दोस्तों हम यहाँ शेयर करने जा रहे है भारत के प्रथम स्वतंत्र संग्राम के महान योद्धा मौलवी अहमदुल्लाह फैजाबादी की जीवनी (Biography of Maulvi Ahmadullah Faizabadi). और उनके जीवन संघर्ष की वो रोचक जानकारी जिसके बारे में आप आज से पहले अनजान थे. दोस्तों 1857 ईस्वी की क्रांति में न केवल सेना ने अपितु भारत की आम जनता ने भी भाग लिया था. इस क्रांति में हिंदू और मुसलमानों ने कंधे से कंधा मिलाकर भाग लिया एकता की ऐसी गंगा प्रवाहित हुई थी. कि अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे और इस क्रांति को दबाने में पसीना आ गया था. इस क्रांति में भाग लेने वाले लोगों का एकमात्र उद्देश्य अंग्रेजों से भारत मां को आजाद करवाना था.
1857 ईस्वी की क्रांति में न केवल हिंदू अपितु वतन प्रेमी मुसलमान भी अपने सिर पर कफन बांध कर निकल पड़े थे. हिंदुओं के सम्मान अनेक मुसलमानों ने भी मातृभूमि के गीत गाते हुए अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे. उन मुसलमानों में एक मुसलमान मौलवी अहमदुल्लाह फैजाबादी भी थे. उनके त्याग एवं बलिदान ने उन्हें भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में अमर बना दिया है. जब भी स्वतंत्रता संग्राम की चर्चा होगी मौलवी अहमदशाह फैजाबादी का नाम. वैसे ही बड़े आदर सम्मान के साथ लिया जाएगा.
मौलवी अहमदुल्लाह फैजाबादी कौन थे?
मौलवी अहमदुल्लाह फैजाबादी सबसे प्रसिद्ध मुस्लिम मौलवियों में से एक हैं. जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ 1857 ईस्वी क्रांति विद्रोह के लिए जमीन तैयार की. अरकोट (तमिलनाडु) के मूल निवासी मौलवी अहमदुल्लाह फैजाबादी की शिक्षा हैदराबाद में हुई थी. युवा होने पर वे एक प्रचारक बन गए और फ़ैज़ाबाद में बस गए. 1856 में, उन्हें अंग्रेजों के खिलाफ जिहाद (धार्मिक युद्ध) का प्रचार करते हुए और लोगों से विद्रोह करने का आग्रह करते हुए गांव-गांव घूमते देखा गया. आप एक पालकी में चला करते थे, जिसमें आगे ढोल बजाने वाले और पीछे अनुयायी थे. इसलिए उन्हें लोकप्रिय रूप से डंका शाह (डंका) कहा जाता था.
अहमदुल्लाह फैजाबादी जी का जन्म 1787 में एक सुनी मुसलमान के घर हुआ था. बचपन में आपको सिकंदर शाह के नाम से जाना जाता था. आपके पिता जी का नाम गुलाम हुसैन खान था. जो की हैदर अली की सेना में एक वरिष्ठ अधिकारी थे. मौलवी अहमदुल्लाह शाह फैजाबादी उर्दू, अरबी, फारसी, हिंदी और अंग्रेजी और फ्रेंच समेत कई भाषाओं के जानकार थे. आपने देश की आजादी के लिए देश और विदेशो में यात्रा की थी. मौलवी अहमदउल्ला शाह डंका शाह कहा जाता है, अंग्रेजों के पक्के दुश्मन कट्टर दुश्मन अंग्रेज आपको ‘फौलादी शेर’ कहते थे.
