बिहार के पर्वतीय प्रदेश में संथाल जाति और अंग्रेज सेना के बीच भयंकर संघर्ष चल रहा था. अंग्रेज लोग संथाल के पर्वतीय प्रदेश पर अधिकार करना चाहते थे. और संथाली उस प्रदेश पर अंग्रेजों का अधिकार नहीं होना देना चाहते थे. इस समय अंग्रेजी सेना का नेतृत्व मजिस्ट्रेट मिस्टर क्लीवलैंड, और संथालियों का तिलका मांझी कर रहे थे. हम यहाँ तिलका मांझी की जीवनी (Biography of Tilka Manjhi) और उनसे जुड़े रोचक तथ्य की जानकारी आपके साथ शेयर करने जा रहे है. इस लिए दोस्तों बने रहे हमारे साथ अंत तक. इनके नाम पर बिहार के भागलपुर में यूनिवर्सिटी भी है जिसमे आदिवासी और लोगो की पढाई होती है, यहाँ एडमिशन कैसे ले की जानकारी यहाँ लिंक से पढ़े.
तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय प्रवेश प्रक्रिया
तिलका मांझी कौन थे? (Biography of Tilka Manjhi)
तिलका का जन्म बिहार के आदिवासी परिवार में तिलकपुर में हुआ था. जिस दिन तिलका मांझी का जन्म हुआ वो दिन था 11 फरवरी, 1750. तिलकपुर बिहार के सुल्तानगंज जिले का एक छोटा सा गाँव है. आपको बचपन से नाम मिला जबरा पहाड़िया. आपके पिता जी का नाम सुंदरा मुर्मू था. आपका परिवार एक संथाल जाती का परिवार था. बचपन में ही तीर चलाने, जंगली जानवरों का शिकार करने, नदियों को पार करने, एवं ऊंचे ऊंचे वृक्षों पर चढ़ने में दक्ष हो गया था. आप अपनी जाति पर अंग्रेजों के शोषण को सहन नहीं कर पाए. और अपनी जाति को अंग्रेजों के अत्याचारों से मुक्त कराने का निश्चय किया. इसके लिए उसने अंग्रेजों से निरंतर युद्ध लड़ा अंत में देश की आजादी के लिए उसने अपने प्राण तक की बली चढ़ा दी थी.
Summary
नाम | तिलका मांझी |
उपनाम | जबरा पहाड़िया |
जन्म स्थान | गांव तिलकपुर, जिला सुल्तानगंज, बिहार |
जन्म तारीख | 11-फरवरी-1750 |
वंश/जाती | संथाल, आदिवासी |
माता का नाम | — |
पिता का नाम | सुंदरा मुर्मू |
पत्नी का नाम | — |
भाई/बहन | — |
प्रसिद्धि | संथाल विद्रोह, अंग्रेजो से लड़ाईया, भारत का पहला विद्रोही, स्वतंत्रता सेनानी |
रचना | — |
पेशा | स्वतंत्रता सेनानी |
पुत्र और पुत्री का नाम | — |
गुरु/शिक्षक | — |
देश | भारत |
राज्य क्षेत्र | बिहार |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | संथाल, भोजपुरी, आदिवासी |
मृत्यु का कारन | 13-जनवरी-1785 भागलपुर के चौराहे पर विशाल वटवृक्ष पर उन्हें लटकाकर फांसी |
जीवन काल | 35 वर्ष |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Tilka Manjhi (तिलका मांझी की जीवनी) |
जबरा पहाड़िया (तिलका मांझी) की अंग्रेजो से लड़ाईया?
दोस्तों जबरा पहाड़िया (तिलका मांझी) ने अंग्रेजो से अनेक युद्ध लड़े थे. सन 1771 से सन 1784 तक उन्होंने अंग्रेजो शोषण के विरुद्ध लंबी लड़ाई लड़ी. इन्होंने 1778 ई. में पहाड़िया सरदारों से मिलकर रामगढ़ कैंप पर कब्जा करने वाले अंग्रेजों को खदेड़ कर रामगढ़ कैंप को मुक्त कराया था.
तिलका मांझी ने क्लीवलैंड को कैसे मारा था?
दोस्तों तिलका मांझी ने अंग्रेजी सेना का पता करने के लिए बहुत ऊंचे ताड़ के वृक्ष पर जल गया था. उस समय अंग्रेजी सेना पास ही झाड़ियों में छिपी हुई थी. अंग्रेजो की सेना का मजिस्ट्रेट मिस्टर मि. क्लीवलैंड मैं तिलका मांझी को ताड़ के वृक्ष पर चढ़ते हुए देख लिया था. उसने अपनी सैनिक टुकड़ी के साथ उस वृक्ष को घेर लिया और ललकारते हुए कहा तिलका मांझी तुम अपना धनुष बाण नीचे फेंक दो. और ताड़ के पेड़ से नीचे उतरकर हमारे सामने समर्पण कर दो. वीर तिलका मांझी ने जवाब में मिस्टर क्लीवलैंड पर एक तीर चलाया, जो क्लीवलैंड की छाती में घुस गया और वह घोड़े से नीचे गिर कर छटपटाने लगा. इसी बिच तिलका मांझी अंग्रेजी सेना के आने से पहले ताड़ के वृक्ष से निकलकर गायब हो गया.
जबरा पहाड़िया (तिलका मांझी) अंग्रेजों की कैद में कैसे आये?
