Biography of Prithviraj Chauhan III- दोस्तों हम यहाँ उल्लेख कर रहे है, राजस्थान के महाप्रतापी सम्राट पृथ्वीराज चौहान तृतीय की जीवनी और आशचरजनक जानकारी . Biography of Prithviraj Chauhan III- दोस्तों जहां कही भी आप ये लाइन पढ़ते हो “चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है मत चूके चौहान” तो आप के मन में पृथ्वीराज चौहान जो एक हिन्दू वीर पराक्रम योद्धा राजा की इमेज आती है. और आये भी क्यों नहीं पृथ्वीराज चौहान एक महान और वीर राजा रहे थे. जो चौहान वंश का राज्य उत्तर पश्चिम भारत में फैलाया और अजमेर को अपनी राजधानी बनाया था. दोस्तों इस लेख को ध्यान से पढ़े क्यों की वीर सम्राट पृथ्वीराज चौहान की वो रोचक जानकारी आप को मिलेंगे. जो आज से पहले शायद ही आप पता होगी.
सम्राट पृथ्वीराज चौहान प्रारंभिक जीवन (Biography of Prithviraj Chauhan)
पृथ्वीराज चौहान का जन्म अहिलवाड़ा/अंहिलपाटन (गुजरात) में विक्रम संवत् 1233 ई. और अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 1166 ई. में हुआ था. पृथ्वीराज चौहान के पिता का नाम सोमेश्वर जी तथा इनकी माता जी का नाम कर्पूरी देवी था. पृथ्वीराज चौहान के पिता सोमेश्वर की मृत्यु के समय पृथ्वीराज तृतीय की आयु लगभग सिर्फ 11 वर्ष की थी. उसको माता कर्पूरी देवी ने बड़ी योग्यता व बुद्धिमानी के साथ राज्य का संचालन किया. सम्राट पृथ्वीराज चौहान को बचपन से तलवार और घुड़सवारी सिखाई गयी. और एक अच्छा यौद्धा के सारे गुण उनमे समाहित किये गए. पृथ्वीराज चौहान 6 से ज्यादा भाषा का ज्ञान था.
जब पृथ्वीराज चौहान अजमेर के शासक बने तो उसने स्वयं को चारों तरफ से शत्रुओं से घिरा हुआ पाया. वीर सम्राट पृथ्वीराज अपने शत्रुओं को धीरे- धीरे समाप्त करते गए. और जो इतिहास में ‘दलपंगूल (विश्वविजेता) व रायपिथौरा के नाम से प्रसिद्ध हुए. और दोस्तों सम्राट पृथ्वीराज चौहान की सबसे बड़ी विशेषता यह थी. की जन्म से शब्द भेदी बाण की कला ज्ञात थी. जो की अयोध्या नरेश “राजा दशरथ” के बाद केवल पृथ्वीराज चौहान मे थी. और इसी कला से उन्होंने गोरी को अफगानिस्तान में मारा था.
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पृथ्वीराज चौहान तृतीय जन्म स्थान और परिवार (Prithviraj Chauhan III Birth Place and Family)
नाम | पृथ्वीराज चौहान तृतीय |
उपनाम | दलपंगूल, रायपिथौरा |
माता का नाम | कर्पूरी देवी |
पिता का नाम | सोमेश्वर जी |
जन्म दिनांक | 1166 ईस्वी |
राज्याभिषेक | 1177 ईस्वी |
मृत्यु | 1192 ईस्वी |
पत्नी का नाम | इच्छिनी Or संयोगिता |
भाइयों के नाम | हरिराज और पृथ्वीराज द्वितीय |
शासन की राजधानी | अजमेर (राजस्थान ) |
वंस | चौहान |
राज्य छेत्र | लगभग आधा भारत |
राजधानी | अजमेर, दिल्ली |
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पृथ्वीराज चौहान III और अपरगांग्य तथा नागार्जुन की लड़ाई
दोस्तों जब पृथ्वीराज चौहान अजमेर राज्य का राजा बना तो उसके चाचा पृथ्वीराज को चौहान राज्य का वास्तविक अधिकारी मानने को तैयार नहीं हुए. इसी कारण पृथ्वीराज के चाचा अपरगांग्य ने पृथ्वीराज के विरुद्ध विद्रोह कर दिया था. तो पृथ्वीराज ने अपने चाचा को परास्त कर उसकी हत्या कर दी थी. इस पर पृथ्वीराज के दूसरे चाचा व अपरगांग्य के छोटे भाई नागार्जुन ने पृथ्वीराज के विरुद्ध विद्रोह करके गुड़गाँव पर कब्जा कर लिया. 1178 ई. में हुए ‘गुड़गाँव के युद्ध’ में पृथ्वीराज ने अपने मंत्री कैमास की सहायता से इस विद्रोह का सफलतापूर्वक दमन कर दिया और वर्तमान गुरुग्राम पर अपना अधिकार जमा लिया था.
