दोस्तों हम यहाँ शेयर करने जा रहे है, बघेलखण्ड मध्य प्रदेश के कोठी क्षेत्र का गौरव आन, बान, सान, स्वतंत्रता संग्राम के महानायक अमर सेनानी, वीर, ठाकुर रणमत सिंह जी की जीवनी (Biography Of Thakur Ranmat Singh) और उनसे जुड़े अनसुने किस्से और कहानियां. दोस्तों आप यहाँ जानेगे, कैसे एक अंग्रेज़ सेना का अधिकारी अंग्रजो के खिलाफ हुआ. दोस्तों साथ ही आप जानेगे जिस रीवा रियासत के प्रति अपनी वफादारी के लिए रणमत सिंह ने अपनी सवा लाख रूपये सालाना की जागीर छोड़ दी थी.
उसी रीवा राजा के संकेतपर उनके एक अधिकारी ने रणमत सिंह को स्वागत के बहाने बुलाया और पकड़कर अंग्रेजों के हवाले कर दिया. और रणमत सिंह ने अंग्रेजो की फौज की नौकरी छोड़ कर 1857 ईस्वी की क्रांति में क्यों कूदे. किस की गद्दारी से ठाकुर रणमत सिंह अंग्रजो की कैद में आये. तो दोस्तों बने रहे हमारे साथ अंत तक रणमत सिंह जी की जीवनी की रोचक जानकारी के लिए.
ठाकुर रणमत सिंह कौन थे?
दोस्तों पन्ना का राज परिवार बघेल नहीं था, जबकि रीवा राज परिवार बघेल था. कहते है ठाकुर रणमत सिंह और रीवा राज परिवार के साथ हमेशा रहा. ठाकुर रणमत सिंह मूलत: बघेल क्षत्रिय (राजपूत) थे. भारत के इतिहास में बघेल अपने शौर्य और वफादारी के लिए मशहूर रहे हैं. इसी वफादारी के कारण मध्य प्रदेश की पन्ना रियासत ने रणमत सिंह के पूर्वजों को सवा लाख सालाना की कोठी जागीर में मिली थी. इसी जागीर के अंतर्गत ग्राम मनकहरी ठाकुर रणमत सिंह के पिता को दिया गया था. ठाकुर रणमत सिंह का जन्म इसी ग्राम में हुआ.
Summary
नाम | ठाकुर रणमत सिंह |
उपनाम | काकू, ठाकुर रणमत सिंह बघेल, |
जन्म स्थान | पन्ना रियासत, कोठी तहसील के मनकहरी गांव |
जन्म तारीख | १८२५ ईस्वी |
वंश | मुंडकटिया बघेल (राजपूत) |
माता का नाम | — |
पिता का नाम | जय सिंह |
पत्नी का नाम | — |
भाई/बहन | — |
प्रसिद्धि | अंग्रेजो का विरोद्ध, क्रांतिकारी, स्वतंत्रता सेनानी |
रचना | — |
पेशा | क्रांतिकारी, स्वतंत्रता सेनानी |
पुत्र और पुत्री का नाम | — |
गुरु/शिक्षक | — |
देश | भारत |
राज्य क्षेत्र | मध्य प्रदेश |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | हिन्दू |
मृत्यु | 01-अगस्त 1859 अनंत चतुर्दशी के दिन आगरा के पास बांदा जेल में उन्हें फांसी पर लटका दिया गया |
जीवन काल | लगभग 34 वर्ष |
पोस्ट श्रेणी | Biography Of Thakur Ranmat Singh (ठाकुर रणमत सिंह की जीवनी) |
पन्ना और रीवा रियासतों के मध्य अंग्रेजों को मध्यस्थता क्यों करनी पड़ी?
दोस्तों इसी बीच पन्ना और रीवा रियासतों के बीच मन मुटाव हो गया था. दोनों रियासतों ने लड़ाई की तैयारियाँ शुरू की. कहाँ जाता है, यह घटना 1850 ईस्वी के आसपास की है. यह बात अलग है कि अंग्रेजों की मध्यस्थता के कारण युध्द नहीं हो पाया. लेकिन युध्द की तैयारियों के बीच रणमत सिंह को यह बात अच्छी नहीं लगी. कि वे अपने ही पूर्वजों के वंशज रीवा के बघेलों के विरूध्द हथियार उठाएँ. रणमत सिंह जागीर छोड़कर पन्ना रियासत से चले गए. पन्ना रियासत ने उनकी जागीर जब्त कर ली. बाद में दोनों रियासतों के समझौते के बाद पन्ना राजा के आग्रह पर रणमत सिंह रीवा रियासत में जगह नहीं मिली.
1857 ईस्वी की महान क्रांतिकारी रानियाँ और उनकी जीवनी
ठाकुर रणमत सिंह अंग्रेजो की सेना में क्यों नौकरी की?
रणमत सिंह के परिवार की जागीदारी जपत करने के बाद, आप अपने कुछ साथियों के साथ सागर आ गए. जहाँ वे अंग्रेजी सेना में लेफ्टिनेंट हो गए. कुछ दिनों बाद उन्हें पदोन्नति देकर नौगाँव भेज दिया गया. जहाँ उन्होंने केप्टन के रूप में पदभार संभाल लिया. तभी 1857 क्रांति का दौर शुरू हुआ. अंग्रेजों के विरूध्द गुस्सा फूटा और क्रांति ने जोर पकड़ा. क्रांति का सर्वाधिक प्रभाव बुन्देलखण्ड में देखा गया. केप्टन रणमत सिंह की पलटन को आदेश मिला कि वे क्रांतिकारी बख्तबली और मर्दन सिंह को पकड़ने का अभियान चलाएँ. दोस्तों इतिहासकारो के एक समूह का मानना है, रणमत सिंह रीवा नरेश महाराज रघुवीर सिंह की सेना में उच्च पद पर आसीन थे.
