भारतीय वाङ्मय में बताया गया है कि जननी जन्मभूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ है भगवान श्रीराम ने अवध को स्वर्ग से भी बढ़कर माना है. भारती मां को अपने सपूतों पर गर्व है जिन्होंने उसकी मर्यादा की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व लुटा दिया. भारत के इतिहास में ऐसे कई लाल हुए हैं जिन्होंने अपनी जान से अधिक महत्व इस देश की आजादी को दिया यही कारण है कि कृतज्ञ भारत उन्हें हमेशा याद रखता है और आगे भी याद रखेगा. जिन महान विभूतियों ने जीवन पर्यंत अंग्रेज सरकार का विरोध किया महारानी तपस्विनी भी उनमें से एक थी. हम यहाँ महारानी तपस्विनी की जीवनी (Biography of Maharani Tapaswini) और उनके द्वारा किये गए जान चेतना के कार्य. और 1857 की क्रांति में उनके योगदान पर प्रकार डालने के प्रयास किया गया है. रोचक जानकारी के लिए इस पेज को अंत तक पढ़े.
महारानी तपस्विनी बाई कौन थी?
महारानी तपस्विनी बाई का झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से निकट का संबंध था. दोस्तों आशा रानी व्योहरा ने इस संबंध में लिखा है. महारानी तपस्विनी झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की भतीजी और उनके एक सरदार पेशवा नारायण राव की पुत्री थी. वह एक बाल विधवा थी. उसके बचपन का नाम सुनन्दा था. बचपन से ही राष्ट्रप्रेम की भावना भरी हुई थी. वह विधवा होने पर भी निराशा पूर्ण तरीके से जीवन व्यतीत नहीं करती थी. वह हमेशा ईश्वर की पूजा पाठ करती है, और शस्त्र और शास्त्रों का अभ्यास करती थी. वह धैर्य तथा साहस की प्रतिमूर्ति थी.
सुनन्दा चंडी की उपासक थी. धीरे-धीरे उसमें शक्ति का संचार होता गया वह घुड़सवारी करती थी. उसका शरीर सुडौल सुंदर एवं स्वस्त था. चेहरा क्रांति का प्रतीक था उनके ह्रदय में देश की आजादी की ललक थी. किशोरी सुनन्दा अपने को शेरनी सरकार को हाथी समझती थी. और उसे सम्पात करने पर तुली हुई थी. जैसे शेर हाथियों से नहीं डरता है, वैसे सुनन्दा भी अंग्रेजो से नहीं डरती थी.
Summary
नाम | सुनन्दा || Biography of Maharani Tapaswini |
उपनाम | महारानी तपस्विनी |
जन्म स्थान | बेलूर, कर्नाटक |
जन्म तारीख | 1842 ईस्वी बेलूर |
वंश | गौर वर्णकी |
माता का नाम | — |
पिता का नाम | पेशवा नारायण राव |
पति का नाम | — |
भाई/बहन | रानी लक्ष्मीबाई |
प्रसिद्धि | अंग्रजो से खिलाफ लड़ाईया, गुप्त रूप से योजना तैयार करना |
रचना/स्कूल खोली | महाकाली पाठशाला |
पेशा | स्वतंत्रता सेनानी |
पुत्र और पुत्री का नाम | — |
गुरु/शिक्षक | संत गौरी शंकर |
देश | भारत |
राज्य छेत्र | कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, नेपाल, पश्चिम बंगाल |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | हिंदी, बंगाली |
मृत्यु | 1907 ईस्वी |
जीवन काल | 65 वर्ष |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Maharani Tapaswini (महारानी तपस्विनी की जीवनी) |
1857 प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम
दोस्तों भारतीयों ने अंग्रेजों की दासता से मुक्ति पाने हेतु सर्व प्रथम प्रयास 1857 की क्रांति से शुरू किया था. जिसे प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम भी कहा जाता है. वैसे महाराणा प्रताप तथा छत्रपति शिवाजी ने मुस्लिम शासन के विरुद्ध जमकर शंघर्ष किया था. पर अंग्रेजी सरकार को नष्ट करने का पहला प्रयास 1857 में ही हुआ था. जिसमें न केवल क्रांतिकारियों ने अपितु भारतीय जनता ने भी खुलकर भाग लिया था. अंग्रेज और कुछ भारतीय चाटुकार इतिहासकारों ने ही अपनी संतुष्टि के लिए सिखाई विद्रोह मानते हो, परंतु वास्तव में यह जनमानस का विद्रोह था. इसमें असंख्य लोग मारे गए उसको भयंकर यातनाएं दी गई उसको जिंदा अग्नि को भेंट चढ़ा दिया गया परंतु मातृभूमि इससे विचलित नहीं हुई.
