर कब और कहाँ एवं फांसी पर क्यों लटकाया गया था?
मेजर हडसन नाहर सिंह का जवाब सुनते ही बोखला गया. अंग्रेजों ने बदले की भावना से राजा नाहर सिंह को खुलेआम फांसी पर लटकाने की योजना बनाई. जहां आजकल चांदनी चौक का फवारा है. उसी स्थान पर फांसी का फंदा बनाया गया था. ता कि बाजार में आने जाने वाले लोग भी नाहर सिंह को फांसी पर झूलता हुआ देख सकें. दोस्तों फांसी वाले स्थान के समीप ही राजा नाहर सिंह का दिल्ली स्थित आवास था.
अंग्रेजों ने जानबूझकर राजा की फांसी के लिए 36 वर्ष में प्रवेश करने वाला दिन फांसी के लिए निर्धारित किया था. 09-जनवरी-1858 को राजा नाहर सिंह ने फांसी का फंदा अपने गले में डाल कर अपना 36 वा जन्मदिन मनाया. और उनके के साथी कुशाल सिंह, गुलाब सिंह सैनी और भूरेसिंह को भी फांसी दे दी गई. दिल्ली की जनता ने अपने लोकप्रिय एवं वीर राजा को अश्रुपूरित नयनों से फांसी पर झूलते हुए देखा.
फांसी पर लटकाने से हडसन ने राजा से पूछा था. तुम्हारी आखिरी इच्छा क्या है. राजा ने कहा मैं तुमसे और अंग्रेजी सरकार से कुछ मांग कर अपना स्वाभिमान नहीं खोना चाहता हूं. मैं तो अपने सामने खड़े हुए अपने देशवासियों से कह रहा हूं. क्रांति की चिंगारी को भुजने नहीं देना.
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FAQs
Ans- बल्लभगढ़ के राजा नाहर सिंह को फांसी पर 09-जनवरी-1858 को दिल्ली के चांदनी चौक फवारे के पास लटकाया गया था.
Ans- राजा नाहर सिंह के साथ गुलाब सिंह सैनी भूरा वाल्मीकि व खुशाल सिंह को फांसी पर लटकाया गया था.
Ans- बालक नाहर सिंह का जन्म गोगा जी की पूजा के बाद हुआ था, इसलिए बल्लभगढ़ की प्रजा उन्हें गोगा जी का अवतार मानती है.