तिलका मांझी ने मुंगेर भागलपुर है संथाल में अंग्रेजी सेना के दांत खट्टे कर दिए अंग्रेजी सेना ने ऑथर कूट के नेतर्त्व में तिलकामांझी को फसाने के लिए चालाकी से जाल बिछाया. अंग्रेज सेना ने कुछ दिन क्रांतिकारियों का पीछा करना बंद कर दिया था. और उसके साथियों ने इसे अपनी विजय मानते हुए विजय उत्सव बनाया. तभी छिपी हुई अंग्रेज सेना ने अचानक उन पर आक्रमण कर दिया.
इसी आक्रमण में बहुत से संथाल के वीर मारे गए और कुछ बंदी बना लिए गए तिलकामांझी बहुत मुश्किल से अपने कुछ साथियों के साथ जान बचाने में सफल हो गया गोरिल्ला पद्धति से प्रारंभ कर दिया तिलका मांझी ने अपने साथियों सहित मरने का निश्चय किया.
तिलका मांझी को फांसी कब और कैसे हुई थी?
तिलका मांझी और उनके साथियों ने अंग्रेजी सेना से भयंकर युद्ध किया. संथाल के क्रांतिकारियों ने बहुत से अंग्रेजों को मौत की नींद सुला दिए थे. अंग्रेज चाहते हुए भी इनका को गिरफ्तार करने में सफल नहीं हो सके. अंग्रेजों ने अपनी सेनिको का बदला लेने के लिए तिलका मांझी को एक वट वृक्ष से लटकाकर फांसी दे दी थी. वह अपने क्षेत्र का पहला शहीद था. उसके कार्यकाल के 90 वर्ष के बाद भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम प्रारंभ हुआ था.
भारत के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी कौन थे?
दोस्तों आपने किताबो में पढ़ा होगा की भारत के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडे थे. जो की उन्होंने बैरकपुर की छावनी से 1857 की क्रांति का बिगुल फुका था. पर दोस्तों मंगल पांडे जी से भी पहले भारत में अंग्रेजो के खिलाफ दो विद्रोह हो चुके थे. पहला विद्रोह था, तिलका मांझी ने किया जो सन 1771 से 1784 तक चला था. दूसरा विद्रोह 1813 से 1814 में उड़ीसा (अब ओडिशा) के राजा बख्शी जगद्बंधु बिद्याधर महापात्रा भरमबार रे ने सशस्त्र विद्रोह कर अंग्रेजों को खदेड़ने की रूपरेखा बनाई थी.
उन्होंने अपनी सेना जिसे पाइका कहा जाता था को तैयार किया. पाइका लड़ाके हर तरह के युद्ध में कुशल थे और अंग्रेजो पर टूट पड़ते थे. अतः हम कह सकते है, भारत को आजाद कराने के लिए अंग्रजो से लड़ने वालो में तिलक माझी पहले भारत के क्रांतिकारी है.
बाबा तिलका मांझी कौन थे?
बाबा तिलका मांझी या तिलका मुर्मू पहले संथाल नेता थे. जिन्होंने मंगल पांडे से लगभग 90 साल पहले 1771 से 1784 तक अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठाए थे. तिलका मांझी पहले पहाड़िया नेता थे, जिन्होंने 1780 के दशक में अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठाए थे. अंग्रेजों ने तिलकपुर के जंगलो में इनको घेर लिया, जहां वह काम करता था. लेकिन उसने और उसके आदमियों ने उन्हें कई हफ्तों तक रोके रखा. जब वह अंततः 1784 में पकड़ा गया, तो उसे एक घोड़े की पूंछ से बांध दिया गया और बिहार के भागलपुर में कलेक्टर के आवास तक खींच लिया गया.
वहां उनका क्षत-विक्षत शरीर बरगद के पेड़ से लटका हुआ था. भारतीय स्वतंत्रता के बाद इस स्थान पर वीर नेता की एक प्रतिमा बनाई गई थी. जो एसपी भागलपुर का निवास स्थान है, और उनके नाम पर “तिलका मांझी चौक” रखा गया है. साथ ही भागलपुर विश्वविद्यालय से उनके नाम पर “तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय” रखा गया.
तिलकामांझी की मृत्यु कैसे हुई?
दोस्तों इस वीर आदिवासी जबरा पहाड़िया को अंग्रेजो ने धोखे से कैद किया. ऑथर कूट के नेतृत्व में तिलका मांझी की गुरिल्ला सेना पर हमला किया गया था. जिसमें कई लड़ाके मारे गए और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. कहते हैं उन्हें चार घोड़ों में बांधकर घसीटते हुए भागलपुर लाया गया था. तिलका मांझी की लाल आँखे देख अंग्रेज़ घबरा गए थे. डरते हुए अंग्रेज़ो ने भागलपुर के चौराहे पर स्थित एक विशाल वटवृक्ष पर उन्हें लटकाकर उनको फांसी की सजा देकर हत्या कर दी. 13-जनवरी-1785 को जबरा पहाड़िया ने हम भारत के रहने वालो को सदा सदा के लिए ऋणी बना गए.
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FAQs
Ans- तिलका मांझी का जन्म 11 फरवरी, 1750 तिलकपुर बिहार में हुआ था. इनका वास्तविक नाम जबरा पहाड़िया था. तिलका नाम अंग्रेजो ने दिया था.
Ans- तिलका मांझी जी को 13-जनवरी 1785 में भागलपुर में फांसी हुई थी.