भारत की इस पुण्य भूमि पर अनेक संत, ऋषि, एवं मऋषि हुए है. जिन्होंने ईश्वर की उपासना करते हुए समाज तथा राष्ट्र की सेवा भी की है. ऐसे ही सिद्ध संतों में से एक थे बंसुरिया बाबा. जिन्होंने भगवान का गुणगान करते हुए हुए स्वतंत्रता संग्राम में प्रकाश स्तम्भ का कार्य किया. हम यहाँ बंसुरिया बाबा की जीवनी (Biography of Bansuriya Baba) और उनके द्वारा आजादी की अलख में योगदान कर वर्णन कर रहे है. इस लिए पाठको से निवेदन है इस पेज को ध्यान से और अंत तक पढ़े.
भारत में संकट के समय साधु-संतों ने देश के उद्धार के लिए अपना सर्वस्व निछावर किया है. कहीं-कहीं पर अंतरिम का संचालन भी किया है. और आवश्यकता पड़ने पर तलवार भी उठाइए. त्रेता युग में जब श्री लंका के राजा रावण ने आर्य सभ्यता एवं संस्कृति को नष्ट कर दिया था. तब महर्षि वशिष्ठ एवं अगस्त्य ने भगवान राम को उसके विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष हेतु तैयार किया था. राम ने अपने भाई लक्ष्मण कथा वानर सेना की सहायता से लंकापति रावण को पराजित कर दक्षिण में आर्य संस्कृति की पताका लहराई थी. दोस्तों किसी प्रकार द्वापर में विद्युत महाराज ने कौरव और पांडव युद्ध में गुप्त रूप से पांडवों की मदद की थी साधु संत हमेशा न्याय तथा धर्म के साथ देते रहे हैं.
बांसुरिया बाबा का जीवन परिचय/बसूरिया बाबा कौन थे
बाबा का जन्म कहां हुआ था उनके माता पिता कौन थे इस संबंध में कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती वास्तव में महान संतों का कोई एहसान नहीं होता है. भोजपुरी में एक कहावत है कि “रमता जोगी बहता पानी” का ही महत्व है. प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बिहार के कुंवर बाबू सिंह और अमर सिंह ने क्रांतिकारियों का नेतृत्व किया था. उन्हें इस हेतु बंसुरिया बाबा ने प्रेरणा प्रदान की थी. ऐसा कहा जाता है कि उन दिनों जगदीशपुर बिहार के जंगलों में एक संत रहते थे. जिनकी बांसुरी की ध्वनि पर समस्त प्राणी मंत्र मुक्त हो जाते थे. ऐसा प्रतीत होता था कि जैसे समय भगवान कृष्ण के रूप में भोजपुर की जनता को अपनी सुरीली धुन सुना रहे हैं.
कुछ विद्वानों का मानना है कि बांसुरिया बाबा लंबे कद के दुबले-पतले अधेड़ अवस्था के संत थे. और वे गांजा पीते थे और हर समय बोलते रहते थे. और वे गांव के ही बहार रहा करते थे.
Summary
नाम | बंसुरिया बाबा |
उपनाम | बाबा, भगवान कृष्ण के रूप |
जन्म स्थान | जगदीशपुर बिहार |
जन्म तारीख | – |
वंश | – |
माता का नाम | – |
पिता का नाम | – |
पत्नी का नाम | – |
प्रसिद्धि | 1857 ईस्वी क्रांति विद्रोह बिहार में गुप्त रूप से क्रांति का प्रचार |
रचना | — |
पेशा | स्वतंत्रता सेनानी |
पुत्र और पुत्री का नाम | — |
गुरु/शिक्षक | स्वामी दयानन्द सरस्वती |
देश | भारत |
राज्य छेत्र | बिहार |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
मृत्यु | अज्ञात |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Bansuriya Baba (बंसुरिया बाबा की जीवनी) |
1857 की क्रांति में बिहार का योगदान
बिहार में गुप्त रूप से क्रांति का प्रचार हो रहा था पीर अली के नेतृत्व में क्रांति की योजना बनती थी. इसकी गुप्त बैठकें दानापुर में होती थी. जगदीशपुर के बाबू कुंवर सिंह की और से बिहार के दानापुर छावनी के सिपाहियों में हरेकृष्ण सिंह एवं दल भजन सिंह क्रांति की लहर फैलाते थे.
