दोस्तों हम यहाँ रोचक जानकारी शेयर करने जा रहे है. भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महान नायक बिहार राज्य के आरा जिले में जगदीशपुर के बाबू अमर सिंह की जीवनी (Biography of Babu Amar Singh). और वो अद्भुत जानकारी जिसके बारे में आप आज से पहले अनजान थे. बाबू कुंवर सिंह की मृत्यु के बाद प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की बागडोर का नेतृत्व अमर सिंह ने किया था. अमर सिंह ने सिंहासन पर बैठने के बाद एक और अंग्रेजों को हराने का निश्चय किया. और दूसरी ओर अपने राज्य में सुदृढ़ शासन प्रबंध स्थापित किया. वीर विनायक दामोदर सावरकर ने लिखा है. बाबू अमर सिंह “कुंवर सिंह” की तरह ही वीर, उदार और पराक्रमी थे.
बाबू अमर सिंह कौन थे?
बाबू अमर सिंह बाबू कुंवर सिंह के सबसे छोटे भाई थे. आपका जन्म जगदीशपुर में हुआ था, आपके पिता जी साहिबजादा थे , जो जगदीशपुर के राजा थे. साहिबजादा जी आपको बहुत प्यार करते थे. बाबू अमर सिंह जी धार्मिक प्रवृत्ति का होने के कारण भारत के प्रमुख तीर्थ स्थलों का भ्रमण किया था. अमर सिंह के पढ़ने लिखने में रुचि थी, एक इतिहासकार के अनुसार वह रामायण एवं महाभारत का जमकर पाठ करते थे.
1857 ईस्वी की क्रांति में बाबू अमर सिंह क्यों कूदे थे?
दोस्तों बाबू अमर सिंह पहले तो अंग्रेजों से संघर्ष करने के पक्ष में नहीं थे. उनका यह मानना था कि अंग्रेज बहुत शक्तिशाली है. परंतु बाबू कुंवर सिंह ने एक प्रमुख सरदार हरकिशन के परामर्श पर क्रांति में भाग लेने का निश्चय किया. जब बाबू कुंवर सिंह ने अंग्रेजों का विरोध किया, तब अमर सिंह भी उनकी तरफ आकर्षित हुए. दोस्तों पहले तो हरकिशन सिंह ही बाबू कुंवर सिंह के प्रधान परामर्शदाता थे. जब बाबू अमर सिंह ने अपने भाई को अंग्रेजों से लड़ाई करते हुए देखा तो वे भी अंग्रेज विरोधी कैंप में शामिल हो गए. हरकिशन सिंह अमर सिंह से ईशा करते थे,अतः उन्होंने इसे पसंद नहीं किया. बाद में बाबू कुंवर सिंह राजनीतिक सूझबूझ के चलते उन्होंने बाद में निष्ठा के साथ युद्ध किया.
Summary
नाम | बाबू अमर सिंह |
उपनाम | जगदीशपुर के बाबू अमर सिंह |
जन्म स्थान | जगदीशपुर, बिहार |
जन्म तारीख | — |
वंश | राजपूत |
माता का नाम | — |
पिता का नाम | साहिबजादा |
पत्नी का नाम | — |
उत्तराधिकारी | बाबू कुंवर सिंह |
भाई/बहन | बाबू कुंवर सिंह |
प्रसिद्धि | स्वतंत्रता सेनानी |
रचना | — |
पेशा | क्रांतिकारी |
पुत्र और पुत्री का नाम | — |
गुरु/शिक्षक | साहिबजादा |
देश | भारत |
राज्य क्षेत्र | बिहार |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | भोजपुरी/हिंदी |
मृत्यु | 1859 ईस्वी |
मृत्यु स्थान | नेपाल |
जीवन काल | लगभग 65 वर्ष |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Babu Amar Singh (बाबू अमर सिंह की जीवनी) |
बाबू अमर सिंह का 1857 ईस्वी की क्रांति क्या योगदान था?
जगदीशपुर छोटी रियासत होते हुए भी उसका प्रभाव बिहिया आदि स्थानों पर था. मुंगल सम्राट शाहजहां ने जगदीशपुर के जमीदार को राजा की उपाधि प्रदान की थी. जगदीशपुर के अंतिम शासक राजा अमर सिंह ही थे. कुंवर सिंह के गद्दी छोड़ने के बाद बिहार में अमर सिंह ने 8 महीनों तक क्रांति का नेतृत्व किया था. उस समय कुंवर सिंह उत्तर पश्चिमी क्षेत्रों में लड़ने में व्यस्त थे.
