दोस्तों प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम जो 1857 में हुआ मैंने केवल पुरुषों ने अपितु महिलाओं ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इतिहास साक्षी है कि वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई तो रणचंडी के समान कि उसके सामने बड़े-बड़े अंग्रेज अधिकारी नहीं टिक सके थे. अंत में वर्ग में लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुई उनकी बहादुरी की कहानी से आप देश का बच्चा-बच्चा परिचित है. प्राणी का संबंध आते ही हमें कवि की ये पंक्तियां याद आ जाती है. “बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी”. हम यहाँ Biography of Avanti Bai Lodhi (अवन्ति बाई लोधी की जीवनी) और उनके जीवन की कहानी आपके सामने ला रहे है. कृपा करके इस पेज को ध्यान से और अंत तक पढ़े.
दोस्तों झांसी की रानी के अतरिक्त 1857 की क्रांति में अन्य वीरांगनाओं में हजरत महल, जीनत महल, नतर्की अजीजन के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है. इनके त्याग एवं बलिदान से हम भलीभांति परिचित हैं पर कुछ भारतीय महिलाएं ऐसी भी हैं जिन्होंने प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की परंतु उनके बारे में हमारे जानकारी बहुत सीमित है. इन्हीं में से एक मध्यप्रदेश के रामगढ़ रियासत की रानी अवंती बाई लोधी है जिन्होंने ब्रटिश कंपनी सरकार को छठी का दूध याद दिला दिया था. इसी कारण उनका नाम भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित हो गया.
अवंती बाई लोधी की जीवनी (Biography of Avanti Bai Lodhi)
अवंतीबाई लोधी का जन्म पिछड़े वर्ग के लोधी राजपूत समुदाय में 16 अगस्त 1831 को ग्राम मनकेहणी, जिला सिवनी मध्य प्रदेश के एक जमींदार राव जुझार सिंह के यहां हुआ था. अवंतीबाई लोधी की शिक्षा दीक्षा मनकेहणी ग्राम में ही हुई. अपने बचपन में ही आपको तलवारबाजी और घुड़सवारी और युद्ध कौसल के गुण दिए गए.
Summary
नाम | अवंतीबाई लोधी |
उपनाम | वीरांगना अवंतीबाई लोधी |
जन्म स्थान | ग्राम मनकेहणी, जिला सिवनी मध्य प्रदेश |
जन्म तारीख | 16-अगस्त1831 |
वंश | लोधी |
माता का नाम | — |
पिता का नाम | राव जुझार सिंह |
पति का नाम | राजा विक्रमाजीत |
प्रसिद्धि | प्रथम महिला शहीद वीरांगना, अंग्रेजी सेना से लड़ाईया, रामपुर पर अपना अधिकार वापस करना |
रचना | — |
पेशा | रानी, यौद्धा |
पुत्र और पुत्री का नाम | अमान सिंह और शेर सिंह |
गुरु/शिक्षक | राव जुझार सिंह |
देश | भारत |
राज्य छेत्र | मध्य प्रदेश |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
मृत्यु | 20-मार्च-1858 |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Avanti Bai Lodhi (अवंती बाई लोधी की जीवनी) |
रामगढ़ रियासत और किले की विशेषता
रामगढ़ मध्य प्रदेश के मंडला जिले मैं एक छोटा सा गांव था जो रामगढ़ रियासत की राजधानी थी उसके निकट आज एक टुटा फूटा किला दिखाई देता है. अंग्रेजी कैप्टन वाडिंगटन ने इस किले के संबंध में लिखा है. कि प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय यह किला इतना मजबूर था. कि महीनों तक घेरा डालने पर भी उस पर अधिकार करना संभव नहीं था. किले पर टोपे लगी हुई थी. तो दुर्ग के फाटक तक पहुंचना मौत को दावत देना था. इस राज्य की सीमा के अंतर्गत मंडला जिले की निवास और डिंडोरी की तहसीलें रीवा का सोहागपुर परगना, अमरकंटक का इलाका, कबीर का चबूतरा तथा 14 परगनो का अन्य भूभाग सम्मिलित था. इस राज्य का क्षेत्रफल 4000 वर्ग मील था.
अवंती बाई लोधी रामगढ़ की महारानी कैसे बनी?
रामगढ़ राज्य के संस्थापक ठाकुर भगत सिंह थे. उनकी मृत्यु के बाद उनके बड़े उत्तर राज सिंह लोधी गद्दी पर बैठे राज सिंह के बाद राजा विक्रमाजीत रामगढ़ रियासत के राजा बने. बाल्य अवस्था में ही उनका विवाह जुझार सिंह की पुत्री अवंतीबाई लोधी के साथ हुआ था. जुझारसिंह सिवनी जिले के ग्राम मनके हडी के जागीरदार थे.