भोजपुर बिहार क्यों प्रसिद्ध है?
भोजपुर बिहार की भूमि भारत के पवित्रतम पवित्रतम धरती मानी जाती है. क्यों की दोस्तों विश्वामित्र ने यहीं पर राम तथा उनके भाई लक्ष्मण को अपने सिद्धाश्रम में सशस्त्र की शिक्षा दी थी. ताकि वे राक्षसों का विनाश कर सकें. इसी भूमि की एक साधारण जागीरदार के निष्कासित पुत्र फरीद का शेर खा ने मुगल सम्राट हुमायूं को पराजित कर सूर्य वंश का शासन स्थापित किया था. हमारा कहने का अर्थ यह है कि भोजपुर की भूमि पर अनेक ऐसे रतन पैदा हुए हैं जिन्होंने किसी न किसी रूप में भारत मां की सेवा की है.
बांसुरिया बाबा ने बाबू कुंवर सिंह के लिए क्या कहाँ था?
बाबू कुंवर सिंह एवं अमर सिंह जी बाबा से प्रेरणा प्राप्त करते थे और अपनी योजनाएं बनाते. इसके लिए बाबा हमेशा आशीर्वाद देते ऐसा भी लिखित प्रमाण उपलब्ध होता है कि उन्होंने कहा था. कि तुम्हारा नाम तुम्हारे वंस के कारण नहीं अपितु तुम्हारी सेवाओं के कारण भारतीय इतिहास में अमर हो जाएगा.
1857 की क्रांति में बांसुरिया बाबा का योगदान
1857 के स्वतंत्रता संग्राम में समझ जातियों और वर्गों के लोगों ने खुलकर भाग लिया था. डलहौजी की साम्राज्यवादी हड़प नीति के कारण झांसी सातारा अवध दिल्ली कानपुर सभी जगह पर कंपनी के खिलाफ विद्रोह शुरू हो चुके थे. राणा साहब तात्या टोपे ने मिलकर बिठूर में क्रांति की योजना बनाई थी. क्रांति का संदेश भी गुप्त रूप से गांव-गांव में फैलाया गया क्रांति के संदेश को फैलाने में साधु-संतों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया था.
जिस प्रकार कृष्ण ने अत्याचारी को रोक रोक को यूज करने हेतु प्रेरित किया उसी प्रकार बांसुरिया बाबा ने भी अंग्रेजों के खिलाफ अंग्रेजों के शासन के खिलाफ वस्तु की जनता को संगठित करने हेतु तैयार किया। बाबा के आह्वान पर जनता अपना सर्वस्व निछावर करने के लिए तैयार हो गई बाबा कहते थे. बेटा अपना माथा ठीक रखो शरीर सोते ही काम करेगा। इसका अर्थ यह था कि अपने नेता की मदद करो बाकी सब कुछ अपने आप ठीक हो जाएगा। अनुशासन में रहते हुए एस्ट इंडिया कंपनी के अंग्रेजों के अत्याचारी शासन का अंत करो.
बाबा कौन थे तथा उनका वीर कुँवर सिंह से क्य संबंध था?
बांसुरिया बाबा की प्रेरणा से हजारों भोजपुरी नौजवान कुंवर सिंह की सेना में बिना वेतन के कार्य करने लगे. वे अंग्रेजों को अधर्मी बताकर जनता में उनके प्रति घृणा की भावना उत्पन्न करते थे. बाबा के मन में राष्ट्रीय भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी. वह हर तरीके से अंग्रेजी राज्य की समाप्ति इच्छा रखते थे. दोस्तों बांसुरिया बाबा ने शस्त्र नहीं उठाया परंतु दूसरों को तैयार किया था.
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने अपनी पुस्तक आनंद मठ में लिखा है. कि सन्यासियों ने अंग्रेजी साम्राज्य को नष्ट करने में सफल व सहयोग दिया उन्होंने जनसाधारण में राष्ट्रीय जागृति का शंकनाद किया था.
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FAQs
Ans- बाबू कुंवर सिंह जी बाबा से प्रेरित होकर 1857 की क्रांति में भारत को आजाद कराने के लिए अंग्रेजो से लड़ाईया लड़ी थी.