दोस्तों हम यहाँ आपके साथ शेयर करने जा रहे है. भारत के प्रथम स्वतंत्रता की नायिका अजीजन बाई की जीवनी (Biography of Ajijan Begum) की जीवनी और उनके द्वारा किये जन चेतना के कार्य. दोस्तों जिस किसी व्यक्ति या महिला में देश प्रेम एवं देश के लिए मर मिटने की तमन्ना होती है. वह वेरण्य होता है जिसमे ऐसी भावना नहीं होती. उसे हम देशद्रोही की संज्ञा देते है. और उसके दर्शन करना भी पाप की श्रेणी में आता है.
मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता है. वह अपने सद्कार्य से इतिहास में अपना स्थान बना सकता है. ऐसा कहा जाता है कि संकट के समय दिव्य आत्माओं का जन्म होता है. जो जनसाधारण को सत्य कार्यों की प्रेरणा देती है. प्रथम भारतीय स्वतंत्रता का बिगुल बजाने वाले प्रथम बलिदानी मंगल पांडे एक साधारण सिपाही थे. इसके अतिरिक्त नाना साहब, रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे बाबू कुंवर सिंह आदि 18 सो 57 की क्रांति के अन्य नेता थे. जिन्होंने इस क्रांति का नेतृत्व किया था. इसके इनके आन पर हजारों लोगों ने क्रांति में अपने प्राणों का त्याग कर दिया था. उन्हीं में से थी एक नर्तकी अजीजन बेगम (बाई) जिसका नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है.
Biography of Ajijan Begum (अजीजन बेगम की जीवनी)
22 जनवरी सन 1824 मध्य प्रदेश के मालवा राज्य के नगर राजगढ़ में ज़ागीरदार शमशेर सिंह के यहाँ कन्या रत्न का जन्म जो हुआ था. शमशेर सिंह की इकलौती संतान को नाम मिलता है “अजंसा “. समय “अजंसा “ को एक रूपवान कन्या के रूप में ढाल देता है. एक दिन अजंसा अपनी सहेलियों के साथ “हरादेवी “ मंदिर के मेले में घुमने जाती है. और वहाँ से उसे अंग्रेज सिपाही अगवा कर लेते हैं. इस सदमे को शमशेर सिंह झेल नहीं पाते और उनकी जान चली जाती है. कानपुर छावनी में कई दिन तक अजंसा से अपनी हवस शांत करने के बाद गोरे सिपाही उसे कानपुर के लाठी मोहाल में एक कोठे की मालकिन अम्मीज़ान के हाथों बेच देते हैं, और अब अजंसा “अजीजन बाई“ बन जाती है.
जल्द ही अजीजन की शोहरत पुरे राज्य में फ़ैलने लगती है. तबले की थाप पर थिरकती अजीजन सारंगी के स्वरों में तैरने लगती है. महफ़िलें जमने लगती हैं. देह व्यापार के बल पर नहीं केवल अपनी आवाज़ के जादू से अजीजन शोहरत, हवेली , नौकर ,चाकर सब हासिल कर लेती है. ठीक उसी समय अजीजन की शोहरत की तरह ही हिंदुस्तान एक बदलाव की तरफ़ बढ़ रहा होता है. मेरठ में 10 मई 1857 को क्रान्ति का बिगुल बज जाता है. मेरठ की तवायफें सैनिकों के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़ी हो जाती हैं. ये सुनने के बाद अजीजन के मन में अंगेजों से बदले के लिए अरसे से दबी चिंगारी आग में बदलने लगती है.
Summary
नाम | अजंसा |
उपनाम | अजीजन बेगम, अजीजन बाई |
जन्म स्थान | राजगढ़, मालवा |
जन्म तारीख | 22 जनवरी सन 1824 |
वंश | राजपूत |
माता का नाम | अज्ञात |
पिता का नाम | शमशेर सिंह |
पति का नाम | अज्ञात |
पेशा | तवायफ, नर्तकी |
बेटा और बेटी का नाम | — |
गुरु/शिक्षक | नाना साहब |
देश | अविभाजित भारत |
राज्य | मध्य प्रदेश |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | ब्रिटिश भारतीय |
मृत्यु | जुलाई 1857 |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Ajijan Begum (अजीजन बेगम की जीवनी) |
अजीजन बेगम का 1857 की क्रांति में क्या योगदान दिया?