Summary
नाम | अहमदुल्लाह फैजाबादी || Biography of Maulvi Ahmadullah Faizabadi |
उपनाम | मौलवी अहमदुल्लाह फैजाबादी, अहमदउल्ला शाह डंका शाह, फौलादी शेर |
जन्म स्थान | अरकोट (तमिलनाडु) |
जन्म तारीख | 1787 |
वंश | सुनी |
माता का नाम | – |
पिता का नाम | गुलाम हुसैन खान |
पत्नी का नाम | — |
भाई/बहन | — |
प्रसिद्धि | क्रांतिकारी, स्वतंत्रता सेनानी, 1857 ईस्वी की क्रांति का विद्रोह |
रचना | — |
पेशा | क्रांतिकारी |
पुत्र और पुत्री का नाम | — |
गुरु/शिक्षक | नाना साहिब और खान बहादुर खान |
देश | भारत |
राज्य क्षेत्र | उत्तर प्रदेश |
धर्म | इस्लाम |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | उर्दू, अरबी, फारसी, हिंदी और अंग्रेजी और फ्रेंच |
मृत्यु | 05-जून-1858 ईस्वी |
जीवन काल | लगभग 71 वर्ष |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Maulvi Ahmadullah Faizabadi (मौलवी अहमदुल्ला फैजाबादी की जीवनी) |
1857 ईस्वी की क्रांति में मौलवी अहमदुल्लाह फैजाबादी की क्या भूमिका थी?
मौलवी अहमदुल्लाह फैजाबादी प्रथम भारतीय स्वतंत्रता के महान नायक थे. पटना, झांसी, कानपुर, मेरठ और दिल्ली की भांति संपूर्ण अवध में क्रांति की अग्नि प्रज्वलित हो गई थी. संपूर्ण अवध की जनता का इस समय केवल एक ही नारा था. दूर हटो अंग्रेज फिरंगी हिंदुस्तान हमारा है मौलवी अहमद शाह फैजाबादी ने अवध क्षेत्र में क्रांति की आग प्रज्वलित की थी. वैसे तो वह मौलवी थे. परंतु अरबी और फारसी भाषा के बहुत बड़े विद्वान थे. और फैजाबाद जिले के एक तालूकेदारी भी उनके पास थी.
इसके अतिरिक्त वह बहुत बड़े त्यागी एवं शूरवीर थे. उन्होंने क्रांति की ज्वाला जगाने के लिए घर द्वार एवं परिवार आदि को छोड़ दिया फकीरो की भांति गांव-गांव में घूमकर क्रांति की अलख जगाते थे. क्रांति की अलख जगाते जगाते हुए मातृभूमि की गोद में सदा के लिए चिर निंद्रा में सो गए. उनके बलिदान की कहानी बड़ी ही प्रेरणादाई है.
1857 ईस्वी की क्रांति में मौलवी अहमदुल्लाह फैजाबादी क्यों कूदे?
1857 ईसवी में अंग्रेजों ने देसी रजवाड़ों नवाबों जमीदारों एवं तालुके दारू पर अभियोग लगाकर उनको करके उनके राज्यों को छीन लिया था. मौलवी अहमद साहब पर जनता में बगावत करने का आरोप लगाकर अंग्रेजों ने उनकी तालूकेदारी छीन ली थी. यह भी दिन थे जब अंग्रेजों ने लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह को गद्दी से हटाकर देश से निर्वासित कर दिया था. अंग्रेजों द्वारा वाजिद अली शाह के प्रति किए गए गलत व्यवहार के कारण सारे अवध में क्रोध एवं बदले की आग भड़क उठी थी. इस समय लोग न केवल अंग्रेजों की निंदा कर रहे थे. अपितु उन्हें देश से बाहर निकालने के लिए भी प्रयत्न कर रहे थे.
इन घटनाओं से मौलवी अहमदुल्लाह फैजाबादी के हृदय में अंग्रेजों के प्रति घृणा की भावना उत्पन्न हो गई. उन्होंने सोचा कि भारत में अंग्रेजों के रहते हुए किसी को भी सुख और शांति नहीं मिल सकेगी. मौलवी अहमद शाह ने अपनी तालुकदारी को पुनः प्राप्त करने एवं सारे देश को अंग्रेजों के चुंगल से मुक्त कराने की प्रतिज्ञा की इस समय उन्होंने यह शपथ ली. कि या तो अंग्रेज को हिंदुस्तान से बाहर निकाल देंगे या निकालने के पर्यतन में शहीद हो जाएंगे.
