Biography of Babu Kunwar Singh | बाबू कुंवर सिंह 1857 क्रांति

By | December 9, 2023
Biography of Babu Kunwar Singh
Biography of Babu Kunwar Singh

स्वतंत्रता नहीं केवल मनुष्य को अपित पक्षियों को भी प्रिय होती है. वेदव्यास ने महाभारत में लिखा है स्वतंत्रता से बढ़कर के लिए और कोई वस्तु नहीं होती वस्तुतः स्वतंत्रता सबसे बड़ी प्रिय होती है. यही कारण है कि स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए लोग अपना सर्वस्व निछावर कर देते हैं. हम यहाँ भारत के प्रथम स्वतंत्रता के महान नायक बाबू कुँवर सिंह जी की जीवनी (Biography of Babu Kunwar Singh) और उनके जीवन से जुड़े अनसुने किससे आपके साथ शेयर करने वाले है. तो दोस्तों चलते है और जानते है बाबू कुँवर सिंह जी की आचर्यजनक जानकारी.

बाबू कुँवर सिंह कौन थे? (Biography of Babu Kunwar Singh)

कुंवर सिंह का जन्म 13-नवंबर-1777 ईस्वी में बिहार राज्य के आरा जिले के जगदीशपुर नामक ग्राम में हुआ था. आपके पिता का नाम साहबजादा सिंह था और माता जी का नाम रानी पंचरतन कुमारी देवी सिंह था. आपके फॅमिली उनके पूर्वजों को तथा उन्हें राजा की उपाधि प्राप्त थी. उनके पूर्वजों की भांति उनमें भी शौर्य सास एवं बलिदान की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी. जगदीशपुर एवं आसपास के लोग गांव में उनके प्रताप एवं कीर्ति का सूर्य चमकता था. कुंवर सिंह का बाल्यकाल जगदीशपुर में ही व्यतीत हुआ उनकी पढ़ने लिखने में रुचि नहीं थी. इसके विपरीत भाला बरछी और तलवार चलाने में उन्हें बहुत आनंद आता था. वह बहुत अच्छे घुड़सवार थे, और शिकार में उनकी काफी रूचि थी युवावस्था में पूर्व ही उन्होंने घुड़सवारी एवं तलवार चलाने में प्रश्नससीय योग्यता तथा दक्षता प्राप्त कर ली थी.

अपने पिता साहबजादा सिंह की मृत्यु के पश्चात 1826 ईसवी में कुंवर सिंह जगदीशपुर की गद्दी पर बैठे उन्होंने बहुत कुशलतापूर्वक शासन का संचालन किया. आरा में अपने नाम पर एक बाजार बनाया जो अभी भी बाबू बाजार के नाम से विख्यात है.

Summary

नामबाबू कुंवर सिंह
उपनामवीर कुंवर सिंह
जन्म स्थानजगदीशपुर, आरा, बिहार
जन्म तारीख13-नवंबर-1777 ईस्वी
वंशपरमार राजपूत
माता का नामरानी पंचरतन कुमारी देवी सिंह
पिता का नामसाहबजादा सिंह
पत्नी का नामधरमन बेगम और करमन बेगम
भाई/बहनबाबू अमर सिंह
प्रसिद्धिअंग्रेजो के खिलाफ डट कर लड़ाई, अंग्रेजो को आरा और जगदीशपुर के आस पास कभी टिकने नहीं दिया
रचना
पेशास्वतंत्रता सेनानी
पुत्र और पुत्री का नाम
गुरु/शिक्षकबाँसुरिया बाबा
देशभारत
राज्य क्षेत्रबिहार, उत्तर प्रदेश, बंगाल
धर्महिन्दू
राष्ट्रीयताभारतीय
भाषामगही, भोजपुरी, हिंदी
मृत्यु26-अप्रैल-1858 जगदीशपुर में
जीवन काल81 वर्ष
पोस्ट श्रेणीBiography of Babu Kunwar Singh (बाबू कुंवर सिंह की जीवनी)
Biography of Babu Kunwar Singh

कुंवर सिंह 1857 ईस्वी की क्रांति में कैसे कूदे?

