Biography of Jhansi ki Rani Laxmi Bai | लक्ष्मीबाई

By | December 13, 2023
Biography of Jhansi ki Rani Laxmi Bai
Biography of Jhansi ki Rani Laxmi Bai

दोस्तों भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के समय जिन्होंने भारत माता के मस्तक को गौरव से ऊंचा किया. उनमें से एक थी महारानी लक्ष्मीबाई, आप एक योग्य, ईमानदार, शासिका थी. वीरता के गुण आपमें कूट-कूट कर भरे हुए थे. अभिमन्यु की भाती अल्प आयु में सैकड़ों अंग्रेजों को धराशाई करते हुए आप वीरगति को प्राप्त हुई. आपने देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया था. उनका साहस वीरता और बलिदान आजादी के संघर्ष के दौरान महिलाओं को प्रेरणा देता रहा. हम यहाँ झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की जीवनी (Biography of Jhansi ki Rani Laxmi Bai). और उनके संघर्ष से जुड़े आश्चर्यजनक तथ्य आपके साथ शेयर करने जारहे है. तो दोस्तों चलते है और जानते है रानी लक्ष्मीबाई की रोचक जानकारी.

अंग्रेज सरकार ने बाजीराव को पेशवा पद से हटाकर ₹800000 पेंशन देकर बिठूर उत्तर प्रदेश के कानपुर में गया था. उनके भाई चिमना जी ने भी पेंशन प्राप्त कर ली और पुणे से बनारस आ गए थे. लक्ष्मीबाई के पिता मोरोपंत भी चिमना जी अप्पा के साथ बनारस आ गए और यहाँ पूजा पाठ का काम करने लगे. इस काम के बदले में उन्हें ₹50 प्रति माह वेतन दिया जाता था. रानी की माता भागीरथी बाई एक धर्म लिस्ट महिला थी. रानी का जन्म 16 नवंबर 1835 ईस्वी को वाराणसी (काशी) में हुआ था.

महारानी लक्ष्मीबाई कौन थी?

झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 16 नवंबर 1835 ईस्वी को काशी में हुआ था. लक्ष्मीबाई का बचपन का नाम मनु बाई था. वे जब 4 वर्ष की हुई तब उनकी माता चल बसी. आपके पिता मोरोपंत ने बड़े लाड प्यार से अपनी पुत्री का पालन पोषण किया. पेशवा बाजीराव ने मोरोपंत को अपने आश्रितों के परिवार में सम्मिलित करने के लिए कानपुर के बिठूर में आमंत्रित किया. अंत मोरोपंत अपनी 4 वर्षीय पुत्री मनुबाई को लेकर काशी से बिठूर चले गए. मनु बाई (लक्ष्मीबाई) का जन्म गंगा नदी के तट पर मणिकर्णिका घाट पर हुआ था. इसलिए मनुबाई (लक्ष्मीबाई) को दूसरा नाम मणिकर्णिका बाई के नाम भी पुकारते है.

लक्ष्मीबाई के पूर्वजक महाराष्ट्र के सतारा जिले के “बाई” नामक नगर के निवासी थे. उनके दादा का नाम कृष्ण राम तांबे था. जो एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण थे. उनके पुत्र बलवंत राव थे. जो पेशवा की सेना में सेनानायक के पद पर नियुक्ति थे. रानी लक्ष्मीबाई के पिता मोरोपंत इन्ही के सुपुत्र थे.

बाजीराव पेशवा निसंतान थे. अंत उन्होंने पांच 6 वर्ष की आयु के नाना जी को गोद लिया था. मनुबाई का बचपन नाना साहब के तात्या टोपे के साथ खेलकूद में वयतीत हुआ. चंचल प्रवृत्ति की होने के कारण उन्हें लोग मनु बाई को छबीली कहकर पुकारते थे. मनुबाई ने नाना साहब और तात्या टोपे के साथ पढ़ना लिखना प्रारंभ किया. एवं मराठी हिंदी एवं फारसी भाषा का ज्ञान प्राप्त कर लिया था. धर्म शास्त्रों में उनकी विशेष रूचि थी. मनु ने बचपन में ही भाला,बरछा, तलवार तथा बंदूक चलाना सिखा घुड़सवारी में उनका विशेष लगाव था. एक बार उसने घुड़सवारी में नाना साहब को पीछे छोड़ दिया था.