अहमद साहब ने प्रतिज्ञा को पूरी करने के लिए घर बार छोड़कर मौलवी के वेश में गांव-गांव में घूमकर क्रांति की अलख जगाने लगे उन्होंने जनता में क्रांति के लिए चेतना जागृत की. और नाना साहब लक्ष्मीबाई एवं बहादुर शाह जफर आदि महान क्रांति नायकों से मिले तथा क्रांति के लिए योजनाएं बनाई.
भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 ईस्वी की क्रांति में मौलवी अहमदुल्लाह फैजाबादी ने कैसे अलख जगाई?
मौलवी एक बहुत अच्छे लेखक भी थे, वह पत्र लिखते थे एवं नोटिस भी लिखकर चारों तरफ बटवाते थे. उनके पत्रों एवं नोटिस शो में ऐसा जादू होता था. कि उन्हें पढ़ने वाले लोगों के मन में अंग्रेजों के प्रति घृणा उत्पन्न हो जाती थी. यही नहीं विद्रोहियों का साथ देकर अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालने के लिए तैयार हो जाते थे. संपूर्ण अवध क्षेत्र में मौलवी अहमदुल्लाह फैजाबादी का नाम चारों तरफ फैल गया. लोग उनके पत्रों एवं नोटिसओं का बेचैनी से इंतजार करते थे. जहां भी जाते थे लोक देवता की भांति सम्मान करते थे. लोग उनके संकेतों का पालन करने के लिए अपने प्राण तक निछावर करने के लिए तैयार रहते थे. मौलवी के प्रचार एवं कार्यों से अंग्रेजों के कान खड़े हो गये.
उन्होंने मौलवी अहमदुल्लाह फैजाबादी को बंदी बनाने के लिए उन पर विद्रोह का अपराध लगाया एवं मौलवी साहब को गिरफ्तार करना आसान काम नहीं था. किसी को भी अंग्रेज अफसर में उन्हें गिरफ्तार करने का सामर्थ्य नहीं था. अंग्रेज जिसमें पुलिस अफसर को मौलवी साहब की गिरफ्तारी का काम सौंपते थे, वह कोई न कोई बहाना बना लेता था.
अंत में अंग्रेजों ने मौलवी अहमदुल्लाह फैजाबादी साहब की गिरफ्तारी के लिए एक विशेष पुलिस दल नियुक्त किया जिसने मौलवी साहब को गिरफ्तार कर लिया। उन पर राजद्रोह का अपराध लगाकर मुकदमा चलाया गया जिसमें सरकार ने उन्हें फांसी का दंड दिया गया. सारे भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह की अग्नि की लपटें उठ रही थी. चारों और अंग्रेजों को ढूंढ ढूंढ कर मारा जा रहा था. और वहां पर भी अंग्रेजों की हत्या की जाने लगी. मौलवी साहब को फांसी देने के लिए तिथि निश्चित कर दी गई थी.
मौलवी अहमदुल्लाह फैजाबादी फांसी के फंदे से किस ने बचाया था?
फांसी के दिन एक भी सिपाही नहीं मिला इसके विपरीत कारागार के सिपाही एवं वार्ड ने विद्रोह कर दिया. फैजाबाद की जनता ने कारागार पर हमला कर दिया देखते ही देखते विद्रोहियों ने कारागार पर अधिकार कर लिया. जब गगनभेदी नारों के साथ मौलवी अहमदुल्लाह फैजाबादी कारागार से बाहर आए. तो मौलवी साहब को फांसी पर लटकने के लिए व्याकुल कर्नल ने लॉक्स को विद्रोहियों ने बंदी बना लिया. मुझे साहब ने उससे कहा कि कारागार की कोठरी में तुमने मुझे हुक्का पीने की इजाजत नहीं दी थी परंतु तुम चाहो तो बड़े आराम से पी सकते हो.