राजा विक्रमाजीत अत्यधिक ईमानदार और झुझारू शाशक थे. परंतु गद्दी पर बैठने के थोड़े दिनों बाद ही वह किसी रोग से पीड़ित होकर विकृत हो गए. विक्रमादित्य के 2 पुत्र हुए. एक का नाम अमान सिंह, और दूसरा शेर सिंह कनिष्ठ. विक्रमादित्य की मृत्यु के बाद रानी अवंती बाई लोधी ने अपने पुत्र मानसिंह की ओर से राज्य कार्य भार अपने हाथ में ले लिया.
ब्रटिश इंडिया कंपनी के गवर्नर डलहौजी ने हड़प नीति के आधार पर अन्य राज्यों की भांति रामगढ़ के राजा अमानसिंघ सिंह के नाबालिग होने का बहाना बनाकर उसे कंपनी साम्राज्य में मिला लिया. रानी अवंती बाई की इच्छा के विरुद्ध के उनके राज्य के शासक की देखभाल कोर्ट ऑफ बोर्ड के जिम्मे शॉप सौंपा गया. और राज परिवार के लिए पेंशन की राशि निश्चित कर दी गई. रानी अवंती बाई का दिल अंग्रेजों की दुर्गति से दहल उठा था. परंतु वह घायल शेरनी की भांति सही समय की प्रतीक्षा कर रही थी.
1857 की क्रांति में अवंती बाई लोधी का योगदान था?
अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति प्रारंभ होने से पहले क्रांति के प्रतीक चिन्ह लाल कमल का फूल और चपाती को गांव गांव भेजा गया. कमल और चपाती रामगढ़ भी पहुंची जिसे अवंती बाई ने ले ली. रानी ने क्रांति का संदेश अपने सर जाति के व्यक्तियों एवं अन्य प्रमुख व्यक्तियों के पास कागज की पुड़िया में भिजवाया. प्रत्येक पुड़िया में एक छोटा सा कागज का टुकड़ा और एक शादी चूड़ी थी. कागज पर सन्देश के शब्द इस प्रकार थे. “देश की रक्षा करने के लिए या तो कमर कसो या चूड़ी पहनकर घर में बन्द हो जाओ. तुम्हे घर्म ईमान की सौगंध है, जो इस कागज का सही पता बेरी को दो.
ब्रटिश कंपनी के असंतोष के विरोध 1857 में क्रांतिकी बेड़िया टूटी. इस क्रांति में न केवल सैनिकों ने अपितु अनेक राजा महाराजाओं ने भी भाग लिया. झांसी, सातारा, कानपुर, मेरठ, नीमच आदि स्थानों पर क्रांतिकारियों ने अपने झंडे फेरा दिए. 1857 ईस्वी में जब क्रांति की ज्वाला भड़क उठी तो रानी अवन्ति बाई ने भी क्रांति में सक्रिय भूमिका निभाने का निश्चय किया. उसने सरकार द्वारा नियुक्त मांडला के तहसीलदार को बर्खास्त कर दिया. और शासन व्यवस्था अपने हाथ में ले ली. अब रानी सव्य क्रांति का नेतृत्व करने लगी.
1857 की क्रांति में अवंती बाई लोधी पर अंग्रेजो का आक्रमण
जब जबलपुर के कमिश्नर को रानी अवंती बाई के विद्रोह की खबर मिली तो वह आग बबूला हो उठा. उसने रानी को निर्देश दिया कि वह मांडला के डिप्टी कलेक्टर सेभेट कर ले उससे यह संदेश मिला था. कि या तो कंपनी सरकार से संधि करने अथवा परिणाम भुगतने को तैयार है. रानी अवन्ति बाई एक मजबूत इरादे की औरत थी. उसने अंग्रेज अधिकारी से भेंट करने के स्थान पर युद्ध की तैयारियां प्रारंभ कर दी. उसने आसपास के जमीदारों तथा समुद्र से सहायता मांगी रानी ने कहा कि जीवन के अंतिम समय तक अंग्रेज सरकार के समक्ष रुकेगी नहीं. उसने अपने सरदारों को संबोधित करते हुए कहा भाइयों जब भारत मां गुलामी की जंजीरों से बंधी हो. तब हमें सुख से जीने का कोई हक नहीं मां को मुक्त कराने के लिए ऐसो आराम को छोड़ना होगा। खून देकर आप अपने देश को आजाद करा सकते हैं.