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चंदेलों का दमन
चंदेलों का दमन/महोबा विजय (1182 ई.) एक बार पृथ्वीराज चौहान के सैनिक दिल्ली से युद्ध करके लौट रहे थे. रास्ते में महोबा राज्य में उसके कुछ जख्मी सिपाहियों को चंदेल राजा ने मरवा दिया. उस समय महोबा राज्य का शासक परमदी देव चंदेल था. अपने सैनिकों की हत्या का बदला लेने के लिए पृथ्वीराज चौहान एक विशाल सेना लेकर महोबा विजय के लिए निकल पड़ा. 1182 ई. में पृथ्वीराज चौहान की सेनाओं ने नरायन के स्थान पर अपना डेरा डाला. यह देखकर परमदी देव घबरा गया और उसने शीघ्र ही अपने पुराने सेनानायक आल्हा और उदल को राज्य की रक्षा के लिए वापस बुलाया. जब दोनों आए तो दोनों दलों के मध्य “तुमुल का युद्ध” हुआ. आल्हा और उदल अपने साथियों के साथ शहीद हुए और पृथ्वीराज चौहान तृतीय की जीत हुई.
भण्डानकों के साथ लड़ाई
तत्कालीन दक्षिण पंजाब में भण्डानक सतलज प्रदेश से आने वाली एक जाति थी. जो गुड़गाँव व हिसार के आस-पास निवास करती थी. भण्डानक भरतपुर, अलवर व मथुरा के क्षेत्र में अपना प्रभाव स्थापित करने का प्रयास कर रहे थे. पृथ्वीराज चौहान ने 1182 ई. में भण्डानकों के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही करके प्रभुत्व को समाप्त किया. इन छोटी छोटी जीतो ने पृथ्वीराज चौहान को दिक्विजय की नीति अपनाते हुए पड़ोसी राज्यों के ऊपर आक्रमण करने हौसला दिया. और उनको जीतकर अपने राज्य में मिलाने लगा.
चालुक्य-चौहान संघर्ष
चालुक्य-चौहान संघर्ष चालुक्य और चौहानों में शत्रुता बड़ी पुरानी थी. पर पृथ्वीराज ततीय के पिता सोमेश्वर के समय इन दोनों के मध्य अच्छे संबंध बन गए थे. पृथ्वीराज रासों के अनुसार पृथ्वीराज चौहान ने आबू के परमार नरेश सलख (सांखला परमार नरेश) की पुत्री इच्छिनी से विवाह कर लिया. चालुक्य राजा भीमदेव द्वितीय गुजरात का राजा था. तो वह इच्छिनी से विवाह करना चाहता था. भीमदेव विवाह नहीं कर सका तो इन दोनों के मध्य विरोध हो गया.
पृथ्वीराज चौहान III की संयोगिता से शादी और जयचंद की गद्दारी
दोस्तों बात जब गद्दारी की होती है तो जयचंद का नाम सब से ऊपर आता है. पृथ्वीराज चौहान दिल्ली की सता उनके हाथ में थी. और कनोज उत्तरप्रदेश के राजा जयचंद की बेटी संयोगिता से शादी करना चाहते थे. संयोगिता के प्रेम में पागल पृथ्वीराज चौहान ने उनका अपरण कर लिया और शादी कर ली थी. क्यों की जयचंद ने संयोगिता के स्वयंवर में पृथ्वीराज चौहान को बुलावा नहीं भेजा था और उसकी मूर्ति द्वार पर लगा दी थी. ये पृथ्वीराज चौहान का अपमान था.
पृथ्वीराज चौहान को दिल्ली का शासक बना दिया. जयचंद भी उस समय दिल्ली का राजा बनने के सपने देख रहा था. जयचंद व पृथ्वीराज दोनों राजाओं में दिल्ली को लेकर आपस में वैमनस्य पैदा हो गया था. पृथ्वीराज चौहान ने जयचंद की पुत्री संयोगिता का अपहरण कर उससे गंधर्व विवाह किया जिससे उनके मध्य कटुता और ज्यादा बढ़ गई थी. इस लिए उसने तरायन के दूसरे युद्ध में मोहम्मद गोरी का साथ दिया था. और उस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की हार हुई और उनको बंदी बना दिया था.