कानपुर के क्रांतिकारी भी अपने गुप्त बैठकें आयोजित करते थे. वहां नाना साहब, बाला साहब नाना साहब के भाई, तथा तथा तात्या टोपे क्रांति का नेतृत्व कर रहे थे. 1 जून 1857 ईस्वी को क्रांतिकारियों की एक गुप्त गुप्त बैठक आयोजित की गई थी. जिसमें समसुद्दीन का नाना साहब, बाला साहब, सूबेदार टीका सिंह, अजीमुल्ला खां के अतिरिक्त अजीजन बेगम ने भी भाग लिया था. गंगाजल की साक्षी लेकर उन सभी ने कसम खाई कि हम भारत में अंग्रेजी सत्ता को समाप्त कर देंगे.
तात्याटोपे से विमर्श के बाद अजीजन अपनी सारी संपत्ति आज़ादी की लड़ाई के लिए नाना साहब को दान कर देती है. और ख़ुद घुंघरू उतार कर तलवार उठा लेती है. नाना साहब अजीजन को अपनी बहन का दर्जा देते हैं. अजीजन अन्य तवायफ़ों के साथ मिल कर एक टोली बनाती है. जिसका नाम मिलता है “मस्तानी टोली“ तात्या टोपे मस्तानी टोली को युद्ध की कला और हथियार चलाने की शिक्षा देते हैं.
दिन में भेष बदल कर अंग्रेजों से मोर्चा लेना और रात में छावनी में मुज़रा करके गुप्त सूचनाएं नाना साहब की सेना तक पहुँचाना अजीजन और उनकी मस्तानी टोली का मुख्य काम था. युद्ध में घायल सैनिकों की सेवा और किले की नाकेबंदी के दौरान सैनिकों को रसद आदि मुहैया करवाने में भी अजीजन और उनकी टोली का बड़ा योगदान रहा.
अजीजन बेगम कौन थी?
अजीजन बेगम एक प्रसिद्ध नृत्य की थी, उसके सुरीले संगीत एवं नृत्य से हजारों युवक आकर्षित होते थे. धन-संपत्ति कि उसके पास कोई कमी नहीं थी. परंतु सच्चा कलाकार भी सिर्फ रंगारंग रैलियों में ही अपना समय व्यतीत नहीं करता. जैसा कि हम जानते हैं कि भिखारी ठाकुर ने केवल एक प्रसिद्ध लोक नाटक थे. अपितु भोजपुरी भाषा के विख्यात कविता नाटककार भी थे. उन्होंने उन्होंने अपने बेटी वियोग, विदेशिया, विधवा विलाप, भाई विरोध आदि नाटकों के माध्यम से तत्कालीन सामाजिक बुराइयों को दूर करने का प्रयास किया. ठीक इसी प्रकार भिखारी समाज सुधारक तथा भगवान भक्त भी थे. इसी प्रकार लेखों को का यह मानना है कि अजीजन बेगम केवल एक साधारण नर्तक ही नहीं थी, बल्कि उसके हृदय में देशभक्ति की भावनाएं हिलोरे मार रही थी.
अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति कानपुर तक फैल चुकी थी. अजीजन बेगम यह जानती थी कि शक्तिशाली अंग्रेजों को हराना कोई आसान काम नहीं है. फिर भी उसने देश की आजादी के लिए नृत्य के जीवन को त्याग दिया और क्रांतिकारियों की सहायता करने का निश्चय किया. श्री वीर विनायक दामोदर सावरकर ने सीजन के संबंध में लिखा है. अजीज अनेक नृत्य की थी परंतु सिपाहियों को उसे बहुत प्यार था. अजीजन का प्यार साधारण बाजार में धन के लिए नहीं बिकता था. उनका प्यार पुरस्कार स्वरूप उस व्यक्ति को दिया जाता था. जो देश से प्रेम करता था अजीज इनके सुंदर मुख की मुस्कुराहट भी चितवन युद्ध रत सिपाहियों को प्रणाम भर देती थी. उनके मुख पर बुगाटी का तनाव युद्ध सेवा कर आए हुए कार्य सिपाहियों को पुन रण क्षेत्र की और भेज देता था.