महारानी तपस्विनी बाई अंग्रेजो के खिलाफ क्यों हुई
अपने पिता नारायण राव की मृत्यु के बाद सुनंदा ने सव्य जागीर की देखभाल करना प्रारंभ कर दिया था. उसने कुछ ने सिपाही भर्ती किए, सुनंदा लोगों को अंग्रेजों के विरुद्ध भड़काती थी. और उन्हें क्रांति की प्रेरणा देती थी. जब अंग्रेजों को सुनंदा की गतिविधियों के बारे में जानकारी प्राप्त हुई. तो उन्होंने सुनंदा को एक किले में नजरबंद कर दिया. अंग्रेजी सरकार का मानना था कि इस कार्रवाई से यह महिला शांत हो जाएगी परंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ दोस्तों.
महारानी सुनन्दा से तपस्विनी कैसे कहलाई?
अंग्रेज सरकार ने सुनंदा को नजरबंदी से रिहा कर दिया यहां से वह घर लौटने के स्थान पर नैमिषारण्य चली गई. और वहां रहकर संत गौरी शंकर के निर्देशन में शिव तथा शक्ति की आराधना करने लगी. सरकार ने समझा कि सुनंदा सन्यासी बन गई है. अब उससे अंग्रेजो को कोई भय नहीं है.
सुनंदा को यहां के लोग माता तपस्विनी के नाम से संबोधित करने लगे. रानी तपस्विनी अपने प्रवचनो के माध्यम से आध्यात्मिक ज्ञान देती थी. सभी वर्गों के लोगों उनके शिष्य थे. रानी तपस्विनी अपने प्रवचनों के माध्यम से जनता में क्रांति का संदेश फैलाती थी. जिस प्रकार बाँसुरिया बाबा भोजपुर के लोगों को क्रांति में भाग देने के लिए प्रेरित करते थे.
ठीक उसी प्रकार रानी तपस्विनी भी अंग्रेजी सरकार का विरोध करने एवं जनता को क्रांति करने की प्रेरणा देती थी. रानी के शिष्य साधु के रूम में विशेष प्रचार करते थे. वे कहते थे ” अंग्रेज तुम्हारा देश हड़प कर ही संतुस्ट नहो हो रहे, वे तुम्हारा धर्म भी भ्रष्ट करना चाहते है”. धीरे-धीरे सभी को ईसाई बना लेंगे. तुम्हे गंगा मैय्या की सौगंध माता तपस्विनी की सौगंध, जाग उठो और अंग्रेजों को देश से बाहर निकालने के लिए तैयार हो जाओ.
1857 की क्रांति में रानी तपस्विनी का क्या योगदान था?
दोस्तों अट्ठारह सौ सत्तावन ईसवी की क्रांति का बिगुल जब बजा. तब रानी तपस्विनी ने इस क्रांति में सक्रिय रूप से भाग लिया. उनके प्रभाव के कारण अनेक लोगों ने इस क्रांति में अहम भूमिका निभाई. रानी ने स्वय घोड़े पर चढ़कर युद्ध में भाग लिया. परंतु उसकी छोटी सी सेना अंग्रेजों की विशाल तथा संगठित सेना के समक्ष अधिक समय तक टिक नहीं सकी. इसके अतिरिक्त कुछ भारतीय गद्दारों ने भी उसके साथ विश्वासघात कर दिया था. अंग्रेजी सरकार ने रानी को पकड़ने के लिए कई बार कोसिस करी. परंतु गांव वालों की पूरी मदद से. ब्रिटिश सरकार को अपने उद्देश्य में सफलता प्राप्त नहीं हुई.