दोस्तों जब अंग्रेज गवर्नर आयर ने जगदीशपुर पर विजय प्राप्त कर ली. तब अमर सिंह ने पहाड़ी क्षेत्रों में अपना प्रभाव बढ़ाना प्रारंभ किया। और ब्रिटिश कंपनी के विरुद्ध छापामार युद्ध जारी रखा. एवं सासाराम के बीच आवागमन के मार्ग को अमर सिंह ने अवरुद्ध कर दिया.
मिस्टर कोस्टले के अनुसार सासाराम के आसपास के क्षेत्रों पर अमर सिंह का दबदबा बहुत बढ़ गया था. आरा के आसपास के गांवों में भी स्थिति भयावह थी. उन्होंने लिखा है कि इन छेत्रो में पुलिस का कोई प्रभाव नहीं था.
पटना के कमिश्नर ने बंगाल सरकार के सचिव को 6 सितंबर 1857 ईस्वी को एक पत्र लिखा. कि जब तक अमर सिंह आसपास के क्षेत्रों में रहेगा. तब तक आरा जिले में शांति कभी स्थापित नहीं हो सकती. यह भी संभव है कि आरा पर पुनः विद्रोहियों का अधिकार हो जाए.
यदि आरा में पुनः विद्रोही का कबजा हो गया तो वह पटना एवं गया तथा संपूर्ण बिहार के लिए एक सरदर्द हो जाएगा. सरकार ने घोषणा की जो भी अमर सिंह को पकड़वाएगा उसे ₹2000 का पुरस्कार दिया जाएगा. जिसे बाद में बढ़ाकर ₹5000 कर दिया गया था. निशान सिंह और हरकिशन सिंह को पकड़ने के लिए सरकार ने क्रमशः 1000 एवं ₹500 देने की घोषणा की थी.
बाबू अमर सिंह और अंग्रेजो के मध्य शाहाबाद की लड़ाई
ग्रैंड ट्रक रोड के निकट कुरीडीह में अमर सिंह ने टेलीफोन की लाइन काट दी और पहाड़ियों की ओर चले गए. दक्षिण शाहाबाद में कुछ महीनों तक अमर सिंह ने गुरिल्ला युद्ध में अंग्रेजो के दांत खट्टे कर दिए. अमर सिंह की रणनीति अंग्रेजों के लिए बहुत घातक सिद्ध हुई. अधिकांश स्थानों पर अमर सिंह ने अंग्रेजों को पराजित किया. यदि उन्हें पता चलता कि अंग्रेजों की विजय निश्चित है. तो वह अपनी सेना को छोटे-छोटे दलों में बाट कर अनेक पूर्व निर्धारित रास्ते में भेज देते.
इस तरह अमर सिंह की सेना देखते ही देखते गायब हो जाती. और अंग्रेज सेना उसका पीछा करके कुछ भी प्राप्त नहीं कर पाती. अंग्रेज हमेशा यही सोचते थे कि सेना का मुकाबला कैसे किया जाए. और लड़ाई में अंग्रेजों को अपनी विजय निश्चित लगती थी, पर विजय प्राप्त नहीं कर पाते थे. इस प्रकार दूसरे स्थल पर उन्हें फिर अमर सिंह की शक्तिशाली सेना से युद्ध करना पड़ता था.
ब्रिटिश आर्मी के अफसर नौकरी क्यों छोड़ी थी?
अमर सिंह के युद्ध कौशल एवं वीरता से निराश होकर ब्रिटिश जनरल ई.लुगार्ड ने 17 जून को त्याग पत्र दे दिया और इंग्लैंड वापस चला गया. उसके स्थान पर जनरल डग्लस को शिफ्ट किया गया, उसकी सेना भी युद्ध क्षेत्र छोड़कर वापस शिविर में चली गई. 28 फरवरी 18 सो 58 ईस्वी को शाहाबाद के मजिस्ट्रेट मिस्टर बैक ने कमिश्नर को लिखा था. कि उसने अमर सिंह की तलाश का बहुत प्रयास किया था.