नाना साहब की बिठूर पर विजय
दोस्तों समय करवट बदलता गया और जून 1857 कानपूर के प्रथम युद्ध बिठूर जो की कानपूर से लगभग 13 मिल दूर जगह पर अंग्रेजो और नाना साहब के बिच जंग छिड़ गयी. नाना साहब की सेना ने अंग्रेजो को हरा दिए और नाना साहब बिठूर के स्वतंत्र राजा बने. जून 1857 में ही इन लोगों ने अंग्रेजों को जोरदार टक्कर देते हुए विजय प्राप्त की और नाना साहब को बिठूर का स्वतंत्र शासक घोषित कर दिया. परंतु यह खुशी ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाई. 16 अगस्त को बिठूर में अंग्रेजों के साथ पुन: भीषण युद्ध हुआ जिसमें क्रांतिकारी परास्त हो गए.
बिठूर का II युद्ध में अजीजन बेगम का योगदान
इन दोनों ही युद्धों में अजीजन बेगम की भूमिका बेहद महत्त्वपूर्ण थी. उसने युवतियों की एक टोली बनाई जो कि मर्दाना वेश में रहती थी. वे सभी घोड़ों पर सवार होकर हाथ में तलवार लेकर नौजवानों को आजादी के इस युद्ध में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित करती थीं. वे घायल सैनिकों का इलाज करतीं, उनके घावों की मरहम पट्टी करतीं. फल, मिष्ठान्न और भोजना बांटतीं और अपनी मोहक अपनत्व भरी मुस्कान से उनकी पीड़ा हरने की कोशिश करतीं.
अजीजन बाई (बेगम) की मृत्यु कैसे हुई?
1857 जून का महा ग़दर चरम पर था. 26 जून 1857 को छावनी पर बहादुर शाह ज़फर का झंडा फ़हराने लगा. 27 जून को सती चौरा कांड हुआ. 28 जून को पनचक्की के पास नाना साहब का दरबार लगा. 8 जुलाई को नाना साहब का राज्यरोहण हो गया. 17 जुलाई बीवी घर (लाल बंगला) कांड भी हुआ था. कुछ इतिहासकारों के अनुसार इसमें अजीजन का भी योगदान था . अब कानपुर हमारा था . पर सिर्फ़ चंद दिनों के लिए 17 जुलाई को जनरल हैवलाक अंग्रेजी और मराठा पलटनों के साथ कानपुर पहुँच गया. कुछ हमारी कमियों और कुछ लोगों के विश्वासघात ने जीती बाज़ी पलट दी. कानपुर फ़िर अंग्रेजों का ग़ुलाम बन गया. कत्लेआम शुरू हो गया था. नाना साहब ने बिठूर त्याग दिया. अजीजन भी अन्य साथियों के साथ जंगल में जा छुपी.
तभी दूसरी अंग्रेज टुकड़ी आ जाती है और अजीजन पकड़ी जाती है. जनरल हैवलाक के सामने अजीजन को पेश किया जाता है. और जनरल के मुँह से निकलता है “ हाउ ब्यूटीफुल !! “ . हैवलाक सहानुभूतिपूर्वक अजीजन से कहता है. “तुम बहादुर हो ! मैं तुम्हारी बहादुरी की क़द्र करता हूँ. तुम माफ़ी माँग लो. हम तुम्हें माफ़ कर देंगे. अजीजन आवेश में कहती हैं. चोरों और लुटेरों को अपने घर से निकालना ज़ुर्म है क्या. ज़ुर्म तो आपने किये हैं, यहाँ नहीं तो ख़ुदा के यहाँ आपको भी वही सज़ा मिलेगी जो आप मुझे यहाँ देंगे.
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बेगम अजीजन कैद हो जाती है, और फिर जनरल नील अजीजन से क्रांतिकारियों के बारे में जानने के लिए बर्बरता की हद पार कर जाता है. बाई अजीजन के ज़िस्म के हर हिस्से पर घाव दिये जाते हैं. पर वह अपने अज़ीज़ वतन के लिये चुपचाप हर जुल्म सह जाती है. कई दिनों के जुल्म के बाद भी कुछ हासिल न होने पर हार कर जनरल अजीजन को तोप से उड़ा देने का हुक्म देता है.
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FAQs
Ans- अजीजन बाई (बेगम) का जन्म राजगढ़, मालवा मध्य प्रदेश में हुआ था.
Ans- अजीजन बाई प्रथम भारतीय स्वतंत्रता की महान नायिका थी, उन्होंने नाना साहब के साथ मिलकर अंग्रजो से लड़ाई लड़ी, और महिलाओं की एक सेना तैयार की थी.