रानी ने रानी तपस्विनी ने यह महसूस कर लिया था की युद्ध के माध्यम से अंग्रेजों को पराजित करना आसान कार्य नहीं है. अंग्रेजों ने भी 18 सो 58 तक इस क्रांति का दामन थाम लिया था. अतः रानी तपस्विनी नाना सहाब के साथ नेपाल चली गई. पर वहां जाकर की रानी शांति से नहीं बैठी. रानी ने वहां अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया. वहां से छिपे रूप में भारतीयों को क्रांति का संदेश भिजवाती थी. और उन्हें विश्वास दिलाती थी कि घबराए नहीं एक दिन अंग्रेजी शासन पूर्ण रूप से नष्ट हो जाएगा.
विदेशों में भारत की आजादी के लिए आंदोलन कहाँ-कहाँ हुए थे?
दोस्तों 18 सो 57 की क्रांति से प्रेरित होकर कुछ विदेशी भारतीयों ने भी विदेशों में रहकर भारत की आजादी के लिए आंदोलन चलाए. इनमें से रासबिहारी बोस ने जापान में तथा श्यामजी कृष्ण वर्मा ने इंग्लैंड तथा अन्य स्थानों पर भारतीयों के पक्ष में एक मजबूत आंदोलन का आरंभ कर दिया. महारानी तपस्विनी ने अंग्रेजों द्वारा भारत पर किए जा रहे अत्याचारों से नेपाल की जनता को अवगत कराया. रानी वहां पर राष्ट्रीयता की भावना का प्रसार कर रही थी. पर नेपाल के नरेश (राणा) अंग्रेजों के मित्र थे अतः उसे इच्छित सफलता प्राप्त नहीं हो सकी.
रानी तपस्विनी की मृत्यु कब और कैसे हुई?
रानी तपस्विनी क्रांति का प्रचार करते करते नेपाल से कोलकाता पहुंची. रानी के साथियों द्वारा लगातार गद्दारी करने की वजह से रानी निराश हो गई थी. उनका शरीर चिंता से दिन प्रतिदिन कमजोर होता गया. धोखेबाज एवं देशद्रोही भारतीयों से वह घबरा गई. अंत में 1907 ईस्वी में भारत की महान विदुषी, देशभक्त नारी कलकत्ता में इस संसार से चल बसी. 1905 ईस्वी में जब बंगाल विभाजन के विरोध आंदोलन प्रारंभ हुआ था. तब रानी तपस्विनी ने उस में सक्रिय रूप से भूमिका निभाई थी. त्याग और बलिदान की प्रतिमूर्ति रानी तपस्विनी हमें गर्व है.
दोस्तों भारत का दुर्भाग्य रहा है कि हर युग में यहाँ जयचंद तथा मीर जाफर जैसे देशद्रोही एवं विश्वासघाती तथा गद्दार होते रहे हैं. जो अपने स्वार्थ पूर्ति हेतु राष्ट्र का अहित करने से नहीं चूकते थे. आज भी कुछ लोग ऐसे हैं जो विदेशों से मिलकर हमारी राष्ट्रीय एकता तथा अखंडता अखंडता को नष्ट करने के प्रयास में लगे हुए हैं. देशभक्त भारतीयों को ऐसी तत्व का डटकर विरोध करना चाहिए.
भारत की प्रमुख लड़ाईया
भारत के महान साधु संतों की जीवनी और रोचक जानकारी
1857 ईस्वी के स्वतंत्रता के महान सेनानियों की जीवनी और रोचक जानकारी
भारत के राज्य और उनका इतिहास और पर्यटन स्थल
FAQs
Ans- रानी तपस्विनी के पिता जी का नाम पेशवा नारायण राव था.