बाबू अमर सिंह मुठभेड़ ई.लुगार्ड के साथ कोई ई.लुगार्ड ने आरा से रीवा की ओर प्रस्थान किया. जहां बाबू अमर सिंह के कुछ लोगों ने उसे बाधा पहुंचाने का प्रयास किया. पर उसने उन लोगों को जंगल में खदेड़ दिया. अमर सिंह और ई.लुगार्डके बीच पुणे जगदीशपुर में लड़ाई हुई परंतु या भी विद्रोही सेना को जंगल की ओर भागने के लिए विवश होना पड़ा. जगदीशपुर पर अपना प्रभाव बनाए रखने के लिए ई.लुगार्ड ने 4 यूरोपियन सैनिक टुकड़ी और 1 सिखों की कंपनी को कैप्टन नॉर्मन के नेतृत्व में रखा था.
अमर सिंह और अंग्रेजो के मध्य जगदीशपुर की लड़ाई
10 मई 1858 ईस्वी को यह सूचना प्राप्त हुई कि कर्नल कोरफील्ड पिरो आ रहा है. दलीपपुर में भी कुछ मुठभेड़ हुई. 13 मई 1858 ईस्वी को जब लुगार्ड पीरों में विश्राम कर रहा था. तब अमर सिंह की सेना ने अंग्रेज सेना को परास्त करके उनके कैंप में तहलका मचा दिया था. लुगार्ड ने 14 मई को जगदीशपुर से सेना के प्रधान को लिखा, कि अंग्रेज सेना गर्मी से बहुत परेशान हो चुकी है और उसे बहुत क्षति उठानी पड़ी है. अब मैं विद्रोहियों पर अधिकार करने या भगाने में असमर्थ हूं. 15 मई 1858 ईस्वी को अमर सिंह के सैनिकों ने लुगार्ड की सेना पर आक्रमण कर दिया.
परंतु अंग्रेज सैनिक जगदीशपुर के दक्षिण जंगल की ओर भाग गए. 16 मई 1858 ईस्वी को अंग्रेज सैनिकों ने हरकिशन के गांव में आग लगाकर उसे बर्बाद कर दिया. ब्रिटिश सेना ने अमर सिंह के मकान को भी नष्ट कर दिया था. सर लुगार्ड ने एक कैंप लगाया था,ताकि आरा, दुमरांव, बक्सर, भोजपुर तथा सासाराम में विद्रोहियों को शांत कर उन्हें वहां से हटाया जा सके.
पटना पर प्रजा मंडल के आयुक्त ने सरकार को लिखा था कि यथाशीघ्र जगदीशपुर के जंगल को कटवा दिया जाए. ताकि विद्रो जंगल में न छुप सके. 20 मई को लुगार्ड तथा अमर सिंह के मध्य मुठभेड़ हुई जिसमें अंग्रेज सेना ने उन्हें पीछे हटने के लिए विवश किया पर उन पर कब्जा नहीं कर सकी.
29 जुलाई 18 सो 58 ईस्वी को अमर सिंह कारीसाथ आए. 30 जुलाई को महोली में कर्नल वालटर से उनकी मुठभेड़ हुई, जिसमें 750 सैनिक मारे गए. अंग्रेज सेनापति ने 09 अक्टूबर 1858 ईस्वी को दानापुर से क्रांतिकारियों को कुचलने की एक योजना बनाई। जिसके अनुसार जगदीशपुर, चौगाई, पीरों, कारीसाथ में सैनिक भेजे गए.
बाबू अमर सिंह का अंतिम समय
13 अप्रैल 1859 ईसवी को पटना के कमिश्नर मिस्टर फरगुसन ने सरकार को लिखा कि, बहुत से क्रांतिकारी नेपाल की तराईयों में छिपे हुए हैं. बाबू अमर सिंह भी साहस के साथ घूम रहा है. 24 नवंबर 1859 ईस्वी को पलामू जिला के करौंदा गांव में अमर सिंह विशाल सेना के साथ पाए गए. नाना साहब के नेपाल चले जाने के बाद अक्टूबर 1859 ईस्वी में अमर सिंह नेपाल चले गए थे. वहां पहुंचने के बाद उन्होंने नाना साहब की सेना की एक टुकड़ी का नेतृत्व संभाल लिया था.
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FAQs
Ans- बाबू अमर सिंह जगदीशपुर बिहार के राजा बाबू कुंवर सिंह के छोटे भाई थे, जो उनके बाद जगदीशपुर की गद्दी पर बैठे थे और 1857 की क्रांति में भाग लिया था.