दोस्तों 18 सो 57 की क्रांति के बिहार के श्रेष्ठ कम योद्धा बाबू कुंवर सिंह को भी अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता अपनी जान से ज्यादा प्यारी थी. उनका पराक्रम एवं साहस अदितीय था. जब प्रथम स्वतंत्रता संग्राम प्रारंभ हुआ तो आजादी के दीवाने कुमार सिंह अपने सिर पर कफन बांध कर निकल पड़े. वह क्षत्रिय थे उनकी रगों में उनके देश भक्त पूर्वजों का खून हिलोरे मार रहा था. उन्होंने हाथ में तलवार लेकर अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध भूमि में असाधारण वीरता का प्रदर्शन किया. उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जैसी वीरता साहस और शौर्य का प्रदर्शन किया उसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता. 18 सो 57 की क्रांति के अमर शहीद और बिहार के गौरव श्री बाबू कुंवर सिंह ने बिहार की जनता पर अमिट छाप छोड़ी है.

पटना, दानापुर, तथा आरा में भी 1857 क्रांति का विद्रोह

8 अप्रैल 1857 ईस्वी को मंगल पांडे को बैरकपुर की जेल में फांसी पर लटकाने के बाद सारे भारत के फौजियों के हृदय में विद्रोह की अग्नि प्रज्वलित हो उठी. विद्रोही फौजियों ने अंग्रेजों के विरुद्ध तलवार उठा ली देखते ही देखते आजादी के लिए आग सारे भारत में फैल गई. कोलकाता, पटना, बनारस, कानपुर, लखनऊ, मेरठ, और दिल्ली आदि शहरों में क्रांति की लपटें उठने लगी. ऐसा प्रतीत होने लगा कि अंग्रेजों को भारत छोड़कर जाना ही पड़ेगा. एक इतिहासकार के अनुसार यदि देशी रजवाड़े और नवाब आश्रय ने देते तो 1857 में ही अंग्रेज भारत छोड़कर चले गए होते.

भारत के अन्य नगरों के सम्मान पटना, दानापुर तथा आरा में भी विद्रोह की ज्वाला भड़क उठी विद्रोही सैनिकों ने अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया. अंग्रेजों ने हर संभव तरीके से इस विद्रोह का दमन करने का प्रयास किया. इसी समय विद्रोही नेता पीर अली को गिरफ्तार कर लिया और उसको फांसी पर लटका दिया. इस समय दरभंगा में विरोधियों का नेतृत्व वारिस अली कर रहा था अंग्रेजों ने उसे भी बंदी बनाकर फांसी दे दी.

जगदीशपुर पर अंग्रेजों का आक्रमण

बाबू कुंवर सिंह जगदीशपुर पहुंचकर अपनी सेना को पुनः संगठित करना शुरू कर दिया. अतः अय्यर ने जगदीशपुर पर आक्रमण कर दिया कोर्ट ने यहां भी बड़ी वीरता से उसका सामना किया. परंतु अंग्रजो के सैनिकों की संख्या अधिक होने के कारण उन्हें पीछे हटने के लिए विवश होना पड़ा. यही नहीं उन्हें 1200 विद्रोहियों सहित अपने कुटुंब की स्त्रियों के साथ जगदीश को छोड़कर भागना पड़ा. उनके जाते ही अय्यर ने जगदीशपुर पर अपना अधिकार कर लिया. अंग्रेजों ने जगदीशपुर में शिव मंदिर को तोड़ दिया स्त्री और पुरुष पर अत्याचार किए. निरपराध लोगों को मौत की नींद सुला दिया.

