अहमदुल्लाह कौन थे?
वहाबी आंदोलन वैसे तो एक धार्मिक आंदोलन था, लेकिन धीरे-धीरे इसे राजनीतिक स्वरूप ग्रहण कर लिया था. और वह भारत को अंग्रेजों की दासता से मुक्त करवाने की दिशा में अग्रसर हो चला था. भारत में सैयद अहमद शाह एवं शाह वली उल्ला वहाबी आंदोलन के नेता थे. सैयद अहमद शाह के बाद पटना जिले की सादीकपूर के निवासी अहमदुल्लाह (Biography of Ahmadullah) संप्रदाय के नेता बने थे.
मौलवी अहमदुल्लाह के नेतृत्व में वहाबी आंदोलन खुले रुप से अंग्रेजों का विरोधी बन गया था. भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध कोई सेना नहीं बनाई जा सकती थी. फतेह मौलवी अहमदुल्लाह ने सीमा पाकिस्तान नामक स्थान पर मुजाहिदीन की एक सेना बनाई उसके लिए धन जन तथा हथियार आदि भारत से ही भेजते थे.
Summary
नाम | अहमदुल्लाह |
उपनाम | मौलवी, डंक शाह, नककर शाह |
जन्म स्थान | हरदोई उत्तर प्रदेश |
जन्म तारीख | 1787 ईस्वी |
वंश | सुन्नी मुस्लिम |
माता का नाम | — |
पिता का नाम | गुलाम हुसैन खान हैदर अली |
पत्नी का नाम | — |
उत्तराधिकारी | — |
भाई/बहन | — |
प्रसिद्धि | क्रांतिकारी |
रचना | — |
पेशा | स्वतंत्रता सेनानी |
पुत्र और पुत्री का नाम | — |
गुरु/शिक्षक | नाना साहब |
देश | भारत |
राज्य क्षेत्र | उत्तर प्रदेश |
धर्म | मुस्लिम |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | हिंदी, उर्दू |
मृत्यु | 5 June 1858 |
मृत्यु स्थान | शाहजहांपुर |
जीवन काल | 71 वर्ष |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Ahmadullah |
1857 ईस्वी की क्रांति में मौलवी अहमदुल्लाह का क्या योगदान था?
अंग्रेज शासक मौलवी अहमदुल्लाह की गतिविधियों को संदेह की दृष्टि से देखते थे. परंतु उनका प्रभाव इतना अधिक था कि वे उनके विरुद्ध कोई कदम नहीं उठा सकते थे. जब 1857 में पटना में अंग्रेजों के विरूद्ध क्रांति भड़क उठी तो वहां के कमिश्नर टेलर ने मौलवी साहब को शांति स्थापित करने के उपायों पर विचार-विमर्श हेतु आमंत्रित किया. और वहीं पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.
जब पटना के कमिश्नर टेलर का ट्रांसफर हो गया तब ही मौलवी साहब को कैद से रिहा किया गया. रिहा होने के बाद मौलवी साहब ने अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष का नेतृत्व ग्रहण कर लिया. मुजाहिदीन ने तीन बार अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाइयां लड़ी प्रथम लड़ाई 1858 ईस्वी शाही नूनलरबी नामक स्थान पर लड़ी. दूसरी लड़ाई 3 सितंबर 1863 ईस्वी को, तृतीय लड़ाई नंबर 1863 ईस्वी में ही कोटला गढ़ की पहाड़ी पर लड़ी गयी. जब अंग्रेज लड़ाई में मुहाजिदिनो को पराजित नहीं कर सके तो उन्होंने रिश्वत का सहारा लेकर लड़ाई जीतने का प्रयास किया.
मौलवी अहमदुल्लाह 1857 की क्रांति और फांसी की सजा?
सन 1865 ईस्वी में मौलवी अहमदुल्लाह को बड़ी चालाकी से बंदी बना लिया गया. और उन पर मुकदमा चलाया गया, अंग्रेजों ने बहुत से प्रलोभन एवं लालच देकर बहुत मुश्किल से मौलवी साहब के विरुद्ध गवाही देने वाले तैयार किए. इस मुकदमे में गवाहों को आधार बनाकर सेशन जज ने मौलवी साहब को मृत्युदंड की सजा सुनाई। लेकिन हाईकोर्ट में अपील करने पर आजीवन काले पानी में परिवर्तन हो गई. मौलवी साहब को काले पानी की सजा काटने के लिए काल कोठरी में बंद कर दिया गया.
यद्यपि मौलवी साहब काले पानी की सजा कालकोठरी में रहकर काट रहे थे. तथापि वह वहां से भी भारत में चलने वाले वहाबी आंदोलन के नेताओं का मारक प्रदर्शन करते रहे. यही नहीं सीमा पार के गांव जिताना में मुजाहिदीन की फौज का भी मार्गदर्शन करते रहे. अब्दुल आर नाम की एक वहाबी ने उन्हीं के निर्देश पर बंगाल के चीफ जस्टिस पेस्टर्न नॉर्मल की सीढ़ियों से नीचे उतरते समय हत्या कर दी थी.
यही नहीं जब भारत के वायसराय लॉर्ड मेयो अंडमान के सरकारी दौरे पर आए. तो 8 फरवरी 1872 ईस्वी को मोटर बोर्ड पर चढ़ते समय एक वहाबी पठान से रैली ने उनकी हत्या कर दी. यह हत्या की योजना भी मौलवी साहब ने ही बनाई थी. मौलवी साहब 25 वर्ष तक अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष करते रहे. जिसके लिए भारत हमेसा उनका ऋणी रहेगा.
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FAQs
Ans- अहमदुल्लाह वहाबी आंदोलन के नेता थे.