Summary

नाममनु बाई
उपनामझाँसी की रानी लक्ष्मीबाई/छबीली/मणिकर्णिका बाई
जन्म स्थानकाशी
जन्म तारीख16 नवंबर 1835 ईस्वी
वंशतांबे
माता का नामभागीरथी सपरे
पिता का नाममोरोपंत
पति का नाममहाराजा गंगाधर राव
उत्तराधिकारीदामोदर राव
भाई/बहन
प्रसिद्धिझाँसी की रानी/स्वतंत्रता सेनानी/क्रांतिकारी
रचनाक्रांतिकारी
पेशारानी/राजकुमारी
पुत्र और पुत्री का नामदामोदर राव
गुरु/शिक्षकनाना साहब पेशवा
देशभारत
राज्य क्षेत्रउत्तर प्रदेश
धर्महिन्दू
राष्ट्रीयताभारतीय
भाषाहिंदी/मराठी
मृत्यु18 जून 1858
मृत्यु स्थानग्वालियर, मध्य प्रदेश
जीवन काल24 वर्ष
पोस्ट श्रेणीBiography of Jhansi ki Rani Laxmi Bai
Biography of Jhansi ki Rani Laxmi Bai

मनु बाई और पिता मोरोपंत के मध्य संवाद

एक दिन एक सजे धजे हाथी की पीठ पर रखे हुए सुंदर होदे को देखकर मनु बाई ने अपने पिता से कहा. कि “पिताजी में हाथी की सवारी करूंगी पिता ने उत्तर दिया और कहा कि बेटी तेरे किस्मत में हाथी की सवारी कहां. बालिका मनु तुरंत अपने पिता से कहा मेरे भाग्य में एक नहीं सौ सौ हाथी लिखे हैं.

मनु बाई से झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई कैसे बनी?

जब मनू बाई 7 वर्ष की हुई तब उसके पिता ने उसके लिए उपयुक्त वर खोजना प्रारंभ कर दिया था. क्योंकि पहले लड़कियों की शादी बहुत कम उम्र में हो जाती थी. इस समय पेशवा बाजीराव के दरबार में व्यक्ति आया जो झांसी का प्रसिद्ध ज्योतिषी था. मोरोपंत अपनी पुत्री मनु के लिए योग्य वर बताने के लिए अनुरोध किया. ज्योतिषी ने झांसी के तत्कालीन महाराजा गंगाधर राव को मनु (लक्ष्मीबाई ) के विलक्षण सौन्दर्य के बारे में बताया.

झांसी के महाराजा गंगाधर राव ने कई विवाह किये परंतु अभी तक वह निःसंतान थे. तथा उनकी पत्नी को मरे हुए बहुत समय बीत चुका था. अतः संतान प्राप्ति के लिए वे विवाह करना चाहते थे. जब दीक्षित ने उन्हें मनु की सुंदरता के बारे में बताया तो उन्होंने लक्ष्मीबाई से विवाह करने हेतु अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी. 1842 ईस्वी में महाराजा गंगाधर राव ने मनू बाई से विवाह कर लिया था. अब मनु भाई झांसी की रानी लक्ष्मीबाई बन गई थी.

झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई 1857 ईस्वी की क्रांति में क्यों कूदी थी?