कुंवर सिंह ने पुनः संघर्ष की तैयारियां प्रारंभ कर दी अंग्रेजों को यह जानकारी मिलने पर उन्होंने कर्नल मिलमैन के नेतृत्व में एक बहुत बड़ी फौज भेजी 22 मार्च 1858 ईस्वी को बाबू साहब तथा अंग्रेजों के बीच युद्ध हुआ जिसमें कर्नल मिली मेन को युद्ध क्षेत्र छोड़ने के लिए विवश होना पड़ा कुंवर सिंह ने आजमगढ़ दुर्ग पर अधिकार कर लिया.

कर्नल डेस ने आजमगढ़ पर अधिकार करने का प्रयास किया परंतु उसे असफलता ही हाथ लगी. कुंवर सिंह की सामरिक कुशलता के समक्ष कर्नल डेस को भी प्राप्त होना पड़ा कुंवर सिंह की वजह से अंग्रेज अधिकारी हतप्रभ रह गए.

आरा में अंग्रेजो के साथ बाबू कुँवर के साथ लड़ाई

अंग्रेजों ने पटना तथा दरभंगा की भांति आरा और उसके आसपास के क्षेत्र में फैले हुए विद्रोह को कुचलने का प्रयास किया. आरा में विद्रोहियों का नेतृत्व कुवरसिंह कर रहा था जिसमें साहस और शौर्य आदित्य था. अतः उसके सामने अंग्रेजों के छक्के छूट गए. उनकी तलवार की धार की चमक आज भी इतिहास के पृष्ठों को चोधिया देती है.

वीर सावरकर ने कुंवर सिंह के रण कौशल का मूल्यांकन करते हुए लिखा है. अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति में अपनी युद्ध पद्धति और रणकौशल में उसकी बराबरी का कोई वीर नहीं था. छत्रपति शिवाजी के पश्चात गोरिला युद्ध के महत्व को सर्वप्रथम उसी ने सिद्ध किया था. वीर शिवाजी की भांति गोरिला युद्ध के दाव पेचो का पूर्ण जानकारी और सिर्फ एक कुँवर सिंह ही एकमात्र वीर था. यही नहीं 1857 की क्रांति में तात्या टोपे और कुंवर सिंह ने गोरिला युद्ध के जो काम किए है. यदि उनकी तुलना की जाए तो पहला स्थान कुंवर सिंह को ही देना पड़ेगा.

विद्रोह प्रारंभ होने के समय कुंवर सिंह वृद्धावस्था में पहुंच चुके थे. उस समय उनकी आयु 80 वर्ष की हो चुकी थी. फिर भी वह सिंह के सम्मान थे विद्रोह प्रारंभ होते ही उनके मृत शरीर की रगों में तरुणाई जाग उठी उन्होंने विद्रोह का नेतृत्व करते हुए आरा के विद्रोहियों में नवजीवन का संचार कर दिया. एक अंग्रेज इतिहासकार ने उनके संबंध में लिखा है. यदि आरा और कानपुर के बीच में कुंवर सिंह की भांति कोई एक वीर और होता तो अंग्रेजों का भारत में रहना कठिन हो जाता.

17 अप्रैल 18 58 ईस्वी को बाबू कुंवर सिंह और डग्लस के बीच लड़ाई

17 अप्रैल 18 सो 58 ईस्वी को कुंवर सिंह और डग्लस के बीच लड़ाई हुई. जिसमें कुंवर सिंह ने डग्लस को पराजित कर दिया. तत्पश्चात उन्होंने बलिया से 6 मील दूर शिवपुर घाट से गंगा नदी को पार करने का निश्चय किया. चारों तरफ यह खबर फैल जाने से अंग्रेज सेना शीघ्र ही गंगा के तट पर पहुंच गई थी. जब वह गंगा नदी पार कर रहे थे तब एक गोला उनकी नाव के पास आकर गिरा नाव तो उलट ने से बच गई. परंतु उस गोले के शीशे उनके दाहिने हाथ की कलाई में जा घुसे. बाबू कुंवर सिंह ने अपनी तलवार से अपना दाहिना घायल हाथ काट कर मां गंगा को अर्पण कर दिया. और श्रद्धा उन्नत यह शब्द कहे हे! गंगा मैया अपने प्यारे पुत्र की यह भेंट स्वीकार करो.