मौलवी अहमदुल्लाह फैजाबादी ने फैजाबाद में रहने वाले अंग्रेजों को फैजाबाद छोड़ने की चेतावनी दी. उन्होंने इस बात की व्यवस्था कर ली कि फैजाबाद से जाने वाले अंग्रेजों एवं बच्चों को किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचाई जाए. परंतु घाघरा नदी के पार करने के बाद विद्रोहियों ने अंग्रेजों एवं उनके बाल बच्चों को मार डाला फैजाबाद से अंग्रेजों के पलायन की खबर फैलते ही अवध के समस्त जिम्मेदारों एवं तालुके धारों ने अपने आप को स्वतंत्र कर दिया। यही नहीं उन्होंने विद्रोहियों का साथ देने का निश्चय किया संपूर्ण अवध में अंग्रेजों का शासन समाप्त सा हो गया.
1857 ईस्वी की क्रांति में मौलवी अहमदुल्लाह फैजाबादी का क्या योगदान था?
विद्रोही सैनिकों ने मौलवी साहब के नेतृत्व में बड़ी वीरता से सामना किया. इस समय मौलवी साहब द्वारा छोड़े गए गुप्तचर अंग्रेजों की फौजी छावनी में के आवश्यक समाचार लाकर उनको दिया करते थे. उन्होंने कुछ ऐसे आदमी भी छोड़ रखे थे जो अंग्रेजी सेनाओं को हानि पहुंचाने के लिए पूल और सड़कों को नष्ट कर देते थे. इस प्रकार मौलवी साहब अंग्रेजों के विरुद्ध तीन तरफ से युद्ध लड़ रहे थे. युद्ध के मैदान में लड़ रहे थे गुप्तचरों से अंग्रेजी सेना के गुप्त समाचार मंगवा रहे थे एवं तोड़-फोड़ कर रहे थे.
मौलवी अहमदुल्लाह फैजाबादी ने सिखाया था कि धर्म तो होकर भी देश के टुकड़े नहीं करवा सकता. 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में हिंदू तथा मुसलमान दोनों ने अंग्रेजी साम्राज्य को ध्वस्त करने का प्रयास किया. इसमें इस बात की पुष्टि होती है कि मातृभूमि हिंदू तथा मुसलमानों दोनों को बराबर प्यारी है. सच्चा मुसलमान अपनी मातृभूमि के लिए शहीद होने में गौरव का अनुभव करता है.
पोवेन नरेश जगन्नाथ सिंह को दूसरा जयचंद क्यों कहते है?
धीरे-धीरे स्थिति में परिवर्तन आता जा रहा था अंग्रेजों की विजय इन विद्रोहियों की पराजय होती जा रही थी. अंग्रेजों ने धीरे-धीरे अपने हाथ से निकलते हुए समस्त प्रदेशों पर पुनः अधिकार कर लिया फतेह अवध के जमीदार एवं तालुके दारो ने फिर अंग्रेजों की जी हजूरी करनी प्रारंभ कर दी थी. मौलवी साहब को जब इन बातों की सूचना मिली तो उन्हें बहुत दुख हुआ उन्होंने पोवेन नरेश जगन्नाथ सिंह को पत्र लिखा कि यदि वह अपनी सेनाएं दें तो वह अंग्रेजों को अवध से फिर बाहर निकाल सकते हैं.