दोस्तों ब्रिटिश सरकार पर लेप्स सिद्धांत के तहत 1818 ईस्वी में बाजीराव पेशवा का राज्य झांसी हड़पकर उनको पेंशन देकर बिठूर (कानपूर) भेज दिया. और पंजाब में शिखो, बंगाल के नवाबों सहित संपूर्ण भारत के राज्यों ने अंग्रेजी हुकूमत को स्वीकार कर लिया था. अंग्रेज सरकार देशी रियासत को हड़पने के लिए कोई ना कोई बहाना बना लेती थी. झांसी के राजा गंगाधर राव को पूर्ण विश्वास था. कि अंग्रेज उनकी राज्य भक्ति का ध्यान रखते हुए उनके राज्य को यथावत रखेंगे. परंतु अंग्रेज तो झांसी के राज्य को हड़पना चाहते थे. अतः उन्होंने गंगाधर राव के अनुरोध को ठुकराते हुए, उनके दत्तक पुत्र दामोदर राव को वारिश मानने से इनकार कर दिया. 16 मार्च 1854 ईस्वी को अंग्रेजों ने झांसी को हड़प लिया. झांसी का शासन अंग्रेजी सरकार की कंपनी अपने हाथों में ले लिया. और वहां के शासन प्रबंध का संचालन करने हेतु उसने अपने पदाधिकारी नियुक्त किए.

झांसी के महाराजा गंगाधर राव की मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने झांसी के खजाने में जमा की हुई साडे ₹400000 की राशि को भी सील कर दिया था. और झांसी के धन पर निगरानी हेतु अंग्रेजी सैनिक तैनात कर दिए गए. लॉर्ड डलहौजी ने अपने आदेश में लिखा था, कि यह रुपए दामोदरा राव को बालिग होने पर लोटा दिए जाएंगे. परंतु उसे महाराजा गंगाधर राव की गद्दी का वास्तविक उत्तराधिकारी नहीं माना जाएगा. अंग्रेजो ने झांसी की रानी के लिए ₹5000 प्रति माह पेंशन देना स्वीकार कर लिया. इस प्रकार रानी की स्थिति अपने ही घर में एक कैदी जैसी हो गई थी. वह अंग्रेजों की आज्ञा के बिना राज कोस से न तो पैसा खर्च कर सकती थी. और ना ही अपनी प्रजा की भलाई के लिए कोई कार्य कर सकती थी.

रानी लक्ष्मीबाई नहीं भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी के पास आवेदन पत्र भेजकर इस अन्याय का विरोध किया. परंतु उसका कोई परिणाम नहीं निकला डलहौजी ने रानी के आवेदन पत्र पर कोई ध्यान नहीं दिया. उसने झांसी के राज्य को अंग्रेजी राज्य में मिला लेने का आदेश दिया. झांसी के किले पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया और उनका झंडा फेरा दिया गया. अंग्रेजों के इस कार्य से न केवल झांसी का राज परिवार अपितु समस्त जनता दुखी हो उठी. रानी लक्ष्मीबाई इस अपमान को सहन नहीं कर सकी और उसने कसम खाई की “झांसी मेरी है भले ही मुझे झांसी के लिए अपने प्राण न्योछावर करने पड़े, पर मैं झांसी पर अंग्रेजों का अधिकार नहीं होने दूंगी.

1857 ईस्वी की क्रांति में रानी लक्ष्मीबाई का क्या योगदान था?

अट्ठारह सौ सत्तावन ईसवी की क्रांति प्रारंभ हो चुकी थी. जिसके कारण भारत के कोने कोने में सिपाही विद्रोह की ज्वाला भड़क उठी थी. कलकत्ता से दिल्ली के बीच की बड़ी-बड़ी छावनियों के भारतीय सैनिकों ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया था. चारो दिसावो में सिपाहियों द्वारा अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध लड़ा जा रहा था. झांसी की रानी के बचपन के साथी नाना साहब ने कानपुर में 4 जून 1857 ईस्वी से ही क्रांति मचा रखी थी. ठीक अगले दिन 05 जून 1857 ईस्वी को ही झांसी के सैनिकों ने भी अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की ज्वाला शुरू कर दी थी. इस विद्रोह का नेतृत्व कर रहे थे गुरुबख्श. विद्रोही सैनिकों झांसी के किले पर अपना अधिकार कर लिया और अंग्रेजो ने विद्रोहियों के सामने समर्पण कर दिया. विद्रोहियों ने रानी को अपना नेता मान कर लिया और झांसी के किले को उनको सोप दिया.

