दोस्तों हम यहाँ शेयर करने जा रहे है, चहलारी के जमीदार ठाकुर बलभद्र सिंह जो अद्भुत जानकारी जिसके बारे में आज से पहले अनजान थे. दोस्तों साथ ही आप जानेगे राजा बलभद्र सिंह जी की जीवनी (Biography of Raja Balbhadra Singh), और उनसे जुड़ी रोचक जानकरी. अवध राज्य में 33 गांव की एक जमींदारी थी चहलारी. प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के समय 18 वर्षीय ठाकुर बलभद्र सिंह चहलारी के जमीदार थे. इस किशोर योद्धा ने इस महासंग्राम में खुलकर अपनी वीरता का प्रदर्शन किया. इनकी वीरता की यशोगाथा अंग्रेज लेखकों ने भी लिखी है.
राजा बलभद्र सिंह कौन थे?
दोस्तों उत्तर प्रदेश के वर्तमान समाय में बहराइच जिले और नेपाल की सीमा से लगने वाले क्षेत्र चहलारी की ये घटना है. चाहलारी बहराइच के 18 वर्षीय जमींदार ठाकुर बलभद्र सिंह ऐसे ही वीर थे. उनके पास 33 गाँवों की जमींदारी थी. ठाकुर की गाथाएँ आज भी लोकगीतों में जीवित हैं. आपने अनेक समय स्वतंत्रता सेनानियों के छोटे-छोटे गुटों से मिलकर छापामार प्रणाली से युद्ध किया और अंग्रेजों की नींद हराम कर दी थी.
Summary
नाम | राजा बलभद्र सिंह रैकवार |
उपनाम | चहलारी के जमीदार |
जन्म स्थान | चहलारी, बहराइच |
जन्म तारीख | 10 जून सन 1840 |
वंश | रैकवार |
माता का नाम | महारानी पंचरतन देवी |
पिता का नाम | राजा श्रीपाल सिंह |
पत्नी का नाम | रानी कल्याणी |
उत्तराधिकारी | जंग बहादुर राणा |
भाई/बहन | छत्रपाल सिंह |
प्रसिद्धि | स्वतंत्रता सेनानी |
रचना | — |
पेशा | क्रांतिकारी |
पुत्र और पुत्री का नाम | — |
गुरु/शिक्षक | बेगम हजरत महल |
देश | भारत |
राज्य क्षेत्र | उत्तर प्रदेश |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | हिंदी |
मृत्यु | 13-जून-1858 |
मृत्यु स्थान | बाराबंकी के ओवरी जंगल |
जीवन काल | लगभग 19 वर्ष |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Raja Balbhadra Singh |
1857 ईस्वी की क्रांति में ठाकुर बलभद्र सिंह का क्या योगदान था?
10 मई 1857 की क्रांति के संखनाद के साथ ही संपूर्ण देश में स्वतंत्रता संघर्ष प्रारंभ हो गया. राजा बलभद्र सिंह ने भी इस समय एक विशाल सेना तैयार की, और इस महासंग्राम में शामिल हो गए. अवध क्षेत्र के स्वतंत्रता प्रेमी सैनिकों ने 31 मई से विजई अभियान शुरू किया और 10 जून तक सीतापुर, बहराइच, टिकोरा गोंडा, फैजाबाद, सुल्तानपुर एवं सलोनी पर स्वराज्य का झंडा फहराया दिया.
जून के अंत तक पूरा अवध क्षेत्र अंग्रेजी साम्राज्य से मुक्त करवा लिया गया. जुलाई अट्ठारह सौ सत्तावन से लेकर फरवरी 1858 तक अंग्रेजों ने लखनऊ और अवध पर अधिकार करने के अथक प्रयास किए. जिसमें उन्हें असफलता ही हाथ लगी. फरवरी 1858 ईस्वी के बाद अंग्रेजों ने दिल्ली कानपुर और लखनऊ पर अधिकार कर लिया. इसके बाद भी स्वतंत्रता सेनानियों ने छोटे-छोटे गुटों से छापामार प्रणाली से युद्ध किया, और अंग्रेजों की नींद हराम कर दी थी.