इतिहासकारों के अनुसार घायल अवस्था में बाबू साहब 22 अप्रैल को जगदीशपुर पहुंचे जहां उनका अभिनंदन किया गया कैप्टन ली ग्रैंड ने कोर सिंह के जगदीशपुर पहुंचते ही उन पर आक्रमण कर दिया. 23 अप्रैल 1858 को जगदीशपुर में भयंकर युद्ध हुआ इसमें कुँवर सिंह की सेना बादलों की भाती गरजती हुई अंग्रेज सेना पर टूट पड़ी. जिसके परिणाम स्वरूप अंग्रेज सेना बुरी तरह पराजित होकर भाग खड़ी हुई. कैप्टन ली ग्रैंड के पास 300 में से मात्र 40 सैनिक ही जीवित बच पाए. बाबू साहब युद्ध में विजय हुए और उन्होंने जगदीशपुर पर आजादी का झंडा फहराया.

वीर बाबू कुँवर सिंह का अंतिम समय

दोस्तों कप्तान डेनवर 500 सिपाहियों को लेकर आरा पहुंच गया. उसका मुख्य उद्देश्य आरा को कुंवर सिंह से मुक्त करवाना था. कुंवर सिंह ने असाधारण वीरता का परिचय देते हुए डेनवर के सिपाहियों को भागने के लिए विवश कर दिया. इसके बाद जब डेनवर एक आम के बगीचे में अपने सैनिकों के साथ विश्राम कर रहा था. तब कुंवर सिंह ने अचानक आक्रमण कर उसके पश्चात सैनिकों का काम तमाम कर दिया शेष बचे हुए सैनिकों के साथ वहां से भाग खड़ा हुआ.

कप्तान डेनवर के जाने के बाद जनरल आयर एक विशाल सेना लेकर वहां पहुंचे 2 अगस्त अट्ठारह सौ सत्तावन ईसवी को कुंवर सिंह और अय्यर के बीच घमासान युद्ध हुआ. जिसमें कोर्ट ने अय्यर का डटकर सामना किया परंतु उन्हें पीछे हटने के लिए विवश होना पड़ा. अब वे जगदीशपुर जा पहुंचे उनके पीछे हटते ही अय्यर ने आरा में घिरे हुए अंग्रेजों को मुक्त कराया. और आरा पर पुनः अंग्रेजों का अधिकार स्थापित कर लिया.

बाबू कुंवर सिंह की मृत्यु कैसे हुई?

बाबू कँवर साहब जगदीशपुर युद्ध में विजय हुए और उन्होंने जगदीशपुर पर आजादी का झंडा फहराया. जगदीशपुर में चारों और प्रसन्नता की लहर छा गई शहनाइयां बजने लगी स्त्री-पुरुष झूम झूम कर नाचे एवं गाने लगे. जय जय प्यारा भारत देश परंतु कुंवर सिंह उन खुशियों को नहीं देख सके. उनका वृद्धशरीर युद्ध करते करते थक चुका था. अतः अपनी विजय के 3 दिन बाद 26 अप्रैल 18 सो 58 ईस्वी को अपनी मातृभूमि को याद करते हुए इस संसार से चल बसे.

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FAQs

Q- बाबू कुंवर सिंह जी का जन्म कहाँ हुआ था?

Ans- कुंवर सिंह का जन्म 1782 ईस्वी में बिहार राज्य के आरा जिले के जगदीशपुर नामक ग्राम में हुआ था.

Q- बाबू कुंवर सिंह ने अंग्रेजों से कितनी लड़ाई जीती थी?

Ans- बाबू कुंवर सिंह जी ने अंग्रेजों से सात (7 ) लड़ाई जीती थी.

भारत की संस्कृति

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