पोवेन नरेश अंग्रेजों से मिल गया था किंतु इस बात की जानकारी मौलवी साहब को नहीं थी. उन्होंने तो नरेश को देशभक्त समझकर ही पत्र लिखा था. पर पोवेन नरेश ने उनके साथ विश्वासघात किया. उसने मौलवी अहमदुल्लाह फैजाबादी साहब को सेना देने के बहाने घर बुलाया और उनका बहुत भव्य स्वागत किया.
जब वह खा पीकर सो गए तो उसने उनका सिर काट लिया पवन नरेश जगन्नाथ सिंह ने शाजापुर की फौजी छावनी में गोरे अफसरों के सामने जब मौलवी साहब का कटा हुआ सिर रखा. तो वह खुशी से उछल पड़े. इस उपलक्ष्य में अंग्रेजों ने नरेश को ₹50000 नगद एवं जागीर प्रदान की एक बार जयचंद ने मोहम्मद गौरी को आमंत्रित करके पृथ्वीराज के साथ विश्वासघात किया था.
भारत के प्रमुख युद्ध
यही कार्य जगन्नाथ सिंह ने भी किया था. पता है यदि जगन्नाथ सिंह को दूसरा दे जयचंद कहा जाए तो गलत नहीं होगा. हमारे देश में इस तरह के हजारों जयचंद हो चुके हैं. जिनके कारण भारत को बार-बार दास्तां की जंजीरों में जकड़ना पड़ा. जब भी भारत का इतिहास लिखा जाएगा. उन जयचंद कि बड़े भारी दुखों के साथ चर्चा की जाएग. मौलवी अहमद शाह की मृत्यु से सभी अंग्रेज बेहद खुश थे. जब यह समाचार इंग्लैंड पहुंचा तो उत्तर भारत का ब्रिटिश ओ का भयंकर शत्रु समाप्त हुआ कहकर अंग्रेजों ने चैन की सांस ली. इधर अवध निवासी उनकी हत्या से क्षुब्ध हो उठे पर क्या करते उनकी एकमात्र साहिब मौलवी थे.
कुछ लोगों ने नरेश जगन्नाथ सिंह से इसका बदला लेने का प्रयास किया परंतु उन्हें सफलता प्राप्त हुई. मौलवी साहब का व्यक्तित्व बड़ा ही आकर्षक था. यो तो वे बहुत कर्सकाए थे, परंतु उनमें उनमें इस्पात और फलोदी ताकत थी. उनका शरीर घटा हुआ था और आंखें बड़ी-बड़ी तथा डरावनी कि निसंदेह वे महान पराक्रम वाले पुरुष थे.
मौलवी अहमदुल्लाह फैजाबादी का अंतिम समय
05-जून-1858 ईस्वी को मौलवी साहब इस दुनिया को छोड़ कर चले गए. उनका त्याग एवं बलिदान हमेशा भारतीयों को प्रेरणा देता रहेगा. एक लेखक ने उनकी वीरता के संबंध में लिखा है, मौलवी अहमद साहब कलम और तलवार दोनों के धनी थे. दोनों में उनके कमाल की सोहरत हासिल थी. उनकी कलम में जादू था उनके शब्द बोलते थे, उनकी भाषा प्राणों को पकड़ लेती थी, वह जो कुछ कहना चाहते थे उनकी तस्वीर उतार देते थे. तलवार चलाने लगते थे तो मनुष्यों की बात ही क्या फरिश्तों के भी छक्के छूट जाते थे. इसके अतिरिक्त मौलवी साहब ने साधारण तालुके दार होते हुए भी यह साबित कर दिखाया की महानता केवल कुलीनो और धन वालों की ही बपौती नहीं है. अपितु वे सभी महान और हो सकते हैं जिनका देश या धर्म के लिए त्याग बड़ा होता है.
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FAQs
Ans- मौलवी अहमदुल्लाह फैजाबादी जन्म 1787 ईस्वी में अरकोट तमिलनाडु में हुआ था, और हैदरबाद में पढाई के बाद फैजाबाद उत्तर प्रदेश में आकर बस गए थे.