ठाकुर बलभद्र सिंह की लड़ाईया?
जून 1858 ईसवी के बाद राणा बेनी, माधव राजा रामबख्श सिंह, चांद सिंह हनुमंत सिंह, बलभद्र सिंह वीर, नरपति सिंह एवं शहजादा फिरोजशाह आदि स्वतंत्रता प्रेमी योद्धा अपनी अपनी सेना के साथ लखनऊ पर अधिकार करने के लिए निकल पड़े क्रांतिकारियों की सेना नवाबगंज में एकत्रित होने लगी. इसी समय अंग्रेज सेनापति होप ग्रांट ने एक विशाल सेना के साथ उन पर आक्रमण कर दिया. 12 जून को घमासान युद्ध हुआ और अंग्रेजों की वीडियो तोपों के साथ विशाल सेना को दूसरी और क्रांतिकारियों की 3 तोपें इस पर भी स्वतंत्रता प्रेमी सैनिकों ने ग्रांट की सेना को पराजित कर दिया.
दूसरे दिन 13 जून को अंग्रेजों को सैनिक सहायता प्राप्त हो गई. इससे स्थिति में परिवर्तन आने लगा तभी 18 वर्षीय बलभद्र सिंह ने अपनी सेना के साथ अंग्रेज सेना की पिछली कतारों पर भयंकर आक्रमण कर दिया. जिससे अंग्रेज सेना में खलबली मच गई स्वतंत्रता प्रेमी इन वीरों के दुगुने उत्साह के साथ अंग्रेज सेना को ढूंढना शुरू किया. तभी अंग्रेजों की सहायता के लिए एक बड़ी सेना आ गई अब स्वतंत्र प्रेमी सैनिको सैनिक पीछे हटने के लिए मजबूर हो गए. राणा बेनी माधव राजा रामबख्श तथा अन्य क्रांतिकारी वहां से निकले ताकि महासंग्राम को आगे भी आरी रखा जा सके.
शहीद ठाकुर बलभद्र सिंह का बलिदान
ठाकुर बलभद्र सिंह ने क्षत्रियों को अपने धर्म की याद दिलाते हुए युद्ध के लिए प्रेरित किया. और वह ऐसे में दोनों हाथों में तलवार लेकर हाथी से कूद पड़ा और अंग्रेजों को गाजर मूली की तरह काटने लगा. भीषण दृश्य को देखकर अंग्रेज दहल उठे जिस और यह महा वीर योद्धा अंग्रेजों की लाशों के ढेर बिछा देता. अंग्रेजी उन्होंने इस महा वीर को चारों तरफ से घेर लिया एक बार तो महाभारत का वह दृश्य साकार हो गया.
जब अनेक महारथियों ने वीर बालक अभिमन्यु को घेर लिया था. चारों ओर से घिर जाने के बाद भी बलभद्र सेन शत्रुओं का मर्दन करता रहा. उसकी तलवार की गति के डर से अंग्रेज उसके पास जाने का साहस नहीं कर पा रहे थे. तभी एक अंग्रेज कप्तान ने पीछे से ठाकुर की गर्दन पर वार किया. जिससे उसकी गर्दन कट कर लटक गई फिर भी बलभद्र सिंह तेज गति से तलवार चलाता रहा. और बहुत देर तक संघर्ष करता रहा अंत में उसका धड धराशाई हो गया. इस प्रकार यह किशोर ठाकुर भारतीय इतिहास में अभिमन्यु का गौरवशाली स्थान पाने में सफल हो गया.
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FAQs
Ans- राजा बलभद्र सिंह बहराइच चहलारी के जमीदार थे.