रानी अवन्ति बाई के भाषण से उनके सैनिकों में उत्साह में असाधारण वृद्धि हुई. रानी अवंती बाई यह जाती थी कि अंग्रेजों का आक्रमण निश्चित रूप से होगा. अतः रामगढ़ किले को और मजबूत बनाया गया और युद्ध की तैयारियां प्रारंभ कर दी गई. जब कंपनी सरकार को यह पता चला कि रानी अवन्ति बाई आत्मसमर्पण के स्थान पर युद्ध की तैयारियां कर रही है. तो एक विशाल सेना कैप्टन वाशिंगटन के नेतृत्व में रानी के विद्रोह का दमन करने हेतु भेजी गई. रानी ने अपने सहयोगियों के समर्थन से वाशिगटन को युद्ध में परास्त किया जिसके कारण उसे पीछे हटने के लिए विवश होना पड़ा.
रानी अवंती बाई लोधी और अंग्रेजो की दूसरी लड़ाई?
1 अप्रैल 1858 ईस्वी को अंग्रेजी सेना रामगढ़ पर टूट पड़ी बड़ा ही लोमहर्षक युद्ध हुआ. रानी अवन्ति बाई ने युद्ध का संचालन किया. उस के निर्देशन में अनेक सैनिक युद्ध करते-करते वीरगति को प्राप्त हुए. वाशिंगटन जान बचाकर क्षेत्र से भाग निकला परंतु अंग्रेज राज्य को स्वीकार नहीं करने वाले थे.
अब दूसरी बार अंग्रेजों की एक विशाल सेना ने वाशिंगटन के नेतृत्व में पुणे रामगढ़ पर आक्रमण किया. इस बार भी रानी तथा उसके रणबांकुरे ने अंग्रेजों को युद्ध क्षेत्र से भागने के लिए विवश कर दिया. यह युद्ध बड़ा अकर्मणकारी था. दोनों पक्षों के अनेक सैनिक मारे गए. रानी की ललकार पर रामगढ़ की सेना अंग्रेजों पर टूट पड़ी. उसके सफल नेतृत्व के कारण ही वाशिंगटन को उन्हें युद्ध के मैदान से भागने के लिए विवश होना पड़ा.
रानी अवंती बाई लोधी और अंग्रेजो की तीसरा युद्ध?
रानी अवंती बाई के सैनिक युद्ध करते करते थक चुके थे. उनके पास युद्ध सामग्री एवं सिपाही भी बहुत कम थे. उसे यह आशा थी कि रीवा के नरेश समय पर उसकी मदद करेंगे. परंतु दुख के साथ लिखना पड़ रहा है कि ऐसे समय में भी रीवा के नरेश ने जयचंद की भूमिका निभाई. और रानी अवन्ति बाई के स्थान पर अंग्रेजों का साथ दिया. ऐसी कठिन समय में भी रानी ने अपने सैनिकों का उत्साहवर्धन किया. और उनकी कठनाईयो को दूर करने का हर संभव प्रयास किया. रानी इस बात को अच्छी तरह जानती थी कि अंग्रेज अपनी हार स्वीकार नहीं करेंगे. रानी ने नए सिरे से सैन्य संगठन किया. रानी की संका सही शाबित हुई.
अंग्रेजों की एक विशाल सेना ने तीसरी बार रामगढ़ पर आक्रमण किया घमासान युद्ध हुआ रानी ने युद्ध में असाधारण वीरता का प्रदर्शन किया उसके अनेक सैनिक मारे गए समझ गई थी. कि अंग्रेजों पर विजय प्राप्त करना आसान कार्य नहीं है. इसमें रानी निराश होकर मैदान छोड़कर अपने कुछ सैनिकों के साथ जंगलो में भाग गई और छापामार प्रणाली से युद्ध का संचालन करने लगी. जब उसे पता चला कि रामगढ़ की भूमि अंग्रेजो का झंडा फहरा रहा है. तब उसकी आत्मा रो उठी अंग्रेजों के समान रानी के पास न तो सेना थी और न ही आधुनिक हतयार, रानी चाहती तो आत्मसमर्पण कर सकती थी.
रानी अवंती बाई लोधी की मृत्यु कैसे हुई?
रानी अवंती बाई एक दृढ़ निश्चय वाली महिला थी. उसमें स्वाभिमान की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी. उसने अंग्रेजों के हाथों से मरने की अपेक्षा से अपनी जान देना उचित समझा. उसने अपनी मर्यादा की रक्षा के लिए अपनी ही तलवार से अपना सीट अपना सीना चीर लिया देश की आजादी के नाम के लिए रानी ने अपने प्राणों का त्याग कर दिया. भारतीय इतिहास में अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित करवा लिया.
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FAQs
Ans- वीरांगना अवंती बाई लोधी जन्म 16-अगस्त-1831में हुआ था.