दोस्तों हम यहाँ शेयर करने जा रहे है, भारत के अंतिम मुंगल बादसा बहादुरशाह जफ़र की पत्नी और रानी बेगम ज़ीनत महल की जीवनी (Biography of Zeenat Mahal) और उनके जीवन से जुड़े अनसुने किस्से. वैसे तो मित्रों ज़ीनत महल का नाम हर किसी ने सुना होगा, क्यों की भारत के अंतिम मुंगल राजा की बेगम थी. और १८५७ ईस्वी की क्रांति में डायरेक्ट और indirect रूप से उनके योगदान को भुला नहीं सकते है. तो दोस्तों चलते है और जानते है ज़ीनत महल की रोचक जानकारी और उनसे जुड़े अनसुने किस्से जिनके बारे में आप अब से पहले अनजान थे.
ज़ीनत महल कौन थी?
आप जीनत महल भारत के अंतिम मुंगल सम्राट बहादुरशाह जफ़र की बेगम थी. और प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बेगम जीनत महल में भी बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया था. यह सही है कि बेगम जीनत महल ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की भांति शस्त्र धारण करके युद्ध भूमि में भाग लेकर अंग्रेजों को तलवार के घाट नहीं उतारा था. परन्तु बेगम ज़ीनत महल के चतुर दिमाग ने एक बार तो मुंगलो को भारत में वापस सत्ता में आने का मौका मिल सकता था. और अंग्रजो को सदा सदा के लिए भारत से जाना पड़ सकता था. पर कुछ देश के गद्दारो की वजह से ये काम होते होते रह गया था.
Summary
नाम | ज़ीनत महल |
उपनाम | बेगम ज़ीनत महल |
जन्म स्थान | दिल्ली |
जन्म तारीख | 1823 ईस्वी |
वंश | तैमूरी राजवंश |
माता का नाम | बादशाह बेगम |
पिता का नाम | मुहम्मद शाह/मुहम्मद शाही |
पति का नाम | बहादुरशाह जफ़र |
भाई/बहन | शहरयार शाह बहादुर |
प्रसिद्धि | शासक, स्वतंत्रता सेनानी |
रचना | — |
पेशा | शासक |
पुत्र और पुत्री का नाम | मिर्जा जवान बख्ती |
गुरु/शिक्षक | — |
देश | भारत |
राज्य क्षेत्र | दिल्ली |
धर्म | इस्लाम |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | हिंदी, उर्दू |
मृत्यु | 17-जुलाई-1886 ईस्वी |
जीवन काल | 63 वर्ष |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Zeenat Mahal (ज़ीनत महल की जीवनी) |
1857 ईस्वी की क्रांति में ज़ीनत महल का क्या योगदान था?
बेगम जीनत महल में आक्रोश था, उसमें सूझबूझ की असाधारण क्षमता विद्वान थी. बेगम ने मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर को अत्याचारी अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध का संचालन एवं उसका नेतृत्व करने की प्रेरणा प्रदान की. मल्लिका ज़ीनत महल मुगल साम्राज्य के अंतिम मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर की बेगम थी. बेगम में अच्छी शशिका के समस्त गुण विद्वान थे. आजादी के लिए वह बेचैन थी. ब्रिटिश शासन से लोग परेशान हो चुके थे. इसके विरुद्ध क्रांति का वातावरण तैयार हो चुका था. बैरकपुर छावनी में मंगल पांडे ने अपने प्राणों की आहुति देकर क्रांति की अग्नि प्रज्वलित कर दी थी.
उसकी लपटे कानपुर, बनारस, अवध, तथा मेरठ तक फैल चुकी थी. ऐसी विकट परिस्थितियों में भी बहुत से राजा महाराजा हाथ पर हाथ धरे बैठे हुए थे. मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर बूढ़े हो चले थे. उनकी शक्ति छिन्न हो चुकी थी. वह शेरो शायरी में डूबे रहते थे. और चाहा कर भी आजादी की लड़ाई में भाग लेने से हीच कीचा रहे थे.
मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर को 1857 की क्रांति के लिए ज़ीनत महल ने कैसे तैयार किया?
मेरठ के अनेक विद्रोही सैनिकों ने दिल्ली की ओर कूच कर दिया. इसी प्रकार अवध तथा रोहिलखंड के सैनिक मंगल दरबार पहुंचे। और मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर से निवेदन किया कि जहांपनाह हम ब्रिटिश हुकूमत को खत्म करना चाहते हैं.
सैनको ने मुगल सम्राट से आशीर्वाद देने तथा नेतृत्व करने की प्रार्थना की. उन्होंने कहा कि आप इसी प्रकार की चिंता नहीं करें हम अंग्रेजों के खजाने को लूट कर आपके खाली कोष को भर देंगे. सैनिकों की प्रार्थना पर मुगल सम्राट ने कोई ध्यान नहीं दिया। क्योंकि विश्वासघाती दरबारी नहीं चाहते थे कि युद्ध के संचालन का नेतृत्व है मुगल सम्राट करें. अंत तक वे बहादुर शाह जफर को ऐसा करने से रोक रहे थे.