मोहम्मद गौरी का भारत पर आक्रमण
महत्वाकांक्षाएँ दोनों को एक-दूसरे के पास ले आई. 1173 ई. में मोहम्मद गौरी गजनी (अफगानिस्तान) का सुबेदार बना. मोहम्मद गौरी अपने मुस्लिम साम्राज्य का विस्तार करने के उद्देश्य से भारत में सर्वप्रथम गुजरात लेने के लिए 1178 ई. में आक्रमण किया था. गुजरात के शासक (भीमदेव चालुक्य द्वितीय) ने आबू के युद्ध/अहीरवाड़ा के युद्ध में गौरी को पराजित किया. इसके बाद मोहम्मद गौरी ने पंजाब के रास्ते से भारत में प्रवेश करने का निर्णय लिया और वह अफगानिस्तान, पाकिस्तान होते हुए हरियाणा पहँचा, जहाँ मोहम्मद गौरी व पृथ्वीराज चौहान के मध्य 16 युद्ध हुए थे और हर बार हार का मुँह देखना पड़ा.
अंत में जब तराइन (अंबाला) का दूसरा युद्ध और वैसे सत्तरवा युद्ध के समय जयचंद की गद्दारी और मोहम्मद गौरी ने युद्ध में गायो को युद्ध छेत्र में ला कर पृथ्वीराज चौहान की सेना को धोखे से हरा दिया. और उनको सिरसा (हरयाणा) से पकड़ के बंदी बना कर अफगानिस्तान के गजनी शहर में ले गया. पृथ्वीराज चौहान दरबार कवी चंद्रवरदाई की सूझ भुज से गजनी शहर में मोहम्मद गौरी को मार गिराया था. मोहम्मद गौरी पृथ्वीराज चौहान आँखों फोड़ दी थी.
पर चंदबरदाई की इन पंक्तियों को सुन कर “चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है मत चूके चौहान”. पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को तीर से मार गिराया था. उसके बाद चंदबरदाई ने अपने राजा पृथ्वीराज चौहान से माफ़ी मांगी और तलवार से उनको वीरगति दी और फिर अपने आप को वीरगति प्राप्त कर ली थी.
चंदबरदाई (Chandbardai)
चंदबरदाई का जन्म 1148 में लाहौर वर्तमान पाकिस्तान में हुआ था. ये चौहान शासक पृथ्वीराज चौहान तृतीय के राजकवि थे और साथ में पृथ्वीराज तृतीय दोस्त और सहयोगी थे. और इन्होने पृथ्वीराज का अंत तक साथ दिया था. चंदबरदाई को हिंदी (ब्रजभाषा हिंदी) का प्रथम कवि का दर्जा प्राप्त है. इनके द्वारा लिखा गया महाकाव्य पृथ्वीराज रासो है.
पृथ्वीराज रासो महाकाव्य– पृथ्वीराज रासो महाकाव्य का अंतिम भाग इनके मरने के बाद इनके बेटे जल्हण द्वारा पूर्ण किया गया था. पृथ्वीराज रासो महाकाव्य की भाषा पिंगल है. जो राजस्थान में बरजभाषा का पर्याय है. पृथ्वीराज रासो महाकाव्य की सबसे पुराणी प्रीति बीकानेर के राजकीय पुस्तकालय में मिली है. इसमें 10000 से अधिक छंद है और तत्कालीन प्रचलित 6 भाषा में इसे लिखा और प्रयोग किया गया है. 2500 पेज के पृथ्वीराज रासो महाकाव्य में 69 अध्याय है.
तराइन का प्रथम युद्ध 1191 (First Battle of Tarain 1191)
तराइन का मैदान वर्तमान में हरयाणा के करनाल के पास स्थित है. 1191 तराइन का प्रथम युद्ध पृथ्वीराज चौहान और गौरी वश के मोहम्मद गौरी के बीच 1191 में हुआ था. इस युद्ध में मोहम्मद गौरी की बहुत बुरी तरह से हार हुई और उसे वापस अफगानिस्तान के गजनी शहर जाना पड़ा था.
1192 तराइन का द्वितीय युद्ध (Second battle of tarain 1192)
1192 तराइन के प्रथम युद्ध मोहम्मद गौरी बुरी हार के बाद वह वापस अपने भाई से सलहा लेकर 1192 में भारत आया. इस युद्ध से पहले उसने किवाम-उल-मुल्क पृथ्वीराज चौहान के पास अपनी अधीनता स्वीकार करने को भेजा था. पृथ्वीराज चौहान ने अधीनता अस्वीकार कर दी थी.
इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान के सेनापति श्री खण्डेराव थे. तराइन के द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की हार हुई और उनको बंदी बना कर अफगानिस्तान के गजनी शहर ले जाया गया. तराइन के द्वितीय युद्ध मुस्लिम शासको के भारत में दरवाजे खुल गए थे और इस युद्ध के बाद 10000 मंदिर अजमेर में तोड़े गए थे. ढाई दिन का झोपड़ा भी संस्क़त की कॉलेज थी जिसको तोड़ कर मजीद बना दी जो ढाई दिन में बनाई तो इसको ढाई दिन का झोपड़ा नाम पड़ा था.
तराइन का द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज चौहान के हार के कारण
- कहा जाता है मोहम्मद गौरी ने इस युद्ध छेत्र में गायो ले आया चौहान की सेना और चौहान गायो पर वार नहीं कर सकते थे. क्यों की खुद पृथ्वीराज चौहान गाय को माता का दर्जा दे रखा था.
- तराइन का द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज चौहान के ससुर और सयोगिता के पिता जयचंद मोहम्मद गौरी से मिल गया था. वो कहावत है न घर का भेदी लंका दाहवे यहाँ सिद्ध हुई.
- पृथ्वीराज चौहान ने आसपास के राजाओ को हरा कर सम्राट बना था तो उनका साथ भी नहीं मिला.
- मोहम्मद गौरी पहले बहुत बार हारा था तो और सजग हो कर आया था.
- अश्वपति प्रताप सिंह द्वारा दुश्मनों को सेना का भेद बताना.
- सुबह सुबह शौच के समय मोहम्मद गौरी की सेना का राजपूत सेना पर अचानक हमला करना आदी कारणों से चौहान की हार हुई थी.
जयचंद (Jaichand)
पृथ्वीराज चौहान की पत्नी संयोगिता के पिता और कन्नौज के गढ़वाल वश के शासक जयचंद थे. जयचंद की दुश्मनी अजमेर और दिल्ली के चौहान वंश के राजाओं के साथ थी. जयचंद के निमंत्रण पर मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान हमला किया था. पुराने लेखकों के अनुसार पृथ्वीराज चौहान की हार के बाद जयचंद ने अपनी राजधानी में खुशी मनाई थी. लिंकिन दो साल बाद जयचंद और मोहम्मद गौरी की 1194 में चंदावर (इटावा,यमुना नदी के तट पर) युद्ध में मार दिया था.
सम्राट पृथ्वीराज चौहान तृतीय गुर्जर थे या राजपूत?
दोस्तों आखरी हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान गुर्जर थे? या राजपूत इसके अलग अलग दावे अनेक संगठन करते आये है. और अभी कर रहे है. पर ये सत्य है, पृथ्वीराज चौहान III का जन्म एक चौहान वंस में हुआ था. इनके पिता जी तत्कालीन अहिलवाड़ा गुजरात के राजा थे.
दोस्तों गुजर संगठनों के अनुसार पृथ्वीराज विजय महाकाव्य के सर्ग 10 के श्लोक नंबर 50 में पृथ्वीराज के किले को गुर्जर दुर्ग लिखा है, जबकि सर्ग 11 के श्लोक नंबर 7 और 9 में गुर्जरों द्वारा गोरी को पराजित करने का जिक्र है. इससे यह साबित होता है कि पृथ्वीराज चौहान गुर्जर समुदाय से थे. वही राजपूत समुदाय के इतिहासकारो और संगठनों के अनेक सबूत ये दर्शाते है. की पृथ्वीराज चौहान III राजपूत थे. कौन सही और कौन गलत इसकी हम पुस्टि नहीं करते है.
लेकिन ये तो सत्य है, पृथ्वीराज चौहान को अंतिम हिंदू सम्राट माना जाता है. चंदबरदाई की ब्रजभाषा में लिखी कविता पृथ्वीराज रासो में 12वीं शताब्दी के राजा पृथ्वीराज चौहान को एक निडर और कुशल योद्धा बताया गया है.
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Frequently Asking Questions
Ans-जी हां दोस्तों अजमेर में स्थित “अढ़ाई दिन का झोपड़ा” माजिद पहले संस्कृत कॉलेज थी. जो पृथ्वीराज चौहान की हार के बाद मोहम्मद गौरी ने 1198 में इसको तोड़ कर माजिद में बदल दिया था. यहाँ सरस्वती जी का मंदिर भी था.
Ans- ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती मोहम्मद गोरी के साथ अजमेर आया था. भारत में इस्लाम के प्रचार/प्रसार में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का बहुत बड़ा योगदान है.