अब रानी ने क्रांति बाग़ डोर अपने हाथ में ले ली थी. दामोदर राव अभी नाबालिग था. अतः रानी लक्ष्मीबाई ने शासन प्रबंधन अपने हाथ में ले लिया. और प्रजा की भलाई के कार्य करने लगी. उसने बड़ी योग्यता से शासन का संचालन किया. सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के लिए रानी लक्ष्मीबाई ने सेना में भर्ती की और गोला बारूद का निर्माण झांसी में शुरू कर दिया. झांसी के महल पर से कंपनी का झंडा हटा दिया गया. और उसके स्थान पर दिल्ली के बादशाह का झंडा फेरा दिया गया. रानी के अधीन झांसी के साम्राज्य की सीमा यमुना नदी के तट और विंध्याचल तक थी. इस पर रानी का एकछत्र साम्राज्य था रानी के अधीन उनकी प्रजा अपना जीवन सुख शांति से व्यतीत करने लगी.

अंग्रेज इस बात को जानते थे की क्रांति का केंद्र झांसी में है. अतः वह रानी को पराजित किए बिना मध्य भारत में साम्राज्य कायम रखना संभव नहीं है. वे रानी लक्ष्मीबाई के बारे में अच्छे से जानते थे. इस लिए अंग्रेजो ने रानी को हराने के लिए व्यवस्थित तैयारी करने लगे.

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और अंग्रेजो के मध्य लड़ाई?

झांसी के विद्रोही सरदार नथे खां को रानी ने परास्त कर भागने के लिए विवश कर दिया था. वह युद्ध में पराजित होने के बाद अंग्रजो की सरण में पहुंच गया था. उसने रानी के विरोध में अंग्रजो को भड़काया था. उधर अंग्रेज भी अवसर की तलाश में थे. अंग्रेज सेना के सेनापति सर हुमरोज पांच हजार सेनिको के साथ तथा तोपों के साथ झांसी की रानी को हराने के लिए झांसी की और निकल पड़ा. 20 मार्च 1858 ईस्वी को अंग्रेजी सेना ने झांसी से 14 मील दूर अपना पड़ाव डाला. और रानी लक्ष्मीबाई को सन्देश भिजवाया की या तो समर्पण कर दे या फिर युद्ध के लिए त्यार हो जाये. झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने युद्ध करना ही उचित समझा.

25 मार्च 1857 ईस्वी को अंग्रेजो और झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के मध्य लड़ाई शुर हुई. अंग्रेजो की तोपे दिन रात आग बरसा रही थी. रात को किले में और शहर में गोले पड़ने लगे. बड़ा ही भयंकर दृश्य था. झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई और उनके सैनिको ने लगातार आठ दिनों तक मुकाबला किया और अंग्रजी सेना को झांसी के किले में प्रवेश नहीं करने दिया. दोस्तों अगर सिंधिया और टीकमचंद के राजा ने अंग्रेजो का साथ नहीं दिया होता तो. झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई हुमरोज को कब का ही पराजित कर देती.

लगातार तोपों की आग और अपने मरते हुए सैनिको के मध्य झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने हौसला बढ़ाना जारी रखा. अंत में अपने सैनिको और दरबारियों की सलहा पर, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई कालपी प्रस्थान का निर्णय लिया. उसी समय तात्या टोपे ने भी झांसी की सेना से मिलकर लड़ाई जारी रखी. लगातार हो रहे युद्ध से झांसी की सेना कमजोर हो चुकी थी. तात्या टोपे जंगलो में चले गए और रानी लक्ष्मीबाई कालपी जाते समय रास्ते में भी युद्ध लड़ती हुई कालपी पहुंची.