जीनत महल पर्दे के पीछे सैनिकों की बात सुन रही थी जब उसने बहादुर साहब का नकारात्मक रूप देखा तो वह बहुत दुखी हुई. जिस प्रकार क्षत्राणी अपने पति और पुत्र को युद्ध में भाग लेने के लिए प्रेरित करती थी. उसी प्रकार का दोष रानी के मन में पैदा हो गया. बेगम ने बहादुरशाह जफर से कहा राजन यह समय गजलें कहकर दिल बहलाने का नहीं है. बिठूर से नाना साहब का संदेश लेकर बहुत से बहादुर सिपाही आए हैं. आज सारे हिंदुस्तान की आंखें दिल्ली की और आप पर लगी है. आपका यह कर्तव्य है कि आप उनका साथ दें अन्यथा इतिहास आपको कभी माफ नहीं करेगा.
यह सुनते ही बुड्ढा शेर बहादुर शाह जफर गरज उठा और उसने कहा अंग्रजो इतने जुल्म ढाए हैं, कि हर तरफ कोहराम मचा हुआ है. देश की निगाहें दिल्ली की ओर लगी है, तो हम लड़ेंगे बेगम जरूर लड़ेंगे आगे जो हमारी और मुल्क की किस्मत हां जो भी हो मंजूर ए खुदा पर हम कसम खाते हैं. कि गुलामी की मौत नहीं मरेंगे अब तुम्हें भी तकलीफ उठाने के लिए तैयार हो जाना चाहिए.
बहादुरशाह का 1857 ईस्वी की क्रांति के लिए भारत के राजाओ को पत्र
बहादुर शाह जफर ने यह निश्चय किया कि वह अंग्रेजों का नामोनिशान मिटा देने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे. उन्होंने हिंदू राजाओं तथा मुसलमान नवाबों का आह्वान करते हुए कहा. कि वे एकजुट होकर अंग्रेज सरकारी की दमन चक्र का विरोध करें। सब राजाओ के यहां खत लिखवाये, और कहाँ गया अभी हमारा फर्ज फिरंगी सरकार को खत्म करना है. बाद में आप सब जिसे चाहे उसे हिंदुस्तान का शासक बनाएं. बहादुर शाह जफर के इस पत्रों से अधिकांश भारतीय राजाओ पर प्रभाव नहीं पड़ा. फिर भी वह निराश नहीं हुए बेगम जीनत ने एक और बादशाह के मनोबल को ऊंचा बनाये रखा. तो दूसरी और सिपाहियों का हौसला बढ़ाया.
क्रांतिकारियों की दिल्ली में अंग्रेज सेना से जमकर लड़ाई हुई. जिसमें अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए सरकारी खजाने को लूट लिया गया. अनेक वीर सिपाई इस क्रांतिकारी युद्ध में लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए. इससे क्रांतिकारी घबराएं नहीं परंतु धीरे-धीरे आपसी विश्वासघात, असफल नेतृत्व, संगठन एवं रसद के अभाव के कारण क्रांतिकारियों का मनोबल टूटने लगा. वे युद्ध भूमि छोड़कर जाने लगे 19 सितंबर अट्ठारह सौ सत्तावन ईसवी को बहादुर शाह जफर को लाल किले में नजरबंद कर दिया गया. और 20 सितंबर 1857 को बेगम जीनत महल को बंदी बना लिया गया.
बेगम ज़ीनत महल की मृत्यु कैसे हुई? और कहाँ हुई थी?
बहादुरशाह जफर और उनकी बेगम जीनत महल को बंदी बनाकर दिल्ली के लाला किले में रखा गया. 27 जनवरी 18 सो 58 ईस्वी को उन पर राजद्रोह का अपराध लगाकर मुकदमा चलाया गया. जिसमें उन्हें आजीवन काले पानी की सजा सुनाई गई. और अंग्रजी सरकार ने उन्हें रंगून की जेल भेज दिया. अंग्रेजों ने बादशाह बहादुरशाह जफर के दो लड़कों को पहले ही मौत के घाट उतार दिया था. उन्होंने उनके कटे हुए सिर रेशमी रुमाल से ढक कर जेल में बहादुर शाह जफर के पास भेजें. जिसे देखकर जफर का दिल दहल उठा और 7 नवंबर 18 सो 62 ईस्वी में पक्षाघात की बीमारी के कारण आजादी का दीवाना बहादुर शाह जफर इस दुनिया से चल बसा.
कैप्टन एच एन डेविस के अनुसार मल्लिका जीनत महल अच्छी सेहत अच्छी सूरत शकल वाली एक मध्य कट की महिला थी. पर्दे के पीछे बैठकर वह बादशाह को सलाह मशवरा दिया करती थी. बेगम जीनत महल को अपराधी घोषित करते हुए अंग्रेज सरकार ने उन्हें नाना प्रकार की दिक्कत दी थी. ज़ीनत बेगम ने देश की आजादी के लिए महिलाओं की ऐसो आराम की जिंदगी को त्याग दिया था. उनका यह त्याग कभी भुलाया नहीं जा सकेगा. हम भारत के लोग बेगम ज़ीनत जैसी महिला को नमन करते है.
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FAQs
Ans- बेगम ज़ीनत महल का जन्म 1823 दिल्ली में हुआ था.