1857 ईस्वी की क्रांति में ठाकुर रणमत और अंग्रेज सेना के बिच लड़ाई!
1857 ईसवी का स्वतंत्रता संग्राम अपने अंत की ओर प्रस्थान कर रहा था. तब ठाकुर रणमत सिंह ने अंग्रेजों से टक्कर लेने का निश्चय किया. रणमत सिंह रीवा नरेश महाराज रघुवीर सिंह की सेना में उच्च पद पर आसीन थे. उन दिनों प्रत्येक देशी रियासत में एक अंग्रेज पोलिटिकल एजेंट होता था. जो वहां की गतिविधियों की सूचना सरकार को देता था. ठाकुर साहब ने अपनी रियासत के पोलिटिकल एजेंट ओसवान के बंगले पर आक्रमण कर दिया परंतु ओसवान अपनी जान बचाकर भागने में सफल हो गया.
तत्पश्चात ठाकुर साहब ने नागोद राज्य के रेजीडेंट पर आक्रमण कर दिया. परंतु उसने भागकर अजयगढ़ नरेश की शरण ली अजयगढ़ ने अपनी शरण में आए हुए अंग्रेज की रक्षा के लिए रणमत सिंह का सामना करने के लिए केसरी सिंह के नेतृत्व में सेना भेजी. दोनों सेनाओं के बीच भेलसाय नामक स्थान पर युद्ध हुआ. ठाकुर रणमत सिंह शत्रु सेना को चीरते हुए केसरी सिंह तक पहुंच गया. और अपनी तलवार के एक वार से केसरी सिंह के दो टुकड़े कर डाले.
इस वजह से प्रसन्न होकर ठाकुर रणमत सिंह ने नोगांव में अंग्रेजी सेना पर आक्रमण कर दिया. उन्होंने तात्या टोपे से संबंध स्थापित करने का प्रयास किया. परंतु उन्हें सफलता नहीं मिली उन्होंने बरौंधा नामक स्थान पर अंग्रेजी सेना को तहस-नहस कर दिया.
1857 ईसवी की स्वतंत्रता संग्राम में ठाकुर रणमत जी का क्या योगदान था?
दोस्तों सन् 1857 की क्रांति का प्रभाव भारत की अन्य इकाइयों की भांति बघेलखण्ड पर भी पड़ा था. बघेलखण्ड में विद्रोह का स्वरुप स्थानीय परिस्थितियों के कारण ब्रिटिश भारत से कुछ भिन्न अवश्य था, किन्तु उनका उद्देश्य भी भारत को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराना था. बघेलखण्ड के स्थानों जिन पर विद्रोह का विशेष प्रभाव पड़ा रीवा, सतना, सागर, बरौंधा, डभौरा, बिलासपुर और जबलपुर के मध्यवर्ती भाग मैहर, सोहागपुर और विजयराधवगढ़ आदि प्रमुख थे.
दोस्तों 1857 ईस्वी की क्रांति के प्रमुख सेनानी ठाकुर रणमत सिंह की जागीरें रीवा तथा पन्ना राज्य में थी. उन्होने अपने साथियों सहित नागौद, भिल्लसांय, चित्रकूट, नौगाँव और क्योंटी में अंग्रेजो से लोहा लिया. अतः बघेलखण्ड के स्वतंत्रता संग्राम में ठाकुर रणमत सिंह ने उत्कृष्ट भूमिका निभाई जिसका हमारा देश हमेसा इनका ऋणी रहेगा.
ठाकुर रणमत सिंह जी की मृत्यु कब और कैसे हुई?
रीवा फौज में कंपनी कमान्डेन्ट बलदेव सिंह का भाई हीरा सिंह रीवा,सतना राजा का अति विश्वास पात्र था. अंग्रेजों ने इसी सूत्र को पकड़ा, बलदेव सिंह के द्वारा हीरा सिंह से बात की गई. अंग्रेजों के प्रलोभन में गद्दार हीरा सिंह आ गया. उसने पहले राजा से बात की. उनकी सहमति लेकर रणमत सिंह ने संपर्क साधा.
रणमत सिंह को बताया गया कि रीवा राजा ने अंग्रेजों से बात कर ली है. तुम्हारा रीवा में स्वागत होगा तथा जागीर मिलेगी. रणमत सिंह हीरा सिंह के झांसे में आ गए. रात भर इस कोठी के आसपास तगड़ा पहरा रहा. सुबह होते ही इनको गिरफ्तार करके आगरा के पास बांदा भेज दिया गया. बांदा में जेल में 1 अगस्त 1859 को ठाकुर रणमत सिंह को फाँसी दे दी गई थी.
और दोस्तों एक मत यह भी कहता है, ठाकुर रणमत सिंह एक दिन जब अपने एक मित्र विजय शंकर नाग के घर. जलपा देवी के मंदिर के तहखाने में विश्राम कर रहे थे. तब अंग्रेजो ने धोखे से उन्हें गिरफ्तार कर लिया तत्पश्चात 01-अगस्त-1859 ईस्वी में अनंत चतुर्दशी के दिन आगरा की जेल में उन्हें फांसी पर लटका दिया गया.
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FAQs
Ans-ठाकुर रणमत सिंह जी को फांसी की सजा बांदा आगरा की जेल में दी