अंग्रेजो ने झांसी परअपना अधिकार कर लिया था. धीरे धीरे अपनी बड़ी सेना के साथ झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई से लड़ने के लिए और कालपी पर अपना अधिकार करने के लिए आगे बढे. यहाँ कालपी में नाना साहब और राव साहब और बाँदा के नवाब झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के नेतृत्व में लड़ाई लड़ने को त्यार नहीं हुए. उधर अंग्रजो ने बाँदा और आस पास के छेत्र को जित कर कालपी की और प्रस्थान किया.

ग्वालियर पर जीत और नाना साहब और तात्या टोपे का जसन

कालपी पर भी अंग्रजो का अधिकार हो गया, राव साहब और तात्या टोपे के साथ मिलकर तब झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने ग्वालियर पर आक्रमण कर दिया. यहाँ रानी लक्ष्मीबाई की जित हुई और उनका ग्वालियर के किले पर अधिकार हो गया. यहाँ की जित की खुशी में नाना साहब और उनके साथी तात्या टोपे ने इस जित का जसन मनाया. झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने आगाह किया था, जसन को छोड़ कर युद्ध की तयारी शुरू कर दो.

पर झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की एक नहीं सुनी गयी, और हुआ भी वही जिस बात का डर था. अंग्रेजो और सिंधिया को ग्वालियर हर हाल में वापस चाहिए था. कमांडर स्मिथ के नेतर्त्व में अंग्रेजो ने ग्वालियर पर आक्रमण किया. झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने स्मिथ की सेना को पीछे होने पर विवश कर दिया. उधर कालपी से विजय प्राप्त कर हुमरोज वापस आ गया और ग्वालियर पर अंग्रेजो से फिर से आक्रमण किया.

लक्ष्मीबाई ने और उसके साथियों ने हुमरोज की सेना का 2 दिन तक डटकर मुकाबला किया. उधर अंग्रेज सेना को निरंतर सहायता प्राप्त हो रही थी. रानी अकेली पड़ गई थी. अंत में अंग्रेज सैनिकों ने रानी लक्ष्मीबाई को घेर लिया था. रानी लक्ष्मीबाई ने उतशा नहीं छोड़ा, एवं बहादुरी से मारकाट कटी हुई उस घेरे को तोड़कर बाहर निकल गई. इससे पूर्व उसने अनेक अंग्रेजी सैनिकों को काट डाला था.

झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का अंतिम समय

अंग्रेज सैनिकों ने उन्हें रानी लक्ष्मीबाई का पीछा किया. मार्ग में एक नाला पड़ा रानी लक्ष्मीबाई नाला पार करना चाहती थी. पर घोड़ा नाले को देखकर बिदक गया था. इसी समय एक अंग्रेज सैनिक ने रानी के मस्तक पर तथा दूसरे ने वक्ष स्थल पर प्रहार किया. दोस्तों रानी मरते मरते भी मस्तिष्क पर प्रहार करने वाले सैनिक का काम तमाम कर दिया था. इसके बाद रानी घोड़े से नीचे गिर पड़ी और दम तोड़ गई. यह घटना 19 जून 1858 की है. रानी की मृत्यु पर उसके शव को एक विश्वासपात्र सेवक रामचंद्र राव देशमुख ने उठाकर बाबा गंगादास की झोपड़ी में ले गए. बाबा गंगादास ने अपने हाथों से रानी को जल पिलाया और अंग्रेजों के आने से पूर्व ही रानी का शव जला दिया गया था.

रानी लक्ष्मीबाई की एक इच्छा थी. कि अंग्रेज सैनिक उसको कभी भूल न पाए और उसकी यह इच्छा पूर्ण भी हुई. कुछ अंग्रेज गिर्द की भाती रानी लक्ष्मीबाई की लाश को लेने पहुंचे तब तक रानी की चिता राख हो चुकी थी.

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FAQs

Q- झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का जन्म कहाँ हुआ था?

Ans- झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का जन्म एक मराठी फॅमिली में वाराणसी (कासी ) में हुआ था.

Q- झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के पति का क्या नाम था.

Ans- झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के पति का क्या नाम महाराजा गंगाधर राव था.

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